Sunday 8 July 2018

धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि क्या किसानों में खुशहाली लाएगी?

केंद्र सरकार ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में दो सौ रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी जो की है उसका स्वागत है पर क्या इससे किसानों को वह फायदा होगा जिसकी उनको उम्मीद थी? धान समेत चौदह खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य को मंजूरी दे दी गई है। पिछले एक साल से लगातार आंदोलन कर रहे किसानों को इससे कुछ तो राहत मिलेगी। सरकार ने दावा किया है कि उसने किसानों को उनकी उपज की लागत से डेढ़ गुना दाम देने का वादा पूरा कर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले चार साल में एमएसपी में यह सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी है, लेकिन इसे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन कहना शायद सही नहीं होगा। इससे पहले धान के एमएसपी में सबसे  ज्यादा, एक सौ सत्तर रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी यूपीए सरकार ने 2012-13 में की थी। एमएसपी वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी उपज खरीदती है। सरकारें 1965 से ही विभिन्न रूपों में एमएसपी में बढ़ोत्तरी का ऐलान करती रही है, हालांकि मौजूदा सरकार के पिछले चार वर्षों में इसका औसत काफी कम रहा। सरकार ने दरअसल इस चुनावी वर्ष में कमी पूरी करने का प्रयास किया है, लेकिन विपक्ष ने इस बढ़ोत्तरी को अपर्याप्त बताया है और एमएसपी तय करने के फार्मूले पर भी सवाल उठाए हैं। दरअसल फसलों की कुल लागत के आंकलन में बीज, खाद, कीटनाशक, मशीनरी और मजदूरी शामिल तो है लेकिन जमीन के लगान का इसमें हिसाब नहीं रखा गया है। वस्तुत किसान संगठन लागत तय करने का आधार बदलने की मांग करते आ रहे हैं। इसमें एक श्रेणी होती है सी(2)। इसमें अन्य प्रत्यक्ष लागत के साथ भूमि का मूल्य, परिवार के लोगों के श्रम का पारिश्रमिक आदि शामिल करके गणना होती है। यह एक मांग है कि जिस पर किसान संगठन बने रहेंगे। रहा सवाल चुनावी वादे का तो राजग सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर कहा था कि कृषि पैदावार का लागत से डेढ़ गुना दाम देना संभव नहीं है। अब वही सरकार एमएसपी की नई घोषणा को अपने वादे पर अमल बता रही है। कुछ महीनों बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव हैं। ऐसे में सरकार को लगने लगा कि किसानों की नाराजगी को नजरंदाज करना राजनीतिक रूप से काफी जोखिम-भरा साबित हो सकता है। एमएसपी की घोषणा के बाद भी कई जगह उस दर पर खरीद के लिए किसानों को आंदोलन करना पड़ा है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश पर अमल सही मायनों में तभी माना जाएगा जब कृषि पैदावार की लागत का हिसाब सी(2) प्रवृत्ति से जोड़ा जाए। देश का अन्नदाता जब तक संतुष्ट नहीं होता तब तक सही मायने में देश में खुशहाली नहीं आ सकती।

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