कांगेस पार्टी की सबसे शक्तिशाली और नीति-निर्माण करने वाली निकाय कांग्रेस कार्य समिति ने अपनी पिछली
बैठक में दो बड़े और महत्वपूर्ण फैसले किए। दोनों ऐसे फैसले हैं जिनके नतीजे राहुल
गांधी और कांग्रेस पार्टी का भविष्य तय करेंगे। पहला-राहुल
2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के पीएम उम्मीदवार होंगे और दूसरा कांग्रेस
समान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस कार्य समिति की पहली
बैठक में कुछ नेताओं ने गठबंधन की वजह से कांग्रेस का सियासी आधार कमजोर पड़ने की बात
उठाई। इस पर पी चिदम्बरम, शीला दीक्षित और आनंद शर्मा सहित अधिकांश
नेताओं ने मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में गठबंधन को कांग्रेस ही नहीं देश के लिए
अपरिहार्य जरूरत माना। इनका कहना था कि मोदी सरकार में देश में जिस तरह का माहौल और
संस्थाओं पर दबाव है उसमें गठबंधन के सहारे भाजपा नीति राजग को शिकस्त देना पहली पाथमिकता
है जबकि कांग्रेस को मजबूत करना दूसरी। वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने कहा कि समान विचारधारा
वाले दल आपसी मतभेद भुलाकर
भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएं। बैठक में वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम ने
2019 के चुनाव को लेकर एक पस्तुतिकरण दिया। इसमें कहा गया कि
12 राज्यों में कांग्रेस अपने बूते पर लगभग 150 सीटें जीत सकती है और बकाया 150 सीटें जीतने के लिए उसे
समान विचार वाले दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए। इस पस्तुतिकरण से इस बात के
संकेत भी मिले कि कांग्रेस सहयोगियों के साथ 300 सीटें जीतने
का लक्ष्य लेकर 2019 के चुनाव में उतरेगी। सोनिया गांधी ने यह
भी कहा कि मोदीमय भाजपा को हराने के लिए समान विचारधारा वाले दल आपसी मतभेद भुलाकर
एक जुट हों। नफरत और भय का माहौल और एक विशेष विचारधारा को देश की जनता पर थोपा जा
रहा है। केंद्र की भाजपा सरकार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। देश की जनता को इस खतरनाक
शासन से बचाना होगा जो भारत के लोकतंत्र को संकट में डाल रहा है। भारत के वंचितों और
गरीबों पर निशाना और डर के शासन को लेकर लोगों को आगाह करने की जरूरत है। जाहिर है
कि कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर यूपीए-3
के गठन की तैयारी शुरू कर दी है और इसका जिम्मा राहुल गांधी पर डाल दिया
है। इस तरह यह भ्रम तो दूर हो गया कि राहुल अपना ध्यान पार्टी पर केंद्रित करेंगे और
सहयोगी दलों को जोड़ने का काम सोनिया गांधी करेंगी। यूपीए-3 की
राह निश्चित ही इसके पुराने संस्कारों से काफी अलग होगी और मुश्किल होगी। सच्चाई यह
है कि आरजेडी को छोड़कर यूपीए के पुराने घटक दल अलग-अलग भाषाओं
में बोल रहे हैं। भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन की जरूरत बेशक सभी महसूस करते हैं मगर
पस्तावित महागठबंधन के स्वरूप को लेकर यह दल अपनी-अपनी दुविधा
बार-बार अपने बयानों में पकट कर रहे हैं। जैसे समाजवादी पार्टी
कभी तो कांग्रेस के साथ चलने की बात करती है तो कभी इससे इंकार भी करती है। बीएसपी
ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। सीपीएम नेता कांग्रेस से सहयोग की बात तो करते हैं लेकिन
महागठबंधन को लेकर गोल-मटोल बयान देते हैं। ममता बनर्जी के ज्यादातर
बयान बताते हैं कि उनका जोर कांग्रेस को साइट रखकर थर्ड पंट बनाने का है, हालांकि सोनिया गांधी के पति उनका रुख हमेशा की तरह आज भी नरम ही बना हुआ है।
ममता के समर्थक दबे लफ्जों में यह इशारा भी कर रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस के बगैर
महागठबंधन का कोई मतलब नही है और अगर महागठबंधन बनता है तो ममता उसकी नेता होंगी। जानकार
मानते हैं कि कांग्रेस कार्य समिति ने अपने फैसले अन्य विपक्षी दलों के सामने खुद को
मजबूत दिखाने और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए जाहिर किए हैं। आखिर अभी से औरों
के सामने अपने को कमजोर क्यों दिखाएं? बड़े और मजबूत इरादों से
ही अन्य विपक्षी दलों से सीट बंटवारे पर अच्छी सौदेबाजी की जा सकती है। लेकिन कांग्रेस
के इन इरादों के सामने चुनौती यह है कि चर्चाओं के मुताबिक बसपा नेता मायावती और प.बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के समर्थक भी इन्हें पीएम उम्मीदवार के रूप में
देख रहे हैं, तो क्या मायावती की बसपा, ममता की टीएमसी और अन्य विपक्षी दल कांग्रेस के मन में जिनती सीटें हैं?
उसे लड़ने के लिए देने पर राजी होंगे? इस पर ही
भविष्य टिका हुआ है। ज्यादातर क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ खड़े होने से अपना
जनाधार छिटक जाने का डर सता रहा है। ऐसे में यूपीए-3 का गठन राहुल गांधी की एक बड़ी परीक्षा
साबित होगी। उन्हें अपने पुराने सहयोगी दलों की एकजुटता का कोई केंद्र बिन्दु खोजना
होगा। इसके लिए कांग्रेस को काफी कुछ खोना भी पड़ सकता है। राहुल की पहली परीक्षा लोकसभा
चुनाव से पहले राजस्थान, मध्य पदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव
में होने वाली है। अगर इन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन बनाकर अच्छा पदर्शन करती है
तो 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए रास्ता खुलेगा।
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