Thursday 15 September 2011

क्या आडवाणी की पस्तावित यात्रा एक मास्टर स्ट्रोक होगी


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 15th September 2011
अनिल नरेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता 83 वर्षीय श्री लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर रथ यात्रा पर निकलेंगे। श्री आडवाणी ने संपग सरकार के वैधता खो देने और उसका जनादेश समाप्त हो जाने का दावा करते हुए ऐलान किया कि वह इस भ्रष्ट सरकार के खिलाफ नवम्बर से पहले देश भर में रथ यात्रा करेंगे। वोट के बदले नोट जिस पकार से इस सरकार ने बर्ताव किया है उसका भी जनता में वह इस यात्रा में पर्दाफाश करेंगे। भाजपा की कोर ग्रुप की बैठक में पस्तावित यात्रा पर चर्चा हुई। यात्रा के दौरान करीब 6000 किलोमीटर का सफर तय किया जा सकता है। आडवाणी जी का विचार है कि यात्रा का जोर स्वच्छ राजनीति,बेहतर पशासन पर होना चाहिए, जबकि कुछ भाजपा नेताओं का विचार है कि इसे भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा होना चाहिए क्योंकि पूरे देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा केन्द्र में है। पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और उत्तर पदेश जैसे राज्यों के कुछ नेता चाहते हैं कि यात्रा इन राज्यों से होकर गुजरे क्योंकि इन राज्यों में चुनाव होने हैं। वहीं कुछ नेता इस विचार से सहमतनहीं हैं।
आडवाणी जी की इस पस्तावित यात्रा का समर्थन और आलोचना दोनों ही हो रहे हैं। पहले आलोचना की बात करते हैं। अन्ना हजारे और उनकी टीम महसूस करती है कि यह यात्रा उनके आंदोलन का महत्व कम करने के लिए की जा रही है।
अन्ना ने खुद यात्रा को दिखावा करार देते हुए कहा कि वह तब तक भाजपा का समर्थन नहीं करेंगे जब तक कि वह संसद में जन लोकपाल विधेयक का समर्थन नहीं करती और उसको राज्य सरकारें लोक आयुक्त की नियुक्ति का कानून नहीं बनाती। अन्ना ने टीवी चैनलों से कहा कि अगर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आडवाणी गम्भीर हैं तो यात्रा करने की बजाए उन्हें भाजपा शासित सभी राज्यों से लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए कानून बनाने को कहना चाहिए। गत दिनों रालेगण में अन्ना की टीम की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। इस बैठक में मेधा पाटकर ने जमकर आडवाणी यात्रा का विरोध किया था। पाटकर ने साफ कहा कि आडवाणी की यात्रा को किसी भी हालत में अन्ना हजारे का समर्थन नहीं मिलना चाहिए। मेधा पाटकर ने चेताया कि यह एक राजनीतिक यात्रा है जिसका उद्देश्य राजनीतिक है, सामाजिक उत्थान या भ्रष्टाचार दूर करना नहीं है।
जहां तक कांग्रेस पार्टी के रिएक्शन का सवाल है वह इससे नाखुश है। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि यह आडवाणी का मास्टर स्ट्रोक है। अन्ना हजारे के आंदोलन के ठीक बाद लौह पुरुष कहे जाने वाले भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, सर्वोच्च अदालत द्वारा नरेन्द्र मोदी को दी गई राहत और मध्यावधि चुनावों की अफवाहों ने कांग्रेस के कान खड़े कर दिए हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार दबाव में है। पहले गांधीवादी
अन्ना हजारे और उसके बाद भाजपा नेता एलके आडवाणी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रथ यात्रा की बात कहकर सरकार और कांग्रेस संगठन दोनों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कांग्रेस को असली चिंता आने वाले महीनों में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तर पदेश है।
पंजाब और उत्तराखंड में भी कांग्रेस इस बार सरकार बनाने की उम्मीद पाले हुए है। कांग्रेस को बड़ी परेशानी यह है कि अन्ना के आंदोलन से जनता में यह संदेश गया है कि सरकार और संगठन इसको लेकर गम्भीर नहीं है और यह पार्टी के माथे पर बल डालने के लिए काफी है। पार्टी को यह चिंता भी सता रही है कि कहीं अन्ना की बोई फसल को काटने के लिए आडवाणी ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है वह कामयाब न हो जाए? सरकार के लिए और कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी अकेले आडवाणी ही नहीं हैं। उधर अन्ना भी गांव-गांव घूमने की योजना पर विचार कर रहे हैं। योगगुरू बाबा रामदेव भी सरकार से खार खाए बैठे हैं और नए सिरे से यात्रा करने जा रहे हैं। तीनों ही यात्राएं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार का मुद्दा न केवल विधानसभा चुनावों तक जीवित रहेगा बल्कि अगर इन चुनावों में कांग्रेस हार जाती है तो 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी इसका असर पड़ सकता है।
आडवाणी भी यही चाहते हैं कि सरकार और पार्टी दोनों पर दबाव बना रहे। आडवाणी जी की इस यात्रा से भाजपा के कुछ दूसरी पंक्ति के नेता अंदरखाते खुश नहीं हैं। उन्हें लगता है कि अगर 2014 में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को सत्ता मिल जाती है तो उनका पधानमंत्री बनने का सपना पूरा नहीं होगा और आडवाणी भाजपा के नंबर वन व्यक्ति होंगे। जबकि भाजपा कार्यकर्ता इस यात्रा से खुश है और गर्मजोशी से इसका स्वागत करेगा। इस यात्रा के दौरान कार्यकर्ता सकिय हो जाएगा जो आडवाणी का एक उद्देश्य भी है पर पार्टी के अंदर राम जेठमलानी सरीखे के नेता भी मौजूद हैं जो यात्रा शुरू होने से पहले ही उसकी हवा निकालने में तुले हैं। तिहाड़ जेल में बंद अमर सिंह की पैरवी कर रहे राम जेठमलानी ने सोमवार को तीस हजारी अदालत में कहा कि चूंकि यह स्टिंग ऑपरेशन भाजपा ने कराया था, इसलिए सांसदों को दिए पैसे की व्यवस्था भी उसी ने की होगी। जेठमलानी पहले भी भाजपा के लिए इस तरह की विकट परिस्थितियां पैदा करते रहे हैं। टू-जी स्पेक्ट्रम मामले में एक ओर भाजपा यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे तो जेठमलानी तिहाड़ में बंद डीएमके की राज्यसभा सांसद कनिमोझी की पैरवी कर रहे थे। एक तरफ तो आडवाणी इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरने का ऐलान करते हैं दूसरी तरफ उन्ही की पार्टी का सदस्य यह आरोप लगाता है कि कैश फॉर वोट मामले में पैसा भाजपा ने ही दिया होगा। जेठमलानी की ये दलीलें आडवाणी की यात्रा की धार को पुंद कर सकती है क्योंकि कैश फॉर वोट मामले में भाजपा शुरू से ही कांग्रेस नीति यूपीए सरकार को कटघरे में खड़ा करती रही है। तिहाड़ जेल में बंद अपने दो पूर्व सांसदों को भाजपा व्हिसल ब्लोअर बताती रही है और आडवाणी इसी पकरण में कह चुके हैं कि वे जेल जाने को तैयार हैं।
अलबत्ता पस्तावित रथ यात्रा का केन्द्र बिंदु न तो राम मंदिर है और न ही हिंदुत्व बल्कि सुशासन और साफ सुथरी राजनीति के मुद्दों को लेकर है और यह मुद्दे सभी वर्गों, धर्मों,समुदायों को अपील करता है। आखिर इस यात्रा की जरूरत महसूस क्यों हुई? इसके दो कारण नजर आते हैं। एक के बाद एक घोटालों ने यूपीए सरकार को बचाव की मुद्रा में ला खड़ा किया है। फिर अन्ना के आंदोलन ने इसे घर-घर का विषय बना दिया है। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते भाजपा को लगता है कि इस माहौल का सबसे ज्यादा लाभ उसी को मिल सकता है। दूसरे नोट के बदले वोट कांड में दिल्ली पुलिस की कार्रवाई ने भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। उसके दो पूर्व सांसदों को अदालत ने तिहाड़ भेज दिया है। फिर अदालत ने इस मामले में आडवाणी के निकट सहयोगी रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी को नोटिस दिया गया है और दिल्ली पुलिस ने भाजपा के एक मौजूदा सांसद के खिलाफ कार्रवाई के लिए लोकसभा अध्यक्ष से इजाजत मांगी है। जबकि भाजपा का दावा है कि उनके जिन लोगों को आरोपी बनाया गया है वे तो असल में खरीद-फरोख्त के जरिए बहुमत जुटाने के कांग्रेस के षड़यंत्र को बेनकाब करने में जुटे थे। भाजपा नेतृत्व को यह महसूस हुआ होगा कि अगर पार्टी इस मामले में चुप बैठ गई तो उसे काफी नुकमसान उठाना पड़ सकता है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अब अपने राजनीतिक जीवन की सूर्यास्त की बेला पर उन्हें शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए एक अवसर दिख रहा है। इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी को पुनर्संशोधित और पुनर्सुनियोजित करने का पयास करना होगा। आडवाणी जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती शायद यह रहेगी कि
वह भारत की जनता में यह विश्वास पैदा करें कि वाकई ही भ्रष्टाचार के खिलाफ है और वह पूरी ईमानदारी से भ्रष्टाचार को दूर करने के पक्षधर हैं।
बेशक कुछ दागी नेताओं को हाल में हटाया गया है पर अभी भी `थैली' लेने वाले नेता पार्टी में मौजूद हैं। दुख से कहना पड़ता है कि आडवाणी जैसी स्वच्छ छवि वाले नेता भाजपा में जरूर हैं पर दागी भी मौजूद हैं। आडवाणी जी को सबसे ज्यादा खतरा अंदर से है, बाहर से नहीं।
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