हरियाणा और महाराष्ट्र
विधानसभा चुनावों के लिए 15 अक्टूबर को होने वाला मतदान
आरम्भ हो चुका है। 19 अक्टूबर को जब मतपेटियां खुलेंगी तब पता
चलेगा कि इन दोनों महत्वपूर्ण राज्यों में ऊंट किस करवट बैठता है। लोकसभा चुनावों में
सफलता की नई इबारत लिखने वाली मोदी-शाह की जोड़ी की पतिष्ठा फिर
से दांव पर है। चाहे वह हरियाणा हो या हो महाराष्ट्र लड़ाई नरेंद्र मोदी बनाम बाकी
यानी मोदी वर्सेस टैस्ट बन गई है। इसका पमुख कारण है कि भाजपा ने इन दोनों राज्यों
में मुख्यमंत्री पद का दावेदार कौन है इसको जाहिर नहीं किया। पदेश इकाई को भी पीछे
रखा। सारी कमान खुद नरेन्द्र मोदी ने संभाली। पहले बात महाराष्ट्र की करते हैं। मोदी
ने महाराष्ट्र में ताबड़तोड 33 रैलियां कीं। महाराष्ट्र विधानसभा
में 288 सीटें हैं जबकि हरियाणा में 90 सीटें हैं। मोदी को साबित करना है कि लोकसभा चुनाव में उनकी जीत यूं ही नहीं
थी। वहीं कांग्रेस-एनसीपी और क्षेत्रीय दलों के सामने साख और
अस्तित्व बचाने की चुनौती है। महाराष्ट्र का यह चुनाव पिछले 25 साल में पहला ऐसा चुनाव है जब पमुख राजनीतिक दल बिना किसी गठबंधन के मैदान
में हैं। महाराष्ट्र में भाजपा 257 सीटों पर लड़ रही है जबकि
सहयोगी छोटे दल 31 सीटों पर मैदान में हैं। 25 साल पुराना शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट चुका है। दरअसल
श्री गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद महाराष्ट्र भाजपा में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया
जिसे आज तक भरा नहीं जा सका। उधर कांग्रेस-राकांपा का
15 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया है। पहली बार महाराष्ट्र में पांच कोणीय
चुनाव हो रहा है। जहां तक हरियाणा की बात है यहां हमारे अनुसार मुकाबला त्रिकोणीय है।
भाजपा, कांग्रेस और इनेलो के बीच है। जहां तक पचार का सवाल है
सबसे अच्छा पचार तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने किया है। उनका अभियान
सकारात्मक था, राज्य में विकास पर आधारित था जबकि मोदी का सारा
पचार नेगेटिव था। दोनों ही राज्यों में मोदी ने तत्कालीन सरकारों की कमियां निकालने
पर जोर दिया। हुड्डा की व्यक्तिगत छवि विकास पुरुष, कुशल पशासक
की बनी और इसका असर रोहतक, सोनीपत, झज्जर
व पानीपत बैल्ट में देखने को मिला। शहर में कांग्रेस को निश्चित रूप से बहुत वोट मिलेंगे।
इसी तरह नूहं-मेवात में अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस को मिलेंगे।
इनेलो का अपना पभाव क्षेत्र है। ओम पकाश चौटाला को जेल जाने से सहानुभूति वोट मिलेगा
खासकर जाट बैल्टों में। दोनों ही राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण रहेगा युवा वोट। बहुत
से युवा पहली बार वोट डालेंगे। इनमें मोदी की लोकपियता नजर आती है। मोदी की रैलियों
में युवा पमुखता से भाग लेते नजर आए। हुड्डा साहब को देश में एंटी कांगेस हवा और पाटी
में इन फाइटिंग का नुकसान हो सकता है, व्यक्तिगत बात करें तो
उनके आलोचक तक मानते हैं कि वह एक सफल मुख्यमंत्री रहे। भाजपा के पक्ष में डेरा सच्चा
सौदा की इस घोषणा से कि वह भाजपा को वोट देंगे से फर्क पड़ सकता है। डेरे के
60 लाख अनुयायी हैं और अगर इन्होंने भाजपा को वोट दिया तो उसका चुनाव
परिणाम पर बहुत असर पड़ेगा। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी और
अमित शाह के लिए किसी भी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। दोनों ही राज्यों के चुनाव नतीजे
कई नेताओं और दलों का भविष्य तय करेंगे। संघ के समर्थन से पार्टी और सरकार में पीढ़ी
परिवर्तन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद इन चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। दोनों ही राज्यों में एकला चलो
के साथ टिकट वितरण और रणनीति के मामले में सिर्फ इसी जोड़ी की चली है। ऐसे में अगर
हिट हुए तो पार्टी में इस जोड़ी की पकड़ और भी मजबूत हो जाएगी। लेकिन अगर परिणाम अच्छे
नहीं आए या उम्मीद के अनुसार नहीं आए तो इस जोड़ी को आलोचनाओं के लिए भी तैयार होना
पड़ेगा। दोनों नेताओं के सामने मुश्किल यह है कि महाराष्ट्र की 288 सीटों में से जहां पार्टी अपने दम पर अब तक 60 सीटों
का आंकड़ा पार नहीं कर पाई है वहीं हरियाणा में हमेशा क्षेत्रीय दलों की बी टीम रही
भाजपा अपने दम पर बीते विधानसभा चुनाव में 90 में से महज
4 सीट ही हासिल कर पाई थी। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में हजकां और महाराष्ट्र
में शिवसेना के साथ उतरी पाटी ने ऐतिहासिक पदर्शन किया था। हालांकि लोकसभा चुनाव के
करीब पांच महीने बाद हो रहे इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा का अपने
पुराने सहयोगियों से नाता टूट गया। चुनाव नतीजे कांग्रेस के साथ-साथ राकांपा, शिवसेना, मनसे और
इनेलो का भी भविष्य तय करेंगे। खराब नतीजे इन दलों में नए विवाद को जन्म देने के साथ-साथ नेतृत्व के लिए भी नई मुसीबत खड़ी करेंगे। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा
के चुनावों के बाद देश में नए सियासी गठबंधन आकार ले सकते हैं। सत्तारूढ़ एनडीए और
यूपीए गठबंधन के साथियों ने इन चुनावों में पाला बदला है। देखना यह होगा कि चुनाव बाद
एनडीए के स्वरूप में बदलाव आता है अथवा नहीं। अगर भाजपा उद्धव ठाकरे के बिना महाराष्ट्र
और चौटाला के बिना हरियाणा में सरकार बना पाई तो निश्चित तौर पर शिवसेना और अकाली दल
की हैसियत मोदी सरकार में घट जाएगी। यूपीए तो बिखर ही गया है। अगर एनसीपी ने महाराष्ट्र
चुनाव में अच्छा पदर्शन किया तो शायद वह यूपीए में लौटे भी नहीं। दो राज्यों के विधानसभा
चुनावों से वामदल और क्षेत्रीय दलों में सपा, राजद, बसपा, जद(यू), तृणमूल कांग्रेस व द्रमुक भी कुछ न कुछ सीख लेंगे। सारे क्षेत्रीय दल पधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को आगे तक बढ़ा रहे हैं जिसका मतलब है
कि पधानमंत्री मोदी सभी राज्यों में सिर्फ और सिर्फ भाजपा का परचम लहराना चाहते हैं
और इस उद्देश्य की पाप्ति के लिए वह सिर्फ और सिर्फ अमित शाह की चाणक्य चालों पर निर्भर
हैं। देखें, कि मोदी-शाह की शतरंजी चालें
कितना रंग लाती हैं?
öअनिल नरेन्द्र
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