Friday, 31 October 2014

यहां महिला को बलात्कार से आत्मरक्षा करने पर फांसी दी जाती है

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम प्रयासों के बावजूद 26 वर्षीय ईरानी महिला रेहाना जब्बारी को नहीं बचाया जा सका। अपने साथ बलात्कार करने की कोशिश करने वाले शख्स को जान से मार देने के आरोप में करीब सात साल से जेल की सजा काट रही रेहाना को 25 अक्तूबर को फांसी दे दी गई। रेहाना ने फांसी से पहले अपनी मां को एक पत्र लिखकर अपनी मौत के बाद अंगदान की इच्छा जताई। दिल दहला देने वाला यह पत्र अप्रैल में ही लिखा गया था लेकिन इसे ईरान के शांति समर्थक कार्यकर्ताओं ने रेहाना को फांसी दिए जाने के एक दिन बाद यानि 26 अक्तूबर को ही सार्वजनिक किया। रेहाना की मां ने जज के सामने पूर्व खुफिया एजेंट मुर्तजा अब्दोआली सरबंदी की हत्या के आरोप में अपनी बेटी रेहाना की जगह खुद को फांसी दे दिए जाने की गुहार लगाई थी। रेहाना ने 2007 में अपनी रसोई के कमरे में चाकू से बलात्कार का प्रयास करने वाले खुफिया एजेंट पर वार किया था जिसमें उसकी मौत हो गई थी। कार्यकर्ताओं ने कहा कि रेहाना की मां को अपनी बेटी से अंतिम बार एक घंटे के लिए मिलने दिया गया था, तब उन्हें बताया गया था कि कुछ घंटों पहले उन्हें इस बारे में इत्तिला कर दिया जाएगा। कोर्ट के आदेश के मुताबिक साल 2007 में जब्बारी ने सरबंदी पर जिस चाकू से वार किया था, वह दो दिन पहले ही खरीदा गया था। जब्बारी को साल 2009 में सोची-समझी हत्या का दोषी पाया गया था लेकिन मामले में सजा ईरान के सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस फैसले पर मुहर लगाए जाने के बाद सुनाई गई थी। न्याय मंत्री मुस्तफा पी. मोहम्मदी ने अक्तूबर में इशारा किया था कि इस मामले का खुशनुमा अंत हो सकता था लेकिन सरबंदी के परिजनों ने जब्बारी की जान बचाने के लिए पैसे लेने का प्रस्ताव ठुकरा दिया। मानवाधिकार संगठन ऐमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस आदेश को बिल्कुल गलत ठहराया। ऐमनेस्टी ने कहा कि हालांकि जब्बारी ने सरबंदी को रेप करते वक्त चाकू मारे जाने की बात स्वीकार की लेकिन उसकी (सरबंदी की) हत्या में मौजूद एक अन्य व्यक्ति ने की थी। हम ईरानी के जस्टिस सिस्टम पर टीका-टिप्पणी नहीं करना चाहते पर इतना जरूर कहेंगे कि आत्मरक्षा के लिए, आत्मसम्मान के लिए अगर कोई महिला बचाव करती है तो उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए। उसने कोई सोची-समझी रणनीति के तहत हमला नहीं किया और न ही उसको इससे कोई फायदा होने वाला था। यह ठीक है कि अपने बचाव में उस अभागी महिला ने जो वार किया उसमें हमलावर की मौत हो गई पर उसने इरादतन हत्या नहीं की। उसने अपने बचाव के लिए यह कदम उठाया था। इस सजा का मतलब यह भी निकलता है कि महिला अपने आत्मसम्मान, आत्मरक्षा में कोई कदम न उठाए और बलात्कारी को उसका काम पूरा करने दे? बहुत ही दुखद किस्सा है।

-अनिल नरेन्द्र

देवेंद्र फड़नवीस ः 27 में मेयर और 44 में सीएम

महाराष्ट्र में पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने जा रही भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस पर भरोसा जताया है। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के रूप में गैर जाट मुख्यमंत्री देने के बाद भाजपा ने इस युवा मुख्यमंत्री पर दांव खेला है। देवेंद्र फड़नवीस पार्टी के उभरते चेहरे हैं और केंद्रीय नेतृत्व विशेषकर प्रधानमंत्री और अमित शाह की पसंद हैं। उन्हें मुख्यमंत्री चयनित कर पार्टी ने जहां प्रदेश में लंबी राजनीतिक पारी खेलने की मंशा जाहिर की है वहीं चुनाव के पहले तक भाजपा की 25 साल से सहयोगी रही शिवसेना के लिए भी सख्त संदेश दिया है। यों तो 1995 से 1999 के दौरान भाजपा के शिवसेना के साथ गठबंधन और सरकार में उसकी भूमिका छोटे भाई जैसी ही रही। नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्र में सरकार बनाने के बाद से भाजपा की नजर जिन राज्यों में थी उसमें महाराष्ट्र भी शामिल था। शिवसेना की मांगों को ठुकराते हुए पार्टी ने चुनाव में अकेले जाने का फैसला किया और उसका यह दांव सही साबित भी हुआ। बेशक भाजपा को मोदी की लोकप्रियता और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतियों का फायदा मिला पर यह सच है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे फड़नवीस ने पार्टी को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही नहीं विधानसभा में भी आदर्श घोटाले और सिंचाई घोटाले के मुद्दे पर उन्होंने लगातार कांग्रेस-एनसीपी सरकार पर तीखे हमले किए। यही वजह थी कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार एंड कंपनी यह नहीं चाहती थी कि स्वच्छ और ईमानदार छवि के फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया जाए। वह चाहते थे कि नितिन गडकरी को भाजपा मुख्यमंत्री घोषित करे ताकि उनसे वह अपना तालमेल बैठा सकें। नए मुख्यमंत्री भी विदर्भ से ही ताल्लुक रखते हैं जिस पर भाजपा दिग्गज और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की असरदार पकड़ है। लेकिन गडकरी भी इस युवा नेता को उड़ान भरने से नहीं रोक सके। इसमें कोई संदेह नहीं कि देवेंद्र फड़नवीस एक सक्षम और जीवंत युवा राजनेता के रूप में उभरे हैं। बावजूद इसके यह भी सच्चाई है कि उनके पास प्रशासनिक कार्यों के पर्याप्त अनुभव का अभाव है और उनकी राजनीति भी कमोबेश विदर्भ के आसपास ही सिमटी रही। सबसे कम उम्र में नागपुर के मेयर बनने की उपलब्धि बेशक उनके पास है और चुनावों में अजेय रहने का पराक्रम भी वह लगातार दिखा रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र जैसे राज्य की सबसे ताकतवर कुर्सी के लिए जैसे तगड़े दावेदारों की फौज सामने खड़ी थी उन्हें पछाड़ना भी मामूली बात नहीं थी। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नितिन गडकरी जैसे दिग्गज को पीछे छोड़ने वाले फड़नवीस को मोदी और शाह के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी समर्थन प्राप्त है और वह उस विदर्भ से आते हैं जिसने भाजपा को क्षेत्र की 62 में से 44 सीटें दी हैं। जाहिर है कि उनके मुख्यमंत्री बनने से भले ही अलग विदर्भ राज्य की मांग को थोड़ा विराम मिल जाए मगर इस क्षेत्र के लोगों की उनसे अपेक्षाएं भी काफी होंगी। खासतौर से इसलिए भी क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से यह इलाका किसानों की आत्महत्या के कारण लगातार सुर्खियों में रहा है। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के रूप में गैर जाट मुख्यमंत्री देने के बाद भाजपा फड़नवीस के रूप में महाराष्ट्र को गैर मराठा मुख्यमंत्री दे रही है। यह प्रदेश की राजनीति में एक तरह से मराठा वर्चस्व को चुनौती है। सबसे दिलचस्प स्थिति शिवसेना की हो गई है जिसे एक तरह से थूक कर चाटना पड़ा है। मोदी और शाह अब इस बात पर बल दे रहे हैं कि उद्धव ठाकरे और अन्य शिवसेना नेता पहले माफी मांगें फिर आगे बात होगी।  पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण तो मनमोहन सिंह की तरह गठबंधन राजनीति की मजबूरियों का हवाला देकर निकल गए, लेकिन फड़नवीस ऐसा नहीं कर पाएंगे। इस बार महाराष्ट्र विधानसभा तक  पहुंचने वालों में दागियों की संख्या अभूतपूर्व तरीके से बढ़ी है जिसमें भाजपा भी कहीं से कम नहीं है। इन्हें कैसे अंकुश में रखेंगे नए मुख्यमंत्री? फिर अपनी ही पार्टी के महत्वाकांक्षी नेताओं से निपटना, पूर्व सरकार के घोटालों से निपटना होगा जो अब बड़ी रेस में मुंह की खाने के बाद चोट पहुंचाने के नए रास्तों की खोज में जुट जाएंगे। श्री देवेंद्र फड़नवीस 27 साल में मेयर बने और 44 में सीएम। उन्हें मुख्यमंत्री बनने पर बधाई।

Thursday, 30 October 2014

क्या झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी मोदी का जादू चलेगा?

महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद अब झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के लिए बिगुल बज गया है। एक बार फिर इन दोनों राज्यों में चुनावी शतरंज बिछ गई है। सियासी मोहरे इस दौरान अपनी चालें चलेंगे। इस राजनीतिक शह और मात में किसकी जीत होती है वह तो 23 दिसम्बर को ही पता चलेगा, लेकिन इन दोनों राज्यों पर आम लोगों की नजर रहेगी। महाराष्ट्र और हरियाणा में सिर्प एक ही दौर में मतदान को समेट दिया गया था, इसलिए झारखंड और जम्मू-कश्मीर के लंबे चुनाव कार्यक्रम पर कुछ लोग सवाल जरूर कर रहे हैं पर इन दोनों ही राज्यों में आतंकियों व नक्सलियों के अलावा पाकिस्तानी घुसपैठियों के खतरे को देखते हुए चुनाव आयोग की सतर्पता समझ आती है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों में विघ्न डालने के लिए जहां अलगाववादी तत्व सक्रिय हो गए हैं वहीं पड़ोसी पाकिस्तान भी इनमें विघ्न डालने का प्रयास करेगा। अगर जम्मू-कश्मीर में चुनाव अच्छे ढंग से निपट जाते हैं तो यह पाकिस्तान और अलगाववादियों के लिए करारा झटका होगा। देखना यह है कि महाराष्ट्र और हरियाणा की तर्ज पर इन दोनों राज्यों का चुनाव भी नरेन्द्र मोदी बनाम बाकी दलों के बीच होगा क्या? दोनों ही राज्यों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा के स्टार होंगे। पार्टी ने उनकी चमक के सहारे ही इन दोनों राज्यों के चुनाव में उतरने का फैसला किया है। यहां पर भाजपा ने एक बार फिर से महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह किसी को भी मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित किए बिना ही मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है। भाजपा का मानना है कि पहले सौ दिन में जिस तरह से कार्यक्रम और नीति के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में काम हुआ है, उससे देश में अभी भी मोदी लहर बनी हुई है। ऐसे में इन दोनों चुनावों में भी उसे सफलता हासिल होगी। भाजपा जम्मू-कश्मीर में लगता है कि किसी से भी चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं करेगी और अपने बूते पर सभी 87 विधानसभा सीटों पर लड़ेगी। अमित शाह अब जम्मू-कश्मीर के मिशन 44 पर लग गए हैं। जम्मू और लद्दाख में तो भाजपा मजबूत है पर असल परीक्षा तो कश्मीर घाटी में होगी। जम्मू-कश्मीर में भाजपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2008 विधानसभा चुनाव में हुआ था जब पार्टी ने 11 सीटें जीती थीं। इस बार लोकसभा चुनाव और बाद के हालात से पार्टी को उम्मीद दिखी लेकिन रास्ता कठिन है। लोकसभा चुनाव में जम्मू और लद्दाख क्षेत्र की 41 सीटों में भाजपा ने 27 सीटों पर बढ़त ली थी। लेकिन घाटी की बाकी 46 सीटों में बढ़त नहीं मिली थी। लेकिन इस बार नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस में बंटने का लाभ मिलने की उम्मीद है। एनसीपी और कांग्रेस अलग होकर चुनाव लड़ रही हैं, ऐसे में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर विकल्प बनाने की कोशिश करेगी। 2000 में बिहार से अलग होने के बाद झारखंड ने राजनीतिक स्तर पर बेहद अस्थिरता का दौर देखा है, साथ ही इस दौरान ऐसी घटनाएं हुईं जिसने पूरे देश को शर्मसार किया। यह अकेला ऐसा राज्य है जहां मधु कोड़ा के नेतृत्व में पांच निर्दलीय विधायकों की सरकार बनी। बाद में सीएम सहित सारी कैबिनेट भ्रष्टाचार के केस में जेल गई। राज्यसभा सीट बिकने तक के मामले सामने आए। 14 साल में 12 बार नई सरकार बनी या  गिरी। हर प्रमुख दल ने सत्ता पाई। ऐसे में क्या चुनाव के बाद राज्य में पांच सालों के लिए स्थिर सरकार बनेगी। यह देखना दिलचस्प होगा। नरेन्द्र मोदी को रोकने के लिए झारखंड में बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनाने की तैयारी हो रही है जिसमें आरजेडी, कांग्रेस और जेएमएम साथ होंगे, इसलिए यह चुनाव ऐसे गठबंधन का भविष्य भी तय करेगा। दरअसल बिहार में महागठबंधन के प्रयोग को सफलता मिली थी जब 10 सीटों के उपचुनाव में इसे छह सीटें मिली थीं। लेकिन पहली बार पूरे राज्य चुनाव में इसका प्रयोग हो रहा है। अगर यहां यह सफल हो गया तो फिर बिहार और दूसरे राज्यों में आक्रामक तरीके से विपक्ष एकजुट हो सकता है और अगर मोदी का जादू इस पर भी चला तो फिर विपक्ष के लिए और हताशा लाएगी। कांग्रेस की साख एक बार फिर दांव पर होगी। झारखंड में कांग्रेस की सपोर्ट से सरकार चल रही है तो जम्मू-कश्मीर में चंद महीने तक नेशनल कांफ्रेंस के साथ सरकार में थी। लेकिन पहले लोकसभा और फिर हाल में दो राज्यों में पार्टी की जिस तरह करारी हार हुई उससे कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। अगर इन दोनों राज्यों में भी पार्टी ने अपना प्रदर्शन नहीं सुधारा तो राहुल गांधी पर गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे जिसके संकेत अभी से खुद पार्टी नेता दे रहे हैं।

