Wednesday, 31 October 2018

मांस व्यापारी मोइन कुरैशी का क्या है सीबीआई लिंक

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई में जो दंगल चल रहा है उसके तार कहीं न कहीं मीट व्यापारी मोइन कुरैशी से जुड़ते हैं। आखिर कौन है मोइन gकुरैशी? जाने-माने दून स्कूल और सेंट स्टीफन कॉलेज में पढ़े-लिखे उत्तर प्रदेश के रामपुर के निवासी मोहन कुरैशी हालांकि दिल्ली में सालों से सक्रिय थे, लेकिन एक खास हल्के के बाहर उनका नाम तब सुर्खियों में आया जब साल 2014 में आयकर विभाग ने उनके छतरपुर निवास, रामपुर और दूसरी प्रॉपर्टीज पर छापे मारे। कहा जाता है कि इन जगहों पर अधिकारियों को न सिर्प करोड़ों रुपए कैश मिले बल्कि कुरैशी और दूसरे अहम लोगों की बातचीत के टेप भी हासिल हुए जो शायद मीट निर्यात और कथित हवाला ऑपरेटर ने खुद ही रिकॉर्ड किए थे। पॉलिसी-पैरालिसिस और घोटालों के कई तरफा आरोप झेल रही यूपीए-2 सरकार को एक खुफिया विदेशी एजेंसी ने दुबई से एक विदेशी बैंक में करोड़ों रुपए के मनी ट्रांसफर की सूचना दी। साथ ही यह भी अलर्ट किया कि पैसा भेजने वाला यह व्यक्ति एक भारतीय है। अकबरपुर की उसी चुनावी सभा में नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा थाöटीवी चैनल ने कहा है कि केंद्र सरकार के चार मंत्री इस मीट एक्सपोर्ट करने वाली कंपनी के साथ जुड़े हुए थे इस हवाला कांड के कारोबार में... मोदी के उस भाषण में जिस बात का जिक्र नहीं आया वो था... छापे से पहले हुई छानबीन के दौरान यह बात भी सामने आई थी कि सीबीआई के आला अधिकारी और कारपोरेट जगत के कई जाने-माने लोग मोइन कुरैशी के सम्पर्प में हैं। मोइन कुरैशी ने 90 के दशक में उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक कसाईखाने से अपना कारोबार शुरू किया था। कुरैशी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कुछ सालों में ही दिल्ली के राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों में अपनी गहरी पैठ बना ली और फिर शुरू हुआ लेन-देन और फिक्सिंग का गोरखधंधा। आने वाले सालों में कुरैशी भारत के सबसे बड़े मांस कारोबारी बन गए। कुरैशी ने 25 अलग-अलग कंपनियां खोलीं, जिनमें एक कंस्ट्रक्शन कंपनी और फैशन कंपनी भी शामिल है। मोइन कुरैशी के वालिद मुंशी मजीद का रामपुर जिले में मशहूर नाम है। रामपुर में उनकी कोठी को मुंशी मजीद के नाम से इस इलाके की पहचान है। कुरैशी के वालिद का अफीम का बड़ा कारोबार था। अफीम के कारोबार से मजीद ने अकूत दौलत कमाई। बाद में वह अन्य धंधों में भी लग गए। पैसे के बल पर ही मोइन कुरैशी की शिक्षा देश के बड़े नामी स्कूल और कॉलेज में हुई। चार वर्ष पूर्व सीबीआई के तत्कालीन डायरेक्टर रंजीत सिन्हा की एक मुलाकात डायरी में इस मामले का पटाक्षेप हुआ कि कुरैशी के तार सीबीआई से कितने गहरे से जुड़े हैं। आम चुनाव होने के कारण उस वक्त यह सियासी मुद्दा भी बना। भाजपा ने इस मामले को कांग्रेस से जोड़ते हुए कुरैशी की कंपनी को हवाला से जोड़ा था। इसके बाद यह मामला शांत नहीं हुआ और भाजपा के शासनकाल में 2017 में प्रवर्तन निदेशालय ने मोइन कुरैशी के खिलाफ मामला दर्ज किया तो उसमें सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर एपी सिंह का नाम सामने आया। सीबीआई के नम्बर-2 माने जाने वाले विशेष निदेशक राकेश अस्थाना विवादास्पद मीट व्यापारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले में तीसरे शिकार हैं। इससे पहले 2014 में इनकम टैक्स ने कार्रवाई के दौरान कुरैशी की रंजीत सिन्हा और एपी सिंह की नजदीकियों से खुलासा किया था। कुरैशी के खिलाफ पीएमएलए की जांच कर रही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चार्जशीट में लिखा है कि कुरैशी रंजीत सिन्हा और एपी सिंह के लिए आरोपियों से उगाही किया करता था। एपी सिंह रंजीत सिन्हा से पहले सीबीआई निदेशक थे। एक अधिकारी ने हैरानी जताई कि इतने साल बाद भी मोइन कुरैशी की सीबीआई में पैठ वैसे ही बनी हुई है। दरअसल सीबीआई ने अप्रैल 2017 में पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ कोयला आबंटन घोटाले में अड़चन पहुंचाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी। आरोप है कि कुरैशी घोटाला के आरोपियों के बंगले पर जाकर लेन-देन तय करता था। सीबीआई रिकॉर्ड के मुताबिक बंगलों में मेहमानों की एंट्री रजिस्टर में रक्षा सौदों से जुड़े आरोपी संजीव नंदा, एम्मार-एमजीएफ जमीन घोटाले के आरोपी नेरू प्रसाद समेत कोयला घोटाले के आरोपी थे। रिकॉर्ड के मुताबिक कुरैशी ने सिन्हा से 15 महीने में करीब 70 बार आरोपियों से मुलाकात करवाई। मुकेश गुप्ता नाम के एक व्यापारी को जेल से छुड़ाने के लिए कुरैशी ने सिन्हा को पेशगी के तौर पर एक करोड़ रुपए दिए थे। सीबीआई का दावा है कि सना ने मामले में निजात के लिए जून 2018 में टीडीपी के राज्यसभा सदस्य रमेश से बात की थी। रमेश ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से बात की। इसके बाद सीबीआई के फोन आने बंद हो गए। सना को लगा कि उसके खिलाफ फाइल बंद हो गई है। पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को कुरैशी की पोल खोलते हुए और सीबीआई से संबंधों का खुलासा करते हुए बताया था कि कुरैशी के पूर्व निदेशक एपी सिंह से गहरे ताल्लुकात थे। ईडी चार्जशीट के मुताबिक कुरैशी सिंह के लिए आरोपियों से उगाही करता था। कुरैशी से बरामद बीबीएम मैनेजर से सीबीआई के अंदर चल रहा यह गड़बड़झाला उजागर हुआ था। मोइन कुरैशी पूरे मुल्क में यह काम करने वाले वह अकेले व्यक्ति थे और इस माल को प्रोसेसिंग के बाद चीन, जर्मनी और दूसरे मुल्कों में एक्सपोर्ट करते थे जिसमें उन्होंने करोड़ों कमाए। चन्द साल पहले हुई मोइन कुरैशी की बेटी की शादी भी तब खबरों में आई थी जब फंक्शन में गाने को बुलाए गए पाकिस्तानी गायक राहत फतह अली खान को वापसी में राजस्व खुफिया महानिदेशालय ने रोक लिया था। सो यह है मोइन कुरैशी की कहानी।
-अनिल नरेन्द्र

कोर्ट ऐसे फैसले नहीं दे, जो लागू न हो सके : अमित शाह

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शनिवार को केरल के कन्नूर में थे। उन्होंने सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट को ऐसे फैसले नहीं लेना चाहिए, जिन पर अमल न हो सके। कोर्ट को फैसला लेते समय लोगों की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए। अमित शाह ने हिंसक प्रदर्शनों में शामिल होने के आरोप में अयप्पा भक्तों की गिरफ्तारियों पर केरल सरकार पर भी तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में केरल की कम्युनिस्ट सरकार मंदिरों और हिन्दुओं की परंपराओं को तबाह करने का षड्यंत्र रच रही है। उन्होंने कहा कि केरल में इन दिनों आस्था और शासन के दमन के बीच में संघर्ष चल रहा है। भाजपा और संघ परिवार से जुड़े लोगों समेत अयप्पा बने दो हजार से ज्यादा भक्तों को जेलों में डाला गया है। सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि अदालत को ऐसे फैसले नहीं देना चाहिए जो लोगों की धार्मिक आस्था के खिलाफ हों और जिन्हें लागू न किया जा सके। कन्नूर की एक जनसभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों जैसे जल्लीकट्टू, मस्जिदों में लाउड स्पीकरों पर प्रतिबंध और दही-हांडी में दखलंदाजी आदि का जिक्र करते हुए कहा कि इन फैसलों को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। केरल के मुख्यमंत्री ने शनिवार को ही शाह के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि शाह का बयान सुप्रीम कोर्ट, संविधान और देश की न्यायिक प्रणाली पर हमला है। शाह का कहना है कि कोर्ट को केवल वही आदेश देना चाहिए जो लागू हो सके। इससे लगता है कि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को लागू नहीं किया जाना चाहिए। बसपा अध्यक्ष मायावती ने अमित शाह पर उच्चतम न्यायालय को लेकर गैर-जिम्मेदाराना बयान देने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि दंभ से भरे सत्तारूढ़ दल के नेता की टिप्पणी को न्यायालय को संज्ञान में लेना चाहिए। मायावती ने कहा कि केरल के कन्नूर में शाह का उच्चतम न्यायालय को हिदायत भरा बयान देना अतिनिन्दनीय है। उन्होंने कहा कि इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना सार्वजनिक बयानों से स्पष्ट है कि देश का लोकतंत्र खतरे में है। सीबीआई, सीवीसी, ईडी और भारतीय रिजर्व बैंक जैसे देश की महत्वपूर्ण स्वायत्तशासी संस्थाओं में गंभीर संकट का जो दौर चल रहा है वह इसी प्रकार के गलत सरकारी नजरिये एवं अहंकार का दुष्परिणाम है। वहीं कांग्रेस पार्टी के महासचिव और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सबरीमाला मामले को लेकर दिए गए बयान पर अमित शाह के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। अमित शाह ने कहा कि अयप्पा के श्रद्धालुओं का दमन किसी भी कीमत पर होने नहीं दिया जाएगा। वामपंथी सरकार मंदिरों के खिलाफ साजिश रच रही है, वह केरल में आपातकाल जैसी स्थिति बना रही है।

Tuesday, 30 October 2018

दिल्ली में असुरक्षित बुजुर्ग

दिल्ली के पश्चिम विहार में दो बुजुर्ग बहनों की घटना गंभीर है। यह घटना राजधानी में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की सुरक्षा को लेकर चिन्ता का विषय है। इसी इलाके में पिछले माह भी घर में एक बुजुर्ग मां और बेटी की हत्या कर दी गई थी। पश्चिम विहार इलाके में दो सगी बुजुर्ग बहनों की घर में घुसकर निर्मम हत्या कर दी गई थी। वारदात के बाद आरोपी कीमती गहनें व नकदी लूट कर मौके से फरार हो गए। पुलिस के अनुसार दोनों अविवाहित बहनें आशा पाठक (70) और ऊषा पाठक (75) पिछले 35 सालों से फ्लैट नम्बर 97, सैकेंड फ्लोर, आनंद वन सोसाइटी स्पोर्ट्स कॉम्प्लैक्स के पास पश्चिम विहार में रहती थीं। ऊषा हापुड़ कॉलेज में म्यूजिक टीचर जबकि आशा कृषि भवन स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च में लाइब्रेरियन थीं। इस निर्मम हत्याकांड का मामला सुलझाते हुए पुलिस ने महज 24 घंटे के अंदर चार बदमाशों को गिरफ्तार किया, जबकि दो अन्य मुख्य आरोपी इस लेख लिखने तक अभी फरार हैं। दोहरे हत्याकांड का मुख्य साजिशकर्ता एक प्लम्बर था। पकड़े गए बदमाशों के नाम अखिलेश यादव (24), सलमान शाह (19), दीपक सैनी उर्प बबलू (22) व राजू यादव (34) हैं। सभी आरोपी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। अखिलेश पेशे से प्लम्बर है और बुजुर्ग बहनों के घर में एक दिन पहले पाइप का काम करने गया था। अखिलेश ने साजिश के तहत दोनों बुजुर्ग बहनोंöआशा पाठक व ऊषा पाठक की हत्या करवाई और घर से लाखों रुपए के गहनें, महंगा सामान तथा नकदी लेकर फरार हो गए। अखिलेश सोसाइटी का पंजीकृत प्लम्बर नहीं था, जिसके चलते उसने लूटपाट की साजिश रची। वह शाम को सामान की सूची बनाकर चला गया और दोस्तों से सम्पर्प साध कर लूटपाट की साजिश रची। 24 अक्तूबर को उसने बुजुर्ग बहनों के घर पूरे दिन काम किया। इसके बाद सलमान शाह सहित दो अन्य आरोपी बुजुर्ग बहनों के घर बिजली के उपकरण की मरम्मत करने के बहाने गए। वारदात के वक्त दो बदमाशों के साथ अखिलेश सोसाइटी के बाहर इंतजार कर रहा था। इस बीच सलमान शाह सहित दोनों बदमाशों ने बुजुर्ग बहनों की हत्या कर घर में लूटपाट की और वहां से फरार हो गए। पुलिस फरार आरोपियों की तलाश कर रही है। पुलिस का मानना है कि इस प्रकार की वारदात में आरोपी उनके जानकार होते हैं। ऐसे में संभव है कि कोई गिरोह इस तरह अकेले रह   रही बहनों को निशाना बनाए। पुलिस के लिए ऐसी वारदातें रोकना मुश्किल है। पर इन बिल्डिंग की सोसाइटी इसमें ज्यादा मददगार हो सकती है। अगर वह बिल्डिंग में प्रवेश करने वालों की सख्त जांच करें तो ऐसे मामले से बच सकते हैं। इससे पता चलता है कि दिल्ली में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं।

-अनिल नरेन्द्र

चला गया दिल्ली का शेर...

पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना दिल्ली के शेर के नाम से भी जाने जाते थे। वह दिल्ली भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता रहे, जिनके कारण दिल्ली में भाजपा को सत्ता नसीब हुई। वर्ष 1993 में खुराना जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए चुनावों में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मदन लाल खुराना के नेतृत्व में भारी सफलता प्राप्त की और वह मुख्यमंत्री बनें। मुझे याद है कि एक समय खुराना जी देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से भी ज्यादा लोकप्रिय थे। जैन हवाला कांड मामले में उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बाद उन्होंने स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दिया और उनकी जगह तत्कालीन मंत्री साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि आडवाणी जी के साथ उनका भी नाम हवाला कांड मामले में बरी हो गया, लेकिन उनको फिर से सीएम की गद्दी नसीब नहीं हो पाई। भाजपा नेतृत्व ने उनसे नाइंसाफी की और चाहते हुए भी उन्हें दोबारा इस पद पर नहीं बैठाया गया। भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में स्थापित करने वाले मदन लाल खुराना का मन दिल्ली में ही बसता था। वह केंद्र में मंत्री बनें हों या राजस्थान के राज्यपाल, दिल्ली की सियासत से दूरियां उनमें कभी नहीं आईं। उन्होंने एक बार यहां तक कह दिया था कि दिल्ली उनका मंदिर है और वह इसके पुजारी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी जब हाशिये पर चली गई तो उन्होंने अपनी मेहनत और लोकप्रियता से उन्हें शून्य से शिखर तक पहुंचाया। खुराना जी ने हमेशा सीधी राजनीतिक लड़ाई लड़ी, उनके सामने कांग्रेस हमेशा रही। मदन लाल खुराना एकमात्र ऐसे नेता थे जिनकी दुकानदारों-व्यापारियों के अलावा हर समुदाय पर गहरी पकड़ थी। खुराना जी के रहते मोती नगर विधानसभा क्षेत्र में कभी भी कोई पार्टी कब्जा नहीं कर पाई। दिल्ली में उनके अलावा भाजपा में से कोई नेता नहीं हुआ, जिसने सभी वर्गों में अपनी पहचान बनाई थी। यही कारण है कि उन्हें दिल्ली का शेर कहा जाता था। उनके विरोधी भी इस बात को मानते थे कि खुराना जैसा नेता दिल्ली में भाजपा को कभी नहीं मिल पाया और वह उन्हें शेर दिल के रूप में मानते थे। वह 82 साल के थे। दिल्ली के कीर्ति नगर स्थित अपने मकान में उन्होंने आखिरी सांस ली। मदन लाल खुराना पिछले लगभग पांच साल से ब्रेन स्ट्रोक की वजह से कोमा में थे। हाल ही में उनके बड़े बेटे विमल खुराना का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था। खुराना जी दोस्तों के दोस्त थे और हरेक की मदद करते थे। हमारे लिए तो खुराना जी का जाना एक परिवार के सदस्य के जाने के समान है। वह किस कदर मदद करते थे उसकी आपबीती सुनाता हूं। हमारा (वीर अर्जुन) का एक सरकारी वित्तीय संस्था से बकाया कर्ज पर मतभेद हो गया था। यह बात 90 के दशक की है। हमारी जायज मांग भी वह मानने को तैयार नहीं थे। जब कोई चारा नहीं बचा तो हम (मेरे स्वर्गीय पिता के. नरेन्द्र) खुराना जी से मिलने गए। हमने पहले से ही उन्हें अपनी समस्या बता रखी थी। जब खुराना जी के कार्यालय में मीटिंग हुई तो उस समय उस वित्तीय संस्था के प्रमुख अपने स्टाफ के साथ मौजूद थे। हमने अपनी बात रखी और उस वित्तीय संस्था के प्रमुख ने अपनी दलीलें, कायदे-कानून पेश किए। खुराना जी को हमारी दलीलों में दम नजर आया और उन्होंने उस प्रमुख से कहा कि इनकी दलीलों व इनके तथ्यों के अनुसार आप फैसला कर दें। उस प्रमुख ने ऐसा करने से मना कर दिया और अपनी बात पर अड़ा रहा। जब खुराना जी ने सख्ती से उसे करने को कहा तो उसने कहा कि आप लिखित में आदेश दें तभी करूंगा। खुराना जी ने एक मिनट नहीं लगाया और उसकी फाइल पर लिखित आदेश दे दिए। अगर उस दिन खुराना जी इतना सख्त स्टैंड न लेते और वह भी लिखित में तो वीर अर्जुन आज शायद जिन्दा न होता। इस बात को हम कैसे भूल सकते हैं। और संयोग देखिए कि खुराना जी का देहांत भी 27 अक्तूबर को हुआ जिस दिन मेरे स्वर्गीय पिता जी के. नरेन्द्र का भी देहांत हुआ था। खुराना जी को हम कभी नहीं भूल सकते। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और परिवार को इस अपूर्णीय क्षति से उभरने का साहस प्रदान करे। ओम शांति।

Sunday, 28 October 2018

क्या लोग हनुमान बन गए, जो पर्वत ले गए?

राजस्थान में अरावली पर्वतमाला की 128 में से 30 से ज्यादा पहाड़ियों के गायब हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। राजस्थान में अवैध खनन के कारण 30 पहाड़ियां नक्शे से पूरी तरह गायब हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी. लोकुर व जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने इस पर नाराजगी जताते हुए राजस्थान सरकार से पूछा कि क्या इस क्षेत्र के लोग हनुमान बन गए हैं, जो पहाड़ी लेकर भाग गए? इतनी तादाद में पहाड़ियों के गायब हो जाने से पर्यावरण के मोर्चे पर हमारी सरकारों की उदासीनता की एक झलक जरूर मिलती है। लालच का जो तंत्र नदियों को सुखा दे रहा है, वही तंत्र सुनियोजित तरीके से पहाड़ियों को गायब कर रहा है। दिल्ली की सीमा से लगी अरावली की पहाड़ियों का 20 फीसदी से अधिक हिस्सा कुछ वर्षों में नहीं, बल्कि पिछले 50 साल में गायब हुए हैं, पर इससे राजस्थान की मौजूदा वसुंधरा राजे सरकार का दामन पाक-साफ नहीं हो जाता, क्योंकि वह खुद मान रही हैं कि अवैध खनन का काम अब भी जारी है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वे (एफएसआई) को राजस्थान के अरावली क्षेत्र की पहाड़ियों का सैटेलाइट सर्वे करने को कहा था। सर्वे में सामने आया कि प्रदेश के 770 हैक्टेयर क्षेत्र में 3200-3300 ऐसी जगह चिन्हित हुईं, जहां अवैध खनन हो रहा था। एफएसआई ने यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट की सेंटर इम्पावर्ड कमेटी को सौंपी थी। इसमें सुझाव भी दिया गया था कि मौके पर इसका भौतिक सत्यापन भी कराया जाए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने 16 जिलों में कलैक्टरों की ओर से राजस्व, वन और खनन विभाग की संयुक्त टीमें बनाकर सत्यापन कराया गया तो सामने आया कि 115.34 हैक्टेयर क्षेत्र में अवैध माइनिंग हुई है, जिसके चलते 30-31 पहाड़ियां गायब हो गईं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राजस्थान सरकार को निर्देश दिया है कि 48 घंटे के भीतर अरावली पहाड़ियों के 115.34 हैक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन बंद किया जाए। जस्टिस बी. लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि दिल्ली के प्रदूषण में बढ़ोत्तरी का एक कारण राजस्थान की इन पहाड़ियों का गायब होना भी हो सकता है। यद्यपि राजस्थान को खनन से 5000 करोड़ रुपए की रॉयल्टी मिलती है, लेकिन वह दिल्ली में रहने वाले लाखों लोगों की जिन्दगी को खतरे में नहीं डाल सकता। पीठ ने कहा, पहाड़ियों का सृजन ईश्वर ने किया है। कुछ तो ऐसी वजह होंगी जो ईश्वर ने ऐसा किया। ये अवरोधक की भूमिका निभाती हैं। यदि आप सभी पहाड़ियों को हटाने लगेंगे तो दिल्ली-एनसीआर तक प्रदूषण आएगा। पीठ ने राजस्थान सरकार से पूछा है कि उसने खनन की गतिविधियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए हैं?

-अनिल नरेन्द्र

आम आदमी पार्टी को दोहरी सफलता से नई ऊर्जा मिली

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा कथित लाभ के पद के मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के दिल्ली के विधायकों को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य करार देने की मांग वाली याचिका खारिज करने से आप को नई ऊर्जा मिली है। रोगी कल्याण समिति में लाभ के पद मामले में 27 विधायकों को राष्ट्रपति से राहत मिलने से दिल्ली सरकार को बड़ी राहत मिली है। लाभ का पद लेने के आरोपों के चलते 27 विधायकों की सदस्यता जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं। रोगी कल्याण समितियों के प्रमुख का पद लेने के अलावा भी संसदीय सचिव के तौर पर लाभ का पद लेने के आरोप का एक अन्य मामला भी आप विधायकों के खिलाफ चल रहा है। संसदीय सचिव बनाए गए आप के 20 विधायकों पर भी लाभ के पद मामले में फैसला आना बाकी है। जनवरी 2018 में चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने इन विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। हालांकि हाई कोर्ट ने 23 मार्च को इस फैसले को रद्द करते हुए विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी। हाई कोर्ट ने कहा था कि आयोग ने विधायकों का पक्ष सुने बगैर उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश कर दी। हाई कोर्ट ने आयोग को विधायकों का पक्ष सुनने का आदेश दिया। इसके बाद दोबारा से सुनवाई होने पर विधायकों ने मामले में शिकायतकर्ता प्रशांत पटेल व सरकार के कुछ अधिकारियों से जिरह करने की अनुमति मांगी। मगर 17 जुलाई को आयोग ने मांग को खारिज कर दिया। बाद में हाई कोर्ट ने आयोग को विधायकों की मांग पर विचार करने व उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया। इसके बाद एक बार फिर से आयोग ने विधायकों द्वारा गवाहों से जिरह की अनुमति देने की मांग को खारिज कर दिया। अब विधायकों ने फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। 27 विधायकों के केस में महामहिम ने अपने आदेश में साफ कहा है कि चुनाव आयोग की ओर से दी गई राय के हिसाब से विषय पर ध्यान देने के बाद मैं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम की धारा 15(4) के तहत मुझे दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश देता हूं कि अल्का लांबा और दिल्ली विधानसभा के 26 दूसरे सदस्यों के कथित अयोग्यता के सवाल को लेकर विभोर आनंद द्वारा 21 जुलाई 2016 को दायर याचिका बरकरार रखे जाने योग्य नहीं है। इससे पूर्व संसदीय सचिव मामले में भी 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने व फिर उस पर रोक लगने से पार्टी को बड़ी राहत मिली थी। इन दोनों मामलों में भाजपा व कांग्रेस को झटका लगा जबकि आप को आक्रामक होने का मौका मिला है। पार्टी के उस तर्प को भी मजबूती मिली कि उसके विधायकों को किसी मामले में फंसा कर काम करने से रोका जा रहा है। आप नेता दलीप पांडे व गोपाल राय ने सवाल उठा दिया कि इससे स्पष्ट हो गया है कि उनके विधायकों को काम नहीं करने दिया जा रहा। भाजपा पार्टी उनकी सरकार को फेल करने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपना रही है, बावजूद इसके वे काम करने में लगे हुए हैं। आप इन दोनों मुद्दों को चुनाव में अहम मुद्दा बनाने में पीछे नहीं रहेगी। जनता को यह अहसास दिलवाया जाएगा कि किस प्रकार आम लोगों के काम में अड़ंगा लगाया जा रहा है। आम आदमी पार्टी की खुशी तब और बढ़ गई जब दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट केस में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप के 11 विधायकों को एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने जमानत दे दी। फिलहाल तो आम आदमी पार्टी के दोनों हाथों में लड्डू हैं।

