Sunday 15 July 2018

दिल्ली के सुपरमैन

यह दुख से कहना पड़ता है कि अधिकारों की जंग में दिल्ली तबाह हो रही है। कूड़े के पहाड़ बनते जा रहे हैं और उन्हें हटाने के लिए कोई जिम्मेदार नहीं। तमाम अधिकारों से लैस दिल्ली के उपराज्यपाल ने अभी तक न तो इसके निपटारे की कोई ठोस-स्थायी योजना बनाई है और न ही कोई कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कूड़े के निपटान में नाकाम रहने पर दिल्ली के उपराज्यपाल के रवैये पर कड़ी फटकार लगाते हुए यहां तक कह दिया कि शक्ति के मामले में उपराज्यपाल खुद को सुपरमैन समझते हैं, लेकिन शहर से कूड़े के पहाड़ साफ करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। एक कूड़े के ढेर की ऊंचाई तो लगभग कुतुब मीनार के बराबर पहुंच गई है। अदालत ने कहा कि पिछली सुनवाई पर कूड़े का पहाड़ 62 मीटर ऊंचा था अब 65 मीटर हो गया है। यह कुतुब मीनार से सिर्प आठ मीटर कम है। दिल्ली सरकार के हलफनामे में कहा गया कि कूड़े के निस्तारण को लेकर हो रही मीटिंग में उपराज्यपाल भाग नहीं लेते। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहाöआपके पास जब भी काम आता है तो आप दूसरों पर जिम्मेदारी डाल देते हैं। उपराज्यपाल मानते हैं कि उनके पास पॉवर है, वह सुपरमैन हैं, सब कुछ वही हैं तो बैठक में क्यों नहीं जाते? कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी कौन लेगा? सारे अधिकार आपके पास हैं तो जिम्मेदारी भी आपकी है। आपको लगता है कि आपको कोई छू भी नहीं सकता, क्योंकि आप संवैधानिक पद पर हैं। कोर्ट ने 16 जुलाई तक उपराज्यपाल से हलफनामा दायर कर यह बताने को कहा है कि कूड़ा निस्तारण का कार्य कब तक पूरा होगा? एक्शन प्लान क्या है और अभी तक क्या किया है? गाजीपुर, ओखला और भलस्वा तीनों ही लैंडफिल साइटों पर एकत्रित कचरे के निस्तारण का दायित्व हमारी राय में निश्चित तौर पर दिल्ली की तीन नगर निगमों का है। यह स्थानीय निकाय अपने दायित्व को निभाने में अब तक असफल रहे हैं। इसे लेकर उपराज्यपाल द्वारा अनेक बैठकें किए जाने के बावजूद समस्या का हल न निकल पाना यह दर्शाता है कि यह इस सिस्टम को लेकर कितने गंभीर हैं। हमें तो लगता है कि यहां हर स्तर पर इच्छाशक्ति का अभाव है। इन लैंडफिल साइटों पर आग लगने की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं। यह कूड़े के पहाड़ जहां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं वहीं यह पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में अब यह जरूरी हो गया है कि इन लैंडफिल साइटों में एकत्रित ठोस कचरे के निस्तारण के लिए उचित व्यवस्था की जाए और भविष्य में इसके निपटारे की कोई ठोस नीति बनाई जाए।

-अनिल नरेन्द्र

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