Wednesday, 29 October 2014

13 साल से लड़ रहे अमेरिकी और ब्रिटेनी अफगानिस्तान से भागे

अफगानिस्तान में चल रही 13 साल लंबी ब्रिटेन की वार आन टेरर के तहत छेड़ा सैन्य अभियान आखिरकार रविवार को खत्म कर दिया। इस लड़ाई में अरबों रुपए और सैकड़ों जीवनों का नुकसान हुआ। अफगान का रेगिस्तान इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बना जब ब्रिटेन ने इस मिलिट्री आपरेशन को खत्म करने के लिए कैंप बेस्यन में अपना झंडा यूनियन जैक उतार लिया। इसके अलावा इस शिविर से सटे हुए अमेरिकी शिविर लेदरनेक का नियंत्रण भी अफगानिस्तान को सौंप दिया। ब्रिटेन को इस 13 वर्षीय वार आन टेरर में भारी नुकसान उठाना पड़ा है और अंतत वहां से भागने पर मजबूर होना पड़ा है। इस तरह 13 साल से इस देश में चले आ रहे सैनिक अभियान की आधिकारिक समाप्ति हो गई। इस अभियान में अशांत अफगानिस्तान में 450 से अधिक ब्रिटिश सैनिकों और महिलाओं की जान गई है। रायटर न्यूज एजेंसी के अनुसार अफगानिस्तान में आखिरी अमेरिकी नौसेना यूनिट ने रविवार को आधिकारिक रूप से अपने अभियान को भी समाप्त कर दिया। नौसैनिकों ने देश छोड़ने के लिए साजो-सामान समेट लिया और एक विशाल सैन्य अड्डे को अफगान सेना के हवाले कर दिया। तालिबान के कट्टरपंथी इस्लामिक शासन को खत्म करने के 13 साल बाद अंतर्राष्ट्रीय सेना के क्षेत्रीय मुख्यालय में अमेरिकी झंडे को उतारा गया। इस दौरान अमेरिका ने अपने 2345 कर्मियों को खो दिया। सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण हेलमंड प्रांत में स्थित सैन्य अड्डे से सैनिकों की वापसी के समय के बारे में सुरक्षा कारणों से जानकारी नहीं दी गई। अमेरिका के इस सबसे बड़े सैन्य अड्डे कैंप लेदर नेक को अफगान के नियंत्रण में दे दिया है। इस साल के आखिर तक अफगानिस्तान में गठबंधन सेना का अभियान खत्म हो जाएगा। अमेरिकी मरीन कैप्टन रियान स्टीन बर्ग ने कहा कि यह अब खाली हो गया है। अधिकारियों ने बताया कि बेस में अब अनुमानित तौर पर 4500 के आसपास ही अंतर्राष्ट्रीय सैनिक बचे हुए हैं। वे भी शीघ्र ही चले जाएंगे। उधर ब्रिटेन के रक्षामंत्री माइकल फैलन ने बताया कि यह गर्व की बात है कि हेलमंड में ब्रिटिश सैन्य अभियान खत्म हो गया, जिससे अफगानिस्तान को स्थिर भविष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ संभावित मौका मिला है। फैलन ने कहा कि गलतियां भी हुई हैं लेकिन 2001 में अफगानिस्तान आने के बाद से इंग्लैंड की सेना ने अपने अधिकांश लक्ष्य पूरे कर लिए हैं। बड़े बेआबरू होकर हम तेरे कूचे से निकले। यह कहावत अमेरिका और ब्रिटेन पर फिट बैठती है। इन्हें अपने आपसे पूछना चाहिए कि जिस उद्देश्य से यह अफगानिस्तान गए थे क्या वह पूरा हो गया है? गए तो यह इसलिए थे कि तालिबान को खत्म कर देंगे। आज तालिबान पहले से कहीं अधिक ताकतवर हो गया है। 13 वर्षों से तालिबान अमेरिकी और गठबंधन सैनिकों से लोहा लेता रहा और आज यह नौबत आ गई कि इन्हें भागना पड़ा। भले ही यह कहें कि हमारे उद्देश्य पूरे हो गए हैं पर सच्चाई सबके सामने है।

-अनिल नरेन्द्र

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