Saturday, 27 October 2018

पीएम की हत्या की फिर मिली धमकी

दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जान से मारने की धमकी वाला ई-मेल मिला है। सूत्रों की मानें तो एक सप्ताह पूर्व दो लाइन का ई-मेल दिल्ली पुलिस आयुक्त की ई-मेल आईडी पर भेजा गया था, जिसके  बाद खुफिया एजेंसियां और सतर्प हो गई हैं। एसपीजी ने प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे को और बढ़ा दिया है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल समेत तमाम सुरक्षा एजेंसियां ई-मेल भेजने वाले व्यक्ति का पता लगाने का प्रयास कर रही हैं। पुलिस सूत्रों की मानें तो एक सप्ताह पूर्व ई-मेल आया है। इसमें लिखा है कि पाक खुफिया एजेंसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या कराने के लिए कुछ संदिग्ध लोगों को भेज दिया है। जल्द ही हमला कर दिया जाएगा। छानबीन से पता चला है कि यह ई-मेल दक्षिण भारत से भेजा गया है। इससे पहले अगस्त में भेजे गए ई-मेल में प्रधानमंत्री को 19 सितम्बर को मारने की धमकी दी गई थी। पिछले कुछ दिनों के भीतर दो ई-मेल मिलने से चिन्ता बढ़नी स्वाभाविक है। याद रहे कि इसी साल जून में भी पुणे पुलिस को एक पत्र मिला था, जिसमें माओवादियों द्वारा प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश के बारे में लिखा था। पत्र में लिखा था कि आगामी चुनाव के दौरान राजीव गांधी की तरह पीएम मोदी की भी हत्या कर दी जाएगी। इस मामले में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े लोगों की संलिप्तता सामने आई थी। इसके बाद संदिग्धों की गिरफ्तारी हुई थी। निकट भविष्य में कई चुनाव आ रहे हैं और इनमें प्रधानमंत्री प्रचार करने के लिए सड़कों पर रैलियों में निकलेंगे। ऐसे समय उनकी सुरक्षा करनी मुश्किल हो जाती है। लाखों लोगों में हत्यारे छिपे हो सकते हैं। फिर हमने देखा है कि प्रधानमंत्री खुद भी कई बार सुरक्षा दायरा तोड़कर जनता से मिलने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। राजीव गांधी को भी कई बार चेताया गया था। पर उन्होंने भी अपनी सुरक्षा को ताक पर रख दिया था। यह बात सिर्प प्रधानमंत्री पर लागू नहीं होती। राहुल गांधी समेत अन्य बड़े राजनेता भी सुरक्षा प्रबंधों को ताक पर रख देते हैं। हालांकि इनकी सुरक्षा एसपीजी के हाथों में है और वह बहुत प्रभावी भी है पर फिर भी खतरा तो हमेशा रहता है। खासकर जब पड़ोसी देश सहित कई विदेशी ताकतें भारत को अस्थिर करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। हमारा तो पीएम से अनुरोध है कि वह इन ई-मेल धमकियों को गंभीरता से लें और सुरक्षा प्रबंधों का सख्ती से पालन करें। एक साल में तीन बार धमकियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

-अनिल नरेन्द्र

वर्मा बनाम अस्थाना ः गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में

सीबीआई में छिड़ा महाभारत अब सरकार के हाथ से निकलकर अदालत के हाथ में चला गया है। छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच जंग के मामले का भविष्य अब तीन अदालतों में होने वाली कार्यवाही पर टिका है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के दोनों अफसरों के खिलाफ जांच रिपोर्ट दो सप्ताह में पूरी करके सीवीसी को अदालत में पेश करने का आदेश दिया है व अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव को बड़े फैसले लेने पर भी रोक लगा दी है और जो काम पहले से जारी हैं उन्हीं पर काम करते रहने की सलाह दी है। अगली सुनवाई दीपावली के बाद अर्थात 12 नवम्बर को होगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से वर्मा को राहत नहीं मिली है। जिससे दो दिन पहले रात के आदेशों और कई केसों से लेकर 14 अफसरों के तबादलों तक के मामलों की दिशा नहीं बदल सकी है। सरकार को तो जो करना था वह कर दिया है, अब तो अदालत को तय करना है। हैदराबाद के व्यापारी सतीश बाबू सना की तरफ से अस्थाना को पांच करोड़ रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में जो एफआईआर सीबीआई ने अपने निदेशक वर्मा के कहने पर लिखी थी, उसे अस्थाना ने दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। जिसकी सुनवाई 29 अक्तूबर को होगी। अदालत ने तब तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे यानि न तो वर्मा उनके खिलाफ कोई कदम उठाएंगे और न ही अस्थाना ही कोई कदम उठाएंगे। सरकार के मंगलवार आधी रात के आदेश के बाद दोनों में से कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ कोई कदम उठाने की स्थिति में तो नहीं रहा। लेकिन यदि एफआईआर को गलत मंशा से कायम हुआ मानती है तो अस्थाना की कुर्सी हिल सकती है। साथ ही जनवरी में वर्मा के रिटायर होने के बाद अस्थाना के सीबीआई निदेशक बनने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। वहीं आलोक वर्मा ने उन्हें पद से हटाए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यदि कोर्ट उनके पक्ष में फैसला करती है तो वे अपने पद पर वापस आ जाएंगे और जनवरी में नियत समय पर रिटायर होंगे। हालांकि यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह कभी भी अस्थाना के खिलाफ जांच की निगरानी करने का अधिकार देती है या नहीं? सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने सात आधार पर अपने आपको पद से हटाने व ट्रांसफर करने, छुट्टी पर भेजने को चुनौती सुप्रीम कोर्ट में दी है। यह सात आधार हैंöपहला, आलोक वर्मा ने दलील दी कि उन्हें हटाना डीपीएसई एक्ट की धारा 4बी का उल्लंघन है। डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल तय है। दूसरा, प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई की कमेटी ही डायरेक्टर को नियुक्त कर सकती है, वही हटा सकती है। इसलिए सरकार ने कानून से बाहर जाकर निर्णय लिया है। तीसरा, कोर्ट ने बार-बार कहा है कि सीबीआई को सरकार से अलग करना चाहिए। डीओपीटी का कंट्रोल एजेंसी के काम में बाधा है। चौथा, जांच में कोई भी हस्तक्षेप न केवल एजेंसी की स्वतंत्रता खत्म करेगा, बल्कि अधिकारियों का मनोबल भी तोड़ेगा। पांचवां, सीबीआई में पैदा इस संकट की वजह से कई संवेदनशील मामले उठे हैं। कोर्ट में उनका ब्यौरा भी पेश कर सकता हूं। कुछ मामलों में तो खुद सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कर रहा है। छठा, सरकारी दखल कहीं लिखित में नहीं मिलेगा। लेकिन यह होता है इसका सामना करने के लिए साहस की जरूरत होती है। सातवां, हाई पॉवर्ड कमेटी के जरिये सीबीआई को सरकारी दखल से अलग करना चाहिए। सीबीआई में नम्बर वन और टू के टकराव को लेकर सीवीसी की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। एक रिटायर्ड अफसर ने कहा कि वर्मा ने अस्थाना के बारे में गत जुलाई-अगस्त में शिकायत की थी। दोनों टॉप अफसरों के बीच बढ़ते टकराव और शिकायतों पर जरूरी कदम समय रहते नहीं उठाए गए। मंगलवार को तब गतिविधियां बढ़ीं जब वर्मा ने अस्थाना से सभी काम छीन लेने का फैसला किया। जानकार मानते हैं कि अदालत में सुनवाई के दौरान सीवीसी की भूमिका और सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं। अब सीबीआई, सरकार और आलोक वर्मा, राकेश अस्थाना की साख के सवाल अदालतों में टिके हैं। हालांकि केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है कि सीवीसी को सीबीआई की जांच का अधिकार है। सीवीसी के पास दोनों अफसरों पर लगे आरोपों से जुड़े तथ्य हैं। सीवीसी की निगरानी में ही पूरे मामले की जांच होगी। अब तो इन सारे सवालों के जवाब सुप्रीम कोर्ट को तय करने हैं। देखते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इनका जवाब तय करता है या महज लीपापोती करके मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करता है?

Friday, 26 October 2018

हैरतअंगेज ः सीबीआई बोली, जांच के नाम पर उगाही हो रही थी

केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि सीबीआई की अंतर्पलह इस हद तक बढ़ चुकी है कि समझ नहीं आ रहा कि आखिर इसमें हो क्या रहा है? घटनाक्रम इतनी तेजी से बदल रहा है, रोज नई-नई बातें सामने आ रही हैं। सीबीआई में नम्बर वन और टू के बीच चले विवाद के बाद अब दोनों को छुट्टी पर जाने को कह दिया गया है। एजेंसी के संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव अंतरिम निदेशक बनाए गए हैं। आलोक वर्मा ने नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाने के सरकार के फैसले को भी चुनौती दी है। साथ ही खुद को छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। न्यायालय शुक्रवार को आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई करेगी। विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ केस की जांच कर रहे अधिकारी एके बस्सी का जनहित में पोर्ट ब्लेयर (काला पानी) तबादला कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार बुधवार को दिनभर घटनाक्रम बढ़ता रहा। सीवीसी में हुई बैठक में निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने की राय जाहिर की गई। इसके बाद निदेशक आलोक वर्मा को केंद्र सरकार के गलियारों में बुलाया गया। उन्हें संकेत दे दिया गया। रात में कैबिनेट की अपाइंटमेंट कमेटी ने अंतरिम आदेश जारी कर दिया। देर रात में ही सीबीआई हैडक्वॉटर में 10वीं और 11वीं मंजिल सील कर दी गईं। बता दें कि इन्हीं दो मंजिलों में वर्मा और अस्थाना के ऑफिस हैं और जांच की अहम फाइलें हैं। कहा जा रहा है कि दोनों अफसरों से पीएम नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद भी मामला और गरमाते जाने से पीएम काफी नाराज थे। डीएसपी देवेंद्र कुमार का सात दिन का सीबीआई रिमांड मिलने और हाई कोर्ट में अस्थाना की अर्जी पर 29 तारीख तक स्टे मिलने के बाद सरकारी विभागों में हलचल तेज हुई। दुर्भाग्य की  बात तो यह भी है कि सीबीआई में वर्मा और अस्थाना के बीच लड़ाई ने दूसरी एजेंसियों और कई अन्य सरकारी विभागों को भी अपनी जद में ले लिया है। इनमें प्रवर्तन निदेशालय, इंटेलीजेंस ब्यूरो, केंद्रीय सतर्पता आयोग (सीवीसी), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ही नहीं बल्कि सत्ता प्रतिष्ठान के कई सतर्पता विभाग भी शामिल हैं। गुजरात काडर के आईपीएस अफसर अस्थाना पीएम मोदी से नजदीकियों की वजह से जाने जाते हैं। दो साल पहले मोदी ही उन्हें अंतरिम निदेशक बनाकर सीबीआई में लाए थे। माना तो यह जा रहा था कि वर्मा के बाद अस्थाना ही निदेशक बनेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि अस्थाना के खिलाफ इतनी बड़ी मुहिम वर्मा ने अपने दम पर छेड़ी है या उन पर किसी का वरदहस्त है? यह महज संयोग हो सकता है कि अस्थाना के खिलाफ सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार में एफआईआर होने के दो दिन बाद ही स्टर्लिंग बायोटेक के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय ने 5000 करोड़ रुपए के घपले में चार्जशीट दाखिल कर दी। मंगलवार को ही खबरें आई थीं कि इस कंपनी के मालिक चेतन संदेसरा ने 2016 में हुई अस्थाना की बेटी की शादी का सारा खर्च उठाया था। पिछले दिनों ईडी भी विवाद में रहा जब उसके संयुक्त निदेशक ने वित्त सचिव हंसमुख अधिया के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए। भाजपा सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी भी अकसर ईडी पर निशाना साधते रहे हैं। मंगलवार शाम को स्वामी ने ट्वीट कर सत्ता के गैंग ऑफ फोर पर अंगुली उठाई, जो उनके अनुसार जुलाई 2009 से पहले रॉ, सीबीआई, इनकम टैक्स, रिजर्व बैंक और ईडी जैसी प्रमुख एजेंसियों में अपने लोग बिठाना चाहते हैं ताकि अगर भाजपा को 2019 लोकसभा चुनाव में 220 से कम सीटें मिलती हैं तो कांग्रेस के प्रति किसी नरम व्यक्ति को पीएम की कुर्सी पर बिठाया जा सके। यह भी महज संयोग नहीं हो सकता कि अस्थाना के खिलाफ दर्ज मामले में दो प्रमुख आरोपी सोमेश प्रसाद और मनोज प्रसाद के पिता देवेश्वर प्रसाद रॉ के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं और ये दोनों जांच एजेंसियों में अपने सम्पर्कों के जरिये बड़े मामलों की दलाली करते थे। यही नहीं, एफआईआर में रॉ के विशेष सचिव सामंत गोयल का भी नाम है। वहीं सीबीआई निदेशक वर्मा के खिलाफ अपनी शिकायतें अस्थाना लगातार सीवीसी को भेजते रहे। लेकिन अभी तक सीवीसी ने दोनों वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ न तो कोई कार्रवाई की और न ही बीच-बचाव की कोई कोशिश। माना जा रहा है कि इन्हें सरकार के ही वरिष्ठ लोगों का समर्थन प्राप्त है। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक समिति करती है। इस समिति में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता (इस बार सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) और देश के चीफ जस्टिस होते हैं। वर्मा की नियुक्ति को इसी समिति ने मंजूरी दी थी। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि वर्मा को इस तरह हटाना न केवल गलत ही है पर असंवैधानिक भी है। इसी आधार पर वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कांग्रेस का तो यह भी कहना है कि चूंकि वर्मा राफेल डील से संबंधित दस्तावेजों की जांच कर रहे थे इसलिए उन्हें इस गैर-कानूनी तरीके से तुरन्त हटाया गया। सीबीआई के उपाधीक्षक (डीएसपी) देवेंद्र कुमार ने पटियाला हाउस स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में न्यायाधीश संतोष स्नेही मान की अदालत में कहा कि सीबीआई अब रिश्वतखोरी और जांच के नाम पर उगाही करने वाली एजेंसी बन गई है। अदालत ने कहा कि यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि देश की सर्वश्रेष्ठ एजेंसी मानी जाने वाली सीबीआई के अधिकारी पर जांच के नाम पर अवैध उगाही का गिरोह चलाने जैसे आरोप लगे हैं। इससे पहले कोर्ट में सीबीआई ने डीएसपी देवेंद्र कुमार को 10 दिन की हिरासत पर देने की मांग की। सीबीआई का कहना था कि देवेंद्र कुमार के घर और कार्यालय से आपत्तिजनक दस्तावेज मिले हैं और इनकी जांच जरूरी है। देश को यह दिन भी देखना पड़ा यह अत्यंत दुखद है।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 25 October 2018

