Sunday, 28 June 2020
सोनू ने टी-सीरीज के मालिक को बताया माफिया
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के बाद बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद और गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। अब ताजा केस गायक सोनू निगम का है। गायक सोनू निगम ने एक नए वीडियो में टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार पर निशाना साधा है। गायक ने सोमवार को एक वीडियो जारी कर कहाöपिछली बार मैंने किसी का नाम नहीं लिया था पर माफिया तो माफिया की चाल ही चलेगी। मेरे खिलाफ कुछ बोला जा रहा है। अब मुझे भूषण कुमार का नाम लेना ही पड़ेगा। तुमने गलत आदमी से पंगा लिया है। सोनू ने वीडियो में आगे कहा कि तुम वह टाइम भूल गए, जब तुम मेरे घर आए थे और मुझसे अपनी एलबम करने की मिन्नतें की थीं। तुमने मुझसे कहाöभाई एक बार स्मिता ठाकरे और बाल ठाकरे से मिलवा दें। मुझे अबू सलेम से बचा लो। क्या तुम्हें यह सब याद है? मैं चेतावनी देता हूं कि मुझे बदनाम मत करो। मुझसे पंगा लिया तो यूट्यूब पर तुम्हारा खुलासा कर दूंगा। इससे पहले सुशांत की मौत के बाद सोनू ने एक वीडियो में कहा था कि म्यूजिक इंडस्ट्री में भी कई माफिया हैं। जल्द ही म्यूजिक इंडस्ट्री से भी सिंगर या गीतकार के आत्महत्या की खबर सामने आ सकती है। सोनू ने वीडियो में कहाöमुझे उम्मीद है कि तुम्हें मरीना कुंवर का नाम याद होगा। मुझे नहीं पता कि उसने क्यों कदम पीछे खींचे। शायद मीडिया को पता है। मेरे पास उसका वीडियो अब तक है। अगर मुझसे उलझोगे तो मैं वह वीडियो यूट्यूब पर डाल दूंगा। धमाके के साथ डालूंगा। गौरतलब है कि मरीना कुंवर ने भूषण कुमार पर मीटू के तहत आरोप लगाए थे। इस बीच भूषण कुमार की पत्नी दिव्या कुमार खोसला ने सोनू पर झूठा कैंपेन चलाने का आरोप लगाते हुए उन्हें अहसान फरामोश बताया है और याद दिलाया है कि उनकी कंपनी टी-सीरीज ने ही उन्हें ब्रेक दिया था। आने वाले दिनों में और भी खुलासे हो सकते हैं। बॉलीवुड की गंदगी धीरे-धीरे सामने आ रही है। ग्लैमर की इस दुनिया में अंदरखाते क्या चल रहा है धीरे-धीरे सामने आ रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
पहली बार पेट्रोल से महंगा डीजल
घरेलू बाजार में डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। पता नहीं कहां जाकर रुकेंगे पेट्रोल-डीजल के दाम? दिल्ली में पहली बार है कि डीजल-पेट्रोल से महंगा हो गया है। 18वें दिन डीजल की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। पेट्रोल कल के बराबर है। 18 दिनों में डीजल 10.48 रुपए महंगा हुआ है और पेट्रोल 8.50 रुपए। डीजल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से ट्रांसपोर्ट की लागत में करीब 15 प्रतिशत इजाफा हो गया है और इस बढ़ी लागत का हवाला देकर ट्रांसपोर्टर भाड़ा बढ़ाने की तैयारी करने लगे हैं। ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ेगा। लॉकडाउन के कारण पहले से ही परेशान मजदूर, गरीब वर्ग की दुश्वारी और बढ़ जाएगी। मालूम हो कि पिछले 18 दिनों में डीजल की कीमत में 10.48 रुपए का इजाफा हुआ है। ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट वैलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन प्रदीप सिंघल बताते हैं कि डीजल के दाम बढ़ने से ही ट्रांसपोर्ट की लागत लगभग 15 प्रतिशत बढ़ गई है। सैनिटाइजेशन, टोल, इंश्योरेंस और मेंटिनेंस कॉस्ट में भी इजाफा हो गया है। वहीं कोरोना की वजह से ड्राइवरों को अतिरिक्त इंसेटिव देकर काम पर बुलाना पड़ रहा है। रिटर्न ट्रिप भी नहीं मिल रहा है। कुल मिलाकर ट्रांसपोर्ट की लागत करीब 20 प्रतिशत बढ़ गई है। ट्रांसपोर्ट की लागत में 65 प्रतिशत हिस्सा डीजल का होता है। इंदौर से चेन्नई तक अगर एक ट्रक (16 टन वाला) अभी 65 हजार रुपए में बुक होता है तो इसमें करीब 40 हजार रुपए का डीजल लग जाता है। ट्रांसपोर्टर के पास 25 हजार रुपए बचते हैं जिसमें मेंटिनेंस, ड्राइवर की सैलरी, कर्ज की किस्त और कमाई आदि का खर्च निकलता है। अब डीजल का खर्च आठ हजार बढ़कर 48 हजार रुपए हो जाएगा। अन्य खर्चों के लिए 17 हजार ही बचेंगे। लॉकडाउन की वजह से पहले ही माल की बुकिंग 50 प्रतिशत चल रही है। डीजल महंगा होने से खेती की लागत 10 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई है। जानकारों के मुताबिक पहले एक बीघा खेती की लागत करीब 4600 रुपए बैठ रही थी जो डीजल मूल्य वृद्धि से 400 रुपए बढ़कर पांच हजार रुपए के पार हो गई है। खेत की चार बार जुताई करनी पड़ती है। इसमें 10 से 12 लीटर डीजल खर्च होता है। खरपतवार साफ करने के लिए ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है। फसल की कटाई और निराई में डीजल काम आता है। इस तरह खेत की जुताई से लेकर फसल मंडी तक पहुंचाने तक डीजल उपयोग होता है। इसके मद्देनजर डीजल महंगा होने से किसान का मुनाफा बेहद कम हो गया है। उदाहरण के तौर पर एक बीघा जमीन में सात से आठ क्विंटल बाजरा पैदा होता है। मंडी में इसकी कीमत 14 हजार से 16 हजार रुपए मिलती थी। खेती से लेकर मंडी तक इसको पहुंचाने के लिए पहले किसान को लगभग 5100 रुपए खर्च करने पड़ते थे। अब 5500 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। डीजल की कीमतों से फल-सब्जी और अन्य जरूरत के सामानों की कीमतों में इजाफा होगा। पहले से ही गरीब, मजदूर व मध्यम वर्ग की टूटी कमर पर और भार पड़ेगा और हमारी सरकार यह सब शांति से होता देख रही है।
कोरोना महामारी से ज्यादा जानलेवा डिप्रैशन हो रहा है
पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। मगर इस वायरस से भी ज्यादा खतरनाक और जानलेवा साबित हो रहा है वह अवसाद (डिप्रैशन) जो कोरोना की वजह से बदली जीवनशैली और लॉकडाउन से आई आर्थिक मंदी की देन है। कुछ राज्यों में इसका घातक असर देखने को मिल रहा है। झारखंड में कोरोना का पहला केस 31 मार्च को सामने आया था। तब से अब तक इस महामारी से 15 लोगों की मौत राज्य में हुई है। जबकि 24 मार्च से हुए लॉकडाउन के बाद अब तक कुल 64 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। इसमें से 38 लोगों ने अप्रैल और मई के दौरान सुसाइड किया। जबकि जून माह में अब तक (24 जून तक) सिर्फ रांची में ही 26 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। यानि लॉकडाउन के दौरान जहां हर 1.6 दिन (करीब 36 घंटे) में एक व्यक्ति ने आत्महत्या की। वहीं अनलॉक-1 में रांची में हर 24 घंटे में एक सुसाइड का केस दर्ज हुआ। यदि लॉकडाउन से पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2020 के शुरुआती तीन महीने में हर 2.6 दिन में एक सुसाइड का केस दर्ज हुआ था। जनवरी, फरवरी और मार्च में कुल 35 आत्महत्या के केस राज्यभर में दर्ज हुए थे। संकेत स्पष्ट है कि लॉकडाउन के बाद बदली परिस्थितियों और बीमारी के डर के कारण लोगों में अवसाद यानि डिप्रैशन बढ़ा है और साथ ही राज्य में आत्महत्या के केस की संख्या भी बढ़ी है। सीआईपी के मनोचिकित्सक डॉ. संजय कुमार मंडल ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान डिप्रैशन से जूझ रहे करीब 12 हजार लोगों ने सीआईपी में कॉल करके अपनी समस्या बताई और उससे उबरने का तरीका पूछा। डॉ. मंडल बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान रोजाना 200-300 लोगों का फोन आता था। इनमें से 15-20 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्होंने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। वह आत्महत्या करना चाहते थे। एचओडी रिम्स सायकायट्रिस्ट डिपार्टमेंट के डॉक्टर अजय कुमार बाखला कहते हैं कि इस कोरोना संक्रमण काल में लॉकडाउन की वजह से लोगों में डिप्रैशन बढ़ा है। लंबे समय तक लोगों का घरों में एक साथ रहना हुआ है इसकी वजह से घरेलू विवाद बढ़े हैं। कई लोग बेरोजगार हुए हैं, घर में अकेलापन महसूस करते हैं। अगर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को सिर्फ दो मिनट रोक लिया जाए, उससे बात कर ली जाए तो ऐसी घटनाएं रुक सकती हैं।
Friday, 26 June 2020
रेडियो के जरिये भारत विरोधी प्रचार
भारत के पड़ोसी देश में चीन के पक्ष में माहौल बनता दिख रहा है। मैं नेपाल की बात कर रहा हूं। पहले देश की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ बैठक कर मांग की है कि नेपाली गोरखा नागरिक भारतीय सेना में शामिल न हों। नेपाल की एक प्रतिबंधित पार्टी ने मांग की है कि गोरखा नागरिक भारत की ओर से चीन के लिए लड़ाई न लड़ें। प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता बिक्रम चन्द ने काठमांडू में नेतृत्व से यह अपील की है कि गोरखा नागरिकों को भारतीय सेना का हिस्सा बनने से रोका जाए। पार्टी की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है, गलवान घाटी में भारतीय जवानों के मारे जाने के बाद भारत और चीन में बढ़ते तनाव के बीच भारत ने गोरखा रेजिमेंट के नेपाली नागरिकों से अपील की है कि वह अपनी छुट्टियां रद्द करके ड्यूटी पर वापस आएं। इसका मतलब है कि भारत हमारे नेपाली नागरिकों को चीन के खिलाफ सेना में उतारना चाहता है। भारत के लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाली भूभाग बताने वाले अपने दावे को मजबूत करने के लिए अब नेपाल भारत विरोधी दुप्रचार पर भी उतर आया है। इसके लिए वह एफएम रेडियो चैनलों का सहारा ले रहा है। सीमा के पास रहने वाले भारतीयों का कहना है कि नेपाल के चैनलों द्वारा प्रसारित गीतों या अन्य कार्यक्रमों के बीच में भारत लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को वापस किए जाने की मांग करने वाले भारत विरोधी भाषण दिए जा रहे हैं। वैसे इन चैनलों की क्षमता ज्यादा नहीं है, लेकिन इससे नेपाल की भारत के प्रति मंशा तो उजागर हो ही जाती है। यही नहीं, भारत-नेपाल के बीच चल रहे सीमा विवाद का असर बिहार पर पड़ने लगा है। पहले सीतामढ़ी में गोली विवाद हुआ और अब नेपाल बांधों के मरम्मत कार्य को रोक रहा है। इस कारण बिहार के एक बड़े हिस्से पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। बिहार सरकार इस संबंध में विदेश मंत्रालय को पत्र भी लिखने जा रही है। बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा कि गंडक बैराज के 36 द्वार हैं। जिनमें से 18 नेपाल में हैं। भारत के हिस्से में पड़ने वाले फाटक तथा बांध की सफाई और मरम्मत का काम हो चुका है। वहीं नेपाल के हिस्से में पड़ने वाले बांध का काम नहीं हो सका। नेपाल बांध मरम्मत के लिए सामग्री ले जाने से रोका जा रहा है। इस तरह की समस्या का सामना हम पहली बार कर रहे हैं। भारत को इस नई स्थिति से निपटना होगा। यह सब नेपाल के उस आश्वासन के खिलाफ है जो 2017 में वहां की देउबा सरकार ने भारत को दिया था। माना जा रहा है कि वहां की मौजूदा कम्युनिस्ट हमदर्द ओली सरकार ने चीन के दबाव में यह सब किया है। बताया जा रहा है कि चीन की मदद से ही उसकी सत्ता बची हुई है। अगर यह सच है तो नेपाल की ओली सरकार इसके बदले में चीन को उसके अहसान की कीमत अदा करना चाहेगी। यह चीन के हित में और भारत के अहित में होगा कि भारत को एक अन्य मोर्चे पर उलझाया जाए। भारत सरकार इस समस्या को कैसे टैकल करती है देखना होगा।
-अनिल नरेन्द्र
सस्ते का मोह छोड़ना होगा तभी ड्रैगन से लड़ पाएंगे
इस समय पूरे देश में चीन को आर्थिक आघात पहुंचाने की मांग और सोच जोर पकड़ चुकी है। हालांकि पिछले काफी समय से सोशल मीडिया पर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मांग चल रही थी पर जोर इसने तब पकड़ा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। उसी बात को आगे बढ़ाते हुए सरकारी मशीनरी आर्थिक मोर्चे पर चीन की घेराबंदी करने में जुट गई है। रेल मंत्रालय और संचार मंत्रालय ने दो बड़े कदम उठा दिए हैं। अब शहरी विकास मंत्रालय का नम्बर है, जो दिल्ली से मेरठ के बीच बन रहे एमआरपीसी परियोजना का ठेका चीनी कंपनियों को दिए जाने को चीनी उपकरण हटाने के निर्देश दिए हैं। बेशक आज पूरे देश में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग उठ रही है पर व्यावहारिक रूप से भारत किस हद तक चीनी प्रॉडक्ट्स को पूरी तरह दरवाजा दिखाने की क्या स्थिति में है? चीन से गहन आर्थिक रिश्तों के मद्देनजर चीनी उत्पादों का पूरी तरह बहिष्कार करना उतना आसान नहीं। इस पड़ोसी देश से कारोबारी रिश्ते पूरी तरह समाप्त करने में कुछ मुश्किलें हैं। भारत की सबसे ज्यादा निर्भरता इलैक्ट्रॉनिक मशीनरी पर है। साल 2019 में देश में कुछ इलैक्ट्रिकल उत्पादों का 34 प्रतिशत हिस्सा चीन से आया। भारत वहां से राडारों के लिए ट्रांसमिशन उपकरण, टीवी, कैमरा, माइक्रोफोन, हैंड फोन, लाउडस्पीकर समेत ढेरों चीजें खरीदता है। चीन की मोबाइल निर्माता कंपनी श्यामो भी भारत में नम्बर वन पर है। यह तो भारत में इतनी लोकप्रिय है कि इसने एक-चौथाई से अधिक बाजार पर कब्जा किया हुआ है। भारत ने पिछले साल अपनी फर्टिलाइजर इम्पोर्ट का दो प्रतिशत हिस्सा पड़ोसी देश चीन से आयात किया था। भारत फर्टिलाइजर में इस्तेमाल होने वाला एक अहम तत्व डायमोनियम फॉस्फेट चीन से लेता है। यूरिया को भी चीन से खरीदना पड़ता है। पिछले साल भारत ने 13.87 अरब डॉलर (10 खरब, 58 अरब रुपए से ज्यादा) के मूल्य के न्यूक्लियर रिएक्ट और बायलर्स चीन से मंगाए। मेडिकल इक्विपमेंट की जहां तक बात है पिछले साल मेडिकल इक्विपमेंट के कुल आयात का दो प्रतिशत चीन से आया। भारत पड़ोसी देश पर पीपीई, वेंटिलेटर्स, एन-95 मास्क तथा दूसरे मेडिकल किट के लिए निर्भर है। हालांकि अब पीपीई किट और मास्क का उत्पादन देश में जोरों से शुरू हो चुका है। ऑटो पार्ट्स के कुछ इम्पोर्ट का दो प्रतिशत भाग पिछले साल चीन से आया। भारत में भी बनने वाली कारों के कई हिस्से चीन से ही इम्पोर्ट होते हैं। ड्राइव ट्रांसमिशन, स्टीयरिंग, इलैक्ट्रिकल्स, इंटीरियर्स, ब्रेक सिस्टम और इंजन के पार्ट्स चीनी कंपनियां सप्लाई करती हैं। भारत से चीन को निर्यात होने वाला आधा सामान कच्चा माल होता है। वहीं चीन से आयातित अधिकांश सामान विर्निमित होता है। कुछ उत्पाद तो ऐसे हैं, जिनका कच्चा माल चीन हमसे मंगवाकर उनसे बने उत्पाद हमें ही बेचता है। मसलन पिछले साल करीब 3000 करोड़ रुपए का लोहा व स्टील भारत ने चीन से मंगवाया और बदले में स्टील से बने हजार करोड़ रुपए के उत्पाद निर्यात किए। चीन द्वारा निर्यात की जाने वाली शीर्ष 10 वस्तुओं में से नौ भारत के कच्चे माल से बनी होती हैं। भारत दवा निर्यात में शीर्ष देशों में से एक है। लेकिन कच्चे माल के लिए चीन पर भारत निर्भर है। भारत में दवा निर्माता कंपनियां 70 प्रतिशत एपीआई यानि एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स चीन से मंगाती है। 2018-19 में 240 करोड़ रुपए के एपीआई चीन से आयात हुए। 75 प्रतिशत एंटीबायोटिक्स बाजार में चीन का कब्जा है। हमसे कच्चा माल मंगाकर हमें ही महंगे उत्पाद बेचता है। जब-जब चीन के साथ भारत का गतिरोध बढ़ता है तो चीनी सामानों के बहिष्कार का माहौल बनने लगता है। लेकिन हकीकत में सस्ते श्रम और व्यापक स्तर पर विनिर्माण के बूते चीन ने सुनियोजित ढंग से दुनियाभर के बाजारों में कम कीमतों के उत्पादों से कब्जा जमाया है। यही वजह है कि जिन देशों में ड्रैगन ने पांव पसारे, वहां स्थानीय कंपनियों को मुकाबले से बाहर कर दिया। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम चीन से निर्भरता खत्म कर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकते हैं। लेकिन इसमें लंबा वक्त लगेगा। सरकार को दृढ़ शक्ति का प्रदर्शन करना होगा और तमाम दवाबों के बावजूद आत्मनिर्भर नीति पर चलने के लिए नीतियों में संशोधन करना होगा और भारतीय उपभोक्ताओं को सस्ते का मोह भी छोड़ना होगा।
Thursday, 25 June 2020
आईएसआई ने भेजा ग्रेनेड लदे ड्रोन को
बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में शनिवार को एक आधुनिक राइफल और कुछ छोटे बमों से लैस एक ड्रोन गिरा दिया। यह ड्रोन पाकिस्तान से आया था। अधिकारियों ने बताया कि ड्रोन में एक अमेरिकी राइफल, दो मैगजीन, 60 गोलियां और सात हैंड ग्रेनेड रखे गए थे जिन्हें पाक एजेंटों को देना था। जम्मू-कश्मीर में यह पहली घटना है जब बीएसएफ ने हथियारों और विस्फोटों से लैस ड्रोन को गिराया है। साथ ही ड्रोन से क्षेत्र में हथियारों की तस्करी रोकने की पाक की कोशिश नाकाम कर दी। बीएसएफ का दावा है कि ड्रोन को पाकिस्तान की ठाकुरपुर पोस्ट से उड़ाया गया था। बीएसएफ के जम्मू फ्रंटियर के आईजी ने एक न्यूज चैनल को बताया कि बिना आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के समर्थन के पाकिस्तानी सीमा से इतना बड़ा ड्रोन उड़ाना और हथियारों की इतनी बड़ी खेप भारत पहुंचाना नामुमकिन है। सेना के अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तानी रेंजर्स ने सुबह आठ बजकर 50 मिनट पर हीरानगर सेक्टर में बछिया चौकी पर गोली चलाई। अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तैनात बीएसएफ ने जवाबी कार्रवाई नहीं की। स्थिति पर करीबी नजर रखी जा रही है। ड्रोन से यूएस में बनी एम-4 कार्बाइन मिली है। यह कार्बाइन वही हथियार है, जिनका इस्तेमाल अमेरिका की नाटो सेना तालिबान के खिलाफ ऑपरेशंस के दौरान करती रही है। कश्मीर में बीते सालों में मारे गए कई आतंकी कमांडरों के पास से ऐसी बंदूकें मिली हैं। 29 सितम्बर 2019 को पाकिस्तान ने ड्रोन की मदद से हथियारों का जखीरा अमृतसर के पालम उतारा था। पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार यह ड्रोन काफी कम ऊंचाई पर उड़ाए जाते थे। इसलिए इनके बारे में किसी को पता नहीं चल सका। जो ड्रोन का इस बार इस्तेमाल आईएसआई ने किया वह 37 किलो वजन उठा सकता है। 17.5 किलो है ड्रोन का वजन। इसमें छह पंखे लगे हुए थे। यह ड्रोन छह किलोग्राम तक का हथियार लेकर आया था। आठ फुट चौड़े ड्रोन के ब्लेड हैं। पाक रेंजर्स ऐसे ड्रोनों का इस्तेमाल करते हैं। यह ड्रोन भारतीय क्षेत्र में 250 मीटर अंदर मार गिराया गया। आईएसआई की एक और चाल नाकाम हुई।
-अनिल नरेन्द्र
मरीज भर्ती करने से कतराते सरकारी अस्पताल
लोकनायक अस्पताल के रिसेप्शन पर एक बुजुर्ग भर्ती होने पहुंचा। मौजूद स्टाफ ने पूछा क्या आप पॉजिटिव हैं। हां में जवाब मिलने पर स्टाफ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बुजुर्ग खाली कुर्सी पर बैठने लगा तो स्टाफ ने कड़क आवाज में रोकते हुए कहाöबाबा वहां नहीं बैठना है। आप इंतजार करें, डॉक्टर को बुला रहे हैं। यह दिल्ली में कोविड-19 का 2000 बैड वाला सबसे बड़ा अस्पताल है। डिस्प्ले बोर्ड बता रहा है कि अभी 708 मरीज भर्ती हैं। सातवें फ्लोर पर भर्ती शिव सिंह यादव ने वीडियो बनाकर भेजा है। वह बताते हैं कि वह तीन दिन से भर्ती हैं। उन्हें कोई डॉक्टर देखने नहीं आया। दूसरे बैड पर बैठे एक अन्य मरीज से बात करते हुए बताते हैं कि 10 दिनों से कोई साफ-सफाई नहीं हुई है, सुबह एक सफाई कर्मी झाड़ू हिलाकर चला जाता है। बाथरूम में पानी नहीं है। अगर ऐसे ही रहना था तो घर में रह लेते। दरअसल दिल्ली के अस्पतालों में संक्रमण का डर स्वास्थ्य कर्मियों में भी इस कदर बैठ गया है कि वह बेहद गंभीर मरीजों को छोड़कर बाकी किसी की ओर खास ध्यान नहीं देते। अकेले एम्स में स्टाफ के 550 से ज्यादा लोगों के पॉजिटिव होने की खबर है। इसी तरह एलएनजेपी में करीब 150, जीटीबी में 50 और हिन्दुराव अस्पताल में 100 और निजी अस्पताल सर गंगाराम में 350 स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हो चुके हैं। लॉकडाउन खुलने वाले दिन यानि आठ जून को दिल्ली में 29,943 मामले सामने आ चुके थे जो अब 50 हजार से ज्यादा पहुंच गए हैं। दूसरी तरफ दिल्ली में अकेले 22 हजार कोरोना पॉजिटिव मरीज होम क्वारंटीन हैं। अप्रैल में नौ कंटेनमेंट जोन थे जो अब बढ़कर 243 हो चुके हैं। प्रशासन का कहना है कि जिसमें सामान्य लक्षण हैं और घर पर दवा लेकर सही हो सकते हैं। मौजपुर के संतोष वरनवाल बताते हैं कि उनके पिता हरिनारायण को सांस लेने में परेशानी हुई, वह उन्हें लेकर चार दिनों तक आठ प्रमुख अस्पतालों में चक्कर लगाते रहे। अंत में पैरवी से एम्स में भर्ती हुए। 16 जून को उनकी मौत हो गई। बचे हुए परिवार के आठ में से सात लोग संक्रमित हैं। दिल्ली में 12 प्रतिशत डॉक्टर-नर्स संक्रमित, स्टाफ की कमी के चलते मरीज भर्ती करने से कतरा रहे हैं दिल्ली के अस्पताल। इस संबंध में दिल्ली डायरेक्टर जनरल हैल्थ सर्विसिंग महानिदेशक नूतन मुंडेजा अस्पतालों में भर्ती न करने की बात नकारती हैं। वह कहती हैं कि 113 सरकारी व निजी अस्पतालों में करीब 11 हजार बैड हैं। इनमें पांच हजार खाली हैं। फिर भर्ती क्यों नहीं करेंगे? आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर विनय अग्रवाल बताते हैं कि लोगों को भर्ती न करने की प्रमुख वजह स्टाफ की कमी हो सकती है। सुविधाओं की कमी होना, स्टाफ द्वारा अच्छा व्यवहार न करने की वजह से भी लोग सरकारी अस्पताल जाने से हिचकिचाते हैं। दूसरी तरफ दिल्ली में श्मशान पहुंचने वाले शव दोगुना हो गए हैं।
भारत-चीन विवाद में रूस किसके साथ होगा?
भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तीन दिवसीय रूस यात्रा पर हैं। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर चार महीने तक यात्रा पर लगे प्रतिबंध के बाद किसी वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री की यह पहली विदेश यात्रा है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की यह रूस यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब लद्दाख में चीन के साथ भारत का गतिरोध बरकरार है। सोमवार को मॉस्को रवाना होने से पहले राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर लिखा था कि तीन दिवसीय यात्रा पर मॉस्को रवाना हो रहा हूं। यह यात्रा भारत-रूस रक्षा और सामरिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए बातचीत का अवसर देगी। रक्षामंत्री के इस दौरे को भारत की सैन्य क्षमता बढ़ाने की एक कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है। कई अखबारों ने लिखा है कि लद्दाख एलएसी पर चीन के साथ जारी कशीदगी के दरम्यान भारत के रक्षामंत्री अपने हथियारों को पूरी तरह से कारगर बनाने और मारक क्षमता को बढ़ाने के लिए रूस गए हैं ताकि चीन को हड़काया जा सके। मॉस्को में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ल ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि भारत बहुत लंबे समय से कई महत्वपूर्ण रक्षा सौदों को टालता आ रहा है। कभी कहा जाता है कि पैसे नहीं हैं, कभी कोई अन्य कारण बता दिया जाता है। जैसे मल्टी-यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों के मामले में हुआ। रूस ने कहा था कि 60 हेलीकॉप्टर तैयार हैं ले लीजिए और 140 हेलीकॉप्टर हम इंडिया में बना देंगे। लेकिन भारतीय ब्यूरोक्रेसी सौदेबाजी में लग गए, कहने लगे कि तैयार हेलीकॉप्टर 40 ही लेंगे, फिर कीमत पर चर्चा चलती रही और 2014 से अब तक इन पर निर्णय नहीं हो पाया। राजनाथ सिंह के रूस रवाना होने के बाद से ही एस-400 डिफेंस सिस्टम की चर्चा हो रही है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि रूस ने इस डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी डेट आगे खिसका दी है जो भारत के लिए चिन्ता का विषय है। रूस में बनने वाले एस-400 ः लांग रेंज डिफेंस टू एयर मिसाइल सिस्टम को भारत सरकार खरीदना चाहती है। यह मिसाइल जमीन से हवा में मार कर सकती है। एस-400 को दुनिया का सबसे प्रभावी एयर डिफेंस सिस्टम माना जाता है। इसमें कई खूबियां हैं। जैसे एस-400 एक साथ 36 जगहों पर निशाना लगा सकता है। चीन के पास यह डिफेंस सिस्टम पहले से है जो उन्हें रूस से ही प्राप्त हुआ है। पर भारत को यह डिफेंस सिस्टम मिलने में देरी क्यों? इसे समझाते हुए विनय शुक्ल ने कहाöअमेरिका ने धमकी दी थी कि अगर भारत ने रूस से यह सिस्टम खरीदा तो वह भारत पर प्रतिबंध लगाएगा। इससे भारतीय बैंक डर गए, खासकर वो बैंक जिनका पैसा अमेरिका से होने वाले व्यापार में लगा है। आज तक भारत और रूस का संबंध ऐतिहासिक रहा है और भारत का अगर किसी देश से झगड़ा हुआ तो रूस भारत की मदद के लिए आगे आया है। पर चीन के मामले में क्या रवैया अख्तियार करता है यह राजनाथ सिंह के वर्तमान दौरे पर स्पष्ट हो सकता है। सोशल मीडिया पर एक तबका विश्वास करता है कि भारत के कहने पर रूस चीन को धमका सकता है और उसे नियंत्रित कर सकता है। कुछ अन्य कहते हैं कि रूस को खड़े होने के लिए चीन की सहायता की बड़ी सख्त जरूरत है। रूस की आर्थिक हालत खराब है जिसमें चीन से उसे मदद चाहिए। ऐसे में भारत को खुली आंखों से यह देखना चाहिए कि रूस के लिए भारत भले ही एक महत्वपूर्ण साथी हो पर वो भारत का एकतरफा समर्थन करने की स्थिति में नहीं है।
Wednesday, 24 June 2020
सुशांत राजपूत के पेशेवर दुश्मनों की हो रही है पहचान
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पेशेवर दुश्मनों की पहचान की जा रही है। खुदकुशी मामले में जांच कर रही मुंबई पुलिस ने यशराज फिल्म्स को पत्र लिखकर राजपूत के साथ किए गए अनुबंध का ब्यौरा मांगा है। एक अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सुशांत की दोस्त अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती ने गुरुवार को पुलिस के सामने दिए अपने बयान में बताया था कि सुशांत ने यशराज फिल्म्स के साथ अपना अनुबंध खत्म कर दिया था और उन्हें भी इस बैनर के साथ काम खत्म करने को कहा था। काय पो छे, एमएस धोनी ः द अन्टोल्ड स्टोरी और छिछोरे जैसी फिल्मों में काम कर चुके 34 साल के सुशांत रविवार को अपने बांद्रा स्थित अपार्टमेंट में फांसी से लटके मिले थे। अधिकारी ने बताया कि पुलिस इस मामले में पेशेवर दुश्मनी सहित अनेक कोणों से जांच कर रही है। उन्होंने बताया कि बांद्रा पुलिस ने इस मामले में अब तक सुशांत के परिजनों, रिया चक्रवर्ती और उनके दोस्तों तथा कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबड़ा समेत 13 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पेशेवर कोण के मद्देनजर पुलिस ने कुछ बड़े प्रॉडक्शन हाउस से पूछताछ के लिए सम्पर्क करना शुरू किया है। सुशांत सिंह राजपूत को खुदकुशी के बाद सोशल मीडिया पर नेपोटिज्म वर्सेज आउट साइडर को लेकर बहस छिड़ गई है। अब इस मुद्दे ने लीगल मोड़ ले लिया है। बिहार के मुज्जफरपुर के एडवोकेट सुधीर कुमार ओझा ने सुशांत की मौत पर सवाल उठाते हुए फिल्म मेकर करण जौहर, संजय लीला भंसाली, सलमान खान, एकता कपूर समेत बॉलीवुड की आठ दिग्गज हस्तियों के खिलाफ केस दर्ज कराया है। सुधीर कुमार ने कहाöमैंने सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में मुज्जफरपुर कोर्ट में संजय लीला भंसाली, करण जौहर, सलमान खान, एकता कपूर समेत आठ लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306, 504 और 506 के तहत केस दर्ज कराया है। ओझा द्वारा दायर किए गए परिवाद पत्र में करण जौहर, आदित्य चोपड़ा, साजिद नाडियाड बाला, सलमान खान, संजय लीला भंसाली, भूषण कुमार, एकता कपूर तथा निर्माता-निर्देशक दिनेश विजान पर आरोप लगाया है कि साजिश के तहत यह लोग सुशांत की फिल्में रिलीज नहीं होने दे रहे थे। इनके कारण फिल्म से जुड़े कार्यक्रमों में सुशांत को आमंत्रित भी नहीं किया जाता था।
-अनिल नरेन्द्र
15 जून रात झड़पों की असली कहानी, एक नहीं तीन बार हुई झड़पें
गलवान घाटी में 15 जून की रात को हुई खूनी झड़प पर नवभारत टाइम्स की पूनम पांडे की एक सनसनीखेज रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट के अनुसार 15 जून की झड़प लगातार छह-सात घंटे नहीं चली बल्कि इस दौरान तीन झड़पें हुईं। पहली झड़प में भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों की ज्यादातर हाथापाई हुई। दूसरी झड़प में चीनी सैनिकों ने कंटीले रॉड का भी इस्तेमाल किया और तीसरी झड़प में भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार जाकर अपने शहीद सीओ और जवानों का बदला लिया। झड़प में दोनों तरफ के सैनिक नीचे नदी में गिरे और चीन का एक कमांडिंग ऑफिसर सहित कुछ सैनिक भी भारतीय सेना के कब्जे में थे। बता दें कि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री और भूतपूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने रविवार को एक टीवी साक्षात्कार में कहा कि 15 जून की हिंसक झड़प में हमारे 20 सैनिक शहीद हुए तो चीन के भी कम से कम दोगुना सैनिकों की मौत हुई। भारतीय फौज द्वारा बंधक बनाए गए चीनी कमांडर व सैनिकों को गुरुवार शाम को तब छोड़ा गया जब चीन ने अपने कब्जे में लिए 10 भारतीय सैनिकों को छोड़ा। यानि एक्सचेंज ऑफ प्रिजनर्स हुआ। सूत्रों के मुताबिक 15 जून की शाम को करीब सात बजे कर्नल संतोष बाबू और उनके साथ 35-40 सैनिक गलवान घाटी में पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 पर पहुंचे तो देखा कि चीनी सैनिकों का एक टेंट वहां पर है, जबकि बातचीत के हिसाब से उसे हटाया जाना चाहिए था। जब टेंट हटाने को कहा गया तो चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया। इसके बाद हाथापाई हुई और कुछ पत्थरबाजी भी। इस पहली झड़प में भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों पर भारी पड़े। कुछ देर बाद यह झड़प शांत हुई। इसके बाद भारतीय सेना की दूसरी टीम भी वहां बुला ली गई क्योंकि इसका अंदेशा था कि चीनी सैनिक और भी कुछ हरकत कर सकते हैं। इस बीच चीन के सैनिकों की भी एक बड़ी टीम आ गई। फिर शुरू हुई दूसरी खूनी झड़प। इस झड़प में सीओ कर्नल संतोष कुमार बाबू सहित कुछ जवान नीचे नदी में जा गिरे। चीन की तरफ से भी काफी संख्या में सैनिक बुरी तरह घायल हुए और नदी में गिरे। यह दूसरी झड़प जब रुकी तो भारत और चीन दोनों ने अपने सैनिकों को ढूंढना शुरू किया। कुछ सैनिक जख्मी थे जिन्हें निकाला गया। सीओ संतोष बाबू की बॉडी देखकर पलटन बौखला गई। अब यह बस झड़प नहीं थी बल्कि पलटन के लिए नमक और निशान का सवाल था। सूत्रों के मुताबिक अपने सीओ के शहीद होने की खबर सुनकर पलटन ने बिना वक्त गंवाए चीनी सैनिकों से बदला लेने की ठानी और फिर 16 बिहार रेजिमेंट के जवान कंपनी कमांडर के नेतृत्व में निकल पड़े। उन्होंने चीनी सैनिकों से उनके इलाके में जाकर ही बदला पूरा किया। 16 बिहार रेजिमेंट के सैनिकों और 3-फील्ड रेजिमेंट के गनर ने नियंत्रण रेखा पार की और चीनी सैनिकों पर टूट पड़े। भारतीय सैनिकों की चीनी सैनिकों पर यह स्ट्राइक आधी रात के बाद हुई। इसमें भी दोनों तरफ के कई सैनिक नदी में गिरे। भारतीय सेना के 10 सैनिक जहां चीन के कब्जे में रहे वहीं चीनी सेना के एक कमांडिंग ऑफिसर सहित कुछ जवान भी भारतीय सेना के कब्जे में थे जिन्हें गुरुवार शाम को छोड़ा गया। हालांकि सेना के एक अधिकारी ने कहा कि यह एक दूसरे के सैनिकों को बंदी बनाए जाने वाला मामला नहीं थी। दोनों के कुछ सैनिक एक दूसरे के इलाके में थे, कुछ तो उसी रात वापस भेज दिए गए जबकि कुछ को बाद में वापस भेजा गया। इस दौरान उन्हें मेडिकल हेल्प भी दी गई। केंद्र सरकार मंत्री और पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह ने भी कहा है कि चीन के सैनिक भी हमारे पास थे लेकिन यह बंदी बनाने जैसी स्थिति नहीं था। दोनों देशों ने एक दूसरे के सैनिक लौटाए हैं। उन्होंने दावा किया कि चीन के दोगुना सैनिक मारे गए थे। उन्होंने कहा कि 1962 में भी चीन ने अपने मरने वाले सैनिकों की संख्या नहीं बताई थी। बेशक चीन सच्चाई छिपाता रहे पर सारी दुनिया जानती है कि इस बार भारतीय सेना ने चीन के दांत खट्टे करा दिए हैं और ईंट का जवाब पत्थर से दिया है। 2020 का भारत 1962 का भारत नहीं है। जय जवान, जय हिन्द।
Tuesday, 23 June 2020
एक साथ तीन पड़ोसियों ने खोला मोर्चा
देश के इतिहास में संभवत यह पहला मौका है जब एक साथ तीन पड़ोसी देशों के साथ सैन्य तनाव चल रहा है। पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर लगातार स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और तीन महीनों से अकारण ही पाकिस्तान की तरफ से किसी न किसी कश्मीर के सैक्टर में गोलीबारी की जा रही है। चीन के साथ लद्दाख से लेकर सिक्किम तक की लंबी सीमा पर कई सैक्टर पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। लिपुलेख, कालापानी के साथ सीमा विवाद न सिर्फ चरम पर पहुंच गया है बल्कि पिछले शुक्रवार को नेपाली सैन्य बल ने सारी परंपराओं को दरकिनार करते हुए सीतामढ़ी सीमा पर भारतीयों पर गोलीबारी कर दी जिसमें एक भारतीय की मौत हो गई और दो भारतीय गंभीर रूप से घायल हो गए। इस विवाद के बीच बुधवार को नेपाल के आर्मी चीफ उस कालापानी इलाके में पहुंचे जिसे भारत और नेपाल दोनों अपना मानते हैं। नेपल के आर्मी चीफ पूर्ण चन्द थापा कालापानी से 13 किलोमीटर दूर पूर्व की तरफ फांगइन तक गए। उनके साथ वहां की बॉर्डर सिक्यूरिटी देख रहे सशस्त्र प्रहरी बल के प्रमुख भी थे। नेपाल सशस्त्र प्रहरी बल ने फांगइन में 13 मई को ही नई पोस्ट बनाई है। जानकारों की मानें तो भारतीय कूटनीति की कड़ी परीक्षा का समय है जब उसे अपने तीन पड़ोसियों के साथ-साथ अलग-अलग स्तर पर विमर्श करना पड़ रहा है। भारतीय कूटनीतिकारों के मुताबिक चीन के साथ खूनी संघर्ष होना कई मायनों में चिन्ताजनक है। सबसे पहली बात तो यह है कि भारतीय सेना को अब पाकिस्तान से लगे पूर्वी पाकिस्तान की तरफ अब चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर भी ज्यादा सतर्क रहना होगा। गलवान क्षेत्र में अंतिम बार खूनी झड़प 1975 में हुई थी जब चीनी सैन्य बल ने छिपकर भारतीय सैन्य बल पर हमला किया था। तब असम राइफल्स के चार जवान शहीद हुए थे। दूसरी तरफ पूर्वोत्तर राज्यों के साझा चीन के साथ लगी सीमा पर वर्ष 1967 के बाद से कोई खूनी झड़प नहीं हुई है। चीन जिस तरह से समूचे पश्चिम सैक्टर में आक्रामक होता जा रहा है उसे देखते हुए भारतीय सेना के रणनीतिकारों को अब ज्यादा सक्रिय प्लानिंग करनी होगी। एक साथ तीन मोर्चों पर भारतीय सेना का लड़ना आसान नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
केजरी के तीखे तेवर देख एलजी ने वापस लिया फैसला
दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों के पांच दिन क्वारंटीन के फैसले को लेकर उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच चल रही खींचतान शनिवार शाम को खत्म हो गई। मुख्यमंत्री केजरीवाल के विरोध के बाद उपराज्यपाल अनिल बैजल ने कोरोना संक्रमित मरीजों के पांच दिन क्वारंटीन के फैसले को 24 घंटे के अंदर वापस ले लिया। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने कोविड-19 के मरीजों को पांच दिन तक संस्थागत क्वारंटीन में रखने का आदेश दिया था लेकिन उपराज्यपाल के आदेश का केजरीवाल सरकार ने जमकर विरोध कर दिया और इसको लेकर हाई कोर्ट भी पहुंच गई। केजरीवाल के आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें पांच दिन संस्थागत क्वारंटीन से गुजरने के लिए कोविड-19 पॉजिटिव मामलों को अनिवार्य किया गया है। उधर उपराज्यपाल के फैसले वापस लेने के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट पर लिखा कि होम आइसोलेशन को लेकर एलजी साहब की जो भी आशंकाएं थीं एसडीएम की बैठक में सुलझा ली गई हैं और अब होम आइसोलेशन की व्यवस्था जारी रहेगी। हम इसके लिए एलजी साहब का आभार व्यक्त करते हैं। हमारे मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में हम दिल्ली वालों को कोई तकलीफ नहीं होने देंगे। मुख्यमंत्री का कहना था कि एलजी के आदेश से अस्पतालों का बोझ बढ़ेगा और लोग जांच कराने के लिए आगे नहीं आएंगे। किसी विषय पर असहमति की स्थिति में मिलकर मंथन करके सही निर्णय लिया जाना चाहिए। डीडीएमए की बैठक में इसकी झलक भी दिखी। किसी विषय पर विवाद और अविश्वास का खामियाजा दिल्लीवासियों को ही भुगतना पड़ेगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय की आशंका भी निराधार नहीं है। यह सही है कि घनी आबादी वाले इलाके और छोटे घरों में होम क्वारंटीन आसान नहीं है। इससे परिवार व आसपास के लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। दिल्ली सरकार का भी यह तर्क वाजिब है कि होम क्वारंटीन की व्यवस्था खत्म करने से गंभीर रूप से बीमार लोगों के इलाज में दिक्कत होगी। अब डीडीएमए के फैसले के बाद इसे लेकर विवाद खत्म हो गया है। सिर्फ गंभीर रूप से बीमार या घर में क्वारंटीन की व्यवस्था संभव नहीं होने वाले मरीजों को ही अस्पताल या सरकारी क्वारंटीन सेंटर में जाना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री का भ्रमित करने वाला बयान
चीन से लगी भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद से सरकार और विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के बीच शुरू हुई बहस और तेज हो गई है। दरअसल चीन से जारी तनातनी पर चर्चा के लिए बुलाई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कहा कि न कोई हमारी सीमा में घुसा है और न ही हमारी कोई चौकी किसी के कब्जे में है। हमारी एक इंच जमीन की तरफ कोई आंख उठाकर भी नहीं देख सकता। सरकार ने सेना को खुली छूट दी है। प्रधानमंत्री को कायर और डरपोक बताने के बाद राहुल गांधी ने पुन एक ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री द्वारा शुक्रवार को सर्वदलीय बैठक में दी गई उस जानकारी जिसमें उन्होंने बताया था कि चीन की सेना न तो भारतीय भूभाग में किसी प्रकार का अतिक्रमण कर सकी है और न ही चीनी सेना ने हमारे किसी सैनिक को बंधक बनाया है, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की इस जानकारी पर पुन सवाल खड़ा किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को लगातार चौथे दिन सरकार पर हमला करते हुए कहा कि क्या सरकार ने चीन के सामने सरेंडर कर दिया है? उन्होंने सरकार से यह मांग की कि गलवान घाटी पर चीन जो दावा कर रहा है उसके बारे में स्थिति स्पष्ट करें। बता दें कि खूनी संघर्ष के बाद चीन ने फिर दावा किया है कि गलवान घाटी हमारी है। राहुल ने कहा कि गलवान घाटी भारत का अभिन्न हिस्सा है। सरकार को सामने आकर देश की जनता को बताना चाहिए कि चीन का दावा निराधार है। राहुल ने पूछा कि जमीन चीन की है तो हमारे सैनिक क्यों मरे? क्या हम चीन के क्षेत्र में घुसे थे या फिर वो हमारे क्षेत्र में आए थे? आखिर हमारे 20 सैनिक मारे गए हैं। सरकार बताए कि असलियत में स्थिति क्या थी। किन परिस्थितियों में चीनियों ने हमारे सैनिकों को मारा? कैसे हमारे 10 जवान चीन ने कब्जे में किए? राहुल ने पूछा कि जमीन चीन की है तो हमारे सैनिक क्यों मारे गए? सरकार इसका जवाब दे। उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री का यह बयान कि भारतीय सीमा में कोई विदेशी नहीं है यदि बयान सही है तो पांच या छह मई को क्या हुआ? क्यों भारत के 20 सैनिक शहीद हुए? इतने दिनों से दोनों देशों के सैन्य अधिकारी किस चीज को लेकर वार्ता कर रहे थे? वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम ने भारत-चीन सीमा विवाद पर प्रधानमंत्री के बयान पर तीखा हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के बयाने के बाद यह सवाल उठता है कि क्या उन्होंने चीन को क्लीन चिट दे दी है? चिदम्बरम ने कहा कि घुसपैठ को लेकर प्रधानमंत्री के बयान से चीन को ही फायदा हुआ है और एक तरीके से यह चीन के उस दावे की पुष्टि करने जैसा है जिसमें चीन कहता है कि उसने भारत की सीमा पर कोई घुसपैठ नहीं की। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अंग्रेजी में ट्वीट करके कहा कि चीनी घुसपैठ के खिलाफ देश सरकार के साथ खड़ा है लेकिन जिस घटना में हमारे सैनिक शहीद हुए, क्या वह घुसपैठ थी? क्या गलवान घाटी भारतीय है या नहीं? उन्होंने कहा कि हमें स्पष्टीकरण नहीं चाहिए बल्कि सच का पता होना चाहिए। इससे पहले उन्होंने हिन्दी में ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री जी के भारत-चीन एलएसी कथन से भ्रमित होकर जनता पूछ रही है कि यदि चीन हमारे इलाके में नहीं घुसा तो फिर हमारे सैनिक किन हालातों में शहीद हुए? क्या इस कथन से चीन को क्लीन चिट दी जा रही है?
Sunday, 21 June 2020
हरिद्वार कुंभ पर छाये कोरोना संकट के बादल
महामारी के कारण उत्तराखंड की चार धाम यात्रा चौपट हो गई है। अगले साल जनवरी में लगने वाले हरिद्वार के कुंभ मेले पर भी सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं। 22 मार्च से उत्तराखंड में पूर्ण बंदी के चलते कुंभ के निर्माण कार्य लगभग बंद पड़े हैं। यह काम 30 नवम्बर तक पूरे होने थे परन्तु कोरोना संकट के कारण श्रमिक अपने राज्यों में लौट गए हैं। यहां जो थोड़े बहुत श्रमिक बचे हैं उनसे कुंभ का काम पूरा होते नहीं दिख रहा है। दूसरी ओर कुंभ प्रशासन आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है। कुंभ के जितने स्थायी कार्य हुए थे वह अब उसी हालत में पड़े हैं। हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण नारसन सीमा से देहरादून तक बंद पड़ा है। बिजली की लाइन भूमिगत डाली जा रही थी वह काम भी बंद पड़ा है। घरों मे ंकुंभ से पहले-पहले पाइप लाइन के जरिये रसोई गैस की सप्लाई किए जाने का काम भी बंद है। कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत ने पिछले दिनों कुंभ के स्थायी कार्यों को शुरू कराने का प्रयास किया था परन्तु निर्माण सामग्री और श्रमिकों की समस्या के चलते यह कार्य गति नहीं पकड़ सका जबकि कुंभ मेला प्रशासन इस साल 31 दिसम्बर तक कुंभ के सभी स्थायी कार्य कराने के लिए तो तैयार है परन्तु सबसे बड़ी समस्या निर्माण सामग्री और मजदूरों को लेकर आ रही है। कोरोना के कारण लोग भयभीत हैं। कुंभ मेले को लेकर असमंजस की स्थिति है। यदि जल्दी ही हालात सामान्य नहीं होते तो कुंभ 2021 पर कोरोना का ग्रहण लग सकता है। हरिद्वार में दिसम्बर से लेकर अप्रैल तक साधु डेरा डालते हैं। उसके लिए अखाड़े आश्रमों को करोड़ों की धनराशि की जरूरत होती है। अखाड़ों के लिए पांच महीने तक हरिद्वार में साधुओं के साथ डेला डालना बहुत ही जोखिमभरा काम है। कोरोना संकट से पहले कुंभ प्रशासन ने हरिद्वार में चार महीने में कुंभ के दौरान 12 करोड़ यात्रियों के आने का अनुमान लगाया था। उसी के हिसाब से कुंभ की तैयारियां की जा रही थी। मगर कोरोना ने कुंभ के कामों को थामकर रख दिया है। उत्तराखंड के मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि नए हालात के मद्देनजर कुंभ के बारे में जल्द ही राज्य सरकार पर्यटन से संबंधित उच्च स्तरीय बैठक करने जा रही है जिसमें कुंभ सहित कई अहम फैसले किए जा सकते हैं। उम्मीद की जाती है कि कोरोना संकट जल्द हल हो जाएगा और तय कार्यक्रम के अनुसार कुंभ 2021 जरूर होगा।
-अनिल नरेन्द्र
बिहार रेजिमेंट के जांबाजों पर देश को गर्व है
चीन की ड्रैगन सेना के साथ खूनी संघर्ष में बिहार रेजिमेंट के जांबाजों ने देश का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया। लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार रात घुसी चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) पीएलए को सीमा से खदेड़ने के साथ ही भारतीय सेना की बिहार रेजिमेंट का उनसे टकराव हुआ। इस दौरान कर्नल बी. संतोष बाबू एवं दो जवान कुंदन ओझा और पलानी ने अपनी शहादत दी। कर्नल संतोष 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर थे, इस वक्त 16 बिहार रेजिमेंट ही एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तैनात है और चीनी सैनिकों के सामने डटी है। 1941 में बनी इस रेजिमेंट ने इससे पहले भी चीन के साथ युद्ध में अपनी जांबाजी दिखाई थी। कारगिल के युद्ध में सबसे पहले मोर्चा पर वही रेजिमेंट थी। कर्नल बी. संतोष भले बिहार के रहने वाले नहीं थे, लेकिन इस रेजिमेंट को अपनी मां की तरह प्यार करते थे। कर्नल बी. संतोष बाबू पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से चीन की सीमा पर तैनात थे। वह तेलंगाना के सूची पेट के रहने वाले थे। हैदराबाद के सैनिक स्कूल में पढ़े। संतोष के पिता एक शिक्षक हैं। गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हिंसक झड़प में शहीद हुए कर्नल बी. संतोष बाबू सोमवार को चीनी पक्ष से हुई बातचीत का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन सोमवार को देर रात हुई हिंसा में वह शहीद हो गए। इससे पूर्व भी वह तनाव कम करने को लेकर हुई कई बैठकों का नेतृत्व कर चुके थे। सेना से जुड़े सूत्रों ने कहा कि सोमवार की रात जब चीनी सेना तय कार्यक्रम के अनुसार पीछे नहीं हटी तो कर्नल बाबू स्वयं उनसे बात करने गए थे। इसी दौरान चीनी पक्ष से उनके साथ हाथापाई की गई, जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी जवाब दिया। इससे दोनों तरफ से हिंसा शुरू हो गई। पत्थर और लाठी-डंडे चले। सेना ने सोमवार रात गलवान घाटी में चीनी सेना से खूनी संघर्ष में शहीद हुए जवानों की सूची बुधवार को जारी की। इनमें बिहार रेजिमेंट के सबसे ज्यादा जवान शहीद हुए हैं। बिहार रेजिमेंट के 15 जवान हुए हैं शहीद।
देश गलवान झड़प की असलियत जानना चाहता है
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शहीद हुए जवानों को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को सवाल किया कि सैनिकों को हथियारों के बिना खतरे की ओर किसने भेजा? वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि सरकार ने दिल्ली-मेरठ में भी हाई स्पीड ट्रेन कॉरिडोर का ठेका एक चीनी कंपनी को देकर घुटने टेकने की रणनीति क्यों अपनाई? उधर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राहुल के आरोपों का जवाब दिया तो भाजपा ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष पर ही सवाल खड़े कर दिए। लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में 20 जवानों के शहीद होने के बाद कांग्रेस लगातार सरकार को घेर रही है। इस मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सवाल किया कि हमारे सैनिकों को हथियार के बिना खतरे की ओर किसने भेजा और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? राहुल ने एक वीडियो जारी कर कहा कि चीन ने शस्त्रहीन भारतीय सैनिकों की हत्या करके बहुत बड़ा अपराध किया है। मैं पूछना चाहता हूं कि इन वीरों को बिना हथियार खतरे की ओर किसने भेजा? क्यों भेजा? कौन जिम्मेदार है? इससे पहले एक पूर्व सैनिक अधिकारी के साक्षात्कार का उल्लेख करते हुए उन्होंने ट्वीट किया था कि चीन की हिम्मत कैसे हुई कि उसने हमारे निहत्थे सैनिकों की हत्या की। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने चीन को कड़ा संदेश देने की वकालत की। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने दिल्ली-मेरठ में भी हाई स्पीड ट्रेन कॉरिडोर का ठेका एक चीनी कंपनी को देकर घुटने टेकने की रणनीति अपनाई है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि यह बर्दाश्त से परे है। वहीं कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से चार सवालों के जवाब मांगे हैं। उन्होंने पूछाöहमारे सैनिकों को निहत्थे क्यों भेजा गया? किसने यह आदेश दिया? आर्मी प्रोटोकॉल के अनुरूप निहत्थे जवानों की सुरक्षा के लिए हथियारबंद बैकअप फोर्स क्यों उपलब्ध नहीं थी। हमले की अग्रिम जानकारी व सूचना सरकार के पास क्यों नहीं थी? वहीं विदेश मंत्री एस. शिवशंकर ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए कहा कि सीमा पर तैनात भारतीय जवान हथियार से लैस थे, लेकिन हथियार इस्तेमाल न करने के समझौते से बंधे थे। राहुल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा। सीमा पर तैनात भारतीय सैनिक हथियारों से लैस थे। 1996 और 2005 में हुए समझौते के तहत दोनों सेनाएं हथियार का इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं। इसलिए गलवान में हिंसक झड़प के दौरान हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया। वहीं भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने अपने विभिन्न ट्वीट के जरिये प्रधानमंत्री पर हमला करके अपरिपक्व व्यवहार किया है, जबकि प्रधानमंत्री ने चीन के साथ सीमा विवाद पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। कांग्रेस नेता यह दिखाना चाहते हैं कि सैनिकों को मरने के लिए निहत्था छोड़ दिया गया था। बेशक विदेश मंत्री जयशंकर और संबित पात्रा ने सफाई देने की कोशिश की पर राहुल और कांग्रेस प्रवक्ताओं के सवालों के जवाब नहीं मिले हैं। देश इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे की सच्चाई जानना चाहता है।
Saturday, 20 June 2020
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें और आम आदमी
देश में सोमवार को लगातार नौवें दिन पेट्रोल-डीजल की कीमत में बड़ी बढ़ोतरी की गई। सोमवार को पेट्रोल का दाम 48 पैसे और डीजल का दाम 23 पैसे प्रति लीटर बढ़ा दिया गया। आखिर क्या वजह है कि कच्चा तेल सस्ता होने के बावजूद देश में नौ दिनों में पेट्रोल का दाम 75.78 रुपए से बढ़कर 76.26 रुपए प्रति लीटर और डीजल का दाम 74.03 रुपए से बढ़कर 74.26 रुपए प्रति लीटर महंगा हो चुका है। ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे हाल के दिनों में कच्चे तेल पर केंद्र द्वारा बढ़ाया गया उत्पाद शुल्क और राज्यों द्वारा वैट में की गई वृद्धि है। अगर तेल पर लगने वाले टैक्स और वैट को देखें तो भारत में यह करीब 69 प्रतिशत लगता है। वहीं अमेरिका में 19 प्रतिशत, जापान में 47 प्रतिशत, ब्रिटेन में 62 प्रतिशत, जर्मनी में 65 प्रतिशत टैक्स और वैट लगता है। इस लिहाज से भारत दुनिया में सबसे ज्यादा इस मद पर टैक्स लगाने वाला देश है। केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क बढ़ाने के बाद कई राज्यों ने वैट की दर में इजाफा कर अपना खजाना भरना शुरू कर दिया। इसके बाद अनलॉक-1 में मांग बढ़ने पर तेल कंपनियों ने दाम बढ़ाना शुरू कर दिया। और यह सब कुछ आम आदमी की मांग पर हो रहा है। एक तरफ बेरोजगारी, भुखमरी और दूसरी तरफ बढ़ती ईंधन की कीमतें। ईंधन की कीमतें बढ़ने से चौतरफा कीमतों में वृद्धि होती है पर उसकी किसे फिक्र? सरकारों को तो बस अपना खजाना बढ़ाना है। बेशक पिछले कुछ दिनों से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हों पर उससे पहले तो कच्चे तेल की कीमत सबसे निचले स्तर पर आ गई थी पर तब भी सरकारों ने कीमतें नहीं घटाईं। गरीब और मध्यम वर्ग तो पहले से ही पिस रहा है, रही-सही कसर पेट्रोल-डीजल की कीमतो में वृद्धि ने निकाल दी।
-अनिल नरेन्द्र
महामारी की स्थिति अत्यंत खराब हो रही है
कोरोना मरीजों की संख्या वृद्धि में भारत विश्व में तीसरे और रोज होने वाली मृत्यु के लिहाज से चौथे स्थान पर है। एक आकलन के अनुसार अगर संख्या दोगुनी होने की दर वर्तमान 17.4 दिन के आधार मानें तो 21 सितम्बर तक देश में एक करोड़ रोगी होंगे। सरकारी संस्थान आईसीएसआर के अध्ययन के अनुसार जांच का तरीका बदल जाता है तो मई की शुरुआत में ही मरीजों की असली संख्या 20 गुनी ज्यादा होती। अत विशेषज्ञों के अनुसार रोगियों की पहचान, सामुदायिक प्रसार का विवाद व सम्पर्क जानने के चरण काफी पहले खत्म हो गए। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि देश में कोविड-19 से उत्पन्न स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है बल्कि दिन-प्रतिदिन स्थिति और खराब होती जा रही है। शीर्ष अदालत ने नशीली दवाओं का कारोबार करने के आरोपी पंजाब के एक कारोबारी जगजीत सिंह चहल की पैरोल की अवधि बढ़ाते हुए यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति वीआर गवई की पीठ ने जगजीत सिंह चहल के आवेदन का विरोध कर रहे पंजाब सरकार के वकील की दलील के दौरान कहाöआप देखिए कोविड-19 की स्थिति प्रत्येक गुजरते दिन के साथ अच्छी नहीं हो रही है। देश में यह खराब ही हो रही है। इस आरोपी ने अपनी पैरोल की अवधि एक महीने बढ़ाने का अनुरोध किया था। उसके आवेदन पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान कहा कि जब कुछ आरोपी जमानत पर तो कुछ पैरोल पर हों तो ऐसे हालात में जेलों में अधिक भीड़ करने का कोई मतलब नहीं है। पीठ ने पंजाब सरकार के हलफनामे के बाद कहा कि आरोपी को 19 फरवरी को इस मामले में जमानत दी गई थी और उसकी अपील 16 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। आज जरूरत है कि गंभीर रोगियों को दवा सहित ऑक्सीजन मिले, वेंटिलेटर मिले, स्थिति बहुत गंभीर है और अगर जल्द सही स्वास्थ्य कमियां पूरी नहीं हुई तो यह बहुत भयानक स्थिति ले सकती है।
ड्रैगन ने सुनियोजित साजिश के तहत हमला किया
लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन की सेना के बीच हिंसक झड़प चीन की सुनियोजित साजिश थी। 15 जून को चीनी सैनिक जब भारतीय सैनिकों को धोखे से घेरकर क्रूरता की हदें पार कर रहे थे, तभी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जन्मदिन का जश्न चल रहा था। भारतीय सेना के सूत्र पीएलए की इस करतूत को जिनपिंग को जन्मदिन पर तोहफा देने जैसा बता रहे हैं। शहीदों के शरीरों पर जख्म इसके सुबूत हैं। 20 शहीदों में से 16 के शरीर पर डंडे-पत्थर जैसे हथियारों से बेहद गहरे जख्म हैं। चार सैनिकों की मौत चोटी से गिरने से हुई। यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें धक्का दिया गया या धक्कामुक्की के दौरान वह पगडंडी से गिरे। करीब 15 हजार फुट की ऊंचाई पर हिंसा ऐसी जगह पर हुई, जहां बहुत कम लोग जमा हो सकते हैं। जिस सीमा चौकी पर एतराज जताने कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी. संतोष गए थे, वहां से बेहद तंग रास्ता नीचे जाता है। पहले चीनी इस चौकी से तंबू वापस ले जाते दिखे थे, लेकिन कर्नल की टुकड़ी पहुंचने पर पीएलए ने पैंतरा बदल लिया और उन्हें घेरकर मारना शुरू कर दिया। सूत्रों के अनुसार मंगलवार को हेलीकॉप्टरों से चीनियों ने घायल सैनिकों को निकाला यहां से 46 स्ट्रैचर ले जाते देखा गया। यह साफ नहीं है कि कितने उनमें घायल थे और कितनी लाशें थीं। इस खूनी झड़प में हुए नुकसान पर चीन चुप है। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह एलएसी पर भविष्य में ऐसी झड़प नहीं चाहता। इस झड़प के बाद चीनी समाचार पत्र ने मंगलवार को चीनी सैनिकों के नुकसान होने की बात स्वीकारी थी। इस समाचार पत्र से जुड़े रिपोर्टर ने 27 सैनिकों के हताहत होने संबंधी ट्वीट किया था। मगर बुधवार के संस्करण में ग्लोबल टाइम्स ने इसका उल्लेख नहीं किया। हालांकि सूत्र बताते हैं कि इस झड़प में चीन को भी भारी नुकसान पहुंचा। चीनी सेना के कमांडिंग ऑफिसर सहित 40 जवान मारे गए। एलएसी की दूसरी तरफ बड़ी संख्या में एम्बुलेंस पहुंचने की बात भी सामने आई है, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने 15 जून की खूनी हरकत पर कहाöदोनों सेनाओं में जहां झड़प हुई, वह इलाका शुरू से चीनी नियंत्रण में है। भारतीय सेना एलएसी लांघकर वहां पहुंची। लेकिन चीन का यह झूठ 16 जून की सैटेलाइट तस्वीर से सामने आ गया है। 16 जून की शाम को इस तस्वीर में चीनी सैनिकों के बैरक भारतीय इलाके में दिख रहे हैं। यानि घटना के अगले दिन भी चीनी सेना पीछे नहीं हटी है। सोमवार की हिंसक झड़प दोनों देशों के बीच 1962 में हुए युद्ध की खूनी टकराव की याद दिलाती है। तब भी इसी तरह दोनों देशों की सेना के बीच खूनी झड़प हुई थी। तब भारत के 80 व चीन के 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। सोमवार को जिस गलवान घाटी के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई, वह दुनिया के सबसे मुश्किल युद्ध क्षेत्रों में से एक है। झड़प की जगह धरती के सतह से 14 हजार फुट ऊपर है। यहां पर तापमान माइनस में होता है।
Friday, 19 June 2020
बीमा रकम के लिए खुद की हत्या की सुपारी दी
दिल्ली में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है जब एक व्यक्ति ने खुद की हत्या की सुपारी देकर बीमे का पैसा लेने की स्कीम बनाई। यह चौंकाने वाली दास्तान गौरव बंसल की है। कड़कड़डूमा के व्यवसायी गौरव बंसल ने परिवार को बीमे की रकम दिलाने के लिए खुद ही अपनी हत्या करा डाली। उसने फेसबुक के जरिये भाड़े के हत्यारों से सम्पर्क कर उन्हें 90 हजार रुपए भी दिए थे। रणहौला पुलिस ने रविवार को एक नाबालिग समेत चार लोगों को पकड़ा तो हत्या के पीछे की कहानी सामने आई। डीसीपी आउटर ए कान ने बताया कि 10 जून को रणहौला इलाके में पेड़ से लटकी एक युवक की लाश मिली थी। युवक के हाथ-पैर बंधे थे, जिसकी वजह से हत्या का मामला लग रहा था। जांच में मालूम हुआ कि शव 37 वर्षीय गौरव बंसल का था। गौरव परिवार सहित आईपी एक्सटेंशन में रहता था। परिवार ने नौ जून को आनंद विहार थाने में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि वह अपनी दुकान पर गया लेकिन वापस घर नहीं लौटा था। हत्याकांड की जांच के लिए एसीपी नांगलोई आनंद सागर की देखरेख में इंस्पेक्टर सही राम मीणा की टीम ने परिवार के लोगों, दोस्तों और दुकान के कर्मचारियों की जानकारी खंगाली लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। फिर एसआई अमित राठी ने मृतक के फेसबुक, व्हाट्सएप और मोबाइल फोन की जांच की तो पहले सूरज, फिर सुमित, मनोज और अंत में नाबालिग को पुलिस ने धर दबोचा। पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि गौरव ने अपनी हत्या करने के लिए उन्हें 90 हजार रुपए दिए थे ताकि मरने के बाद उसके बीमे की रकम परिवार को मिल सके। इस हत्याकांड की कड़ियां जोड़ने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी। जांच में सामने आया है कि गौरव एक माह से अपनी हत्या की साजिश रच रहा था। उसे फेसबुक पर मुंबई का एक व्यक्ति मिला जिसने हत्या कराने के लिए नाबालिग का मोबाइल नम्बर दिया। फिर नाबालिग ने सुपारी लेकर तीन युवकों को अपने साथ शामिल कर लिया। नौ जून को गौरव खुद ही रणहौला पहुंचा, जहां पर योजना के अनुसार आरोपियों ने उसके हाथ-पैर बांधकर उसे पेड़ से लटका दिया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि यह हत्या प्रतीत हो, पुलिस को नाबालिग और गौरव बंसल के बीच वह चैट मिल गई है जिसका अध्ययन किया जा रहा है। इसमें कई खुलासे हुए हैं, जिसका इस वारदात से संबंध खोजने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल पुलिस को बीमे की रकम की जानकारी नहीं मिल पाई है। पुलिस परिजनों से पूछताछ कर इस बारे में जानकारी ले रही है। गौरव के मोबाइल की भी सघन जांच की जा रही है।
-अनिल नरेन्द्र
चीन की धोखेबाजी एक बार फिर उजागर हुई
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में एक कर्नल समेत 20 भारतीय जवानों के चीनी सैनिकों के साथ झड़प में शहीद हो जाने की घटना ने चीन की धोखेबाजी को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलंग ला क्षेत्र में चीनी सैनिकों के घात लगाकर कुछ भारतीय सैनिकों को निशाना बनाने के करीब 45 साल बाद दोनों देशों के बीच ऐसी झड़प हुई है जिसमें सैनिकों की मौत हुई है और इससे भारत-चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। जब दोनों देश गलवान घाटी से पीछे हटने पर सहमत थे, तब ऐसा क्यों हुआ? इसकी जांच ईमानदारी से सेना और विदेश मंत्रालय के उच्चाधिकारियों को करनी चाहिए। उच्च स्तर पर अगर पहले ही पहल होती तो संभव है कि विवाद इस ऐतिहासिक राग तक नहीं पहुंचता। चीन की ओर से सोमवार रात यह भड़काने वाली कार्रवाई तब की गई, जब दोनों देशों के बीच बनी सहमति के आधार पर एलएसी के पास से सैनिकों की वापसी होनी थी। दोनों पक्षों में कर्नल, मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की कई दौर की बातचीत के बाद सैनिकों की वापसी पर सहमति बनी थी, लेकिन इस ताजा कार्रवाई ने चीन की कथनी और करनी में फर्क को एक बार फिर उजागर कर दिया। चीन की कथनी और करनी में अंतर का लंबा इतिहास रहा है। चाहे साल 1962 का युद्ध हो या फिर उसके बाद का लगभग छह दशक का लंबा समय। इस दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर चीन हमेशा अपनी भूमिका बदलता रहा है। हाल का डोकलाम विवाद याद है? चीन ने एक बार फिर जिस तरह हमारी पीठ पर छुरा घोंपने का काम किया उसके बाद इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह हमारा सबसे बड़ा और साथ ही शातिर शत्रु के रूप में सामने आ गया है। यह धूर्तता की पराकाष्ठा है कि वह भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण भी करता है और फिर भारत को शांति बनाए रखने का उपदेश देते हुए पीछे हटने से भी इंकार करता है। गलवान घाटी की यह घटना यही बता रही है कि पानी सिर के ऊपर बहने लगा है। मित्रता की आड़ में शत्रुतापूर्ण रवैये का परिचय देना और भारत को नीचा दिखाना चीन की आदत-सी बन गई है। हद तो यह है कि चीनी विदेश विभाग ने भारतीय सैनिकों पर उसकी सीमा में कथित रूप से घुसने और पहले हमला करने का आरोप लगाते हुए खुद को पीड़ित बताने की कोशिश की है, जबकि हकीकत यह है कि चीनी सैनिकों ने पत्थरबाजी कर भारतीय जवानों को निशाना बनाया। चीन को यह पता लगना चाहिए कि वह दादागिरी के बल पर भारत से अपने रिश्ते कायम नहीं कर सकता। 1962 का भारत नहीं है। अब हम उसकी ईंट का जवाब पत्थर से देने में सक्षम हैं। आवश्यकता केवल यही है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत चीनी उत्पादों का आयात सीमित करें बल्कि यह भी है कि भारत अपनी तिब्बत, ताइवान और हांगकांग नीति नए सिरे से तय करे। इस घटना से सीमा पर पिछले 45 वर्षों से चली आ रही यथास्थिति अब बदल चुकी है। जैसे यह दूरगामी लक्ष्य को एक तरफ रखना हमारी मजबूरी है, चीन को स्पष्ट संकेत जल्द भारत को देने होंगे। चीन को सबक सिखाना ही होगा।
Thursday, 18 June 2020
सुशांत की फांसी पर उठते सवाल
अगर आप मेरी फिल्म देखने नहीं आएंगे तो यह मुझे बॉलीवुड से बाहर फेंक सकते हैं, मेरा कोई गॉडफादर नहीं है... मैंने आप लोगों को ही अपना गॉड और फादर बनाया है... प्लीज देखें अगर आप चाहते हैं कि मैं बॉलीवुड में सरवाइव करूं। यह बात भले ही सुशांत ने अपने किसी फेन से मजाक में कही होंगी, लेकिन कहीं न कहीं इस पोस्ट से सुशांत सिंह राजपूत का दर्द झलक रहा है कि वह इस चमक-दमक भरी फिल्म इंडस्ट्री में खुद को अकेला महसूस करते थे। तमाम बॉलीवुड सिलेब्रिटीज सुशांत की असमय मौत पर शोक जाहिर कर रहे हैं और मैंटल हेल्थ पर खुलकर सामने आने की सलाह-मशविरा दे रहे हैं। हालांकि सिलेब्स की इन पोस्ट पर कई फेंस और स्ट्रगलर कलाकारों ने डबल स्टैंडर्ड रवैये के लिए सवाल उठाए हैं। धर्मेंद्र, कंगना रानौत, शेखर कपूर, मीरा चोपड़ा, रजत, रणवीर शौरी, सपना भवानी और निखिल द्विवेदी जैसे कई नामों ने फिल्म इंडस्ट्री में भेदभाव पर सवाल उठाए हैं। सुशांत के इस दुनिया से चले जाने के बाद आम लोगों से लेकर जूनियर सिलेब्रिटीज तक ने बिना नाम लिए निशाना साधा है। फिल्म उड़ान से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले रजत ने एक पोस्ट में इंडस्ट्री वालों में मैंटल हेल्थ की बात करने को फैंसी ट्रेंड बताया है। उधर एक्टर व प्रोड्यूसर निखिल द्विवेदी ने लिखा हैöकोई आपत्ति नहीं है कि आप सिर्फ चढ़ते सूरज को सलाम करें। शायद सभी करते हैं... आपत्ति इसमें है कि ढलते वक्त जिस सूरज से आपने रोशनी ली है, आप उसी सूरज से नजर चुराते हैं। और तो और उसकी खिल्ली भी उड़ाते हैं। सुशांत की असमय मौत पर शोक जाहिर करते हुए सिलेक कंगना रानौत ने आड़े हाथों लिया। कंगना रानौत ने एक वीडियो पर नेपोटिज्म की बात कहते हुए कहा कि गली ब्वॉय जैसी वाहियात फिल्म को अवार्ड मिले, लेकिन छिछोरे को क्यों नहीं? सुशांत की मौत ने हम सबको झकझोर कर रख दिया है। अगर कुछ लोग इस तरह से चला रहे हैं कि जिन लोगों का दिमाग कमजोर होता है, वह डिप्रैशन में आते हैं और सुसाइड करते हैं। एक इंजीनियरिंग के स्ट्रेस एग्जाम रैके होल्डर का दिमाग भले कैसे कमजोर हो सकता है? वह साफ कह रहे थे कि प्लीज मेरी फिल्में देखें, मेरा कोई गॉडफादर नहीं है। मुझे इंडस्ट्री से निकाल दिया जाएगा। क्या इस दर्द की कोई बुनियाद नहीं है? सुशांत सिंह राजपूत के लिए आप लिखते हैं वह साइकोटिक थे, न्यूरोटिक थे, एडिक्ट थे और बड़े स्टार्स की एडिक्शन तो बहुत दूर लगती है। तो यह सुसाइड नहीं प्लांड मर्डर था। उन्होंने कहाöतुम किसी काम के नहीं हो और वह मान गया और उन्होंने कहा तुम्हारा कुछ नहीं होगा, वह मान गया। दरअसल वह चाहते ही हैं कि वह इतिहास लिखें कि सुशांत सिंह राजपूत कमजोर दिमाग का था, लेकिन वह नहीं बताएंगे कि सच्चाई क्या है। रणवीर शौरी तंज करते हुए लिखते हैं कि सुशांत ने जो कदम उठाया, वह उनका फैसला था। इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन इस बारे में उन लोगों को तो जरूर कुछ कहना चाहिए, जिन्होंने खुद को अपने आप हिन्दी सिनेमा का चौकीदार नियुक्त कर लिया है। जो खेल यह खेल रहे हैं उन्हें अपने डबल स्टैंडर्ड रवैये के बारे में भी तो बताना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
दो हजार से ज्यादा कोरोना योद्धा संक्रमण की चपेट में
