Friday, 6 July 2018

जम्मू-कश्मीर में नई जोड़तोड़ सरकार बनाने के दांव-पेंच

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन की कवायद शुरू हो गई है। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के बीच सरकार बनाने की अटकलों के बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने कहा कि विभिन्न दलों के असंतुष्ट विधायकों से राज्य में जल्द एक नई सरकार गठित की  जा सकती है। दरअसल सबसे ज्यादा बेचैनी पीडीपी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को है। पीडीपी पर टूटने का खतरा मंडरा रहा है, इसलिए नई सरकार बनाने के लिए महबूबा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मिलने के लिए व्याकुल हैं। पीडीपी नेता दिल्ली में हैं और उनकी पार्टी के कम से कम 11 विधायक उनसे नाराज बताए जाते हैं। पीडीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री इमरान रजा अंसारी ने पीडीपी-भाजपा गठबंधन टूटने के लिए पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि वह एक असमर्थ मुख्यमंत्री साबित हुई हैं, जिन्होंने न सिर्प रियासत के लोगों को निराश किया है बल्कि अपने पिता के सपनों को भी मिट्टी में मिला दिया है। इधर कांग्रेस में जम्मू-कश्मीर के लिए बने कोर ग्रुप की बैठक सोमवार को पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के यहां हुई। कोर ग्रुप की  बैठक के बाद कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर प्रभारी अम्बिका सोनी और प्रदेशाध्यक्ष गुलाम अहमद मीर ने यह भी बताया कि पार्टी सरकार बनाने के बजाय जल्द चुनाव चाहती है। कांग्रेस ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्य में पीडीपी के साथ कांग्रेस के सरकार बनाने संबंधी अफवाहों पर मंगलवार को कहा कि आश्चर्य है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के इंकार के बावजूद कांग्रेस-पीडीपी गठबंधन के सरकार बनाने की अटकलों पर विराम नहीं लग रहा है। उन्होंने कहा कि फिलहाल राज्य में राज्यपाल शासन लागू है। अब्दुल्ला ने भाजपा पर सत्ता हासिल करने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त करने का आरोप लगाते हुए विधानसभा को तत्काल भंग कर नए चुनाव की मांग की। हमारी राय में भी जम्मू-कश्मीर में किसी भी जोड़तोड़ से बनी सरकार न तो ज्यादा दिन चल सकती है और न ही यह वहां की जनता का भला कर सकती है। निहित स्वार्थों से प्रेरित गठजोड़ वाली नई सरकार न तो प्रदेश में शांति बहाल कर पाएगी और न ही स्थायित्व दे पाएगी। नए चुनाव ही अंतिम विकल्प है। 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव भी करवाए जा सकते हैं। तब तक राज्यपाल शासन ठीक रहेगा, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के जो हालात बन चुके हैं उन्हें ठीक करने में भी समय लगेगा।
 जम्मू-कश्मीर ऐसा राज्य है, जहां किसी प्रकार की अस्थिरता देशहित में नहीं होगी।


-अनिल नरेन्द्र

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