पेशेवर युवाओं का बढ़ता चुनावी केज

जैसे-जैसे छत्तीसगढ़, मध्यपदेश व राजस्थान में विधानसभा चुनाव की तारीखे नजदीक आ रही हैं टिकटों के लिए घमासान मचा हुआ है। छत्तीसगढ़ में तो पहले चरण (1 नवंबर) में मुश्किल से छह-सात दिन बचे हैं। शनिवार को भाजपा ने छत्तीसगढ़ की 90 में से 78 पत्याशियों पर फैसला कर लिया है। नड्डा द्वारा जारी की गई सूची के अनुसार महिला विकास विभाग मंत्री रमशीला साहू समेत 14 विधायकों के टिकट काट दिए गए हैं। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह व अन्य नेता शामिल हुए। कांग्रेस में जहां दावा किया जा रहा है कि पांच राज्यों के चुनाव में उम्मीदवारों की टिकट तय करने में जुटी पार्टी अपने टिकट दावेदारों में पेशेवर युवाओं की बड़ी दिलचस्पी से उत्साहित है। इन पांच राज्यों में खासकर राजस्थान, मध्यपदेश और तेलंगाना जैसे सूबों से आईआईटी, ग्रेजुएट, एमबीबीएस, एमबीए और सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू तक पहुंचे पेशेवर युवा चुनाव मैदान में उतरने के लिए कांग्रेस का टिकट मांग रहे हैं। अपनी दावेदारी के पक्ष में राहुल गांधी के पोफैशनल्स के सियासत में आने की अपील का हवाला भी दे रहे हैं। कांग्रेस पवक्ता आरपीएन सिंह पेशेवरों की टिकट मांगने में बड़ी रूचि पर भी कहते हैं कि यह युवाओं में पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मोहभंग होने के साफ संकेत हैं। उनके अनुसार पढ़े-लिखे युवाओं को इस बात का अहसास हो गया है कि कांग्रेस की नीतियां और विचारधारा ही देश की पगति के लिए सबसे सही रास्ता है। आरपीएन सिंह इसे राहुल गांधी की सभी क्षेत्र के पेशेवर युवाओं से राजनीति में आने की अपील का भी असर मानते हैं और कहते हैं कि जहां संभव होगा नए चेहरों को पार्टी टिकट देने में परहेज नहीं करेगी। एक दिलचस्प खबर ः मध्य पदेश के झाबुआ जिले में देसी और अंग्रेजी शराब की बोतलों पर मतदान जागरुकता संदेश छपवाए गए हैं। इन पर आदिवासी भाषा में लिखा है उसका हिंदी में मतलब है, सभी को वोट देना जरूरी है। बटन दबाना है, वोट डालना है। इसके नीचे जिला निर्वाचन अधिकारी झाबुआ का हवाला दिया गया है। शराब की बोतलों पर चिपके इन स्टीकरों से शहर में नया विवाद पैदा हो गया है। उधर आबकारी विभाग और जिला पशासन एक-दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी डाल रहे हैं। जिला आबकारी अधिकारी अभिषेक तिवारी ने बताया कि जिले में दो लाख स्टिकर छपवाए गए हैं। शहर के शराब ठेकेदारों को बोतलों पर चिपकाने के लिए निर्देशित किया गया है। उनका दावा है कि पूरी कार्रवाई कलेक्टर आशीष सक्सेना के निर्देश पर की गई है। वहीं कलेक्टर सक्सेना ने इस बात से पल्ला झाड़ते हुए कहा, इस विषय में आबकारी अधिकारी से ही सवाल करें।

-अनिल नरेन्द्र

क्या अदालती आदेश से पटाखे चलने बंद होंगे?

सुपीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि सात नवंबर को दिवाली  के पर्व पर पर्यावरण और कारोबार के बीच संतुलन बनाते हुए रात आठ बजे से 10 बजे के बीच ही पटाखे छोड़े जा सकते हैं। मंगलवार को सुनाए गए अपने फैसले में उसने पटाखों की बिकी पर पूरी तरह से बैन लगाने से मना कर दिया है। पर इस बारे में अदालत ने कुछ शर्तें जरूर तय कर दी हैं। अदालत ने साफ किया है कि पटाखे केवल लाइसेंसधारी व्यापारी ही बेच सकते हैं, वह भी पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाले पटाखे। इनकी आनलाइन बिकी पर भी पाबंदी लगा दी गई है। कोर्ट ने दिवाली के दिन पटाखे फोड़ने की समय सीमा भी तय कर दी है। दिवाली जैसे त्यौहार के मौके पर खुशियों का इजहार करने के लिए बेहतर खानपान और रोशनी की सजावट से पैदा जगमग के अलावा कानफोड़ पटाखों का सहारा लोगों को कुछ देर की खुशी तो दे सकता है, लेकिन इसका पर्यावरण पर व्यापक असर होता है। पटाखों की आवाज और धुएं के पर्यावरण सहित लोगों की सेहत पर पड़ने वाले घातक असर के मद्देनजर इनसे बचने की सलाह लंबे समय से दी जाती रही है। ज्यादातर लोग इससे होने वाले नुकसानों को समझते भी हैं, मगर इनसे दूर रहने की कोशिश नहीं करते। खासकर बच्चों में बम फोड़ने का बड़ा चाव होता है। हवाई पटाखे उड़ाने के लिए बोतलों में उसे डालकर मजा लिया जाता है। बेशक पर्यावरणविदों से लेकर कई जागरूक नागरिकों ने इस मामले पर लोगों को समझाने से लेकर पटाखों पर रोक लगाने के लिए अदालतों तक का सहारा लिया है, लेकिन इसमें संदेह है कि इन पर पूरी तरह से रोक लगाना संभव हो। मुश्किल यह है कि उन्हें रोकने के लिए हमारे पास उतनी मैन पावर नहीं है कि वह घर-घर जाकर लोगों को बम फोड़ने से रोक सकें। हां भारी बमों और ऐसे पटाखे जो पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे लड़ियां उनको पतिबंधित किया जाए तो शायद इसमें कमी आए। पर फिर सवाल यह भी उठाया जाता है कि पटाखों का व्यापार करोड़ों, अरबों रुपए का है और इसमें लाखों लोग जुड़े हुए हैं। आfिर्थक एंगल से भी देखना पड़ता है। अब इको पेंडली पटाखे भी आ गए हैं। इनसे न तो ध्वनि पदूषण होता है और न ही वायु पदूषण पर यह इतनी मात्रा में नहीं उपलब्ध होते। पटाखों का धुआं और शोर अपने पीछे कई तरह की बीमारियां और पर्यावरण के लिए दीर्घकालिक नुकसान छोड़ जाता है। अगर खुशी जाहिर करने के लिए ऐसे तौर-तरीकों का सहारा लिया जाए जो बिना किसी भेदभाव के पर्यावरण को व्यापक नुकसान नहीं पहुंचाएं उपलब्ध हों तो समस्या का समाधान संभव है। पर समाज को भी कोपरेट करना होगा।

Wednesday, 24 October 2018

आतंकी फंडिंग से बन रही मस्जिदें और मदरसे

आतंकी फंडिंग से मस्जिदों और मदरसों के निर्माण व उसके माध्यम से कट्टरता फैलाने की साजिश का पर्दाफाश हुआ है। दरअसल हुआ यह कि पिछले महीने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने राजधानी दिल्ली में लश्कर--तैयबा की आतंकी फंडिंग का पर्दाफाश करते हुए तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के दौरान पता चला कि आतंकी फंडिंग का जाल सिर्प कश्मीर में आतंकियों को धन मुहैया कराने तक सीमित नहीं है। लश्कर मस्जिदों और मदरसों के माध्यम से देश के भीतर कट्टरता फैलाने की भी साजिश कर रहा है। आतंकी फंडिंग के लिए निजामुद्दीन से गिरफ्तार मोहम्मद सलमान हरियाणा के पलवल जिले के एक गांव में मस्जिद का इमाम भी है। पूछताछ में सलमान ने स्वीकार किया कि आतंकी फंडिंग के पैसे का इस्तेमाल उसने मस्जिद और मदरसा बनाने में भी किया था। इसके बाद एनआईए ने मस्जिद की तलाशी भी ली थी और कई दस्तावेज भी बरामद किए थे। एनआईए ने सलमान के साथ-साथ हवाला ऑपरेटर दरियागंज के मोहम्मद सलीम उर्प मामा और श्रीनगर के अब्दुल राशिद को भी गिरफ्तार किया है। सलमान, सलीम और राशिद को गिरफ्तार करने के बाद एनआईए ने कूचा घसीटाराम में हवाला ऑपरेटर राजाराम एंड कंपनी के ठिकानों पर छापा भ्ााr मारा था। छापे में एक करोड़, 56 लाख रुपए नकद, 47 हजार रुपए की नेपाली मुद्रा, 14 मोबाइल फोन और पांच पेन ड्राइव बरामद हुए थे। एनआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बरामद मोबाइल फोन, पेन ड्राइव और हार्ड डिस्क की जांच और गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद आतंकी फंडिंग से आए धन को मस्जिद और मदरसों में लगाने का पता चला। पलवल के एक गांव उटावड़ में बन रही मस्जिद खुलाफा--रशीदन में टेरर फंडिंग मामले को लेकर एनआईए के खुलासे से गांव के लोग हैरान है। उनका कहना है कि इसमें गलत पैसा लगा है, इस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है, लेकिन एनआईए की टीम कह रही है तो कुछ तो गड़बड़ होगी ही। मस्जिद निर्माण में लगे राजमिस्त्राr आस मोहम्मद कहते हैं कि यह मस्जिद 2010 से बन रही है, अगर इसमें आतंकी संगठनों का पैसा लगा है तो यह मस्जिद अधर में नहीं होती पहले ही बनकर तैयार हो जाती। इन सालों में मस्जिद में रुक-रुक कर काम चलता रहा है। पुलिस अधीक्षक वसीम अकरम का कहना है कि इस मामले की जांच एनआईए कर रही है। जब एनआईए की टीम यहां आती है तो वे सुरक्षा के लिए पुलिस मांगती है तो उनकी पूरी सुरक्षा की जाती है। मगर जांच के मामले में स्थानीय पुलिस का अभी तक इससे किसी प्रकार का संबंध नहीं है। लगता है कि पाक समर्थित यह नेटवर्प मदरसों में आधुनिक शिक्षा को किसी कीमत पर लागू नहीं होने देना चाहता है। इसलिए यह मौलाना का सहारा ले रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सीबीआई ने अपने ही नम्बर दो पर केस दर्ज किया

तमाम अपराधों की जांच करने वाली देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी (सीबीआई) ने एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में अपने ही नम्बर दो के अधिकारी स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर एजेंसी का नया इतिहास लिख डाला। आरोप है कि मीट एक्सपोर्टर मोइन कुरैशी से मांस मामले में क्लीन चिट देने के नाम पर रिश्वत लेने का आरोप लगा है। सीबीआई ने इस मामले में खुद पत्र जारी कर इस खबर की पुष्टि की है। दो महीने पहले अस्थाना ने कैबिनेट सचिव से सीबीआई निदेशक अलोक वर्मा के खिलाफ यही शिकायत की थी। सीबीआई ने सतीश साना की शिकायत के आधार पर 15 अक्तूबर को अपने विशेष निदेशक अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी 2018 की आरसी 13() दर्ज की। मांस कारोबारी मोइन कुरैशी की कथित संलिप्तता से जुड़े 2017 के एक मामले में जांच का सामना कर रहे साना ने आरोप लगाया है कि अस्थाना ने मोइन को क्लीन चिट दिलाने में कथित रूप से मदद की। सीबीआई ने बिचौलिया समझे जाने वाले मनोज प्रसाद को भी 16 अक्तूबर को दुबई से लौटने पर गिरफ्तार किया था। हालांकि जांच एजेंसी इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुई है। दिलचस्प बात यह है कि अस्थाना ने भी इसी केस में सीबीआई डायरेक्टर अलोक वर्मा पर दो करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप लगाकर 24 अगस्त को कैबिनेट सैकेटरी को शिकायत दर्ज की थी। सीबीआई प्रवक्ता अभिषेक दयाल ने बताया कि हैदराबाद निवासी सतीश बाबू साना की शिकायत पर अस्थाना, सीबीआई एसआईटी के डीएसपी देवेंद्र कुमार के अलावा मनोज प्रसाद, प्रोमेश्वर प्रसाद और अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। आरोप यह भी है कि दिसम्बर 2017 से अक्तूबर 2018 के बीच कम से कम पांच बार रिश्वत की रकम ली गई। उल्लेखनीय है कि मोइन कुरैशी केस की जांच अस्थाना के नेतृत्व में एसआईटी कर रही है। सीबीआई में डायरेक्टर अलोक वर्मा के बाद अस्थाना ही दूसरे सबसे बड़े अधिकारी हैं। सूत्रों के अनुसार सीबीआई डायरेक्टर अलोक वर्मा ने रविवार देर शाम पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी। गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना उस विशेष जांच दल (एसआईटी) की अगुवाई कर रहे हैं जो अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले और उद्योगपति विजय माल्या द्वारा की गई लोन धोखाधड़ी जैसे अहम मामलों को देख रहे हैं। चूंकि दोनों ही अफसर एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में हेराफेरी करने का आरोप लगा रहे हैं इसलिए अगर आम लोग दोनों की निष्ठा को संदिग्ध समझें तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इतना तो लगभग साबित ही होता है कि सीबीआई में भी भ्रष्टाचार चलता है। यह भी एक तथ्य है कि भ्रष्टाचार के बड़े मामलों की जांच में सीबीआई का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। इस केस से जांच एजेंसी की छवि तो बिगड़ी ही है साथ-साथ इसकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्न खड़ा हो रहा है। अब तक हर केस सीबीआई को देने की मांग इसलिए उठती थी क्योंकि जनता को यह विश्वास था कि यह एक ऐसी एजेंसी है जो निष्पक्ष और सही जांच करेगी, असल कसूरवारों का पर्दाफाश करेगी। अगर सीबीआई को अपनी छवि बचानी है और अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखनी है तो इस मामले को दबाने की बजाय इसकी तह तक पहुंचना होगा और देश को बताना होगा कि सच्चाई क्या है? वैसे यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी खुद ही इस प्रकार के आरोपों में घिरे।