पश्चिम बंगाल बना आतंकियों का नया अड्डा

बड़े दुख से कहना पड़ता है कि पश्चिम बंगाल लगता है अब आतंकवादियों का गढ़ बन गया है। पिछले दिनों (दो अक्तूबर को) राज्य के वर्दमान शहर के खागड़ागढ़ में एक भयानक बम विस्फोट हुआ था। इस बम विस्फोट में जमात-उल-मुजाहिद्दीन (बांग्लादेश) के दो संदिग्ध आतंकियों की मौत हो गई थी। दो महिलाओं समेत कुल तीन लोगों से एनआईए द्वारा पूछताछ की गई थी। इन महिलाओं में एक महिला विस्फोट में मारे गए संदिग्ध आतंकी की पत्नी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर विस्फोट की जांच अपने हाथों में लेते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 13 अक्तूबर को हासिस भोला उर्प बदरू आलम मौला, रजिया बीबी और अलीमा बीबी को हिरासत में ले लिया था। विस्फोट स्थल पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का कार्यालय होने के आरोपों की  जांच के लिए एनआईए का एक तीन सदस्यीय दल विस्फोट स्थल का निरीक्षण करने पहुंचा। उन्होंने इस मकान का निरीक्षण किया जिसमें विस्फोट हुआ था, कमरों की जांच की और जांचकर्ता इमारत की छत पर गए। यहां से वह माथपारा स्थित एक अन्य मकान में गए जहां से 40 हथगोले बरामद किए गए। एनआईए के जांचकर्ताओं को रियाजुल करीम के इस मकान में आईईडी बरामद हुए। वर्दमान जिले में हुए विस्फोट की जांच के दारन खुफिया विभाग को पता चला है कि पश्चिम बंगाल में एक-दो नहीं बल्कि करीब 58 आतंकी प्रशिक्षण शिविर व आईईडी केंद्र हो सकते हैं। खुफिया जांच की चौंकाने वाली सूचना के अनुसार बांग्लादेश का आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिद्दीन बंगाल में ऐसे केंद्र स्थापित कर चुका है जहां आईईडी तैयार करने से लेकर आतंकियों को प्रशिक्षित किया जाता है। सिर्प मुर्शिदाबाद में ऐसे 43 केंद्र होने की जानकारी मिली है। जांच में यह सुराग भी मिला है कि आतंकी प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कई स्थानों पर मदरसों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। पता चला है कि मदरसों की एक चेन ने न सिर्प बांग्लादेशी आतंकी संगठन को भारत में दाखिल होने में मदद की बल्कि कुछ महिलाओं को फिदायीन हमलावरों के तौर पर नियुक्त करने के लिए तैयार भी किया है। यह वही मदरसा है जिसका संबंध सीधे तौर पर तमिलनाडु के संगठन अल-उम्माह से होने की बात सामने आ रही है। जांच इस ओर भी इशारा करती है कि बंगाल के कई हिस्सों में आतंकी संगठन की शाखाएं वर्षों से मौजूद हैं। इन शाखाओं का क्षेत्रीय मुख्यालय मुर्शिदाबाद में होने के भी संकेत हैं, मदरसे की ओर से मिली मदद की वजह से आतंकी संगठन ने बंगाल में अपनी जड़ जमाई। एनआईए सूत्रों की मानें तो अब तक करीब 180 बांग्लादेशी नागरिक इस संगठन विस्तार का हिस्सा बन चुके हैं। इसके संचालन में जो व्यक्ति सबसे खास है उसका नाम अनीसुर बताया जाता है। यह वही व्यक्ति है जो राज्यों में जेहाद के लिए नियुक्त किए गए युवकों व युवतियों के रहने का इंतजाम करता था। एनआईए ने गृह मंत्रालय को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें कुछ स्थानीय नेताओं के इस आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात भी कही गई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पश्चिम बंगाल आतंकियों का अड्डा बनता जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 29 October 2014

13 साल से लड़ रहे अमेरिकी और ब्रिटेनी अफगानिस्तान से भागे

अफगानिस्तान में चल रही 13 साल लंबी ब्रिटेन की वार आन टेरर के तहत छेड़ा सैन्य अभियान आखिरकार रविवार को खत्म कर दिया। इस लड़ाई में अरबों रुपए और सैकड़ों जीवनों का नुकसान हुआ। अफगान का रेगिस्तान इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बना जब ब्रिटेन ने इस मिलिट्री आपरेशन को खत्म करने के लिए कैंप बेस्यन में अपना झंडा यूनियन जैक उतार लिया। इसके अलावा इस शिविर से सटे हुए अमेरिकी शिविर लेदरनेक का नियंत्रण भी अफगानिस्तान को सौंप दिया। ब्रिटेन को इस 13 वर्षीय वार आन टेरर में भारी नुकसान उठाना पड़ा है और अंतत वहां से भागने पर मजबूर होना पड़ा है। इस तरह 13 साल से इस देश में चले आ रहे सैनिक अभियान की आधिकारिक समाप्ति हो गई। इस अभियान में अशांत अफगानिस्तान में 450 से अधिक ब्रिटिश सैनिकों और महिलाओं की जान गई है। रायटर न्यूज एजेंसी के अनुसार अफगानिस्तान में आखिरी अमेरिकी नौसेना यूनिट ने रविवार को आधिकारिक रूप से अपने अभियान को भी समाप्त कर दिया। नौसैनिकों ने देश छोड़ने के लिए साजो-सामान समेट लिया और एक विशाल सैन्य अड्डे को अफगान सेना के हवाले कर दिया। तालिबान के कट्टरपंथी इस्लामिक शासन को खत्म करने के 13 साल बाद अंतर्राष्ट्रीय सेना के क्षेत्रीय मुख्यालय में अमेरिकी झंडे को उतारा गया। इस दौरान अमेरिका ने अपने 2345 कर्मियों को खो दिया। सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण हेलमंड प्रांत में स्थित सैन्य अड्डे से सैनिकों की वापसी के समय के बारे में सुरक्षा कारणों से जानकारी नहीं दी गई। अमेरिका के इस सबसे बड़े सैन्य अड्डे कैंप लेदर नेक को अफगान के नियंत्रण में दे दिया है। इस साल के आखिर तक अफगानिस्तान में गठबंधन सेना का अभियान खत्म हो जाएगा। अमेरिकी मरीन कैप्टन रियान स्टीन बर्ग ने कहा कि यह अब खाली हो गया है। अधिकारियों ने बताया कि बेस में अब अनुमानित तौर पर 4500 के आसपास ही अंतर्राष्ट्रीय सैनिक बचे हुए हैं। वे भी शीघ्र ही चले जाएंगे। उधर ब्रिटेन के रक्षामंत्री माइकल फैलन ने बताया कि यह गर्व की बात है कि हेलमंड में ब्रिटिश सैन्य अभियान खत्म हो गया, जिससे अफगानिस्तान को स्थिर भविष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ संभावित मौका मिला है। फैलन ने कहा कि गलतियां भी हुई हैं लेकिन 2001 में अफगानिस्तान आने के बाद से इंग्लैंड की सेना ने अपने अधिकांश लक्ष्य पूरे कर लिए हैं। बड़े बेआबरू होकर हम तेरे कूचे से निकले। यह कहावत अमेरिका और ब्रिटेन पर फिट बैठती है। इन्हें अपने आपसे पूछना चाहिए कि जिस उद्देश्य से यह अफगानिस्तान गए थे क्या वह पूरा हो गया है? गए तो यह इसलिए थे कि तालिबान को खत्म कर देंगे। आज तालिबान पहले से कहीं अधिक ताकतवर हो गया है। 13 वर्षों से तालिबान अमेरिकी और गठबंधन सैनिकों से लोहा लेता रहा और आज यह नौबत आ गई कि इन्हें भागना पड़ा। भले ही यह कहें कि हमारे उद्देश्य पूरे हो गए हैं पर सच्चाई सबके सामने है।

-अनिल नरेन्द्र

हरियाणा में निजाम बदलते ही वाड्रा पर सख्ती के संकेत

हरियाणा में भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री की शपथ लेने के कुछ घंटे बाद ही अनिल विज और कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि भाजपा सरकार पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान हुए कथित घोटालों की जांच के आदेश देगी। अम्बाला से पांच बार विधायक चुने गए कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने कांग्रेस शासनकाल को सभी घोटालों व करप्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया। विज ने कहा कि किसानों की लगभग 70 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर उसे भारी मुनाफे में बेच दिया गया। हम इसकी जांच कराएंगे। चाहे इसमें कोई अधिकारी, राबर्ट वाड्रा (सोनिया गांधी के दामाद), भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ही क्यों न शामिल हों, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। लगभग यही बात कैबिनेट मंत्री अभिमन्यु ने भी दोहराई। उन्होंने कहा कि सरकार पिछले 10 वर्षों में राज्य में हुए सभी जमीन घोटालों की गहन जांच करेगी। अगर एक इंच भी जमीन पर कानून का उल्लंघन मिला तो घोटालेबाजों को इस तरह दंडित किया जाएगा कि भविष्य में हरियाणा में इस तरह का कोई घोटाला न होने पाए। भाजपा के सीनियर नेता और कैबिनेट मंत्री राम बिलास शर्मा ने भी जमीन घोटालों की जांच कराने की बात दोहराई। हरियाणा में भाजपा के लिए प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कथित जमीन घोटाले को ही मुद्दा बनाया था। बहरहाल विज ने कहा कि नई सरकार की प्राथमिकता कानून-व्यवस्था में सुधार लाना है जो पिछली सरकार (कांग्रेस सरकार) के दौरान कथित रूप से खराब हो गई थी और राज्य का चौतरफा विकास सुनिश्चित करना है। हरियाणा में कथित भूमि घोटालों के बारे में प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सोमवार को कहा कि उनकी सरकार बदले की भावना से काम नहीं करेगी और कानून अपना काम करेगा। खट्टर ने कहा कि पूर्व सरकार की ओर से घोषणाओं की समीक्षा होगी, लेकिन साफ कर दिया कि इसका मतलब यह नहीं है कि सभी घोषणाएं नामंजूर कर दी जाएंगी। पहली कैबिनेट बैठक का नेतृत्व करने के बाद खट्टर ने संवाददाताओं से कहा कि हम बदले की भावना से काम नहीं करने जा रहे लेकिन सभी शिकायतों पर कानून अपना काम करेगा। यह पूछे जाने पर कि क्या राबर्ट वाड्रा मामला उनकी सरकार की प्राथमिक सूची में है, खट्टर ने कहाöहमारी प्राथमिकता अपना एजेंडा लागू करना है। बहरहाल खट्टर ने कहा कि जहां कहीं भी अनियमितता पाई जाएगी वहां पर कानून अपना काम करेगा। उनसे पूछा गया कि हरियाणा विधानसभा  चुनाव से पहले भाजपा ने कथित भूमि घोटालों का मुद्दा जोरशोर से उठाया था और कार्रवाई की बात कही थी। खट्टर ने कहा हमारी भाषा नहीं बदली है। इससे लगता है कि हरियाणा की नई भाजपा सरकार राबर्ट वाड्रा से जुड़े जमीन सौदों की आपराधिक जांच कराएगी। फर्जीवाड़ा साबित होने पर वाड्रा की न केवल सम्पत्ति जब्त होगी बल्कि जमीन सौदे में शामिल अन्य कंपनियों और सौदे को गलत तरीके से मंजूरी देने वाले अधिकारियों पर भी गाज गिरेगी। ऐसे में वाड्रा के साथ-साथ रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ पर भी कार्रवाई हो सकती है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि प्रथमदृष्टया ही कई सौदों में अनियमितता बरती जानी साफ तौर पर दिखती है। खासतौर पर वाड्रा को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि भूमि के बेचे जाने के बाद उसका लैंड यूज बदलना और आचार संहिता लागू होने से पहले वाड्रा डीएलएफ जमीन सौदे को आनन-फानन मंजूरी देना ऐसे ही मामले हैं। ऐसे सौदे जांच के क्रम में न केवल रद्द होंगे बल्कि वाड्रा समेत ऐसी अनियमितताओं में शामिल अन्य रियल एस्टेट कंपनियों की सौदे से जुड़ी सम्पत्ति जब्त की जाएगी। अगर आपराधिक जांच के क्रम में जरूरी हुआ तो नई सरकार इन सौदों की जांच सीबीआई से कराने में भी नहीं चूकेगी। महज लैंड यूज बदले जाने के कारण इन सौदों से हरियाणा सरकार को 3.9 लाख करोड़ रुपए का घाटा होने का अनुमान है। इस मामले में कांग्रेस के प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि यह बयान हरियाणा सरकार के घमंड को दर्शाता है। किसी भी सरकार को बदले की भावना से निर्णय नहीं करना चाहिए। अल्वी ने एक टीवी चैनल से कहा कि भाजपा को याद रखना चाहिए कि लोकतांत्रिक प्रणाली में कोई स्थायी सरकार नहीं होती। कभी वे सत्ता में होते हैं तो कभी विपक्ष में। उन्हें हमारे देश को पाकिस्तान की तरह नहीं बनाना चाहिए। पाकिस्तान से यह मत सीखिए कि जो सत्ता में आता है वह पिछली सरकार पर कार्रवाई करता है।

Tuesday, 28 October 2014

बाबा रामदेव और कांग्रेस की बढ़ती नजदीकियां

योग गुरु बाबा रामदेव ने राजनीतिक करवट बदलते हुए एकाएक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की जमकर तारीफ की। बाबा रामदेव ने कहा कि हरीश रावत के अंदर कांग्रेस के अन्य नेताओं के मुकाबले कुछ ज्यादा विशेषताएं हैं। हुआ यह कि बुधवार को कांग्रेस के दिग्गज नेता और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के बुलावे पर राज्य सरकार द्वारा भेजे गए दो हेलीकाप्टरों में सवार होकर बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण दल-बल के साथ बाबा केदारनाथ के दर्शन करने गए। रावत ने अपने दूत रंजीत सिह रावत को रामदेव को लेने के लिए भेजा था। रंजीत सिंह रावत बाबा रामदेव को लेने हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ आए और वापस छोड़ने भी उनके साथ आए। जहां बाबा रामदेव ने राज्य सरकार द्वारा केदारनाथ में कराए गए कार्यों की जमकर तारीफ की, भले ही कांग्रेस की बुराई की हो परन्तु उन्होंने कभी भी उत्तराखंड सरकार की बुराई नहीं की। सरकारी हेलीकाप्टर से केदार धाम की यात्रा के बाद हरिद्वार लौटने पर बाबा ने न केवल हरीश रावत सरकार को प्रमाण पत्र दिया बल्कि एक कदम आगे बढ़ाते हुए हरीश रावत जैसी पहल करने पर भविष्य में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को माफ करने की बात भी कही। बुधवार को बाबा रामदेव के अचानक बदले इस रुख के सियासी गलियारों में निहितार्थ मतलब भी निकाले जा रहे हैं। सरकार ने बाबा के अलावा हरिद्वार के चार और प्रमुख संतोंöमहामंडलेश्वर कैलाशानंद ब्रह्मचारी, सतपाल ब्रह्मचारी, स्वामी मोहनदास और स्वामी शिवानंद भारती को भी बुधवार को केदार बाबा के दर्शन कराए। मुख्यमंत्री हरीश रावत और बाबा रामदेव का एक-दूसरे के नजदीक आना उत्तराखंड भाजपा के लिए राजनीतिक झटके से कम नहीं है। भाजपा बाबा रामदेव को स्वाभाविक सहयोगी मानकर चलती रही है और कांग्रेस को बाबा का सियासी दुश्मन। ताजा घटनाक्रम के बाद राज्य सरकार के साथ बाबा की सियासी दुश्मनी फिलहाल खत्म हो गई लगती है। भले ही बाबा कांग्रेस का समर्थन न करें लेकिन सीएम के साथ उनकी नजदीकी से परंपरागत राजनीतिक मनोविज्ञान बदल जाएगा? बाबा रामदेव ने कहा कि नरेन्द्र मोदी भाजपा के ही प्रधानमंत्री नहीं हैं वो सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों के प्रधानमंत्री हैं। हरीश रावत भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री नहीं हैं बल्कि पूरे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं और यही भाव इस देश को आगे लेकर जाएगा। उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों से अपील करते हुए कहा कि अगर संबंधित राज्यों की सरकारें योगपीठ से किसी तरह का सहयोग मांगेंगी तो वह देने को तैयार हैं। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लेकर उनकी राय नहीं बदली है। सोनिया व राहुल को लेकर राय संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी यह प्रश्न नहीं है। वहीं बाबा रामदेव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हिमालय का सबसे बड़ा प्रशंसक बताया।

-अनिल नरेन्द्र

गैर गांधी परिवार का हो सकता है अगला कांग्रेस अध्यक्ष

पहले लोकसभा और अब दो राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के भीतर से बदलाव की आवाज उठना स्वाभाविक ही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि इस शर्मनाक हार के लिए कांग्रेस नेतृत्व जिम्मेदारी नहीं ले रहा है। न राहुल गांधी जिम्मेदारी ले रहे हैं और न सोनिया गांधी। पार्टी के भीतर ही भीतर बगावत की चिंगारी सुलग रही है। किसी की हिम्मत ही नहीं पड़ रही कि वह राहुल के नेतृत्व पर प्रश्न करे क्योंकि राहुल की देखरेख व नेतृत्व में यह चुनाव लड़े गए थे। अंतत पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होने की संभावना जताकर सियासी हलचल मचा दी है। चिदम्बरम का बयान ऐसे समय में आया है जब प्रियंका गांधी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में लाने की मांग जोर-शोर से उठ रही थी। पूर्व वित्तमंत्री और गांधी परिवार के सबसे खास माने जाने वाले चिदम्बरम ने स्वीकार किया है कि नेतृत्व के स्तर पर परिवर्तन बहुप्रतीक्षित है। फौरन बदलाव होना चाहिए। कांग्रेस पार्टी का मनोबल गिरा हुआ है। भविष्य में कांग्रेस का अध्यक्ष कोई गैर गांधी भी हो सकता है। चिदम्बरम से शायद ही किसी को आशा होगी कि वह गांधी नाम से आगे न सोच पाने वाली कांग्रेस में इतनी साफगोई से अपनी बात कहेंगे। एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में चिदम्बरम ने कहा कि कांग्रेस का मनोबल गिरा हुआ है और संगठन में बदलाव के लिए पार्टी नेतृत्व को जल्द कदम उठाना पड़ेगा। यह पूछे जाने पर कि क्या भविष्य में गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति पार्टी अध्यक्ष बन सकता है? जवाब में चिदम्बरम ने कहा, हां मैं जवाब देते हुए कह सकता हूं। कांग्रेस में अगले साल अध्यक्ष पद का चुनाव होना है। पार्टी में इस तरह की चर्चा आम है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया  गांधी अपने बेटे राहुल गांधी को जिम्मेदारी सौंप सकती हैं। हालांकि कई राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि गांधी परिवार के इशारे पर भी चिदम्बरम यह बयान दे सकते हैं। चिदम्बरम कांग्रेस और विशेष रूप से 10 जनपथ के सबसे वफादार सिपाहियों में माने जाते हैं। उन्होंने पूरी राजनीति कांग्रेस की बजाय गांधीनाम की छाया के नीचे की। इससे पहले भी नेतृत्व पर सवाल उठाए जाते रहे हैं लेकिन इस तरह खरी-खरी कहने की हिम्मत शायद ही कोई कांग्रेसी कर पाया हो। लोकसभा चुनावों के बाद आम कांग्रेसियों को यह बात आहत करने वाली है कि सवा सौ साल पुरानी पार्टी होने का दम भरने वाली कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल की हैसियत भी नहीं पा सकी। हार के कारणों की समीक्षा के लिए बनी एके एंटनी कमेटी ने भी ईमानदारी से समीक्षा करना तो दूर रहा महज लीपापोती की। भारी पराजय के लिए सीधे राहुल गांधी को जिम्मेदार बताने की बजाय गोलमोल बातें कही गईं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नेतृत्व शैली पर लगातार उठते सवालों के बीच पूर्व वित्तमंत्री के इस बयान का संकेत साफ है कि प्रियंका यदि कांग्रेस को मौजूदा संकट के दौर से निकालने के लिए मैदान में नहीं उतरती हैं तो सोनिया गांधी के बाद अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का भी हो सकता है। प्रियंका को लाने की कांग्रेस में उठ रही मांग के बीच पार्टी अध्यक्ष की कमान गांधी परिवार से इतर किसी को दिए जाने के सवाल पर चिदम्बरम ने साफ कहा कि क्या होगा अभी वह नहीं कह सकते। लेकिन इस बात से इंकार नहीं कि गांधी परिवार के बाहर का भी कोई कांग्रेस नेता पार्टी का अध्यक्ष बन सकता है। चिदम्बरम ने यह भी माना है कि लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है और हार के तत्काल बाद कांग्रेस कार्यसमिति की हुई बैठक में सबकी राय यही थी। उनके मुताबिक पार्टी को मोदी सरकार के मुकाबले एक मजबूत विपक्ष बनाने के लिए तत्काल बदलाव किया जाना वक्त की जरूरत है। चिदम्बरम का यह भी मानना है कि बेहतर विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए सोनिया और राहुल को ज्यादा से ज्यादा बयान देने चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा कांग्रेस अध्यक्ष व उपाध्यक्ष से आग्रह है कि वह ज्यादा से ज्यादा रैलियां करें, मीडिया से बात करें। मैं मानता हूं कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी गिरा हुआ है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उसे फिर से उठाया नहीं जा सकता। मुझे पूरा भरोसा है कि पार्टी नेतृत्व के पास पूरा टाइम टेबल होगा।

Sunday, 26 October 2014

वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड व खिलाड़ियों का शर्मनाक रवैया

वेस्टइंडीज टीम के पिछले दिनों भारतीय दौरे को बीच में छोड़कर जाने से भारतीय क्रिकेट बोर्ड ही नहीं बल्कि पूरा क्रिकेट जगत हतप्रभ है। यह क्रिकेट के लंबे इतिहास में पहली बार है जब किसी टीम ने वेतन की समस्या के कारण दौरा बीच में ही छोड़ा है। इस घटना से भारतीय क्रिकेट बोर्ड को तो भारी नुकसान हुआ ही है बल्कि भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को भारी निराशा हुई है। भारत और वेस्टइंडीज वन डे में बहुत रोमांच आ रहा था। एक मैच तो मौसम की वजह से रद्द हो गया और अंतिम मैच वेतन की बलि चढ़ गया। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने मंगलवार को वेस्टइंडीज के साथ सभी द्विपक्षीय क्रिकेट दौरे निलंबित कर दिए और भारत दौरा बीच में रद्द करने के लिए उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का भी फैसला किया है। वेस्टइंडीज को आठ अक्तूबर से 19 नवम्बर के बीच भारत में पांच वन डे, एक टी-20 और तीन टेस्ट खेलने थे लेकिन अपने आंतरिक भुगतान विवाद के कारण टीम चार वन डे के बाद दौरा रद्द करके चली गई। बोर्ड ने हालांकि वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों को अगले साल नौ अप्रैल से शुरू होने वाला आईपीएल में खेलने की अनुमति देकर उनके प्रति नरम रवैया अपनाया। आईपीएल चेयरमैन रंजीव बिस्वाल ने संचालन परिषद की बैठक के बाद कहा कि वेस्टइंडीज के खिलाड़ी आईपीएल में खेलेंगे। इसके साथ पैसे के बोलबाले वाली आईपीएल लीग में कैरेबियाई खिलाड़ियों की भागीदारी को लेकर लगाई जा रही अटकलों पर भी विराम लग गया है। वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड की अपनी समस्याएं हैं। वह घाटा दर घाटा सह रही है। 10 लाख डॉलर की कमी आई है वेस्टइंडीज बोर्ड की कमाई में, 2012 से 2013 के बीच एक साल के भीतर। 2013 में बोर्ड को 58 लाख डॉलर का कुल घाटा उठाना पड़ा था। 35 हजार डॉलर प्रतिदिन टीम को भुगतान करने का बोर्ड के साथ कांट्रेक्ट है। छह सदस्य देश हैं वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड में, बारबेडोस, जमैका, गुयाना, विंबवर्डन आइलैंड और त्रिनिदाद एवं टोबेको। फिलहाल तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या अगले साल शुरू में आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में संयुक्त रूप से होने वाले क्रिकेट विश्व कप के लिए टीम को तैयार करने की होगी। यह कहा जा रहा है कि खिलाड़ियों के वेतन में इससे 75 प्रतिशत की कटौती की जाएगी। अब स्थिति यह है कि खिलाड़ी इस करार के रहते विश्व कप में न जाने का फैसला कर सकते हैं। अब सवाल उठता है कि वेस्टइंडीज बोर्ड ने अपने इस अंदरूनी मसले को सुलझाए बगैर टीम को भारतीय दौरे पर भेजा ही क्यों? दूसरे वेस्टइंडीज के खिलाड़ी प्रोटेस्ट करते हुए भी तो दौरा जारी रख सकते थे। बीच दौरे से हटने की घटना को वेस्टइंडीज क्रिकेट में चल रही आपसी तनातनी का नतीजा माना जा रहा है। असल में वहां की क्रिकेट त्रिनिदाद एवं टोबेको और जमैका के धड़ों में बंटी है। इस समय बोर्ड पर जमैका का कब्जा है, इसलिए उन्हें नीचा दिखाने के लिए त्रिनिदाद की क्रिकेट एसोसिएशन के एक पूर्व प्रमुख द्वारा टीम को दौरे से हटने के लिए प्रेरित करने की बात कही जा रही है। कारण चाहे कुछ भी हो पर वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों द्वारा दौरे को बीच में छोड़ना निश्चय ही अशोभनीय है और इसे अंजाम देने वालों को सबक जरूर सिखाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

दीवाली के दिन कश्मीर यात्रा मोदी का मास्टर स्ट्रोक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व और विचारधारा को लेकर कितनी भी भ्रांतियां हों, सत्य-असत्य अवधारणाएं देश और दुनिया में फैली हुई हैं कि किसी सामान्य निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है किन्तु यह तो मानना ही होगा कि उनके व्यक्तित्व और कार्यशैली जनता को अपना मुरीद बना लेती हैं और यह उनकी मानवता है, इसी मानवीयता का एक उदाहरण हमें दीवाली के दिन जब सारा देश अपने-अपने घरों को सजाने में और दीप जलाकर उजाला कर रहा था नरेन्द्र मोदी कश्मीर के  बाढ़ और आपदा पीड़ितों के साथ कुछ समय बिताकर उनकी पीड़ा पर मरहम लगा रहे थे। झेलम में आई बाढ़ के बाद यह दूसरा मौका है जब प्रधानमंत्री खुद राज्य में मौजूद थे और समाज के विभिन्न वर्गों से मिलकर उनकी जरूरतों का जायजा ले रहे थे। बाढ़ के वक्त वहां लोगों के बीच राज्य सरकार की मौजूदगी ही करीब दो हफ्तों के लिए जिस प्रकार गायब हो गई थी उसमें अगर केंद्र सरकार और सेना ऐन वक्त पर मदद में नहीं कूदती तो पता नहीं क्या हो जाता। मोदी ने दीवाली का दिन शायद इसलिए चुना होगा कि तबाही के अंधेरे में डूबे दिलों में उम्मीद का दीया जल जाए। 11 साल पहले भी उन्होंने यही किया था, बस जगह और हादसे में फर्प था। भूकंप के कहर से तबाह गुजरात में उन दिनों मोदी मुख्यमंत्री थे और हादसे के साल आई दीवाली उन्होंने पूरी तरह तबाह हो चुके भुज के पीड़ितों के साथ मनाई थी। दीवाली पर कश्मीर के  बाढ़ और आपदा पीड़ितों के  बीच रहने से प्रधानमंत्री ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। उनके इस मास्टर स्ट्रोक से विरोधी दल भी उवाक हैं। वे विरोध के लिए भी कोई ठोस आधार नहीं खोज पा रहे हैं। कश्मीर के दोनों बड़े दलों नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने मोदी के कदम का स्वागत किया है। हुर्रियत ने विरोध करते हुए आम हड़ताल की घोषणा पर अनजाने में मोदी के मिशन कश्मीर को ही मजबूत किया है। उधर मोदी के आने का ऐलान होते ही पाकिस्तान ने सीज फायर का उल्लंघन कर कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण की फिर से कोशिश की है। मोदी का यह ऐलान अचानक सामने जरूर आया लेकिन यह भाजपा के मिशन-44 के तहत अपनाई गई सोची-समझी रणनीति है। महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत के बाद अब भाजपा के एजेंडे में झारखंड और जम्मू-कश्मीर सबसे ऊपर है, जहां दिसम्बर-जनवरी में चुनाव होने वाले हैं। बाढ़ पीड़ितों के दर्द को अपना मानते हुए मोदी ने इस बार अपना जन्म दिन नहीं मनाया। इससे पहले बाढ़ के आते ही वह तुरन्त कश्मीर आए और एक हजार करोड़ रुपए की मदद की पहली किश्त का ऐलान भी कर आए। मोदी द्वारा यह साफ करना कि पीड़ितों के नुकसान का आंकलन करके जो मुआवजा या आर्थिक मदद होगी वह सीधे पीड़ितों के बैंक खातों में जाएगी, एक नया और सराहनीय कदम है। बेहतर है कि भाषणों में कश्मीर की अखंडता की गरज लगाने की बजाय इसे करने से स्थापित किया जाए और मोदी बेशक वैसा ही कर रहे हैं। अफसोस यह है कि मोदी को कश्मीर घाटी में केवल तबाही की चुनौतियों से ही नहीं जूझना है बल्कि नफरत और काले मंसूबों से डूबी उस सोच से भी दो-चार करना है जिसने धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर घाटी को तबाह कर रखा है। मोदी के आगमन की प्रतिक्रिया में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला याद दिलाना नहीं भूलते कि वह खुद ईद मनाने वाले मुसलमान हैं जबकि मोदी ऐसे हिन्दू हैं जो अपनी दीवाली छोड़कर यहां आ रहे हैं। क्या यह अजीब नहीं कि मोदी के बाढ़ पीड़ितों के बीच जाने की सुखद पहल में कांग्रेस को मीन-मेख निकालने की क्या जरूरत थी? क्या यह महज आलोचना के लिए आलोचना का एक और उदाहरण नहीं है? कश्मीर के अलगाववादियों ने तो यह कहकर अपनी धर्मांधता और छोटी सोच का ही परिचय दिया कि प्रधानमंत्री अपनी संस्कृति हम पर लादने आ रहे हैं। पथभ्रष्ट अलगाववादियों के ऐसे तंग नजरिये पर हैरत नहीं, लेकिन यह सवाल तो उठेगा ही कि उन्हें हतोत्साहित करने के लिए केवल मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ही क्यों आगे आए? क्या यह अच्छा नहीं होता कि सभी राजनीतिक दल कश्मीर के अलगाववादियों की एक सुर में निंदा करते। दीवाली के दिन बाढ़ पीड़ितों के बीच रहकर प्रधानमंत्री की पहल कुल मिलाकर दुखी-उदास लोगों के बीच आशाओं का दीप जलाने और पूरे देश को एक सकारात्मक संदेश देने वाली है। आखिर दीवाली यही तो संदेश देती है कि चहुंओर शुभ का संचार हो और जन-जन के बीच सुख-समृद्धि, शांति-सद्भाव का प्रसार हो।

Saturday, 25 October 2014

कनाडा की संसद पर आतंकी हमला

कनाडा की राजधानी ओटावा में बुधवार को एक आतंकी हमले ने सभी को चौंका दिया। आज दुनिया का कोई देश आतंकवाद से अछूता नहीं है। अमेरिका से सटे कनाडा में आतंकवादी हमला यह दर्शाता है कि इस्लामिक आतंकवाद पूरी तरह से वैश्विक हो चुका है। कनाडा की संसद और बाहर दोनों जगहों पर बुधवार को गोलीबारी हुई। सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराए जाने से पहले एक बंदूकधारी ने एक सैनिक को गोली मार दी। बुधवार को ओटावा में संसद समेत तीन जगहों पर गोलीबारी हुई। सबसे पहले संसद के पास स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के पास गोलियां चलाई गईं। पहले सैनिक को मारा गया फिर संसद भवन के अंदर और उसके नजदीक स्थित एक शॉपिंग मॉल को निशाना बनाया गया। संसद भवन में घुसे एक हमलावर को जवाबी कार्रवाई के दौरान मार गिराया गया। पुलिस ने कहा है कि इस हमले में एक से अधिक संदिग्ध शामिल थे। यह घटना उस वक्त हुई जब कुछ घंटे पहले ही कनाडा ने आतंकवाद के खतरे को लेकर अलर्ट बढ़ाया था। सरकार के एक अधिकारी के मुताबिक इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे संगठनों की ऑनलाइन बातें सामने आने के बाद अलर्ट का स्तर  बढ़ाया गया। जानकार दो दिन पहले मांट्रियोल में हुए उस कार हादसे पर भी गौर कर रहे हैं जिसमें एक व्यक्ति ने दो कनाडाई सैनिकों को कार से कुचल दिया था। उस व्यक्ति ने इस्लाम धर्म कबूल किया था। अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि कनाडाई संसद में घुसे हमलावर का इस्लामी आतंकवाद से जुड़ाव का फिलहाल कोई संकेत नहीं है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि अभी जांच बिल्कुल शुरुआती दौर में है और नए तथ्य सामने आ सकते हैं। कनाडाई संसद पर हमले की जब जानकारी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को दी गई तो उन्होंने पहला काम यह किया कि कनाडा स्थित अमेरिकी दूतावास को बंद करवाने का आदेश दिया और अमेरिका में फुल अलर्ट करवा दिया। कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर का टोरंटों में नेबल पुरस्कार विजेता और पाकिस्तान की साहसी बेटी मलाला यूसुफजई से मिलने का कार्यक्रम था लेकिन इस हमले के कारण इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया। वैसे यह पहली बार नहीं जब कनाडा की संसद को निशाना बनाया गया हो। 9 अप्रैल 1989 में एक बस के जरिये कनाडा की संसद जिसे पार्लियामेंट हिल कहा जाता है पर हमले की साजिश रची गई थी। आतंकी चार्ल्स याकूब ने बस को हमले के इरादे से हाइजैक किया था। 28 अगस्त 2010 को कनाडा में दो आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद सितम्बर-अक्तूबर में संसद हमले की योजना का खुलासा हुआ था। इस हमले से हमें भारतीय संसद की याद आ गई। 13  दिसम्बर 2001 में भारत की संसद पर लश्कर--तैयबा और जैश--मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया था जिसमें दर्जनों की मौत व घायल हुए थे हमारे सुरक्षाकर्मी। इतना तय है कि कनाडा अब इस्लामी आतंकवादियों के राडार पर आ गया है और वहां की सुरक्षा व्यवस्था को चुस्त रहना होगा।
-अनिल नरेन्द्र


हरियाणा के नए लाल ः मनोहर लाल

हरियाणा की राजनीति में लंबे समय से चल रहे बंसी लाल, चौधरी देवी लाल, भजन लाल और फिर चौधरी रणबीर सिंह के लाल भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बाद अब एक और लाल मनोहर लाल अपनी सियासी तैयारी खेलने के लिए तैयार हैं। भाजपा ने बेहद चतुराई के साथ विधानसभा में गैर जाट कार्ड खेल दिया और जाट वोट बैंक को भी जोड़े रखा। यही कारण था कि किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किए बिना मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजैक्ट किया। पूरे चुनाव के दौरान भाजपा ने संदेश दिया कि सरकार बनने पर गैर जाट मुख्यमंत्री होगा, लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने किसी भी यंत्र से यह जाहिर नहीं होने दिया। ऐसा होने से दूसरे दलों को बड़ा मुद्दा हाथ लग जाता। मोदी मैजिक के सहारे चुनावी मैदान में उतरी भाजपा के रणनीतिकारों ने गैर जाट कार्ड खामोशी से खेल दिया। मुख्यमंत्री पद के लिए खट्टर का नाम सुनकर कई लोग चकित हुए होंगे। लेकिन लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा में सांगठनिक जिम्मेदारियां संभाल रहे खट्टर जमीन से जुड़े हुए और व्यावहारिक व्यक्ति हैं जो कठिन चुनौतियों से निपटने की सूझबूझ रखते हैं। रोहतक के बनियानी गांव में बचपन में खेत से सब्जियां तोड़कर बेचने वाले मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के 20वें मुख्यमंत्री पद पर पहुंच गए। हरियाणा में भाजपा के रणनीतिकारों को बधाई देनी होगी कि राज्य में अपनी चुनावी रणनीति को गैर जाट वोटों के इर्दगिर्द बुना। इसका सुफल भी मिला है। पार्टी को जो वोट मिलने थे वे तो मिले ही लेकिन बड़ी संख्या में गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। उसे तमाम अन्य जातियों के अलावा बड़ी संख्या में दलितों के भी वोट मिले। हरियाणा दिल्ली से सटा एक ऐसा संभावनाशील राज्य है जिसे हेकड़ी और भ्रष्टाचार ने काफी चोट पहुंचाई है। मनोहर लाल खट्टर भाजपा के प्रतिबद्ध सिपाही तो हैं ही साधारण पृष्ठभूमि के साथ साफ छवि वाले सादगी पसंद नेता भी हैं। वह पीएम नरेन्द्र मोदी के करीबी भी हैं और मोदी की तरह वह भी संघ के प्रचारक थे। निसंदेह उनकी छवि हरियाणा के लोगों को आश्वस्त करेगी, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। हरियाणा कुल मिलाकर तेजी से तरक्की करने वाले राज्य के रूप में जाना जाता है। चूंकि पिछले 10 वर्षों में हरियाणा ने आर्थिक तौर पर काफी कुछ हासिल किया है, इसलिए मनोहर लाल खट्टर को यह देखना होगा कि विसंगतियों को दूर कर विकास की गति को तेजी कैसे मिले? उन्हें सबसे अधिक ध्यान राज्य के समग्र विकास पर केंद्रित करना चाहिए। ऐसा करते समय इसके प्रति सतर्प भी रहना होगा कि विकास की गति धीमी न पड़े और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगे। हरियाणा में भले ही जाटों की आबादी 20 फीसदी से ऊपर हो किन्तु बाकी 80 फीसदी लोगों के मन में यह धारणा पनपती रही है कि उनकी और उनके क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है। भाजपा ने सबका साथ, सबका विकास नारे के साथ इस अवधारणा को तोड़ने का इरादा जताया था और जनता ने भी भरपूर साथ दिया। अब गैर जाट को नेतृत्व देकर भाजपा हाई कमान ने यह संदेश तो दिया ही कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार के दिन तो गए ही, साथ ही जाति विशेष के वर्चस्व का दौर, परिवारवाद का दौर खत्म हुआ है और यह संदेश मनोहर लाल खट्टर से बेहतर शायद ही कोई दे पाता। श्री मनोहर लाल खट्टर को हमारी बधाई और हमें विश्वास है कि वह हरियाणा की जनता की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे।

Thursday, 23 October 2014

भाजपा में अभी भी दुविधा चुनाव कराए या सरकार बनाए?

