Tuesday, 7 October 2014

गठबंधन टूटते हरियाणा और महाराष्ट्र में फिर मोदी-सोनिया आमने-सामने

हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार अपनी चरमसीमा तक पहुंच गया है। सभी दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस भी इन चुनावों में जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। एक बार फिर नरेन्द्र मोदी और सोनिया गांधी एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। अकेले अपने दम पर पैठ बनाने की कोशिश में जुटी भाजपा के लिए हरियाणा नाक का सवाल बन गया है। मोदी लगातार नौ दिनों तक प्रदेश में चुनावी रैलियां करेंगे। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को लग रहा है कि वह स्वयं के बूते पर हरियाणा में सरकार बना सकती है। इसी अति उत्साह में उसने हजकां से गठबंधन भी तोड़ दिया। टिकट की आस में जिस तरह से दूसरे दलों के नेता भाजपा से जुड़े और बाद में टिकट न मिलने पर उन्होंने विरोध प्रदर्शन किया उससे पार्टी की चिंताएं बढ़ी हुई हैं। अब भाजपा को लग रहा है कि टिकट से वंचित यही नेता उसके चुनाव में मुसीबत का कारण बन सकते हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गत सप्ताह दो दिन के लिए हरियाणा में रहे लेकिन उनकी जनसभाओं में उतनी भीड़ नहीं जुटी जितनी लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद उम्मीद की जा रही थी। रही-सही कसर चुनाव बाद किसी दल से गठबंधन नहीं होने के शाह के संकेत से पूरी हो गई। भाजपा का जोर भले ही सरकार बनाने पर हो, लेकिन अपना स्वयं का जनाधार बढ़ाने के लिए उसे अपने तुरुप का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। मोदी चार अक्तूबर से 12 अक्तूबर तक लगातार हर रोज एक रैली करेंगे। मोदी ने शनिवार को हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव अभियान करते हुए विरोधी दलों पर हमले किए। उन्होंने कहा कि जिन्होंने देश पर 60 साल तक शासन किया वह हमसे 60 दिन का हिसाब मांग रहे हैं। हरियाणा में कांग्रेस और इनेलो को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने वोटरों से कहा कि केंद्र में भाजपा को आप परख चुके हैं लिहाजा उसका ट्रायल न करें। उसे पूर्ण बहुमत दें। उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए महम की चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी सरकार पर जमकर हमला किया। उन्होंने प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना कहा कि ज्यादा चिल्लाने वाले सच्चे नहीं होते। वे कुछ काम नहीं करते और सिर्प खोखले दावे करते हैं। वे यूपीए सरकार की योजनाओं का नाम बदल कर सिर्प श्रेय ले रहे हैं। सोनिया ने कहा कि वे ऐसा माहौल बना रहे हैं जैसे आजादी के बाद से देश में कुछ भी नहीं हुआ और वे रातोंरात हर आदमी की तकदीर बदल देंगे। लोकसभा चुनाव में जो वादे किए थे, उनका क्या हुआ? क्या महंगाई घटी, ब्लैक मनी वापस आई? क्या कोई कदम उठाया गया? बिल्कुल नहीं। वहीं हरियाणा के दिग्गज मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हरियाणा के नतीजे बता देंगे भाजपा को उसकी औकात। हुड्डा ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मीडिया में ऐसा माहौल बनाया कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनते ही जादू की छड़ी से हर समस्या का समाधान कर देंगे। एनडीए के तीन महीने के शासन में ही असलियत सामने आ गई है। शासन में आते ही सबसे पहला काम सरकार ने डीजल का रेट बढ़ाया, फिर रेल किराये में 14 फीसदी बढ़ोतरी की। कोयले के रेट बढ़ाए, आलू, प्याज, टमाटर, चीनी, बिजली सब महंगी हो गई। अब बात करते हैं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की। महाराष्ट्र में 15 अक्तूबर को 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं और करीब 25 साल बाद राजनीतिक दल अकेले एक-दूसरे का मुकाबला करेंगे। राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक गठबंधन टूट चुके हैं। वर्ष 1989 से पहले शिवसेना और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव  लड़ा था। दोनों दलों ने 1989 में गठबंधन किया था। कांग्रेस और राकांपा जो कि अब तक पिछले 15 साल से एक साथ चुनाव लड़ती थीं वे भी अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। वर्ष 1999 में शरद पवार की अगुवाई में राकांपा का गठन हुआ था।  बाद में इसने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। चुनाव मैदान में बाजी मारने के लिए प्रयासरत पांच प्रमुख दल कांग्रेस, शिवसेना, भाजपा, राकांपा और मनसे मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और अपने दम पर बहुमत पाने का दावा कर रहे हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक और महाराष्ट्र की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले का कहना है कि अगर राज ठाकरे की मनसे शिवसेना के वोट छीन लेती है तो संभावना है कि भाजपा अकेली सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरे। इसके बाद शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि इन चुनावों में चार मुद्दे अहम होंगे और यह चारों क्रमश मराठी पहचान, हिन्दुत्व, भ्रष्टाचार और विकास हैं। भाजपा को महाराष्ट्र में भी हरियाणा की तरह मोदी लहर की उम्मीद है। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पहली बार ओबीसी नेता को देश का प्रधानमंत्री बनाकर ओबीसी कार्ड खेला है। उधर कांग्रेस और राकांपा की दूरियां बढ़ती जा रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण को कराड दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से घेरने का राकांपा ने फुल प्रूफ सियासी दांव खेलते हुए अपने अधिकृत प्रत्याशी राजेन्द्र यादव का नामांकन वापस लेकर कांग्रेस के बागी विधायक विलासकाका उडांलकर को समर्थन देने की घोषणा की है। वैसे हरियाणा और महाराष्ट्र में एक सर्वे के हिसाब से चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार नहीं होने की भविष्यवाणी की गई है। दो  टीवी चैनलों के लिए सी-वोटर की ओर से यह तस्वीर सामने आ रही है। सर्वे के अनुसार महाराष्ट्र में भाजपा को 288 में से 93 सीटें मिलेंगी। शिवसेना को 59 सीटें, एनसीपी को 47, कांग्रेस को 40 और मनसे को 27 सीटें मिलने के आसार हैं। बाकी 22 सीटें निर्दलीय और छोटे दलों को। हरियाणा में भाजपा को 90 में से 33 सीटें, ओम प्रकाश चौटाला की आईएनएलडी को 28 जबकि कांग्रेस को 16 सीटें दी जा रही हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दलित राजनीति का जमकर तड़का लगा है। महाराष्ट्र में दलितों की बड़ी संख्या है और वह चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सभी  दल अनेक धड़ों में बंटे दलित वोटों को हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। अब मतदान के  लिए ज्यादा दिन नहीं बचे। देखें 15 अक्तूबर को ऊंट हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में किस करवट बैठता है?

-अनिल नरेन्द्र

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