Tuesday, 23 October 2018

आर्थिक तंगी से परेशान चार भाई-बहनों ने लगाई फांसी

अमृतसर ट्रेन हादसे से अभी हम उभरे भी नहीं थे कि फरीदाबाद की घटना ने हमें विचलित कर दिया। गरीबी और भुखमरी सबसे बड़ा दुख है। दिल दहलाने वाली यह घटना फरीदाबाद की है। ईसाई समुदाय के एक परिवार के चार भाई-बहनों ने दयाल बाग (सूरजपुंज) के एक फ्लैट में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। फ्लैट से बदबू आने पर शनिवार सुबह साढ़े सात बजे पड़ोस में बने प्ले स्कूल के प्रबंधन ने पुलिस को जब जानकारी दी तो पुलिस ने दरवाजा तोड़कर घर में देखा कि एक कमरे में एक महिला का शव फंदे से लटका था। हॉल में लगे दो पंखों से दो और महिलाओं के शव लटके पड़े थे, जबकि पीछे के कमरे में एक युवक का शव लटका मिला। इनकी पहचान मीना (42), बीना (41) जया (39) और प्रदीप (37) के रूप में हुई। मौके से 18 अक्तूबर को लिखा सुसाइड नोट मिला है, जिसमें माता-पिता व छोटे भाई की मौत और आर्थिक तंगी को खुदकुशी का कारण बताया गया है। चारों ही अविवाहित और बेरोजगार थे। पुलिस ने बताया कि मूल रूप से केरल निवासी जेजे मैथ्यू कई साल से परिवार समेत फरीदाबाद में रहे थे। मैथ्यू व पत्नी एग्नेस हरियाणा पर्यटन निगम में पांच सितारा होटल राजहंस में काम करते थे व सेवानिवृत्त हो चुके थे। गत अप्रैल में मैथ्यू की ओर जुलाई में एग्नेस की मौत हो गई थी। अगस्त में उनके बेटे संजू की भी एक हादसे में मौत हो गई थी। पांच माह में ही परिवार के तीन सदस्यों की मौत के बाद चारों भाई-बहन डिप्रैशन में थे। दयाल बाग में सामूहिक आत्महत्या करने वाले मैथ्यू परिवार में सभी खुशमिजाज और दिल खोलकर खर्च करने वाले थे। जेजे मैथ्यू ने कभी बचत करने की नहीं सोची और वर्तमान को ही खुलकर जीने की सोची थी, लेकिन उनकी मौत के महज सात माह में हंसता-खेलता परिवार काल के गाल में समा गया। उनकी पत्नी एग्नेस तीनों बेटियों को नन बनाना चाहती थीं। इसलिए उनकी शादी नहीं की थी। होटल राजहंस के स्टाफ क्वार्टर में रहने वाले मैथ्यू परिवार के पड़ोसी जब भी बच्चों की शादी का जिक्र करते तो एग्नेस चुप करवा देती थीं। इतना ही नहीं, पड़ोसियों ने प्रदीप और मंजू की कई बार नौकरी लगवाई लेकिन वह छोड़कर आ गए। चारों ने सुसाइड नोट में अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की कि उनका अंतिम संस्कार बुराड़ी (दिल्ली) स्थित कब्रिस्तान में ही किया जाए। फादर रवि कोटा ने बताया कि उनके माता-पिता और भाई को भी इसी कब्रिस्तान में दफनाया गया था। सुसाइड नोट में लिखा है कि घर में रखा संजू का कुछ सामान, बीपी मशीन, चार कंबल, व्हीलचेयर, कुछ नए बर्तन, डिनर सेट को चेरिटी (दान) करवा दें और इन्वर्टर फादर चर्च के लिए रख लें। उन्होंने लिखा था कि बुरे समय में मदद करने वाले संजू के मित्रों, जोशी अंकल व आंटी अर्चना सिस्टर, फादर सुमन व फादर रवि कोटा और होटल राजहंस के स्टाफ ने हमारी मदद की। इन सभी को हृदय से धन्यवाद।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रेन से कटकर मौत का सबसे बड़ा हादसा

हे राम! दशहरा पर्व पर खुशियां मना रहा देश उस वक्त मातम में डूब गया जब अमृतसर में ट्रैक पर खड़े होकर जलते रावण को देख रहे लोगों को ट्रेन रौंद कर गुजर गई। रावण दहन देख रहे 63 लोगों को 10 सैकेंड में काटती निकल गई ट्रेन। 142 से ज्यादा लोग घायल हो गए। मरने वालों की संख्या और ज्यादा हो सकती है। दशहरे जैसे पावन पर्व पर इतना भीषण और भयावह हादसा शोक के साथ क्षोभ से भी ग्रस्त करने वाला है, क्योंकि इसमें दो राय नहीं कि यदि स्थानीय प्रशासन ने तनिक भी सतर्पता और समझदारी का परिचय दिया होता तो उल्लास व उमंग से भरे लोगों को मौत के मुंह में  जाने से बचाया जा सकता था। बताया जा रहा है कि जिस वक्त यह हादसा हुआ, उस वक्त जलते रावण के पटाखों की गूंज से रेलवे ट्रैक पर खड़े दहन देखने वालों को ट्रेन की सीटी सुनाई नहीं पड़ी। नतीजतन पलक झपकते ही वे तेज रफ्तार से आ रही ट्रेन की चपेट में आ गए। जोड़ा बाजार फाटक के पास दशहरा पर्व के दौरान रावण दहन के वक्त शुक्रवार शाम 6.45 बजे मैदान में भरी भीड़ के कारण लोग रेलवे ट्रैक पर खड़े हुए कार्यक्रम देख रहे थे। इसी दौरान जालंधर-अमृतसर डेमू ट्रेन आ गई। इंजन ड्राइवर ने बार-बार हॉर्न बजाया पर पटाखों की आवाज में यह दब गया। मृतकों में बच्चे, महिलाएं व 16 से 19 साल के युवा भी हैं। हादसे के वक्त ट्रैक पर करीब 200 लोग थे। रेलवे इतिहास में ऐसा भीषण हादसा कभी नहीं हुआ। घटनास्थल पर 150 मीटर तक शव बिखरे हुए थे। जोड़ा बाजार के हादसे को क्या बचाया जा सकता था? कई सवाल उठ रहे हैं? पहला सवाल तो यह है कि ट्रेन की पटरी के बिल्कुल पास रावण दहन की इजाजत क्यों और कैसे मिली? दूसरा सवाल है कि प्रशासन ने मेले के लिए सुरक्षा का जरूरी बंदोबस्त क्यों नहीं किया? तीसरा प्रश्न डीएम ने ट्रेनों की रफ्तार धीमी रखने के लिए रेलवे को क्यों नहीं कहा? सवाल नम्बर चार मेले के दौरान यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया गया कि लोग पटरी पर न चढ़ें? पांचवां सवाल पुलिस ने आयोजकों को पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को समझाया क्यों नहीं? आयोजक द्वारा छोटे ग्राउंड में रावण दहन का आयोजन किया गया था। लोग हजारों की संख्या में पहुंचे थे। आयोजन कांग्रेस नेताओं ने किया था, पर प्रशासन से इजाजत नहीं ली थी। दशहरा आयोजकों के लिए नियम बने हैं। बैठने का इंतजाम, पार्किंग के अलावा फायर ब्रिगेड और एम्बुलेंस जरूरी हैं। भीड़ के बावजूद प्रशासन ने कुछ नहीं किया। आयोजन स्थल पर सुरक्षा इंतजामों की जांच के बाद पुलिस अनुमति देती है। लेकिन वहां पुलिस ने इंतजामों की अनदेखी की। नवजोत कौर ने पहले पीए को भीड़ देखने भेजा। इसके बाद वह छह बजे पहुंचीं। 6.40 तक भाषण देती रहीं, 6.50 पर रावण का पुतला पूंका। इतने में ट्रेन आ गई। बाद में नवजोत कौर लोगों को कसूरवार बताती रहीं। हादसे के बाद वह मौके से चली गईं। ढाई घंटे बाद 9.20 बजे अस्पताल पहुंचीं। वहां कहा कि कुर्सियां खाली थीं। लोग ऊंची जगह से वीडियो बनाने के लिए रेलवे ट्रैक पर खड़े हो गए। इस दर्दनाक हादसे में मरने वाले लोगों में ज्यादातर माईग्रेट मजदूर थे। जिस जोड़ा फाटक के पास हादसा हुआ है, उसके आसपास स्थानीय लोगों के अलावा यूपी-बिहार के प्रवासी मजदूर बहुतायत रहते हैं। अमृतसर के निकट हुआ हादसा एक बार फिर यह रेखांकित करता है कि शासन-प्रशासन के साथ धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन करने वाले सबक सीखने से इंकार कर रहे हैं। इसका कारण यही हो सकता है कि लापरवाही, अनदेखी और अनुशासन के अभाव के चलते होने वाले हादसों के लिए जिम्मेदार लोगों को कठघरे में नहीं खड़ा किया जा पा रहा है। ऐसे धार्मिक आयोजनो में हादसों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। कभी भीड़ में कुचले जाते हैं तो कभी ट्रेन से। बेशक अब जांच होती रहे, मुआवजे देते रहें, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहें पर जाने वाले वापस नहीं आएंगे। सभी को सोचना होगा कि साक्षात दिखने वाली लापरवाही के चलते होने वाले ऐसे हादसे सिर्प लोगों की जान ही नहीं ले रहे, बल्कि वे दुनिया में भारत की छवि भी गिरा रहे हैं। हमारी श्रद्धांजलि।

Sunday, 21 October 2018

जमाल खशोगी की हत्या? सऊदी संदेह में घिरा

सऊदी अरब के जाने-माने पत्रकार जमाल खशोगी सऊदी के शक्तिशाली सलमान के बेटे शाहजाद मोहम्मद की नीतियों के कटु आलोचक थे। उनका विवाह होने वाला था और उसी से जुड़े कुछ कागजात लेने के लिए दो अक्तूबर को वह तुर्की के शहर इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में गए थे और उसके  बाद से ही लापता हैं। तुर्की के सरकारी सूत्रों का कहना है कि पुलिस के अनुसार 15 सऊदी अधिकारियों की एक विशेष टीम ने खशोगी की हत्या कर दी और उन्हें इस काम के लिए विशेष तौर पर इस्तांबुल भेजा गया था। वहीं रियाद का कहना है कि खशोगी वाणिज्य दूतावास से सुरक्षित निकला था। `द टाइम्स' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने पता लगाया है कि उन 15 में से नौ अधिकारी सऊदी सुरक्षा सेवाओं, सेना अथवा सरकारी मंत्रालयों में काम करते थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक संदिग्ध माहिर अब्दुल अजीज मुतरबे 2007 में लंदन में सऊदी दूतावास में राजदूत था। प्रिंस मोहम्मद की हालिया विदेश यात्राओं के दौरान वह उनके साथ था और दोनों की अनेक तस्वीरें भी सामने आई हैं। सऊदी मूल के अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगी के लापता होने की खबरों के बीच तुर्की की सरकार समर्पित मीडिया ने सनसनीखेज खुलासा किया है। दैनिक अखबार मेनीसफाक ने बुधवार को खबर दी कि इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास के अंदर खशोगी की हत्या से पहले उन्हें यातना दी गईं। हत्या के बाद उनके शरीर के टुकड़े भी किए गए। अखबार ने कहा कि उसने इससे संबंधित ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनी है। अखबार ने कहा कि पहले तो खशोगी की अंगुलियां काटकर यातना दी गई और फिर हत्या कर दी गई। यातना के दौरान एक टेप में इस्तांबुल में सऊदी अरब के वाणिज्य दूत मोहम्मद अल ओतैबी को यह कहते हुए सुना जा सकता है, यह काम बाहर करो, आप मुझे परेशानी में डालने जा रहे हो। एक अन्य देश में एक अज्ञात व्यक्ति औतेब यह कहते सुनाई देता है, अगर तुम्हें सऊदी अरब जाना है तो चुप रहना। हालांकि अखबार ने यह नहीं बताया कि यह टेप किस तरह सामने आया और उसे कैसे हासिल हुआ। इस टेप से जमाल खशोगी के मामले में एक नया मोड़ आ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विदेश मंत्री पोम्पियो को सऊदी शाह सलमान से बात करने के लिए तुरन्त सऊदी अरब भेजा है। ट्रंप ने एक  बयान में कहाöशाह सलमान को इस मामले में कोई जानकारी नहीं है, मैंने तुरन्त माइक पोम्पियो को सऊदी अरब जाकर उनसे बात करने के लिए कहा है। इधर तुर्की का कहना है कि उनके अधिकारी दूतावास की तलाश ले रहे हैं। इस पूरे मामले में यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख फेडरिका मोफेरिनी ने कहा है कि यूरोप को अपने सवालों का जवाब चाहिए। हम चाहते हैं कि सऊदी और तुर्की मिलकर मामले की संयुक्त जांच करें।

