Saturday 21 July 2018

भीड़ का अंधा कानून बर्दाश्त नहीं

हाल के दिनों में अखबारों के पहले पन्ने पर लगभग रोज ही किसी अफवाह के कारण भीड़ में तब्दील हो गए लोगों की हिंसा के मामले लगातार सामने आ रहे हैं, यह बेहद चिन्ताजनक हैं। इसकी वजह से कई लोगों की जान जा चुकी है। दुखद पहलू तो यह है कि कुछ लोग न तो कानून की कोई परवाह करते हैं और न ही यह जानने की कोशिश करते हैं कि संदिग्ध व्यक्ति वाकई दोषी है भी या नहीं? ऐसी बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अख्तियार किया है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रवृत्ति पर चिन्ता जताई और कहा कि कोई भी नागरिक अपने आप में कानून नहीं बन सकता है, लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अदालत ने सरकार से भीड़ के हाथों हत्या को एक अलग अपराध की श्रेणी में रखने और इसकी रोकथाम के लिए नया कानून बनाने को कहा। उसने साफ कहा है कि भीड़तंत्र की यह घिनौनी हरकतें कानून के राज की धारणा को ही खारिज करती हैं। यह भी कि समाज में शांति कायम रखना केंद्र सरकार का दायित्व है। अदालत ने अपने निर्देशों में कहा है कि भीड़ की Eिहसा के शिकार हुए लोगों या उनके परिजनों को 30 दिन के अंदर मुआवजा दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर नियंत्रण के लिए एक निश्चित व्यवस्था करने की बात भी कही है। इसके मुताबिक राज्य सरकारें हर जिले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त करें, जो ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाएगा। ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 153() के तहत तुरन्त केस दर्ज हो और फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चलाकर छह महीने के अंदर दोषियों को अधिकतम सजा दी जाए। इसके लिए पीड़ित पक्ष के वकील का खर्च सरकार वहन करे। अभी तक जितने मामले हुए, उनको पहले से व्याप्त कानून के तहत निपटाया जा रहा है। जाहिर है, यदि अलग से इसके लिए कानून बन जाए तो फिर पुलिस-प्रशासन के लिए कार्रवाई ज्यादा आसान हो जाएगी। किन्तु संसद में कानून तो तभी बन सकता है जब इसका सभी पार्टियां समर्थन करें। देखना है कि सरकार क्या करती है? चूंकि कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने ज्यादा व्यवस्थाएं राज्यों के लिए दी हैं। न्यायालय के इस आदेश के पहले से कई राज्य अफवाहों को लेकर मीडिया में विज्ञापन जारी कर लोगों को आगाह कर रहे हैं। केंद्र ने भी राज्यों के लिए एडवाइजरी जारी की है और व्हाट्सएप से अफवाहों को रोकने के लिए कदम उठाने को कहा है। इतना होने के बावजूद भीड़ की Eिहसा जारी रहना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और इसका मतलब है कि अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना है। केंद्र से ज्यादा राज्य सरकारों पर मॉब वायलैंस को रोकने की जिम्मेदारी है। राजनीतिक संरक्षण देना बंद करें। इस बेमतलब हिंसा को रोकें।

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