Saturday 28 July 2018

इन तीन बच्चियों की मौत का जिम्मेदार आखिर कौन?

यह कितने दुख और शर्म की बात है कि तीन बच्चियों की मौत भूख से तड़प-तड़प कर हो गई। यह दिल दहलाने वाली घटना पूर्वी दिल्ली के मंडावली गांव के पंडित चौक के पास एक मकान में हुई है। मंगलवार को मृत मिलीं इन बच्चियों के पोस्टमार्टम के बाद लाल बहादुर शास्त्राr अस्पताल ने देश को शर्मसार करने वाला यह खुलासा किया कि बच्चियोंöशिखा, मानसी और पारुल के पेट में खाने का एक भी अंश नहीं मिला यानि इनकी मौत भूख के कारण हुई। डाक्टरों के अनुसार उन्हें कई दिनों से खाना नहीं मिला था। देर रात जीटीबी अस्पताल में मेडिकल बोर्ड ने दोबारा पोस्टमार्टम कराया गया, उसमें भी भूख से मौत की पुष्टि हुई। वरिष्ठ डाक्टर ने बताया कि बच्चियों के पेट में अन्न और फेट दोनों नहीं था। सबसे छोटी बच्ची का शरीर इतना कमजोर था कि उसके हाथ-पैर कंकाल जैसे दिख रहे थे। बच्चियों का पिता मंगल मकान मालिक मुकुल मेहरा का रिक्शा चलाता था। कुछ दिन पहले असामाजिक तत्वों ने नशीला पदार्थ सुंघाकर रिक्शा लूट लिया। वह कमरे का किराया भी नहीं दे पा रहा था। मंगल की पत्नी वीणा ने पुलिस को बताया कि शनिवार को मकान मालिक ने कमरे से निकाल दिया। इसके बाद मंगल पत्नी व बच्चों सहित पंडित चौक स्थित दोस्त नारायण के कमरे में आ गए। रुपए न होने से उन्हें खाना नहीं मिला। इससे बच्चियां बीमार हो गईं। रविवार को पड़ोसियों ने बच्चियों को खाना दिया, पर वे बीमारी के कारण खा नहीं पाईं। दोपहर को बच्चियां बेहोश हो गईं तो वीणा उन्हें लेकर एलबीएस अस्पताल पहुंचीं जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। आठ साल की शिखा, चार साल की मानसी और दो साल की पारुल की मौत का जिम्मेदार आखिर कौन है? यह दिल दहला देने वाली घटना जहां एक ओर गरीबों के लिए तरह-तरह की सुविधाएं देने का दावा करने वाली सरकारों को कठघरे में खड़ा करती है, वहीं समाज के असंवेदनशील रवैये को भी उजागर करती है। यह घटना लोगों में सामाजिक जुड़ाव खत्म होने और दूसरों के दुख-दर्द से मुंह मोड़ने की विगत कुछ वर्षों में पैदा हुई प्रवृत्ति का जीता-जागता उदाहरण है। ऐसा कई बार देखा गया है कि सड़क हादसे का शिकार तड़पते हुए व्यक्ति को अस्पताल तक ले जाने में लोग कतराते हैं। यह स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। यदि किसी को पेटभर भोजन मिल रहा है और उसके पड़ोस में भूख से बच्चियां मर रही हैं तो यह सभ्य समाज में कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे देखते हुए धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए और समाज को और संवेदनशील बनाना होगा। यह घटना तो दिल्ली की है पर ऐसी ही घटनाएं और राज्यों में भी होती होंगी पर उनकी खबरें नहीं आतीं।

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