-अनिल नरेन्द्र

तिवारी का जाना एक उदारवादी युग का अंत

नारायण दत्त तिवारी हमारे बीच नहीं रहे। तिवारी जी का जाना मेरे लिए एक भारी क्षति है। अभी बीमार होने से पहले ही वह मेरे निवास पर उज्ज्वला जी के साथ पधारे थे। लंबे समय से बीमार चल रहे तिवारी जी ने अपनी आखिरी सांस बृहस्पतिवार 18 अक्तूबर को ली। संयोग देखिए कि 18 अक्तूबर को ही उनका 93वां जन्म दिन था। वह 18 अक्तूबर 1925 को पैदा हुए थे और 18 अक्तूबर 2018 को उनका निधन हुआ। एनडी तिवारी को समकालीन भारतीय राजनीति में अलग तरह से देखा जाता है। 17 वर्ष की किशोर आयु में खेल की बजाय नारायण दत्त तिवारी ने आजादी की लड़ाई को चुना। पहले नैनीताल और बाद में बरेली जेल में तिवारी जी ने कई तरह के कार्यों से ब्रिटिश हुकूमत को सीधी चुनौती दी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक एवं कांग्रेस में शामिल होने की दास्तान अलग है। वह दो राज्यों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सीएम बनने वाले अकेले नेता थे। नारायण दत्त तिवारी का जन्म नैनीताल के बलौटी गांव में हुआ था। उनके पिता पूर्णानंद तिवारी सरकारी विभाग में अफसर थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। एनडी तिवारी की राजनीति में एंटी स्वतंत्रता आंदोलन के जरिये हुई थी। 1947 में आजादी के साल ही वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। देश आजाद हुआ और तिवारी जी उत्तर प्रदेश में 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में नैनीताल से प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। यूपी का पहला चुनाव था और तिवारी ने जीत के साथ झंडा फहराया। इसके बाद से उनका लंबा राजनीतिक कैरियर शुरू हुआ। वह दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे, केंद्रीय वित्तमंत्री रहे। तिवारी ने साल 2014 में उज्ज्वला शर्मा से 88 वर्ष की उम्र में शादी की थी। करीब 60 साल की राजनीतिक यात्रा में एनडी तिवारी ने कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे। उनके निजी जीवन में कई पर्सनल विवाद भी पैदा हुए। एनडी तिवारी समकालीन राजनीति के सबसे ज्यादा विनम्र नेताओं में से एक थे। इसी विनम्रता के कारण कई विवादों को उन्होंने विस्फोटक नहीं होने दिया। वह राजनीति में विरोधी एवं अपनी पार्टी के विधायकों व नेताओं को बराबर सम्मान देते थे। हालांकि इस तरह के सम्मान के कारण कई दूसरे विवाद भी पैदा होते रहे। तिवारी की इस राजनीतिक शैली के दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी कायल होने से नहीं बच पाए। 2003 में तिवारी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नैनीताल में जोरदार खैर मकदम किया। इससे अभिभूत अटल जी ने तिवारी को उत्तराखंड के विकास के लिए कई तरह की रियायतें दी थीं। आगे चलकर इन रियायतों ने सिडकुल की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यही नहीं, योजना आयोग में तिवारी के साथ काम कर चुके पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के संबंधों का भी तिवारी लाभ लेने से नहीं चूके। तिवारी जी के जाने का हमें बहुत दुख है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें। ओम शांति।

Saturday, 20 October 2018

पाकिस्तान ने 10 महीने में दरिंदे को फांसी पर लटकाया

भारत में आए दिन बच्चियों के साथ दुष्कर्म व दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या की खबरें आती रहती हैं। अभी दो दिन पहले ही गुजरात के सूरत में अपने घर के बाहर से लापता हुई साढ़े तीन साल की बच्ची की लाश मिली थी। बच्ची की हत्या से पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है। यह सिलसिला क्यों नहीं रुक रहा? जवाब है कि इन दरिंदों को कोई खौफ नहीं। निर्भया कांड को छह साल हो गए हैं। 16 दिसम्बर 2012 की इस खौफनाक घटना के दोषी अभी तक फांसी पर नहीं लटकाए जा सके। हाल ही में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 के इस निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले में तीन दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की गुहार ठुकरा दी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की याचिका को ठुकराते हुए कहा कि फांसी का फैसला सही है और उसे नहीं बदला जाएगा। यह तो सही हुआ पर सवाल यह उठता है कि आखिर कब होगी इन दरिंदों को फांसी? छह साल निकल गए हैं और हम अभी अपीलों के चक्कर में ही पड़े हुए हैं? हमारे से तो हमारा पड़ोसी देश इस मामले में बहुत आगे है। पाकिस्तान में छह साल की बच्ची जैनब अंसारी से दुष्कर्म और उसकी हत्या के दोषी इमरान अली (24) को बुधवार (17 अक्तूबर 2018) सुबह लाहौर के कोट लखपत केंद्रीय जेल में फांसी दे दी गई। फांसी के वक्त मजिस्ट्रेट आदिल सरवर और जैनब के पिता अमीन अंसारी मौजूद थे। जेल में एक एम्बुलेंस भी पहुंची थी जिसमें इमरान के भाई और उसके दोस्त भी थे। जैनब के पिता ने कहाöवह कोर्ट के आभारी हैं। परिवार को न्याय मिला है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि फांसी का सीधा प्रसारण होता तो और बेहतर होता। दरअसल अंसारी ने दोषी को सार्वजनिक स्थान पर फांसी देने और इसके सीधे प्रसारण की मांग करते हुए याचिका भी दायर की थी। इसे लाहौर हाई कोर्ट ने मंगलवार को खारिज कर दिया था। कसूर से लापता हुई जैनब का पांच दिन बाद शव कचरे के डिब्बे में मिला था। यह बात इसी साल चार जनवरी की है। दो सप्ताह बाद पुलिस ने इमरान को गिरफ्तार किया था। घटना के विरोध में कसूर में जस्टिस फॉर जैनब रैली निकाली गई थी। इमरान नौ नाबालिगों से दुष्कर्म और हत्या के मामलों में आरोपित था। इसमें चार मामलों में आरोपित पर कोर्ट फैसला भी सुना चुका था। पाकिस्तान के जस्टिस सिस्टम, न्याय प्रणाली की तारीफ होनी चाहिए। इसी साल जनवरी में वारदात होती है और 10 महीने में दरिंदे को फांसी पर लटका दिया जाता है। भारत में दुष्कर्म के मामले में आखिरी बार 14 साल पहले, 14 अगस्त 2004 को कोलकाता के धनंजय चटर्जी को फांसी दी गई थी। धनंजय का केस 14 साल तक चला था। निर्भया केस अभी भी चल रहा है। हमें पाकिस्तान से सीखना चाहिए। जब तक इन दरिंदों में खौफ पैदा नहीं होता सिलसिला रुकने वाला नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

मी टू अभियान में गई अकबर की सल्तनत

अनेक महिला पत्रकारों की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे विदेश राज्यमंत्री व वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर के पास मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया था। साढ़े चार साल में मोदी सरकार के अकबर पहले मंत्री हैं जिन्हें ऐसे गंभीर आरोपों के कारण पद से हटना पड़ा। आरोप लगाने वाली महिलाओं की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही थी उसमें अकबर ने त्याग पत्र देकर सरकार और भाजपा को और अपमानित होने से बचा लिया। उचित तो यही होता कि वह अपनी विदेश यात्रा से लौटते ही इस्तीफा दे देते क्योंकि उस समय तक कई महिलाएं उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगा चुकी थीं। अपने ऊपर लगे दाग धोने के लिए दम-खम के साथ कानूनी लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले अकबर को आखिरकार झुकना पड़ा। अकबर का इस्तीफा मांग रही कांग्रेस की न तो यह सियासी जीत है और न ही इससे पल्ला झाड़ने वाली भाजपा की हार। यह जीत है मी टू चलाने वाली महिलाओं की, जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिये सरकार पर इतना दबाव बना दिया कि अकबर का इस्तीफा मजबूरी बन गया। यदि अकबर को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना होता तो वे यौन शोषण के पहले आरोप के बाद ही दे देते, लेकिन 10 दिन बाद विदेश से लौट कर इस्तीफा दिया। लौट कर भी सफाई पेश करने के बजाय आक्रामक रुख अपनाया। आरोप लगाने वाली करीब 20 महिला पत्रकारों को झूठा ठहरा रहे हैं। दुख से कहना पड़ता है कि अकबर की दलीलों में दम नहीं है और वह बेहद खोखली हैं। उन्होंने कहा कि वे सियासी साजिश के शिकार हुए हैं यानि 20 महिला पत्रकार विपक्ष के कहने पर उन पर आरोप लगा रही थीं, वह भी अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर। सरकार के पास विकल्प सीमित थे। पहले भाजपा ने कहा कि वह अकबर की सफाई का इंतजार करेगी। फिर उन्हें एक वरिष्ठ मंत्री के सम्पर्प में रहने को कहा, लेकिन पार्टी ने नफा-नुकसान का हिसाब लगाने के बाद अंतत उनसे इस्तीफा देने के कहा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मंगलवार को अकबर से मिलने पहुंचे तो कयास लगाए कि वे शायद इस्तीफा देने का संदेश लेकर गए थे। पार्टी ने उन्हें समझाया कि अदालत में बतौर मंत्री उनका पेश होना और केस लड़ना उचित नहीं होगा। दरअसल पांच राज्यों में चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक मुद्दा बनने की आशंका ने पार्टी नेतृत्व के हाथ बांध दिए थे। राहुल गांधी ने कहना शुरू भी कर दिया था कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार के मंत्रियों से अपनी बेटी बचाओ। निश्चय ही जिन पत्रकारों ने अकबर के खिलाफ सोशल मीडिया या लेख वगैरह के जरिये आरोप लगाए हैं, उनमें से कोई भी उनके खिलाफ अदालत या थाने नहीं गई (एक को छोड़कर) और यह भी साफ है कि इतने वर्ष बाद उन आरोपों को साबित करना आसान नहीं होगा। इसी साल फिल्म सितारे जितेन्द्र पर एक उनके रिश्तेदार ने 20 साल बाद यौन शोषण का आरोप लगाया था। मुंबई हाई कोर्ट ने इसे आईपीसी की धारा के तहत इस बिनाह पर खारिज कर दिया था कि मामला तीन साल से ज्यादा पुराना है और इतने सालों के बाद न तो यह साबित हो सकता है और न ही कोई सबूत बचा होगा। इसलिए इन महिला पत्रकारों के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती है कि वे विभिन्न संस्थानों में अपने साथ हुए उत्पीड़न को तार्पिक परिणति तक पहुंचाएं। दूसरी ओर एमजे अकबर खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ एक नागरिक के तौर पर कानूनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं, लेकिन देश के चर्चित संपादक-पत्रकार के रूप में इन्हें पता होगा कि कोई महिला अपनी अस्मितता और प्रतिष्ठा को लेकर यूं ही आरोप नहीं लगाती।

Friday, 19 October 2018

जेसिका हत्याकांड की पुनरावृत्ति होते-होते बची

भीकाजी कामा प्लेस स्थित फाइव स्टार होटल हयात में पूर्व बसपा सांसद राकेश पांडे के बेटे आशीष पांडे ने पिस्टल के बल पर न केवल युवक-युवती को धमकाया, बल्कि अभद्र भाषा का प्रयोग भी किया। आशीष की चर्चा सोशल मीडिया पर भी खूब हुई। किसी ने तंज कसा तो किसी ने होटल प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था की खामी भी गिना दी। इस घटना ने एक बार फिर मॉडल जेसिका लाल की 29 अप्रैल 1999 की रात दिल्ली के टैमरिंड कोर्ट रेस्तरां में  गोली मारकर हत्या याद करा दी। इसकी वजह जेसिका द्वारा मनु शर्मा को शराब परोसने से मना करना था। छोटी-सी बात पर मनु ने गोली मार दी थी। मनु हरियाणा के कद्दावर नेता विनोद शर्मा का बेटा है। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने जेसिका के हत्यारे मनु शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाई। हयात होटल में लगभग वैसी ही स्थिति बन गई थी। फर्प सिर्प इतना था कि आशीष पांडे को उसके दोस्तों ने हादसा होने से पहले घसीट लिया और उनकी बीएमडब्ल्यू कार में बिठा दिया। पीड़ित गौरव दिल्ली के पूर्व कांग्रेसी विधायक के  बेटे हैं। गौरव के मुताबिक वह रेस्तरां में अपनी दोस्त के साथ बैठे थे। फ्रेंड को उल्टी आई तो वह उसे लेडीज वॉशरूम तक ले गया। झगड़ा यहीं से शुरू हुआ। आशीष के साथ आई तीन महिलाओं ने उनसे अभद्रता की। बाहर निकले तो आशीष ने पिस्टल तान दी। घटना 13 अक्तूबर की है। वीडियो वायरल हुआ तो आरकेपुरम थाने ने मामला दर्ज किया। मजेदार बात है कि पूरी घटना की वीडियो कार में बैठी ही किसी लड़की ने बनाई। पीड़ित युवती के मित्र ने एक न्यूज चैनल को बताया कि आरोपित के हाथ में पिस्टल देखकर मैं डर गया था। होटल स्टाफ ने बीच-बचाव की कोशिश की लेकिन वे खुद भी डरे हुए थे। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने ट्वीट किया है कि दिल्ली पुलिस ने आर्म्स एक्ट व आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। मामले में सख्त और उचित कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने आशीष पांडे को पकड़ने के लिए दिल्ली और लखनऊ में कई जगह छापे मारे हैं पर इस लेख को लिखते समय तक वह काबू नहीं आया है। लुकआउट नोटिस जारी है। मुझे 19 साल पहले घटी जेसिका लाल मर्डर की याद आ गई। देश और राजधानी में बढ़ते गन कल्चर और पश्चिमी प्रभाव के कारण युवा वर्ग भटकता जा रहा है। न ही इन्हें समाज की कोई फिक्र है और न ही अपनी रेपुटेशन की। छोटी-छोटी बातों में गुंडई, दबंगई आज आम होती जा रही है। लड़कों को तो छोड़ें लड़कियों का आज बुरा हाल है। माता-पिता ने तो ऐसे इन्हें खुला छोड़ रखा है मानो उन्हें परिणामों से कोई फर्प नहीं पड़ता। इसमें हम समाज और बढ़ती पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव को ज्यादा दोषी मानते हैं। ऐसे किस्सों में पुलिस कुछ नहीं कर सकती। हां घटना के बाद कसूरवारों को जरूर पकड़ कर इंसाफ करा सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या राहुल की राफेल रट से स्थानीय मुद्दे दब रहे हैं?

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। छत्तीसगढ़ में दो चरणों में होने जा रहे विधानसभा निर्वाचन के पहले चरण के लिए मंगलवार को अधिसूचना जारी हो गई है। अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन दाखिले की भी शुरुआत हो गई। प्रथम चरण में प्रदेश के आठ जिलों की 18 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होंगे। दिसम्बर में मतगणना के साथ चुनावी प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी। यह विधानसभा चुनाव  लोकसभा से पहले सेमीफाइनल माने जा रहे हैं। इनके परिणामों से लोकसभा चुनाव 2019 पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। इन राज्यों में कुल 680 विधानसभा सीटें हैं। इन राज्यों में 83 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से 2014 में भाजपा को 63, कांग्रेस ने छह और टीआरसी ने 11 सीटें जीती थीं।  जाहिर है कि भाजपा को 2019 के अंकगणित तक पहुंचने के लिए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनावों में 2013 को दोहराना होगा। तेलंगाना और मिजोरम में अपना प्रदर्शन बेहतर करना होगा। अगर कांग्रेस 2019 में बेहतर प्रदर्शन करना चाहती है तो कम से कम इन तीन राज्यों में उसे वापसी करनी होगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले भले ही कांग्रेस राफेल सौदे को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हो, लेकिन लगता है कि भाजपा इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है। भाजपा इन राज्यों में कांग्रेस की पिछली व मौजूदा सरकारों के कामकाज की तुलना जनता के सामने रख रही है ताकि जनता जान सके कि कौन बेहतर है। वह विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस के साथ ज्यादा उलझने के बजाय सामाजिक समीकरणों पर ज्यादा गौर कर रही है। खासकर पिछड़ा वर्ग पर जिससे खुद प्रधानमंत्री मोदी आते हैं। भाजपा के अपने आंकलन में सबसे राहत  की बात सामने यह आ रही है कि राफेल का कहीं भी चुनावी मुद्दा बनता नजर नहीं आ रहा है, कम से कम भाजपा का तो यही मानना है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा राफेल की लगातार रट लगाने से आमजन को प्रभावित करने वाले महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे दबते चले जा रहे हैं। भाजपा के नेता भी राहुल की राफेल को बोफोर्स की तर्ज पर भरकम बनाने की रणनीति को हवा होते देख राहत महसूस कर रहे हैं। इतना ही नहीं, राफेल की पूंक निकलता देख भाजपा उच्च कमान ने इस पर तवज्जो देना अब जरूरी नहीं समझा है। भाजपा को आशंका थी कि भाजपा शासित राज्यों में विपक्ष सत्ता विरोधी माहौल के चलते स्थानीय मुद्दों के जरिये हमलावर होंगे और भाजपा की स्थिति बचाव की बनी रहेगी किन्तु केंद्रीय नेताओं द्वारा राफेल को ज्यादा तवज्जो देने पर सत्ता विरोधी आक्रमण के बचाव में भाजपा को कम पसीना बहाना पड़ेगा। भाजपा के अपने आंकलन में सबसे राहत की बात सामने आ रही है कि राफेल को लेकर कांग्रेस का शोर किसी भी राज्य के चुनाव में मुद्दा नहीं है। वहां पर स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी हैं और नतीजा उन पर ही आने हैं। ऐसे में पार्टी राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर जनता में सिर्प एक बात पर जोर दे रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष झूठ बोल रहे हैं।


Thursday, 18 October 2018

आसाराम और गुरमीत राम रहीम के बाद अब रामपाल

आसाराम और राम रहीम के बाद रामपाल तीसरा ऐसा बाबा है जिसे आपराधिक मामलों में संलिप्त पाया गया है। हिसार की विशेष अदालत ने सतलोक आश्रम के संचालक और स्वयंभू बाबा रामपाल को हत्या के दो मामलों में गुरुवार को दोषी करार दिया। उसके 26 अनुयायियों को भी दोषी ठहराया गया है। इस मामले में बाबा रामपाल सहित 15 लोगों को उम्र कैद की सजा हुई। उसके समर्थकों के पास बेशक इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का विकल्प मौजूद है, लेकिन साफ हो गया है कि बाबा को लंबे समय तक जेल में रहना होगा। आसाराम और राम रहीम के बाद तीसरा बाबा है जो कानूनी शिकंजे में आ चुका है। इसके साथ ही कई ऐसे सवाल भी उठे हैं जो न केवल समाज में जागरुकता फैलाने के मोर्चे पर कमजोरी से जुड़े हुए हैं, बल्कि ऐसे बाबाओं के पनपने और फलने-फूलने में सरकार और समाज दोनों की कमजोरी व लापरवाही को दर्शाते हैं। गौरतलब है कि नवंबर 2014 में सतलोक आश्रम में एक महिला की संदिग्ध हालत में मौत के मामले में fिगरफ्तारी के सवाल पर पुलिस और रामपाल के समर्थकों के बीच हिंसक टकराव हुआ था, जिसमें पांच महिलाओं और एक बच्चे की मौत हो गई थी। इसके बाद रामपाल के खिलाफ हत्या के दो मामले दर्ज हुए थे। दरअसल रामपाल की गिरफ्तारी के समय पुलिस को जिस जद्दोजहद से गुजरना पड़ा था और उस दौरान जो हिंसा हुई थी, वह अपने आप में बताने के लिए काफी है कि इस स्वयंभू बाबा ने अपने समर्थकों के बूते पर किस तरह एक स्वतंत्र और समांतर दुनिया बना ली थी और खुद को कानून से ऊपर मानने लगा था। हिसार के बरवाला कस्बे में रामपाल का आश्रम एक किले की तरह था, जहां से उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को बाकायदा मोर्चा लेना पड़ा था। यह फैसला जहां सुनाया गया, वह अदालत जेल परिसर में ही लगाई गई। यह पहला मौका बेशक नहीं है, जब जेल में ही अदालत लगी हो। ऐसे बहुत से बाबा हैं, जिनके मामलों को संवेदनशील मानते हुए आजकल जेल में ही अदालत लगाने का चलन बन गया है। दरअसल जब गुरमीत राम रहीम को सजा सुनाई गई थी, तब उसके समर्थकों ने भारी हिंसा की थी। बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद सजा काट रहे आसाराम के समर्थकों ने भी इसी तरह से कानून व्यवस्था को चुनौती देने की कोशिश की थी। खुद रामपाल के सतलोक आश्रम में अदलात के निर्देश पर कार्रवाई करने पहुंची पुलिस पर समर्थकों ने हमला किया था। उस कार्रवाई के दौरान आश्रम में पुलिस को हथियार भी मिले थे। इन सब बाबाआंs के तौर-तरीके एक जैसे होते हैं और इन सबने समाज के वंचित और अपेक्षाकृत पिछड़े तबको के बीच पैठ बनाकर उन्हें बरगलाने की कोशिश की है। इन सबका पर्दे के पीछे का जीवन विलासतापूर्ण और भोले-भाले लोगों के शोषण से भरा रहा है। राजनीतिक संरक्षण के बिना इन बाबाओं का साम्राज्य और उनकी तिलस्मी दुनिया खड़ी नहीं हो सकती। अब रामपाल पूरी जिंदगी जेल में काटेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

आतंक का वोट से मुंहतोड़ जवाब

जम्मू-कश्मीर में चार चरणों में हुए शहरी स्थानीय निकाय चुनाव मंगलवार को संपन्न हो गए। घाटी में आखिरी चरण में भी कम मतदान का चलन रहा, जहां आतंकवाद पभावित कश्मीर घाटी में कुल 4.2 पतिशत मतदाताओं ने ही मतदान किया। मतों की गिनती 20 अक्टूबर को होगी। राज्य में 13 साल बाद हुए निकाय चुनाव राजनीति के लिए योग्य कदम हैं। चार चरणों में हुए नगरीय स्थानीय निकायों में जनता का भाग लेना आतंकियों और अलगाववादियों के मुंह पर तमाचा है, जो शुरू से ही लोकतांत्रिक राजनीतिक के धुर विरोधी रहे हैं। इस बार भी उन्होंने धमकी दी और अलगाववादियों ने चुनाव का बहिष्कार व बंद का आह्वान किया। घाटी में धमकियों की वजह से कई वार्डों में मतदान नहीं हुआ और कई उम्मीदवार निर्विरोध ही चुने गए। लेकिन जम्मू क्षेत्र में मतदाताओं में काफी उत्साह दिखा 2005 में कराए गए नगरीय चुनावों में तमाम व्यवधानों के बावजूद करीब 48 पतिशत मतदाताओं ने मतदान पकिया में भाग लिया था। दुर्भाग्यवश इस बार के चुनाव में पदेश की दो मुख्य पार्टियां-नेशनल कांपेंस और पीडीपी ने भाग न लेने का फैसला किया है। उन्होंने अनुच्छेद-35 ए की आड़ ली है, जो राज्य के स्थानीय विकास के वाहक निकाय चुनावों का बहिष्कार करने से क्या उनका मनोरथ सिद्ध हो जाएगाराज्य में 13 साल बाद हुए निकाय चुनाव में न तो अलगाववादियों के बहिष्कार का जादू चला और न ही आतंकियों की धमकी का असर। पाकिस्तान और पीओके से लगते इलाकों में पहले तीन चरणों में 70 फीसदी से अधिक मतदान हुआ। चौथे चरण के आंकड़े अभी आए नहीं हैं। आवाम ने जम्हूरियत पर विश्वास जताकर पाकिस्तान को साफ संदेश दिया कि राज्य को अस्थिर करने की साजिश कामयाब नहीं होने पाएगी। जम्मू में लोगों ने 62 पतिशत मतदान कर चुनाव बहिष्कार करने वाले पीडीपी और नेशनल कांपेंस सहित कई राजनीतिक दलों को आईना दिखा दिया। लद्दाख में तो मतदान के लिए लोगों का उत्साह सिर चढ़कर बोला। चाहे कश्मीर संभाग हो या फिर जम्मू-लद्दाख संभाग सभी जगह सीमांत इलाकों में जमकर वोट डले। कश्मीर के उड़ी, सुबंल, हदवाड़ा तथा जम्मू संभाग के पुंछ, राजौरी, सुंदर वनी, आरएस पुरा, रामगढ़, अरनिया, विश्नाह, नौशेरा सहित अन्य स्थानों पर निकाय चुनाव में काफी तादाद में लोग मतदान करने निकले। जम्मू संभाग के पुंछ, राजौरी, किश्तवाड़, डोडा, रामबन, बनिहाल आदि इलाके घाटी से लगते हैं। यहां तक कि चुनाव बहिष्कार का ऐलान करने वाले अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी, मीरवाइज, उमर फारुख और यासीन मलिक के इलाकों में भी लोगों ने वोट डाले। आतंक के गढ़ दक्षिण कश्मीर में भी लोग मुंह ढककर तथा बुर्का पहनकर बूथों तक पहुंचे। दरअसल पदेश के जीवन में स्थानीय संस्थाएं विभिन्न रूपों में अपनी उपयोगिता साबित करने वाली हैं। बेशक इन अलगाववादियों की धमकी का असर घाटी में रहा पर कुल fिमलाकर यह कहा जा सकता है कि इन्हें जम्मू-कश्मीर की आवाम ने मुंहतोड़ जवाब दिया है।


