भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रमेश पोखरियाल निशंक सरकार को बदलना भाजपा हाई कमान की मजबूरी हो गई थी। करीब सवा दो साल बाद एक बार फिर जनरल भुवनचन्द्र खंडूरी ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री पद सम्भाल लिया है। छोटे से पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में सियासत की लड़ाई और राजनीतिक उठापटक में अपने प्रतिद्वंद्वियों को पटखनी देते हुए खंडूरी राज्य में सबसे कद्दावर नेता के रूप में उभरे हैं। मुख्यमंत्री की दूसरी पारी से भाजपा हाई कमान को बहुत उम्मीदें हैं। पहली पारी में अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनवाने तथा अब उन्हें हटवाकर खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए हाई कमान पर दबाव बनाने में सफल हुए खंडूरी की राजनीतिक क्षमताओं को दोनों पार्टी के अन्दर और बाहर सभी मानते हैं। करीब पांच महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जिस चमत्कार की पार्टी उनसे उम्मीद कर रही है उसके मद्देनजर जनरल साहब के लिए यह जिम्मेदारी कड़ी अग्निपरीक्षा साबित होगी। देश में भ्रष्टाचार विरोधी समां भले ही कांग्रेस विरोधी लग रहा हो लेकिन उत्तराखंड से मिले संकेतों से साफ है कि सेना से रिटायर हुए मेजर जनरल भुवनचन्द्र खंडूरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी साफ-सुथरी छवि और प्रशासनिक क्षमता का सही इस्तेमाल करने की होगी। भुवनचन्द्र खंडूरी अकड़ राजनीतिज्ञ हैं। अकड़ उन्हें फौजी अनुशासन से मिली है। 888 दिन पहले जब वह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से बेदखल हुए थे, तब उन पर आरोप था कि अकड़ के कारण उनका जनता से संबंध अच्छा नहीं था। इसी का नतीजा था कि 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड पर राज करने वाली बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली। गाज गिरना तय था। सो उनकी छुट्टी कर दी गई। फौज से लेकर राजनीति तक खंडूरी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन वह कभी हारे नहीं। इस बार भी विजयी होकर दोबारा सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हैं। उनके स्वभाव में राजनीति की चालबाजी नहीं है। समयबद्ध कार्यक्रम में विश्वास करते हैं वह स्वभाव से कड़क हैं लेकिन उनके करीबी कहते हैं कि उनकी शख्सियत नारियल की तरह है। वक्त का सम्मान न करने वालों का वह सम्मान नहीं करते। राजनीति में भी वह जनरली करने से बाज नहीं आते। इसके कई फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी। वाजपेयी सरकार में वह सफल मंत्री साबित हुए। उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना को अंजाम दिया। विभाग उनका काजल की कोठरी वाला था। बावजूद इसके वह कालिख से बचते रहे। वाजपेयी ने उनके काम से खुश होकर 2003 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया।
श्री खंडूरी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वे इतने कम समय में ऐसा क्या करें कि सत्ता विरोधी लहर का रुख मोड़ सकें और उनके असंतोष को दूर कर पार्टी को हुए नुकसान की भरपायी कर पाएं। जिन खंडूरी को राज्य में लोकसभा चुनाव की हार के लिए जिम्मेदार मान कर हटा दिया गया था, अब सवा दो साल बाद ऐसा क्या हुआ कि पार्टी को 76 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री पर चार-पांच महीने में ही बाजी पलट देने का भरोसा हो गया? समझा जाता है कि भ्रष्टाचार जैसे वर्तमान समय के सबसे अहम मुद्दे पर पार्टी उनकी छवि को भुनाना चाहेगी। इसमें कोई शक नहीं कि खंडूरी के नेतृत्व में उत्तराखंड में होने वाले चुनावों में पार्टी को भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाने में जो सहूलियत होगी वह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी निशंक के नेतृत्व में चुनाव लड़ने में शायद न होती। आलाकमान की उम्मीदों के मुताबिक नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को प्राथमिकता के संकेत अपनी पहली कैबिनेट बैठक के बाद दे दिए। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों और भारतीय पुलिस सेवा के सभी अधिकारियों सहित कुछ दूसरे अधिकारियों को 15 अक्तूबर तक अपनी सम्पत्ति की सार्वजनिक घोषणा करते हुए उसका ब्यौरा सरकार के पास जमा करने के निर्देश दिए हैं। आज भाजपा के उत्तराखंड इकाई में भारी असंतोष है, लगभग विद्रोह की स्थिति है। देखना यह होगा कि श्री खंडूरी एक ओर तो अपनी पार्टी को कितना साथ लेकर चल सकते हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड की प्रशासनिक और कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए कड़े कदम उठाने में कितने सफल होते हैं। निशंक के राज में विरोधी दल कांग्रेस ने अपने आपको संगठित किया है और उन्हें लग रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बाजी मार लेगी। देखना अब यह होगा कि भाजपा का उत्तराखंड में सिर्प चेहरा बदलने से काम हो जाएगा या नहीं?
Anil Narendra, BC Khanduri, BJP, Corruption, Daily Pratap, Nishank, Uttara Khand, Vir Arjun
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