Thursday 19 July 2018

असम की पहली ट्रांसजेंडर जज

ट्रांसजेंडर को जज बनाने वाला असम पूर्वोत्तर का पहला और देश में तीसरा राज्य बन गया है। गुवाहाटी के कामरूप जिले की लोक अदालत में स्वाति बिधान बरूआ ने कामकाज संभाला। अदालत की 20 जजों की बेंच में से स्वाति एक हैं। स्वाति 2012 तक पुरुष थीं। नाम थाöबिधान। इसके बाद सर्जरी कराई और नया नाम स्वाति अपनाया। बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई की और अब अदालत में पैसे के लेनदेन से जुड़े मामले देख रही हैं। सबसे पहले पश्चिम बंगाल ने जुलाई 2017 में देश के पहले ट्रांसजेंडर न्यायाधीश के रूप में जॉयता मंडल को नियुक्त किया था। इसके बाद इस साल फरवरी में महाराष्ट्र ने नाग कामबल को नागपुर की लोक अदालत में नियुक्त किया गया। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट स्वाति बरूआ के यहां तक पहुंचने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 2012 में स्वाति (तब बिधान) ने नई पहचान अपनाने का फैसला किया था। इसके लिए सर्जरी करवाने की ठानी तो उनका परिवार ही विरोध में आ गया। स्वाति मुंबई में नौकरी कर रही थीं। परिवार ने उन्हें जबरदस्ती गुवाहाटी वापस  बुला लिया। नौकरी करके उन्होंने सर्जरी के लिए पैसे जुटाए। सर्जरी न हो पाए, इसलिए परिवार ने उनके बैंक अकाउंट ही ब्लॉक करवा दिए। इसके बाद बरूआ बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे। हाई कोर्ट ने उनके सर्जरी करवाने का रास्ता साफ कर दिया। इसके बाद ही बिधान ने स्वाति के रूप में नई पहचान अपनाई। अब स्वाति के परिवार को भी उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं रहा। वो कहती हैंöमुझे उम्मीद है कि बतौर जज मेरी नियुक्ति लोगों को अहसास कराएगी कि ट्रांसजेंडर भी समाज का हिस्सा हैं। कुछ नीतियों के असफल होने की वजह से ही उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, वरना ट्रांसजेंडर भी समाज के लिए काम कर सकते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार असम में पांच हजार से ज्यादा ट्रांसजेंडर्स हैं। इसी को देखते हुए स्वाति ने 2017 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में भी जनहित याचिका दाखिल की थी। उन्होंने ट्रांसजेंडर्स के लिए सरकार को पॉलिसी बनाने का आदेश देने की मांग की थी। बरूआ ऑल असम ट्रांसजेंडर्स की नेता भी हैं। बरूआ कहती हैंöट्रांसजेंडर सार्वजनिक स्थानों पर परेशानी का सामना करते हैं। उन्हें अपमानित किया जाता है। तंज कसे जाते हैं। इसे रोकने की जरूरत है। यह ठीक नहीं है। मैं अपने मिशन को तब पूरा मानूंगी जब यह दिखेगा कि ट्रांसजेंडर्स को भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ रहा है और उन्हें भी स्थायी नौकरियां मिल रही हैं।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment