मैंने इसी कॉलम में दो-तीन दिन पहले संकेत दिया था कि अब सीबीआई सरकार की पिछलग्गू बनने से कतराने लगी है और वह स्वतंत्र रूप से काम करने की इच्छुक है। यह अच्छी बात भी है। दरअसल यह नौकरशाह भी बड़ी अजीबो-गरीब जमात है। जब इन्हें लगने लगे कि यह सरकार निहायत कमजोर है या उन्हें यह लगने लगे कि अब इस सरकार के दिन गिने-चुने रह गए हैं तो उन्हें लगने लगता है कि अब यह सरकार हमारा न तो कुछ भला कर सकती है और न ही बुरा, तो यह जमात मंत्रियों को आंख दिखाने लगते हैं और अपने ढंग से काम करना शुरू कर देते हैं। मुझे तो यही स्थिति सी लगती है। नौकरशाहों को यह महसूस होने लगा है कि अब सरकार हमें कोई पुरस्कार भी नहीं दे सकती, नौकरी की एक्सटेंशन नहीं दे सकती, न ट्रांसफर कर सकती है। इसलिए क्यों न हम वह करें जो हमारी नजरों से सही हो। यही वजह है कि मुझे अत्यंत विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि अब मंत्री अगर कोई मौखिक आदेश दे तो सचिव लोग कहते हैं कि आदेश लिखित रूप से दें, महज संकेतों से हम कोई आर्डर देने को तैयार नहीं हैं। सीबीआई भी अब ऐसा ही करने लगी है।
मंगलवार को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सामने आई वित्त मंत्रालय की चिट्ठी की जांच की जाए या नहीं, इस मुद्दे पर सीबीआई और केंद्र सरकार आमने-सामने आ गए। केंद्र ने जहां इस चिट्ठी की सीबीआई द्वारा अध्ययन करने की बात कही, वहीं सीबीआई का कहना था कि चिट्ठी का अध्ययन करने का सवाल ही खड़ा नहीं होता। वह एक स्वतंत्र संस्था है और किसी (सरकार) को उसकी ओर से बयान देने की जरूरत नहीं है। सीबीआई ने कहा कि उसे पी. चिदम्बरम की जांच करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि 2जी घोटाले में याचिकाकर्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने वित्त मंत्रालय की पीएमओ को लिखी चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट में पेश की और उसके आधार पर उन्होंने गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के खिलाफ सीबीआई की जांच की मांग की। जब अदालत में इस मुद्दे पर सुनवाई हुई तो केंद्र सरकार ने कहा कि कोर्ट के सामने जो नए दस्तावेज रखे गए हैं सीबीआई उनका अध्ययन करेगी और जरूरत पड़ने पर अपनी अगली स्टेटस रिपोर्ट में उसका उल्लेख करेगी। इसके विरोध में सीबीआई ने वित्त मंत्रालय के नोट पर कहा कि सरकार हमें यह न बताए कि हमें किस मामले की और किस तरह से तहकीकात करनी है। सीबीआई ने कहा कि हमें किसी दिशा-निर्देश की जरूरत नहीं है और सरकार हमें गाइड न करे। हम अपनी जांच के सभी पहलुओं पर नजर रखे हुए हैं। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय की चिट्ठी में नया कुछ नहीं है। हमें सभी फेरबदल की जानकारी है और किसी कानूनी राय की मांग नहीं की गई है। सीबीआई का कहना है कि हमारा काम सिर्प आपराधिक मामले की तहकीकात करना है, न कि नीतिगत मामलों का। सीबीआई ने यह भी कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले को मॉनीटर कर रहा है तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन अगर एसआईटी जैसी संस्था बाहर से मॉनीटरिंग करेगी तो हमें जरूर परेशानी होगी। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक चिदम्बरम का कोई रोल नहीं है लेकिन उस वक्त के वित्त सचिव की भूमिका को लेकर जांच की जा रही है। इसके अलावा दयानिधि मारन के मामले में जांच पूरी हो चुकी है और अब यह फैसला लेना है कि उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी इसी मुद्दे पर सुनवाई जारी रहेगी। उधर याचिकाकर्ता डाक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मंगलवार की सुनवाई के तुरन्त बाद इंटरनेट पर ट्विट किया कि यह तो गजब हो गया। मेरी याचिका के विरोधी ही आपस में झगड़ा कर रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार का वकील कह रहा है कि मेरे द्वारा दाखिल दस्तावेजों की सीबीआई जांच करे। दूसरी ओर सीबीआई का वकील कह रहा है कि सरकार भाड़ में जाए। डॉ. स्वामी ने कहा कि उनके द्वारा दाखिल कागजात को लेकर सीबीआई शर्मिंदा है कि जो कागज उसे नहीं मिल सके वह मुझे कैसे मिल गए? मनमोहन सरकार की मुश्किलें दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। अगर सीबीआई भी केंद्र सरकार के हाथ से निकल गई तो बहुत कुछ आगे हो सकता है।
असल में सीबीआई ही अकेली ऐसी संस्था नहीं है जो सरकार को आंखें दिखाने का साहस कर रही है। जानकारों की मानें तो आज की तारीख में अफसरशाही इस सरकार की कोई परवाह नहीं करती। स्थिति यह है कि पहले जैसे मंत्री लोग अपने अफसरों से कोई काम मौखिक निर्देश से नहीं करवा सकते। हर अधिकारी अपने मंत्री से लिखित निर्देश और नोटिंग मांग रहा है। मसलन ब्यूरोकेसी को पता है कि सरकार का क्या पता आज है, कल नहीं। भला वे अपनी जान क्यों फंसाएं?
Anil Narendra, CBI, Daily Pratap, Supreme Court, Vir Arjun
No comments:
Post a Comment