Wednesday, 17 October 2018

दिल्लीवासियों को स्काई वॉक का तोहफा

आईटीओ के समीप दिल्ली का पहला स्काई वॉक जनता के लिए सोमवार को चालू हो गया है। स्काई वॉक को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार में टकराव भी बढ़ गया है। पहले स्काई वॉक के बारे में। स्काई वॉक योजना की कुल लागत 54 करोड़ रुपए आई है। इसकी लंबाई 570 मीटर है। अनुमान है कि 30 हजार लोग प्रतिदिन इसका लाभ उठा सकेंगे। तिलक मार्ग, बहादुर शाह जफर मार्ग व सिकंदरा रोड की ओर से आने वाले लोगों को इससे सुविधा होगी। प्रगति मैदान मेट्रो की ओर से आने वालों के लिए यह सुविधाजनक होगा। इसकी सुरक्षा के लिए सीसीटीवी व पुलिस बूथ स्पेशली बनाया गया है। मथुरा रोड व हंस भवन के पास स्काई वॉक के समीप शौचालय उपलब्ध है। दावा किया जा रहा है कि प्रतिदिन 30 हजार लोग इसका इस्तेमाल करेंगे। सही तस्वीर अगले कुछ दिनों में साफ होगी कि इसका इस्तेमाल कितने लोग करते हैं। ट्रैफिक पुलिस के अधिकारियों का मानना है कि अगर यह फुटओवर ब्रिज इंजीनियर्स इंस्टीट्यूट के सामने बनाने की बजाय आईटीओ क्रॉसिंग पर बनाया जाता तो ज्यादा फायदेमंद होता। हालांकि पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की दलील है कि आईटीओ के पास डीएमआरसी ने अंडरपास बना रखा है। स्काई वॉक पर राजनीतिक रस्साकशी आरंभ हो गई है। इसके उद्घाटन समारोह में दिल्ली सरकार के किसी प्रतिनिधि को न बुलाए जाने से नाराज आम आदमी पार्टी ने रविवार को इस मुद्दे पर केंद्र की भाजपा सरकार को फिर से घेरा, तो वहीं केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीर पुरी ने भी सोशल मीडिया के जरिये अपना पक्ष रखा। पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने रविवार को एक बयान जारी कर दिल्ली की जनता को स्काई वॉक की ओपनिंग के मौके पर बधाई देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार ने पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर सत्येन्द्र जैन के नेतृत्व में दिल्ली के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों ने बेहद प्रोफेशनल तरीके से इस प्रोजेक्ट को पूरा किया है। स्काई वॉक उद्घाटन समारोह में दूसरी ओर मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट से दिल्ली सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। स्काई वॉक समेत दिल्ली में शहरी विकास से संबंधित चार प्रोजेक्ट वर्ष 2016 में ही स्वीकृत हो चुके थे, जिसमें स्काई वॉक भी शामिल था। लेकिन दिल्ली सरकार द्वारा पहल नहीं किए जाने से इसमें देरी हुई। उन्होंने कहा कि जब मैंने इन प्रोजेक्टों के स्टेटस जानने के लिए विभाग के अधिकारियों से बैठक की तो पता चला कि इन प्रोजेक्टों के लिए 80 प्रतिशत फंड केंद्र सरकार को देना है और 20 प्रतिशत फंड दिल्ली सरकार को देना था लेकिन दिल्ली सरकार ने यह फंड नहीं दिया। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार ने इस काम को ही नहीं रोका बल्कि दिल्ली-मेरठ आरआरटी प्रोजेक्ट और मेट्रो फेज के काम में भी देरी की है। जवाब में दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र का दावा गलत है, दिल्ली सरकार ने भी इस प्रोजेक्ट के लिए 12 करोड़ रुपए दिए। वहीं यह प्रोजेक्ट दिल्ली सरकार ने ही तैयार किया था। इस स्काई वॉक के ऊपर सोलर पैनल लगेंगे। साथ ही इसमें एलडीई लाइटों का प्रयोग किया गया है। स्काई वॉक पर एक प्लाजा भी बनाया गया है, जहां फूड और शापिंग के लिए स्टाल भी होंगे। रैंप पर जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इसका प्रयोग ज्यादा से ज्यादा लोग करें इसके लिए इस स्काई वॉक के सभी प्रवेश प्वाइंट पर ग्लास लिफ्ट लगाई गई हैं। हम सभी संबंधित विभागों, अधिकारियों को दिल्ली के पहले इस स्काई वॉक के लिए बधाई देते हैं। वैसे उद्घाटन समारोह में अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी इंवाइट किया जाता तो कोई हर्ज नहीं था। आखिर वह दिल्ली की जनता द्वारा दिल्ली में विकास के लिए चुने गए हैं। इतने इम्पोर्टेंट लैंडमार्प में उनकी अनुपस्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।

-अनिल नरेन्द्र

व्यर्थ न जाए गंगा के इस योद्धा का बलिदान

चर्चित पर्यावरणविद और गंगा की अविरलता के योद्धा गुरुदास अग्रवाल यानि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की मृत्यु शोकाहत करने वाली तो है ही, जिस तरह उन्होंने मृत्यु का वरण किया, वह हमारी संवेदनहीन व्यवस्था को भी उजागर करती है। गंगा की सफाई के लिए 111 दिन अनशन पर रहे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने जान दे दी है। वो इससे पहले भी गंगा की सफाई के लिए तीन बार अनशन पर बैठ चुके थे। उनके निधन के बाद एक बार फिर गंगा की सफाई को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। मोदी सरकार का कहना है कि उसने गंगा की सफाई के लिए 21 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट नमामि गंगे शुरू किया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कई मौकों पर यह दावा कर चुके हैं कि 2020 तक गंगा की सफाई का 70-80 प्रतिशत काम पूरा हो जाएगा। हालांकि इस प्रोजेक्ट का सिर्प 10 प्रतिशत काम ही अभी तक पूरा हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि महज एक साल से कम वक्त में गंगा की सफाई कैसे हो जाएगी? सरकार ने नमामि परियोजना के लिए कई स्तर पर कार्य योजनाओं का खाका खींचा है। योजना आठ प्रमुख कार्य बिन्दुओं के ईद-गिर्द घूमती है। इनमें प्रमुख है गंगा किनारे सीवर उपचार संयंत्र का ढांचा खड़ा करना। योजना के तहत 63 सीवेज मैनेजमेंट प्रोजेक्ट उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में लगाए जाएंगे। अब तक इनमें 12 पर काम चल रहा है। इसके अलावा हरिद्वार और वाराणसी में दो पीपीपी मॉडल यानि निजी सहभागिता पर भी शुरू करने की कोशिश की जा रही है। वहीं नदी मुहानों के विकास (रिवर फ्रंट डेवलपमेंट) के तहत 182 घाटों और 118 शमशान घाटों का आधुनिकीकरण किया जाएगा। प्रोफेसर अग्रवाल चाहते थे कि सरकार गंगा को बचाने के लिए संसद से गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम पास कराए और अगर वह न हो सके तो अध्यादेश जारी करे। नितिन गडकरी ने उन्नाव तक गंगा में पर्यावरण बहाव सुनिश्चित करने की मांग स्वीकार की थी, लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल का कहना था कि यह पूरी गंगा को संरक्षित करने की योजना नहीं है। इसमें इनलैंड जलमार्गों की सुरक्षा होगी, जिनका व्यावसायिक उद्देश्य है। हालांकि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर दुख जताया है लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल ने 22 जून को उन्हें जो पत्र लिखा था वह काफी कड़ा था। उस पत्र में उन्होंने यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन Eिसह को मौजूदा प्रधानमंत्री से ज्यादा संवेदनशील बताया था। उनका कहना था कि डॉ. सिंह ने उनके अनशन पर गौर करते हुए लोहारी नागपाल की 90 प्रतिशत पूर्ण हो चुकी परियोजना को बंद करवा दिया था, जबकि मोदी सरकार ने गंगा के प्रति चार वर्षों में कोई कायदे का काम नहीं किया। आईटीआई के प्रोफेसर रहे और देश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले रहे सचिव प्रोफेसर अग्रवाल का वह पत्र जिससे देश और दुनिया के बीच जंग छिड़ी हुई है। पत्र पर्यावरण आंदोलन और विशेषकर गंगा बचाओ अभियान का घोषणा पत्र बन सकता है। पहली बार जनवरी 1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई थी। लेकिन उसी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय गंगा से अवैध खनन रोकने की मांग के साथ अनशन करते हुए स्वामी निगमानंद सरस्वती ने जान दे दी। स्वामी निगमानंद को तो नहीं बचाया जा सका लेकिन इनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। एक वैज्ञानिक और आधुनिक ज्ञान से सम्पन्न ऋषि प्रोफेसर अग्रवाल इस दुनिया से ऊपर उठ गए थे और इसीलिए उन्होंने औद्योगिक सभ्यता से गंगा को बचाने के लिए जान दे दी। जो लोग आधुनिकता और पर्यावरण दोनों की चिन्ता में फंसे हुए हैं वे ऐसे ही गंगा के साथ उनके लिए कभी स्वामी निगमानंद तो कभी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद को जान देते हुए देख रहे हैं। आशा है कि उन लोगों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।

Tuesday, 16 October 2018

दिल्ली सिर्फ दिल्ली वासियों की नहीं है

दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में इलाज को लेकर दिल्ली सरकार के आदेश को खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट की मुख्य पीठ ने स्पष्ट किया कि दिल्ली सिर्प दिल्ली वालों की नहीं है। मुख्य न्यायमूर्ति राजेन्द्र मेनन व न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ ने कहा कि दिल्ली को राजधानी के तौर पर दिए गए विशेष दर्जे के तहत इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। पीठ ने दिल्ली को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जगदीश सरन बनाम भारत सरकार के 1980 और हाल ही में  बीर सिंह बनाम दिल्ली जल बोर्ड के मामले में की गई टिप्पणी को फैसले का आधार बनाया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने फैसले में टिप्पणी की थी कि देश की राजधानी सिर्प देश का एक हिस्सा नहीं है, बल्कि छोटा भारत है। मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन की पीठ ने दिल्ली सरकार को सभी मरीजों का इलाज उसी तरह करने का निर्देश दिया है, जैसा आरक्षण संबंधी सर्कुलर के जारी होने से पहले किया जाता था। याचिकाकर्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार का आदेश देश में वोट बैंक और बांटने की राजनीति करने वालों के मुंह पर तमाचा है। सरकार का काम आम नागरिकों को सुविधा देने का रास्ता खोलने का है पर यहां तो गरीबों के लिए अस्पताल का दरवाजा बंद किया जा रहा था। हाई कोर्ट ने गरीबों के हक में फैसला दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य का अधिकार सबको मिलना चाहिए। दिल्ली सरकार की ओर से स्थायी अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि बाहरी मरीजों के इलाज पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है। दरअसल अस्पताल में दिल्ली के बाहर से आने वाले मरीजों की संख्या अधिक होती है। इससे अस्पताल में भीड़ बढ़ती है। दिल्लीवासियों को बेहतर इलाज व स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए यह पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। यह सरकार की नीति है और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन ने बताया कि सरकार अदालत में अपना पक्ष समझाने में कामयाब नहीं हो सकी है। ऐसे में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ बेहतर तैयारी के साथ हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने अस्पतालों में सुविधाओं का विकास किया है। इससे मरीजों की संख्या दोगुनी तक बढ़ गई है। लिहाजा दिल्ली वाले इन सुविधाओं का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। सरकार ने ओपीडी व इमरजेंसी में किसी तरह का आरक्षण नहीं किया है। बता दें कि दिल्ली सरकार ने एक अक्तूबर 2018 को गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में दिल्ली के मरीजों के लिए 80 प्रतिशत बेड और ओपीडी के 17 में से 13 काउंटर आरक्षित करने के लिए सर्कुलर जारी किया। गैर-सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट ने सरकार के इस कदम को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के प्रावधानों के तहत मिले अधिकारों का हनन बताते हुए इसे रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

-अनिल नरेन्द्र

जजों की सुरक्षा पर उठे सवाल, रक्षक ही भक्षक बन गया

गुरुग्राम में शनिवार को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्णकांत शर्मा की सुरक्षा में तैनात गन मैन हैड कांस्टेबल महिपाल द्वारा बीच बाजार जज साहब की पत्नी और बेटे को गोली मार देने की चौंकाने वाली घटना सामने आई है। वारदात के समय मां और बेटा सेक्टर-49 की पॉश आर्केडिया मार्केट में खरीददारी करने गए थे। मां को तीन और बेटे को दो गोली लगीं। पुलिस ने उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया है, जहां उनके बेटे की हालत नाजुक बताई जा रही है। वहीं उनकी पत्नी की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। शाम चार बजे सड़क किनारे कार रोकने के बाद रेणु और ध्रुव जैसे ही कार से उतरे महिपाल ने अपनी सर्विस गन से दोनों पर गोली चला दी। गोलियां लगते ही मां-बेटा गिर गए। झल्लाते हुए महिपाल ने घायल ध्रुव को कार में डालने की कोशिश की, मगर सफल नहीं हुआ। घटना की वीडियो बना रहे लोगों से उसने कहा यह शैतान है और यह शैतान की मां है। इसके बाद मां-बेटे को घायल हालत में छोड़कर वह फरार हो गया। पुलिस ने नाकेबंदी कर गुड़गांव-फरीदाबाद रोड पर ग्वाल पहाड़ी के पास उसे पकड़ लिया। महिपाल की ओर से सरेराह फायरिंग से बचने के लिए रेणु और ध्रुव ने चिल्लाते हुए मदद मांगी, लेकिन कोई भी मददगार आगे नहीं आया। प्रत्यक्षदर्शी मदद की बजाय वीडियो बनाने में ज्यादा व्यस्त थे। आरोपी महिपाल नारनौल का रहने वाला है और पिछले डेढ़ साल से जज कृष्णकांत के साथ बतौर सिक्यूरिटी गार्ड तैनात था। करीब आठ माह पहले उसने हिन्दू धर्म छोड़ क्रिश्चियन धर्म अपना लिया था। उसकी जज की पत्नी के साथ नाराजगी रहती थी। पुलिस लॉकअप में भी वह चिल्लाते हुए कह रहा था कि धर्म परिवर्तन को लेकर जज की पत्नी उसे परेशान करती थी। आरोपी वारदात के बाद अपने दोस्तों के पास इस्लामपुर पहुंचा। उनसे जज के परिवार के साथ हादसे की बात कहकर उन्हें साथ चलने को कहा। जब वह सुभाष चौक की ओर चला तो उसने तेज रफ्तार में दो ऑटो को टक्कर मार दी। संदेह होने पर दोस्त रास्ते में उतर गए और पुलिस को सूचना दी। इसके बाद आरोपी को ग्वाल पहाड़ी के पास से दबोच लिया गया। इस वारदात से जजों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं। न्यायपालिका से जुड़े लोगों का कहना है कि अब जिसके जिम्मे सुरक्षा है, यदि वही इस तरह की घटना को अंजाम देने लगे तो यह बेहद चिन्तनीय है। इसके साथ ही जजों के सुरक्षा गार्डों की शारीरिक और मानसिक स्थिति की नियमित जांच कराने की मांग उठना स्वाभाविक है। एक वरिष्ठ वकील का कहना है कि न्यायपालिका और पुलिस कई बार आमने-सामने रहते हैं। पुलिस जो काम करती है उस पर न्यायपालिका सवाल उठाती है। ऐसे में जजों की सुरक्षा या जिम्मा पुलिस की जगह आरपीएफ या किसी अन्य एजेंसी को दिए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। रक्षक भी जब भक्षक की स्थिति में आ जाए तो यह स्थिति सबके लिए चिन्ता का विषय है। इसलिए सुरक्षा गार्डों का रेग्यूलर मेडिकल चैकअप होना अति आवश्यक है।