क्या हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा को मिली जीत का असर दिल्ली पर पड़ेगा? क्या पार्टी अब दिल्ली में भी चुनाव करवाएगी? यह पश्न सियासी गलियारों में उत्सुकता से पूछा जा रहा है। महाराष्ट्र तो दिल्ली से थोड़ा दूर है इसलिए इसका तो राजधानी पर क्या असर पड़ेगा पर हरियाणा तो दिल्ली से सटा हुआ है और हरियाणा में बहुमत मिलने से भाजपा की दिल्ली इकाई जरूर आशावान हो गई होगी। पार्टी अभी तक जो संशय में थी उसका कुहासा पूरी तरह से छूट गया होगा। मजेदार बात यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां तैयार हैं। दिल्ली विधानसभा की सबसे बड़ी पाटी भाजपा और दूसरे नंबर की आम आदमी पार्टी ही नहीं कांग्रेस के नेता भी चुनाव में जाने को तैयार हैं। विधानसभा भंग करने की सिफारिश के लिए किसके आदेश का इंतजार है, यह कोई नहीं जानता। अंतिम फैसला उपराज्यपाल नजीब जंग को लेना है। ऐसे में 28 नवंबर को सुपीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पर भी ध्यान रखने की जरूरत है। भाजपा के लिए सबसे ज्यादा हौसला बढ़ाने के लिए दिल्ली से सटे हरियाणा के परिणाम हैं, जहां पिछले विधानसभा चुनावों में तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा दो अंकों तक नहीं पहुंच पाई थी और पार्टी पांच सीटों पर ही सिमट गई थी। इस बार अपने बलबूते पर वह इस राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही। दोनों राज्यों के परिणाम दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पाटी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। पाटी के रणनीतिकार तो यह मानकर चल रहे हैं कि वर्तमान हालातों में हम 32 से बढ़कर 60 सीटों तक भी पहुंच जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दूसरी ओर कांग्रेस (दिल्ली) के मुख्य पवक्ता मुकेश शर्मा सवाल करते हैं कि देश में  अगर नरेंद्र मोदी की लहर है तो भाजपा दिल्ली में विधानसभा भंग क्यों नहीं करती? उन्होंने कहा कि कांग्रेस हर समय चुनाव में जाने को तैयार है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा में एक बड़ा गुट चुनाव में जाना चाहता है लेकिन पाटी में महाराष्ट्र और हरियाणा में मुख्यमंत्री  को लेकर चल रही उथल-पुथल शांत होने से पहले दिल्ली की तरफ राष्ट्रीय नेतृत्व का ध्यान नहीं है। तर्क दिया जा रहा है कि दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद कोई फैसला लिया जाएगा। अब जब हरियाणा के मुख्यमंत्री का फैसला हो गया है अब महाराष्ट्र में सब कुछ तय होने के तुरंत बाद दिल्ली की विधानसभा भंग करने की घोषणा हो सकती है। इधर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर पचार में तेजी लाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है। केजरीवाल ने दिल्लीवासियों को न्यौता दिया है कि वे वाट्सऐप के जरिए उनसे सीधा जुड़ें। आम लोगों को केजरीवाल के नाम से एसएमएस आ रहे हैं। एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि अगर विधानसभा चुनाव हुए तो कौन लीड करेगा? यह सवाल अब सत्ता के गलियारों में तैर रहा है कि क्या भाजपा आलाकमान चुनाव के दौरान ही संभावित मुख्यमंत्री का ऐलान कर देगा या वह हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह बिना पादेशिक चेहरे के विधानसभा चुनाव का सामना करेगा? फिर अगर चुनाव होते हैं तो कब होंगे, यह सवाल भी पूछा जा रहा है? भाजपा के नेता फरवरी के महीने को चुनाव के लिए बेहतर मानकर चल रहे हैं क्योंकि उस समय न तो दिल्ली में बिजली-पानी की किल्लत होगी और सब्जियों के दाम भी कम हो जाएंगे और माहौल भाजपा के पक्ष में नजर आएगा लेकिन पाटी का एक खेमा अभी भी यह कह रहा है कि महाराष्ट्र व हरियाणा के नतीजों के बाद आम आदमी पाटी में भगदड़ मच जाएगी और कोई बड़ी बात नहीं कि इस पाटी के 28 में से करीब 20 विधायक बिना शर्त भाजपा में शामिल हो जाएंगे क्योंकि उन्हें लगेगा कि भाजपा में जाने से उनका राजनीतिक भविष्य व सदस्यता 4 वर्ष तक सुरक्षित हो जाएगी। लगता यह है कि कोई भी मौजूदा विधायक चुनाव में जाने को तैयार नहीं और सभी चाहते हैं कि दिल्ली में सरकार बन जाए और वह चुनाव में जाने से बच जाएं। देखे, भाजपा आलाकमान क्या फैसला करता है?

-अनिल नरेंद्र

इस बार दीवाली नई उम्मीदें और उत्साह लेकर आई है

दीवाली का त्यौहार पकाश और उजाले का पतीक माना जाता है। दीवाली व रोशनी के इस त्यौहार के दिन सभी लोग दीए, मोमबत्ती आदि जलाकर रोशनी करते हैं। यह पर्व पभु राम और सीता के 14 वर्ष के बनवास के पश्चात अयोध्या में उनके आगमन पर मनाया जाता है। यह शरद ऋतु के आगमन का भी पतीक है। खुशियों के इस पर्व पर लोग एक-दूसरे को मिठाइयां बांटकर व मिलजुल कर मनाते हैं। इस साल दीवाली जोर-शोर से मनाई जाएगी क्योंकि केंद्र में एक नई सरकार आई है और वह अपने साथ नई उम्मीदें लाई है। कांग्रेस का बनवास अब शुरू हो गया है। देखें कि यह कितने साल का होगा? अमावस्या की अंधेरी रात में दीए की जगमगाती रोशनी से उजियारा छा जाता है। अंधेरे को चीरते हुए इन खूबसूरत दीयों के बिना दीपावली का पर्व अधूरा है। बाजारों में चहल-पहल शुरू कई दिन पहले से ही हो जाती है। बाजार व तमाम दुकानें दुल्हन की तरह सजा दी गई है। यह अच्छी बात है कि आज भी दीपावली में घर को रोशन करने के लिए पारंपरिक मिट्टी के दीयों का इस्तेमाल होता है। पारंपरिक मिट्टी के दीयों से अलग अब लोग डिजाइनर दीयों और मोमबत्तियों का इस्तेमाल करने लगे हैं। डिजाइनर दीयों की बात करें तो हर बाजार ऐसे दीयों से पटा पड़ा है। लक्ष्मी, गणेश, फूल-पत्ते और तरह-तरह के खूबसूरत आकार में उपलब्ध इन दीयों से आप अपने घर को एथनिक लुक भी दे सकते हैं। दीवाली से पहले के वीकैंड पर पारंपरिक रिटेलर्स की सेल्स शानदार रही। ई-कॉमर्स कंपनियों के जबरदस्त डिस्काउंट ऑफर और आकामक मार्केटिंग कैंपेन के बावजूद पारंपरिक स्टोर्स अपनी दुकानदारी चमकाने में कामयाब रहे। सुपर मार्केटों से लेकर कंज्यूमर डूयूरेबल कंपनियों तक का मानना है कि इस बार दीवाली की सेल्स पिछले साल के मुकाबले बेहतर रही। इन तमाम इकाइयों की मानें तो इस बार कंज्यूमर सेंटिमेंट में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। दीवाली में पटाखे जलाते वक्त आप अपनी आंखों का विशेष तौर पर ख्याल रखें। पटाखे जलाते वक्त बहुत से लोग अपनी आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचा बैठते हैं। इसलिए पटाखों से दूर रहें, शौक है तो कम आवाज या तीव्रता वाले पटाखे चलाएं। पटाखों के अंदर से निकला धुंआ कार्बन और अन्य जहरीले पदार्थ आंखों के उतकों, नसों और अन्य मुलायम लिगामेंट्स को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं। पटाखों से आंखों में कट, इंजरी और कैमिकल बर्न हो सकता है इसलिए पटाखे जलाते समय विशेष ध्यान रखें। चीनी पटाखों को बेचने पर बेशक सरकार ने पाबंदी लगाई है पर इससे इस वर्ष तो शायद ही कोई फर्क पड़े क्योंकि यह पटाखे तो मार्पेट में कई महीने पहले से ही आ गए थे। चीनी इतने बदमाश हैं कि चीन के बने पटाखों पर मेड इन शिवाकासी लिखा हुआ है। हम सभी पाठकों को दीपावली के पर्व पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आप सुरक्षित दीवाली मनाएंगे और अपने बच्चों का विशेष ध्यान रखेंगे क्योंकि बच्चों में पटाखे चलाने को लेकर विशेष उत्साह रहता है। हैप्पी दीवाली।

Wednesday, 22 October 2014

बच्चों के यौन शोषण की बढ़ती घटनाएं चिन्ता का विषय है

हाल में बच्चों के यौन शोषण की बढ़ती घटनाएं पूरे समाज के लिए एक चिन्ता का विषय बनती जा रही है। आए दिन बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं का विवरण पढ़कर दिल बैठ जाता है और समझ नहीं आता कि हमारे समाज को आखिर होता क्या जा रहा है? हाल ही में पश्चिमी दिल्ली के हरी नगर स्थित एक प्ले स्कूल के मालिक के 24 वर्षीय बेटे द्वारा बलात्कार की शर्मनाक घटना सामने आई। बच्ची के शरीर से खून बहता देख परिवार वाले उसे डाक्टर के पास ले गए जहां बच्ची के साथ यौन शोषण की पुष्टि हुई। बताया जाता है कि वह कई दिनों से बच्ची का यौन उत्पीड़न कर रहा था। ऐसा ही दिल्ली के रोहिणी स्थित प्ले स्कूल में भी ढाई साल की एक बच्ची के यौन शोषण का मामला सामने आया। बच्ची के बीमार होने पर जांच में पता चला कि उसका यौन उत्पीड़न हुआ है। पिता की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज करके स्कूल के ही एक कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया। स्कूलों को शिक्षा का मंदिर माना जाता है। बच्चों को स्कूल भेजकर माता-पिता निश्चिंत हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चा वहां अच्छे संस्कार सीखेगा, पढ़-लिखकर न केवल अपने जीवन में सफल होगा, पिता से बच्चा आगे बढ़ेगा लेकिन इस विश्वास के साथ जिनके हाथों में वे अपने बच्चों को सौंपते हैं अगर वे हाथ ही उनका भविष्य चौपट करने लगें तो शिक्षा संस्थानों से लोगों का विश्वास उठ जाएगा। अगर स्कूल ही बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं तो वे शिक्षा हासिल करने कहां जाएंगे? महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा करवाए गए एक अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ कि भारत में प्रत्येक तीन में से दो स्कूली बच्चों का यौन शोषण होता है और शारीरिक शोषण के शिकार होते हैं। सबसे ज्यादा यौन शोषण पांच से 12 वर्ष के बच्चों का होता है। शोषण के शिकार 70 प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिता से यह बात नहीं कह पाते। राजधानी में बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए महिला एवं बाल विकास ने एक विशेष प्रशिक्षण व जागरुकता का मॉड्यूल तैयार किया है। इस मॉड्यूल के तहत बच्चों को उनकी आयु के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाएगा और उन्हें चुप्पी तोड़कर आवाज उठाने की सीख दी जाएगी। इस कड़ी में जल्द ही ब्रेन टार्मिंग कार्यक्रम शुरू होगा। जागरुकता मॉड्यूल के अंतर्गत बच्चों की आयु के हिसाब से तीन ग्रुपों में विभाजित कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। आयु के हिसाब से पांच से आठ साल, नौ से 12 साल और 12 से 18 साल के समूह बनाकर बच्चों को सशक्त करने की योजना बनाई गई है। बच्चे देश का भविष्य होते हैं लेकिन आज वे असुरक्षा के जिस माहौल में जी रहे हैं उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे देश का भविष्य कितना सुरक्षित है। बचपन से यौन शोषण का शिकार हुए बच्चे वयस्क होने पर भी उसके प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाते। बच्चों की तस्करी, गायब होने, अपहरण और हत्याओं के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सरकारें तो अपना काम कर ही रही हैं पर जब तक हमारा समाज अपनी मानसिकता नहीं बदलता  तब तक इस बढ़ती समस्या से निजात पाना मुश्किल लगता है। हमारे प्रधानमंत्री को बच्चे बहुत प्यारे हैं, हम उम्मीद करते हैं कि वह इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाएंगे और बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने का प्रयास करेंगे।
-अनिल नरेन्द्र