दिल्ली में कोरोना से लड़ने वाले फ्रंटलाइन वॉरियर्स को बहुत भारी कीमत अदा करनी पड़ रही है। राजधानी दिल्ली में अब तक दो हजार से ज्यादा कोरोना योद्धा संक्रमण की गिरफ्त में आ चुके हैं। इनमें से एक हजार से अधिक स्वास्थ्य कर्मी शामिल हैं। 800 से अधिक पुलिस कर्मी सहित सफाई कर्मी और अन्य कोरोना योद्ध हैं। दिल्ली में अभी तक एक हजार से अधिक स्वास्थ्य कर्मी कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। इनमें एम्स में सबसे अधिक 624 कर्मचारी और उनके परिजन शामिल हैं। एम्स में अभी तक छह वरिष्ठ प्रोफेसर और 26 रेजिडेंट डॉक्टर के अलावा 105 नर्सिंग कर्मचारी भी संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इसके अलावा वार्ड ब्वॉय, रोगी सहायक, सुरक्षा कर्मी भी बड़ी संख्या में कोरोना से पीड़ित हुए हैं। एम्स में कोरोना की चपेट में आए 126 कर्मचारियों और उनके परिजनों का अभी भी एम्स के झज्जर और दिल्ली स्थित परिसर में इलाज चल रहा है। दिल्ली में कोरोना संक्रमित छह स्वास्थ्य कर्मियों की मौत हुई है। एम्स में भी संक्रमण से पीड़ित तीन कर्मचारियों की मौत हुई है। इनमें एम्स का एक मेस कर्मचारी, एक सफाई कर्मचारी, सुपरवाइजर और एक हार्मोन रोग विभाग में काम करने वाला कर्मचारी शामिल हैं। इसके अलावा कालरा अस्पताल में काम करने वाली केरल की एक नर्स की भी सफदरजंग में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। वह कोरोना संक्रमित मिली थी। एक आयुर्वेदिक अस्पताल में सैंपल लेने वाले कर्मी का भी संक्रमण के बाद जान चली गई थी। लोक नायक अस्पताल से जुड़े सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर में काम करने वाले एक तकनीशियन की भी कोरोना संक्रमण के बाद मौत हो चुकी है। लोक नायक अस्पताल में एनेस्थीसिया विभाग के एक वरिष्ठ प्रोफेसर की हालत गंभीर बनी हुई है। वह आईसीयू इंचार्ज हैं। संभवत इलाज के दौरान वह संक्रमण का शिकार हो गए। साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। दिल्ली में एम्स के अलावा 37 अन्य अस्पतालों में 600 से अधिक स्वास्थ्य कर्मी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें सबसे अधिक रोहिणी स्थित अम्बेडकर अस्पताल के 114 और बाबू जगजीवन राम अस्पताल के 103 स्वास्थ्य कर्मी भी शामिल हैं। इसके अलावा सफदरजंग के 45, लोक नायक के 96 स्वास्थ्य कर्मी भी अभी तक कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। लोक नायक में 31 डॉक्टर कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। कोरोना से लड़ने के लिए मरीजों को ठीक करने के लिए डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों व पुलिस कर्मियों ने अपनी जान की बाजी लगा रखी है। इन्हें हमारा सलाम।
इन निजी अस्पतालों की लूट-खसोट पर अंकुश लगना चाहिए
दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में बैड की व्यवस्था तो हो गई, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से शुल्क तय नहीं करने का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। निजी अस्पताल अपने हिसाब से शुल्क तय कर रहे हैं। इस वजह से कई मरीज यहां इलाज से वंचित हो रहे हैं। निजी अस्पतालों का कहना है कि कोरोना के मरीजों के लिए इलाज की व्यवस्था की लागत बहुत अधिक है। इसकी वजह से शुल्क भी अधिक है। पूर्वी दिल्ली में निजी अस्पताल में सबसे बड़े पटपड़गंज स्थित मैक्स अस्पताल में जनरल वार्ड के लिए प्रतिदिन का शुल्क 25 हजार रुपए रखा गया है। इसके अलावा महंगी दवा, जांच आदि का शुल्क अलग से देना होगा। इसका शुल्क औसतन 10 से 15 हजार रुपए प्रतिदिन पड़ सकता है। अगर मरीज को कमरा चाहिए तो उसके लिए 30,490 रुपए देने होंगे। बिना वेंटिलेटर के आईसीयू का शुल्क 50,050 रुपए रखा गया है। इसी तरह अगर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है तो मरीज को 72,550 रुपए प्रतिदिन देने होंगे। अन्य खर्च भी जोड़ दें तो वेंटिलेटर का खर्च 90 हजार रुपए प्रतिदिन पड़ सकता है। यहां कोरोना मरीजों के लिए 80 बैड आरक्षित हैं। बुधवार को कोरोना के 80 मरीज भर्ती थे यानि कोई बैड खाली नहीं है। गौरतलब है कि राजधानी के निजी अस्पतालों में इलाज की कीमतें निर्धारित करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की गई। लेकिन कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से इंकार कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को ऐसा कोई निर्देश देने से शुक्रवार को इंकार कर दिया जिसमें यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया था कि कोविड-19 के लिए चिन्हित कोई भी निजी अस्पताल मरीजों से अत्यधिक शुल्क नहीं वसूलें और न ही धन की कमी के कारण उनका इलाज करने से इंकार करें। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की बैंच ने कहा कि हालांकि याचिका में उठाया गया मुद्दा अच्छा है लेकिन वह जनहित मुकदमे में ऐसा कोई आदेश पारित नहीं कर सकती जिसे लागू करना मुश्किल हो। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी की याचिका का निस्तारण कर दिया जिसमें एक निजी अस्पताल द्वारा इलाज के लिए जारी शुल्क के संबंध में दिल्ली सरकार के 24 मई के सर्कुलर का हवाला दिया गया था। याचिका में कहा गया कि प्रदेश सरकार ने कई अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल घोषित किया और उसके तीन जून तक के आदेश में अधिकारियों ने तीन निजी अस्पतालोंöमूलचन्द खैराती लाल अस्पताल, सरोज सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और सर गंगाराम अस्पताल को कोविड अस्पताल घोषित किया है। यह अस्पताल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) मरीजों को 10 प्रतिशत आईपीडी और 25 प्रतिशत ओपीडी सेवाएं मुहैया कराने के लिए बाध्य हैं। इन निजी कोविड-19 अस्पतालों में से एक का सर्कुलर देखा जिसमें कोविड-19 मरीज के लिए न्यूनतम बिल तीन लाख रुपए तय किया गया। दिल्ली सरकार को कोविड-19 इलाज के शुल्क तय करने चाहिए और जनता को इन निजी अस्पतालों की लूट-खसोट से बचाना चाहिए।
Wednesday, 17 June 2020
शेष भारत के साथ ही राजधानी दिल्ली में बेतहाशा बढ़ते जा रहे कोरोना संक्रमण के मामलों ने जहां एक तरफ दिल्ली सरकार की तैयारियों और स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। वहीं दूसरी तरफ अग्रपंक्ति के कोरोना योद्धाओं के प्रति सरकार द्वारा दिखाई जा रही उदासीनता से स्थिति के और भयावह होने की संभावना बढ़ने लगी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल बड़ा दिल दिखाते हुए आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से ऊपर उठकर कोरोना से लड़ने की अपील तो कर रहे हैं लेकिन उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत आने वाले बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल के डॉक्टरों ने तीन महीने से वेतन न मिलने पर सामूहिक इस्तीफे की चेतावनी देकर दिल्ली सरकार की दरियादिली की सारी पोल खोल करके रख दी है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अस्पतालों में तैनात कोरोना वॉरियर्स (डॉक्टर्स) संकट में हैं। कई माह से वेतन नहीं मिलने से परेशान उत्तरी नगर निगम के कस्तूरबा गांधी के डॉक्टरों ने निगम प्रशासन के विरुद्ध लामबंद होकर विरोध शुरू कर दिया है। वेतन नहीं मिलने से नाराज डॉक्टरों ने निगम प्रशासन को सामूहिक इस्तीफा देने की धमकी दी है। डॉक्टरों में इस बात की भी नाराजगी है कि आला अधिकारी निगम के आर्थिक हालात सुधारने के लिए कोई कोशिश भी नहीं कर रहे हैं। कस्तूरबा हॉस्पिटल की रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने एडिशनल मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट को पत्र लिखकर कहा है कि डॉक्टर्स को तुरन्त सेलरी दिलाई जाए। दरअसल धन की कमी से जूझ रहा उत्तरी नगर निगम पिछले दो माह से अपने 10 हजार कर्मचारियों के वेतन का भुगतान नहीं कर सका है। नगर निगम का दावा है कि दिल्ली सरकार ने पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश के मुताबिक निगमों के लिए आवंटित की जाने वाली राशि का भुगतान अब तक नहीं किया है जिसके चलते वह अपने कर्मचारियों का वेतन का भुगतान नहीं कर सकी है। उत्तरी नगर निगम का वेतन मद पर खर्च लगभग 350 करोड़ रुपए के आसपास प्रतिमाह आता है। इस हिसाब से देखा जाए तो तीन माह का करीब 1000 करोड़ रुपए वेतन मद के लिए चाहिए। उत्तरी नगर निगम का लगभग दिल्ली सरकार से 1200 करोड़ रुपए का बकाया है। यदि सरकार वित्त आयोग की अनुशंसा के मुताबिक ही अनुदान की पूरी राशि ही नगर निगम को दे देती है तो वह तत्कालिक तौर पर अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान आसानी से कर सकता है। वहीं दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तरी नगर निगम को कस्तूरबा गांधी और हिन्दू राव समेत अपने छह अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों को मार्च का वेतन 19 जून तक देने का शुक्रवार को निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने दिल्ली सरकार को नगर निगम की निधि जारी करने के लिए भी कहा है ताकि वह अपने अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों का अप्रैल का वेतन 24 जून तक दे सकें। यह जनहित याचिका उच्च न्यायालय ने खुद दायर की है।
Tuesday, 16 June 2020
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