थोक महंगाई पांच साल में सबसे निचले स्तर पर लुढ़की

अपने पांच माह के कार्यकाल में ही वादाखिलाफी के अनर्गल विरोध व आरोप झेल रही मोदी सरकार ने आलोचकों को फिर करारा जवाब दिया है। मैं महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों की बात नहीं कर रहा। मैं बात कर रहा हूं महंगाई की और आर्थिक समस्याओं की। ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि आर्थिक मोर्चे पर कई अच्छी खबरें एक साथ मिलें पर भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ फिलहाल ऐसा ही हुआ है। सरकार के प्रयासों का फल है कि खुदरा के बाद अब थोक महंगाई भी पांच महीने में ही पांच साल के सबसे निचले स्तर  पर पहुंच गई है। सितम्बर महीने में इसका प्रतिशत 2.38 आंका गया। अगस्त माह में यह 3.74 प्रतिशत और गत सितम्बर में 7.05 प्रतिशत थी। इसकी न्यूनतम दर अक्तूबर 2009 में एक फीसदी थी। इसके बाद संप्रग के पूरे कार्यकाल के दौरान महंगाई की औसतन दर आठ से नौ प्रतिशत के बीच रही। संप्रग सरकार के पतन में भ्रष्टाचार के साथ किसी अन्य कारक का सर्वाधिक योगदान था तो वह यह महंगाई थी। महंगाई एक ऐसा मुद्दा है जो आम जनता को सीधा प्रभावित करता है। दूध, अंडा, मांस, मछली की मुद्रास्फीति में गिरावट सितम्बर में भी जारी रही। मोदी सरकार के साथ रिजर्व बैंक ने तमाम दबावों के बावजूद धैर्य के साथ जो संयमित कदम उठाए उनकी अनुभूति अब सस्ते दिनों की आहट के रूप में होने लगी है। आंकड़ों के मुताबिक खाद्य सामग्री के दामों में कमी के कारण मुद्रास्फीति में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब तीन गुना की कमी आई है। महंगाई घटने का सीधा फायदा आम आदमी को हुआ है। इससे सरकार के नीति-निर्माताओं को भी बहुत राहत मिली होगी। मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता महंगाई को कम करना था ताकि आम आदमी को राहत मिल सके। मगर शुरुआती दौर में ही रेलवे किरायों में 14 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर जनता को जोर का झटका दिया। इसका खामियाजा भी कई राज्यों के उपचुनावों में भाजपा को भुगतना पड़ा। अब सरकार के लिए राहत की बात यह है कि खाद्य सामग्री एवं पेट्रोल के दामों में लगातार कमी हो रही है। हालांकि पेट्रोल के दामों में कमी की वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों में लगातार आ रही गिरावट भी है। मगर विभिन्न खाद्य सामग्रियों के मूल्य में कमी सरकार के अच्छे प्रबंधन का संकेत है। प्याज के निर्यात मूल्य में वृद्धि कर सरकार ने शुरू में ही इस पर अंकुश लगाने में कामयाबी पा ली थी। लेकिन सरकार की चिन्ताओं और प्रयासों के लिए कोई विश्राम नहीं है। इस वर्ष के अवर्षण और चक्रवातीय तूफान से फसलों को व्यापक क्षति के मद्देनजर कीमतें एक बार फिर ऊपर जा सकती हैं। पश्चिम एशिया के अनिश्चित हालात के चलते तेल की कीमतों पर भी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती किन्तु सबसे बड़ी जरूरत ऐसे व्यावहारिक उपायों की है जिससे आंकड़ों में घटी महंगाई का वास्तव एहसास आम उपभोक्ता को हो सके। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि खाद्य महंगाई को नियंत्रण में लाने में हम सक्षम रहे हैं। सरकार खाद्य बाजारों के लिए आपूर्ति को बेहतर बनाने और महंगाई को निचले स्तर पर रखने के लिए प्रतिबद्ध है। जल्द ही हम निम्न और स्थिर महंगाई दर को हासिल कर लेंगे।

Saturday, 18 October 2014

आईएसएल से भारतीय फुटबाल के नए युग का आगाज होगा

भारतीय फुटबाल के मक्का कहे जाने वाले महानगर कोलकाता का साल्टलेक स्टेडियम अपने 30 वर्षों के समृद्ध इतिहास में अनेक फुटबाल मैचों के साथ बड़े-बड़े समारोहों का गवाह रहा है पर रविवार की शाम कोलकाता निवासियों के लिए यादगार रहेगी। मौका था भारतीय फुटबाल में एक नए युग की शुरुआत का। सितारों से सजी-धजी व चमक-दमक के संग एक शानदार समारोह के साथ इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) के पहले सीजन का रंगारंग आगाज हुआ। उद्घाटन समारोह में जहां पूर्व विश्व सुंदरी व बालीवुड की `मैरीकॉम' प्रियंका चोपड़ा ने अपनी प्रस्तुति दी। वहीं भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, बंगाल टाइगर सौरभ गांगुली, उद्योगपति मुकेश अम्बानी, अन्नु मलिक, हरभजन सिंह व अन्य बड़ी हस्तियों को देख दर्शकों का जोश सातवें आसमान पर पहुंच गया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मौजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आईएसएल के उद्घाटन के लिए कोलकाता को चुनने के लिए दिल से धन्यवाद व आभार जताया। सीएम ने कहा कि कोलकाता फुटबाल को बेहद पसंद करता है और इसी में जीता है। प्रियंका चोपड़ा ने एंकर की भूमिका संभाली। उन्होंने एक-एक कर सभी आठों टीमों के मालिकों एवं मार्की खिलाड़ियों को मंच पर आमंत्रित किया। उन्होंने घरेलू टीम एटलेटिका डि कोलकाता के सह मालिक सौरभ गांगुली का नाम लिया तो पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कहने को तो अन्य खेलों की तरह फुटबाल भी एक खेल है लेकिन यदि लोकप्रियता और रुतबे की बात की जाए तो कहना पड़ता है कि बाकी सारे खेल एक तरफ और फुटबाल एक तरफ। इसका प्रमाण हमें तब देखने को मिलता है जब प्रत्येक चार वर्ष पर फुटबाल विश्व कप का आयोजन होता है। विश्व कप में खेल प्रेमियों और प्रशंसकों में पसंदीदा खिलाड़ियों और टीमों को लेकर जैसा जोश, जुनून और दीवानगी देखने को मिलती है वैसी किसी अन्य खेल या उससे संबंधित आयोजन को लेकर नहीं दिखती। महत्वपूर्ण सवाल शायद यह है कि विश्व फुटबाल में भारत कहां है? दरअसल फुटबाल की दुनिया में हम कहीं नहीं हैं। विश्व फुटबाल की ताजा फीफा रैकिंग में भारत का स्थान 158वां है। अब इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की शुरुआत से उम्मीद बंधी है कि भारतीय फुटबाल के भी अच्छे दिन आने वाले हैं। इस लीग का फॉर्मेट काफी हद तक क्रिकेट के आईपीएल जैसा ही है। इसमें आठ टीमें हैं और प्रत्येक टीम को विदेशी और देशी खिलाड़ियों का तयशुदा संयोजन रखते हुए मैदान में उतारा है। आईपीएल की तरह ही जितने भी विदेशी खिलाड़ी इसमें भाग ले रहे हैं उनमें से लगभग सभी शीर्ष स्तर पर अपनी पारी खेल चुके हैं। लेकिन यह भी सही है कि चाहे डेल पिचरों हों या निकोल्स अनेलका, इनके जादुई खेल की स्मृतियां फुटबाल प्रेमियों के दिमाग में आज भी ताजा हैं। फुटबाल की दुनिया में भारत को कोई गंभीरता से नहीं लेता। हमारा स्तर इतना गिरा हुआ है कि मालदीव और नेपाल जैसी टीमों से भी जीतना कई बार हमारे लिए संभव नहीं होता। विदेशी खिलाड़ियों के साथ खेलने से शायद भारतीय फुटबाल खिलाड़ियों का स्तर उभरे। बहरहाल आईएसएल को कारपोरेट, बालीवुड सितारों और नामचीन क्रिकेट खिलाड़ियों का जैसा समर्थन मिल रहा है उसे देखते हुए उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय फुटबाल में एक नए युग का आगाज होगा।
-अनिल नरेन्द्र

अगर एग्जिट पोलों की मानें तो लगता है मोदी मैजिक फिर चल गया है

अगर महाराष्ट्र और हरियाणा में एग्जिट पोल्स पर विश्वास किया जाए तो दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है। आप कह सकते हैं कि इन पोलों की एक्यूरेसी कितनी है, भविष्यवाणी कितनी सटीक है? इतिहास बताता है कि यह कई बार गलत भी साबित हुए हैं पर कुछ बिल्कुल निशाने पर भी बैठे हैं। विभिन्न एग्जिट पोल्स का आंकलन करें तो हरियाणा में भाजपा को 35 से 52 सीटों का अनुमान है जबकि कांग्रेस को 10 से 15 सीटें, इनेलो को 22 से 30 और अन्य को चार से 10 सीटों का अनुमान है। इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा को 127 से 132 सीटों का अनुमान है। शिवसेना को 53 से 77, कांग्रेस को 30 से 44 और एनसीपी को 29 से 39, अन्य को आठ से 20 का अनुमान है। दोनों ही राज्यों में ऐसा लगता है कि कांग्रेस को भारी नुकसान होने वाला है। महाराष्ट्र और हरियाणा में भारी मतदान ने दोनों राज्यों में सत्ताधारी कांग्रेस की रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। कांग्रेस रणनीतिकार मानकर चल रहे थे कि अगर इन दोनों राज्यों में मतदान औसत या इससे कम होता है तो पंचकोणीय और त्रिकोणीय मुकाबले में उसके लिए कुछ संभावना बन सकती है। लेकिन हरियाणा में 73 फीसदी से अधिक मतदान की खबर लगते ही कांग्रेस ने अपनी हार तय मान ली है। इससे एक बात साफ हो गई है कि कांग्रेस को उम्मीद से ही ज्यादा बड़ी हार देखने को मिल सकती है तथा बम्पर वोटिंग का दूसरा मतलब यह भी है कि कांग्रेस को छोड़ किसी अन्य दल को पूर्ण बहुमत मिलने की प्रबल संभावना है। हरियाणा में बुधवार को हुए मतदान ने पिछले 47 वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है। यहां 75 फीसदी मतदान हुआ है। लोकसभा चुनाव की तरह दोनों ही राज्यों में युवाओं ने बड़ी संख्या में नरेन्द्र मोदी के नाम पर वोट दिया दिखता है। दोनों राज्यों में रिकार्ड वोटिंग के पीछे युवाओं की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। हरियाणा में मतदाताओं में 20 से 29 साल के युवाओं की संख्या काफी ज्यादा है। महाराष्ट्र में भी कुल मतदाताओं में करीब 50 फीसदी युवा हैं और युवाओं ने जमकर मोदी के नाम पर वोटिंग मशीन के बटन दबाए हैं। ऐसा भाजपा के रणनीतिकारों के बीच ही नहीं बल्कि दूसरे दलों के एक वर्ग में भी माना जा रहा है। युवाओं के अलावा महिलाओं के वोट भी बड़ी संख्या में दोनों ही राज्यों में भाजपा को मिले हैं। शौच के लिए महिलाओं का खुले में जाना और उसे रोकने के लिए हर गांव में टॉयलेट बनाने की पीएम मोदी की घोषणा का बड़ा असर है। सभी गर्ल्स स्कूल में उनके लिए अलग टॉयलेट की योजना का भी असर हुआ है, ऐसा लगता है। भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अध्यक्ष अमित शाह बुधवार को पहली बार पत्रकारों से मिले। उन्होंने प्रवेश करते ही कहा कि भाजपा दोनों राज्यों में पूर्ण बहुमत से जीत रही है। उनके इस आत्मविश्वास को शाम को एग्जिट पोलों ने बल दे दिया। दरअसल जिस तरह हार का मुंह हाल के उपचुनावों में भाजपा को देखना पड़ा था, उससे चर्चा शुरू हो गई थी कि मोदी-शाह का जादू उतरने लगा है, इसलिए इन दोनों राज्यों के चुनावों पर न सिर्प मोदी की ही बल्कि अमित शाह की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। इन दोनों राज्यों के चुनाव में मोदी ने भी अपने दम पर प्रचार की कमान संभाली। मोदी ने अपने नाम पर वोट मांगा, इसलिए जनता भी उन्हें आगे भी परखने के मूड में दिखी। एग्जिट पोल के नतीजे यह साफ संकेत कर रहे हैं कि महाराष्ट्र में शिवसेना का साथ छोड़ने के बावजूद भाजपा को कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है। 15 साल पहले राज्य में भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार थी लेकिन एग्जिट पोल सही साबित हुए तो पहली बार भाजपा अपने बूते पर महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी। नतीजों के लिए 19 अक्तूबर का इंतजार करना होगा। यदि परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे तो इससे पार्टी को अपने दम पर अखिल भारतीय पहुंच बनाने की रणनीति को ताकत मिलेगी। कांग्रेस मुक्त भारत अभियान को नया बल मिलेगा। इसका असर पंजाब जैसे सूबे में दिख सकता है जहां अभी भाजपा-अकाली दल के साथ सत्ता में है। चूंकि हरियाणा में अकाली दल इनेलो के साथ दिखा है। ऐसे में नतीजे अनुकूल रहने पर भाजपा पंजाब में भी एकला चलो की राह चुन सकती है। अगर दोनों राज्यों में भाजपा बहुमत में आती है तो इसका असर राज्यसभा में आने वाले दिनों में पड़ेगा जहां बहुमत न होने की वजह से मोदी सरकार को नए कानून बनाने में दिक्कतें हो रही हैं। कांग्रेस के लिए यदि परिणाम लोकसभा के समान ही रहे तो उसके शीर्ष नेतृत्व की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाएंगी।

Friday, 17 October 2014

मदरसा छात्रों के लिए साइबर ग्राम योजना

उत्तर प्रदेश में मदरसा छात्रों को अब मजहबी शिक्षा के साथ ही कम्प्यूटर व इंटरनेट सेवी बनाया जाएगा। केंद्र सरकार की साइबर ग्राम योजना के तहत मदरसों के कक्षा छह से दस तक के छात्रों को यह प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह योजना मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (एमएसडीपी) के सभी 144 ब्लाक में चलाई जाएगी। प्रदेश सरकार मदरसों व उनमें पढ़ने छात्रों की सूची को अंतिम रूप देने में जुट गई है। योजना लागू करने वाले जिलों में बुलंद शहर, गाजियाबाद, हापुड़ और  गौतमबुद्ध नगर शामिल हैं। केंद्र सरकार ने अपनी साइबर ग्राम योजना को उत्तर प्रदेश में भी लागू करने के निर्देश दिए हैं। इसी के बाद प्रदेश सरकार भी इस योजना को मूर्तरूप देने में जुट गई है। साइबर ग्राम योजना का मुख्य उद्देश्य चिन्हित अल्पसंख्यक क्षेत्रों के युवाओं को डिजीटल रूप से साक्षर बनाना है जिससे वे आर्थिक और सामाजिक रूप से और मजबूत हो सकें। योजना के तहत कम्प्यूटर का विशेष प्रशिक्षण जन सुविधा केंद्र (सीआरसी) के जरिए दिलाया जाएगा। इसके लिए 39 घंटे का विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया गया है। इसमें कम्प्यूटर शिक्षा की सभी बुनियादी जानकारियां उन्हें दी जाएगी। इसके अलावा इंटरनेट की दुनिया से भी इन युवाओं को रूबरू कराया जाएगा। सरकार की योजना है कि मदरसों में मजहबी पढ़ाई के साथ ही आधुनिक पढ़ाई भी कराई जाए ताकि युवाओं का समुचित विकास हो सके। यह खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांवों की चौतरफा तरक्की की ओर गंभीरता से कदम उठाए हैं। मोदी जो कहते हैं करते हैं। लोकनायक जयप्रकाश और नाना जी देशमुख की जयंती पर सांसद आदर्श गांव योजना का आगाज इस बात का सुबूत है कि वह अपने चुनावी वादों को पूरा करते हैं। इस योजना की घोषणा यूं तो पीएम ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में की थी किन्तु घोषणा के अनुरूप इसके नीति-सिद्धांतों को गत शनिवार को जारी किया। महात्मा गांधी से लेकर विनोबा और जेपी तक गांव की चिन्ता कितनी गहन थी इसका उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री अभी इस माध्यम से बदलाव की राजनीति पर आगे बढ़ते दिख रहे हैं। इसमें हर सांसद को एक गांव गोद लेकर अपनी सांसद विकास योजना को समाहित कर उसे आदर्श गांव बनाना है। गांवों के विकास के प्रति मोदी की चिन्ता सात समुंदर पार उनकी अमेरिकी यात्रा में भी झलकी थी जहां अपने औद्योगिक विकास का एजेंडा मेक इन इंडिया आगे बढ़ाते हुए भी उन्होंने कहा था कि अगर भारत के गांव विकास की दौड़ में साथ न चले तो वह विकास बेमानी हो जाएगा। विकास ऊपर से नहीं गांवों से शुरू होना चाहिए। देश को तरक्की करने के लिए आधुनिक शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। बिना आधुनिक शिक्षा जिसमें कम्प्यूटर, इंटरनेट आजकल बहुत जरूरी अंग बन गया है उसको पढ़ना, इस्तेमाल करने की विधि सीखना बहुत महत्वपूर्ण अंश है उसे बढ़ावा देना अति आवश्यक हो गया है। यह अच्छी बात है कि केंद्र और यूपी सरकार ने मदरसों में कम्प्यूटर और इंटरनेट शिक्षा देने का फैसला किया है। भारत गांवों में बसता है।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली में बदमाशों का बढ़ता दुस्साहस

राजधानी में बदमाशों के हौंसले कितने बुलंद हैं इसका पता इसी से चलता है कि तीन महीने में तीन पुलिस वालों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। हाई सिक्यूरिटी वाले कनाट प्लेस में दो पुलिसकर्मियों पर फायरिंग के दूसरे दिन आउटर डिस्ट्रिक्ट के विजय विहार इलाके में एक कांस्टेबल को छाती में गोली मार दी गई। ताजा वाकया रविवार देर रात को कांस्टेबल आटो में सवार चार संदिग्ध बदमाशों को थाने ले जा रहे थे तभी उन्हें गोली मारी गई। कांस्टेबल जगबीर सिंह (42) ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, कांस्टेबल नरेन्द्र कुमार (42) जख्मी हो गया। बदमाश दोनों की  रिवाल्वर भी ले गए। रविवार-सोमवार की रात करीब 1.30 बजे आउटर डिस्ट्रिक्ट के विजय विहार इलाके में बाइक से पेट्रोलिंग कर रहे कांस्टेबल जगबीर सिंह और नरेन्द्र सिंह को एल ब्लाक की गली नंबर-1 में एक संदिग्ध आटो नजर आया। आटो की पिछली सीट पर बैठे चार लोगों पर शक गहराया तो जगबीर सिंह और नरेन्द्र उन्हें थाने ले जाने के लिए ड्राइवर के साथ बैठ गए। आटो चला तभी एक बदमाश ने पीछे से ड्राइवर को लात मार दी। आटो रुकते ही  बदमाश भागे। कांस्टेबल जगबीर ने पकड़ने की कोशिश की तो उन्हें गोली मार दी गई। कांस्टेबल नरेन्द्र की पीठ में गोली मारी गई। हरियाणा के भिवानी जिला के कनहरा गांव में 7 अक्तूबर 1972 को जन्मा जगबीर सिंह साहसी था। दिल्ली पुलिस में आने से पूर्व वह 15 साल तक भारतीय सेना में देश की सेवा कर चुका था। सेना से रिटायर होने के बाद 25 मई 2008 को दिल्ली पुलिस में बतौर कांस्टेबल  की नौकरी शुरू की थी। वह बीते डेढ़ साल से विजय विहार थाने में तैनात था। जगबीर सिंह को दो बार सर्वश्रेष्ठ बीट आफिसर का अवार्ड भी मिला था। अधिकारियों के अनुसार गोली लगने के बाद भी जगबीर ने हार नहीं मानी। उसने दो बदमाशों को अपनी बाहों में दबोच लिया था। इस दौरान अन्य बदमाशों ने हथियार के बट से उसके सिर पर कई वार किए। इतना ही नहीं उसके चेहरे पर भी बदमाशों ने घूंसा मारा और फिर उसे आटो से धकेलकर फरार हो गए। नार्दर्न रेंज के ज्वाइंट सीपी आरएस कृष्णैया के मुताबिक जगबीर दिल्ली पुलिस के जाबांज और होनहार कांस्टेबल माने जाते थे। जाहिर है कि ऐसे जाबांज और होनहार कांस्टेबल का जाना एक  बड़ा नुकसान है। पता चला है कि पुलिस ने जगबीर पर गोली चलाने वालों को पकड़ लिया है। पुलिस ने आटो चालक सहित दो युवकों को गिरफ्तार किया है और इस हत्याकांड को सुलझाने का दावा किया है। आरोपियों की पहचान 23 वर्षीय संतोष उर्प लक्की और 32 वर्षीय वेद रामपाल के रूप में की गई है। पुलिस ने आरोपियों से सिपाही जगबीर से लूटी गई रिवाल्वर के अलावा दो कट्टे एवं वारदात में इस्तेमाल आटो बरामद कर लिया है। वारदात को एक सेंधमार ने अंजाम दिया। शाहबाद डेरी निवासी वेद रामपाल आटो चालक है। वह दसवीं कक्षा तक पढ़ा है। वह इस सेंधमार गिरोह को रात के समय लेकर आटो में घूमता था। इसके बदले में उसे रोजाना 500 रुपए मिलते थे। वारदात के लिए निकलते समय उसे बदमाश बुला लेते थे। शाहबाद डेरी इलाके में रहने वाला संतोष बेहद ही शातिर सेंधमार है। वह महज पांचवीं कक्षा तक पढ़ा है। उसके खिलाफ हत्या के प्रयास, लूट और आर्म्स एक्ट के आठ मामले दर्ज हैं। वह डेढ़ माह पूर्व जेल से जमानत पर छूटकर आया था। इस वारदात में घायल हुए कांस्टेबल नरेन्द्र कुमार की हालत स्थिर है। सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती नरेन्द्र को एक-दो दिनों में छुट्टी मिल जाएगी। यह बहुत चिन्ता की बात है कि अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो गए हैं कि अब वह खाकी वर्दी वालों को भी लगातार निशाना बनाने से नहीं चूकते। जाफराबाद, सीलमपुर, विजय विहार और द्वारका में बदमाशों की गोलियों के शिकार बने पुलिस वाले ड्यूटी पर थे। अमेरिका और यूरोप में पुलिस वाले किसी भी संदिग्ध व्यक्ति की तलाशी लेने से पहले सतर्पता बरतते हैं। अमेरिका में पुलिस ट्रेनिंग मैनुअल के मुताबिक किसी संदिग्ध को रोकने के बाद और तलाशी लेने से पहले भरपूर एहतियात बरता जाता है, जिससे कि संदिग्ध पुलिस पर हमला न कर पाए। वहां संदिग्ध को रोकने के बाद संदिग्ध पर पिस्तौल तान कर `शो योर हैंडस' और `गेट डाउन ऑन योर नीज' कहते हुए उसके दोनों हाथ कमर पर या उसके सिर के ऊपर रखवा देते हैं। वह संदिग्ध की तलाशी लेते हैं कि कहीं कोई हथियार तो शरीर में नहीं छिपा रखा? दिल्ली में यह नहीं किया जाता। पुलिस वालों पर हर हमले में देखा गया है कि संदिग्धों को पकड़ने के बाद पुलिसकर्मियों ने उन्हें कवर नहीं किया। दिल्ली पुलिस की ट्रेनिंग में ऐसे एहतियात लेने के लिए  बीट अफसरों को आदेश देने होंगे ताकि जगबीर जैसे होनहार बहादुर कांस्टेबल की इस तरह हत्या न हो सके। हम जगबीर को श्रद्धांजलि देते हैं और उनके परिवार को इस भारी क्षति के क्षण में उनका साथ देते हैं।

Thursday, 16 October 2014

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की अग्निपरीक्षा है यह चुनाव

हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए 15 अक्टूबर को होने वाला मतदान आरम्भ हो चुका है। 19 अक्टूबर को जब मतपेटियां खुलेंगी तब पता चलेगा कि इन दोनों महत्वपूर्ण राज्यों में ऊंट किस करवट बैठता है। लोकसभा चुनावों में सफलता की नई इबारत लिखने वाली मोदी-शाह की जोड़ी की पतिष्ठा फिर से दांव पर है। चाहे वह हरियाणा हो या हो महाराष्ट्र लड़ाई नरेंद्र मोदी बनाम बाकी यानी मोदी वर्सेस टैस्ट बन गई है। इसका पमुख कारण है कि भाजपा ने इन दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन है इसको जाहिर नहीं किया। पदेश इकाई को भी पीछे रखा। सारी कमान खुद नरेन्द्र मोदी ने संभाली। पहले बात महाराष्ट्र की करते हैं। मोदी ने महाराष्ट्र में ताबड़तोड 33 रैलियां कीं। महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं जबकि हरियाणा में 90 सीटें हैं। मोदी को साबित करना है कि लोकसभा चुनाव में उनकी जीत यूं ही नहीं थी। वहीं कांग्रेस-एनसीपी और क्षेत्रीय दलों के सामने साख और अस्तित्व बचाने की चुनौती है। महाराष्ट्र का यह चुनाव पिछले 25 साल में पहला ऐसा चुनाव है जब पमुख राजनीतिक दल बिना किसी गठबंधन के मैदान में हैं। महाराष्ट्र में भाजपा 257 सीटों पर लड़ रही है जबकि सहयोगी छोटे दल 31 सीटों पर मैदान में हैं। 25 साल पुराना शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट चुका है। दरअसल श्री गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद महाराष्ट्र भाजपा में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया जिसे आज तक भरा नहीं जा सका। उधर कांग्रेस-राकांपा का 15 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया है। पहली बार महाराष्ट्र में पांच कोणीय चुनाव हो रहा है। जहां तक हरियाणा की बात है यहां हमारे अनुसार मुकाबला त्रिकोणीय है। भाजपा, कांग्रेस और इनेलो के बीच है। जहां तक पचार का सवाल है सबसे अच्छा पचार तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने किया है। उनका अभियान सकारात्मक था, राज्य में विकास पर आधारित था जबकि मोदी का सारा पचार नेगेटिव था। दोनों ही राज्यों में मोदी ने तत्कालीन सरकारों की कमियां निकालने पर जोर दिया। हुड्डा की व्यक्तिगत छवि विकास पुरुष, कुशल पशासक की बनी और इसका असर रोहतक, सोनीपत, झज्जर व पानीपत बैल्ट में देखने को मिला। शहर में कांग्रेस को निश्चित रूप से बहुत वोट मिलेंगे। इसी तरह नूहं-मेवात में अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस को मिलेंगे। इनेलो का अपना पभाव क्षेत्र है। ओम पकाश चौटाला को जेल जाने से सहानुभूति वोट मिलेगा खासकर जाट बैल्टों में। दोनों ही राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण रहेगा युवा वोट। बहुत से युवा पहली बार वोट डालेंगे। इनमें मोदी की लोकपियता नजर आती है। मोदी की रैलियों में युवा पमुखता से भाग लेते नजर आए। हुड्डा साहब को देश में एंटी कांगेस हवा और पाटी में इन फाइटिंग का नुकसान हो सकता है, व्यक्तिगत बात करें तो उनके आलोचक तक मानते हैं कि वह एक सफल मुख्यमंत्री रहे। भाजपा के पक्ष में डेरा सच्चा सौदा की इस घोषणा से कि वह भाजपा को वोट देंगे से फर्क पड़ सकता है। डेरे के 60 लाख अनुयायी हैं और अगर इन्होंने भाजपा को वोट दिया तो उसका चुनाव परिणाम पर बहुत असर पड़ेगा। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के लिए किसी भी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। दोनों ही राज्यों के चुनाव नतीजे कई नेताओं और दलों का भविष्य तय करेंगे। संघ के समर्थन से पार्टी और सरकार में पीढ़ी परिवर्तन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद इन चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। दोनों ही राज्यों में एकला चलो के साथ टिकट वितरण और रणनीति के मामले में सिर्फ इसी जोड़ी की चली है। ऐसे में अगर हिट हुए तो पार्टी में इस जोड़ी की पकड़ और भी मजबूत हो जाएगी। लेकिन अगर परिणाम अच्छे नहीं आए या उम्मीद के अनुसार नहीं आए तो इस जोड़ी को आलोचनाओं के लिए भी तैयार होना पड़ेगा। दोनों नेताओं के सामने मुश्किल यह है कि महाराष्ट्र की 288 सीटों में से जहां पार्टी अपने दम पर अब तक 60 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पाई है वहीं हरियाणा में हमेशा क्षेत्रीय दलों की बी टीम रही भाजपा अपने दम पर बीते विधानसभा चुनाव में 90 में से महज 4 सीट ही हासिल कर पाई थी। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में हजकां और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ उतरी पाटी ने ऐतिहासिक पदर्शन किया था। हालांकि लोकसभा चुनाव के करीब पांच महीने बाद हो रहे इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा का अपने पुराने सहयोगियों से नाता टूट गया। चुनाव नतीजे कांग्रेस के साथ-साथ राकांपा, शिवसेना, मनसे और इनेलो का भी भविष्य तय करेंगे। खराब नतीजे इन दलों में नए विवाद को जन्म देने के साथ-साथ नेतृत्व के लिए भी नई मुसीबत खड़ी करेंगे। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनावों के बाद देश में नए सियासी गठबंधन आकार ले सकते हैं। सत्तारूढ़ एनडीए और यूपीए गठबंधन के साथियों ने इन चुनावों में पाला बदला है। देखना यह होगा कि चुनाव बाद एनडीए के स्वरूप में बदलाव आता है अथवा नहीं। अगर भाजपा उद्धव ठाकरे के बिना महाराष्ट्र और चौटाला के बिना हरियाणा में सरकार बना पाई तो निश्चित तौर पर शिवसेना और अकाली दल की हैसियत मोदी सरकार में घट जाएगी। यूपीए तो बिखर ही गया है। अगर एनसीपी ने महाराष्ट्र चुनाव में अच्छा पदर्शन किया तो शायद वह यूपीए में लौटे भी नहीं। दो राज्यों के विधानसभा चुनावों से वामदल और क्षेत्रीय दलों में सपा, राजद, बसपा, जद(यू), तृणमूल कांग्रेस व द्रमुक भी कुछ न कुछ सीख लेंगे। सारे क्षेत्रीय दल पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को आगे तक बढ़ा रहे हैं जिसका मतलब है कि पधानमंत्री मोदी सभी राज्यों में सिर्फ और सिर्फ भाजपा का परचम लहराना चाहते हैं और इस उद्देश्य की पाप्ति के लिए वह सिर्फ और सिर्फ अमित शाह की चाणक्य चालों पर निर्भर हैं। देखें, कि मोदी-शाह की शतरंजी चालें कितना रंग लाती हैं?

öअनिल नरेन्द्र

Wednesday, 15 October 2014

ISIS, Taliban Nexus, a big threat in the region India should be alert to the danger

Anil Narendra

In a new video on Internet, an Islamic State's fundamentalist is shown beheading a British hostage, Alan Henning. This is the fourth murder by the extremist organization in recent times. Before this British journalist James Foley, American-Israeli reporter Steven Sotlof and British helper David Hans were killed the same brutal manner cruel way.
In the latest video a masked militant says: Obama, you targeted our people in Syria and bombarded them by your planes so this is the best way to continue the attack on your people.
The spokesperson of America's National Security Council, Catlin Hayden confirmed and said that there is no point of having any doubt on the credibility of this video. In spite of American led air attacks, the killing of British hostage by ISIS shows the danger posed by this extremist organization.
At the same time the expansion of this terror organization is also a matter of grave concern for several countries including India.  According to a latest report, Pakistani Taliban has extended its full support to IS.  Taliban is already associated with another terror organization Al-Qaeda.
To make its presence felt in the subcontinent the Al-Qaeda recently issued a video threatening to launch Jehad in India. The video is shown to keep up Al-Qaeda’s superiority in the subcontinent. In his Speech Al Javahri was shown allegiance with Taliban leader Mulla Umar.
But the joint appeal made by Pak Taliban and ISIS to launch Jehad in the region has created a deep crack between Pak Taliban and Afghan Taliban. It also shows the bad intention of terror groups to control the region in the aftermath of the withdrawal of foreign troops from Afghanistan.
While America along with other countries is trying to destroy ISIS camps by bombarding in Iraq and Syria, at the same time ISIS is also expanding its wings across the world with different extremist organization to make its foothold stronger.
ISIS has already joined hands with Abu Samaf (Somalia and the Philippines), Boko Haram (Nigeria), Bangsamaro Islamic Freedom Fighter (Philippines), Jemah Islamia (Thailand, Malaysia and Indonesia) Majlis Shura Al Mujahidin (Egypt and the Gaza strip) and now Pak Taliban.
Actually, the large area of Pakistan and Afghanistan is against America and people are ready to take pledge for Jehad. While it is shocking to see immense growth of ISIS in a short period, its act of violence is more horrible.
A few weeks ago the flag of ISIS was seen in Kashmir, and the latest bomb blast in Burdwan, West Bengal is also linked to Al-Qaeda. Now, it is time for India to be highly alert from the growing terror threats to the country.

ऑनलाइन महा डिस्काउंट ऑफर ः कितना सच-कितना झूठ

पिछले कुछ समय से इंटरनेट के जरिये ऑनलाइन शापिंग का प्रचलन बढ़ गया है। इसमें लोगों को यह फायदा है कि सामान घर बैठे बैठाए आ जाता है, न तो मार्केट जाने का झंझट, न पार्किंग का झंझट और न समय की बर्बादी। इस इंटरनेट शापिंग ने सामान्य खुदरा कारोबारियों और दुकानदारों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। लेकिन बीते छह अक्तूबर को ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी फ्लिपकार्ट की एक योजना के चलते जो हुआ उससे इंटरनेट शापिंग के इस रूप पर गहरे सवाल उठना स्वाभाविक ही है। प्रमुख ई-कामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट बंपर सेल के चलते विवादों में फंसती जा रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि ई-कामर्स कंपनियों के खिलाफ बहुत शिकायतें मिली हैं। सरकार पूरे मामले पर गौर करेगी और जरूरी हुआ तो ई-रिटेल पर अलग नीति या स्पष्टीकरण जारी किया जा सकता है। अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ ने हाल ही में सीतारमण को पत्र लिखकर ऑनलाइन शापिंग से जुड़ी कंपनियों के बिजनेस मॉडल और कारोबार के तौर-तरीकों की शिकायत की थी। भारी डिस्काउंट के दावों पर फ्लिपकार्ट के खरा उतरने से ग्राहकों में नाराजगी है। कंपनी ने सोमवार को बिग बिलियन डे सेल पर कई उत्पादों पर भारी डिस्काउंट की पेशकश की थी। कई ऑफर सेल शुरू होते ही खत्म हो गए जबकि बहुत से लोगों के आर्डर बाद में कैंसिल कर दिए गए। इस मेगा सेल के दौरान फ्लिपकार्ट की वेबसाइट में तकनीकी गड़बड़ियों के चलते भी खरीदारों को परेशानी का सामना करना पड़ा। इससे नाराज खरीदारों ने सोशल मीडिया पर फ्लिपकार्ट के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। कुछ साल पहले हुए ऑनलाइन कारोबार में आज कई बड़ी कंपनियां शामिल हो चुकी हैं और इनके बीच कड़ी प्रतियोगिता चल रही है। इसी प्रतिद्वंद्विता में अपना बाजार बढ़ाने के लिए फ्लिपकार्ट ने अचानक एक बिग बिलियन डे सेल की घोषणा कर दी और कई उत्पादों पर भारी रियायत की पेशकश की जो अब एक स्कैंडल के रूप में बदल गई है। एक ओर फ्लिपकार्ट ने अपनी वेबसाइट को एक अरब हिट मिलने और छह अरब के सामान खरीदे जाने का दावा किया वहीं ग्राहकों के बीच भारी नाराजगी फैली। अगर कोई ढाई हजार के किसी मोबाइल की कीमत एक रुपए या 14 हजार रुपए के करीब के टेबलेट 1400 में मिलने की घोषणा की जा रही हो तो समझने की जरूरत है कि यह धोखे के सिवाय और क्या हो सकता है? इसी तरह दिनभर टीवी चैनलों पर सस्ती दर में उपभोक्ता वस्तुएं उपलब्ध कराने के दावे वाले विज्ञापन चलते रहते हैं। इनके झांसे में आकर रोज लोग ठगे जाते हैं। कैट रिसर्च ग्रुप द्वारा हाल में ही एक प्रारंभिक सर्वे में  पाया गया कि गत छह महीनों में कुछ व्यापारियों में ऑनलाइन व्यापार के कारण लगभग 20 प्रतिशत से 35 प्रतिशत की गिरावट आई है जिसमें मुख्य रूप से मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर हार्डवेयर, साफ्टवेयर, कस्यूमल ड्यूरेबल्स, कास्मेटिक, गिफ्ट की वस्तुएं, होम व किचन एप्लाइंसेंज आदि शामिल हैं। यह सही है कि ऑनलाइन शापिंग में भी उपभोक्ता हितों का संरक्षण किए जाने की जरूरत है। दरअसल बड़ी पूंजी वाली कंपनियां कम या शून्य मुनाफे पर पहले अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करती हैं फिर उपभोक्ताओं के सामने विकल्पहीन स्थितियां पैदा कर अकूत फायदा कमाने लगती हैं। इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

-अनिल नरेन्द्र