Sunday 25 September 2011

राक्षसों को मारने के लिए लक्ष्मण रेखा पार करनी पड़ती है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th September 2011
अनिल नरेन्द्र
ऐसा लग रहा है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मनमोहन सिंह सरकार पर भारी पड़ रहा है। जहां एक ओर सरकार के अन्दर वरिष्ठतम मंत्रियों की खींचतान बढ़ती जा रही है वहीं सरकार और सीबीआई में भी मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं। केंद्र सरकार में नम्बर दो की हैसियत रखने वाले प्रणब मुखर्जी जो इस समय वित्त मंत्री हैं, के तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम जो वर्तमान में गृहमंत्री हैं, के बीच शीत युद्ध अब उजागर हो चुका है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के इस घमासान से पार्टी और सरकार में जिस तरह से असहज स्थिति बनी है वह कांग्रेस पार्टी और मनमोहन सरकार के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं। पार्टी इस बार मसले को पहले से कहीं ज्यादा गम्भीर मान रही है क्योंकि 2जी मामला सरकार के गले की फांस बन गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट वित्त मंत्रालय के नोट का संज्ञान लेता है तो स्थिति सरकार के लिए अत्यंत गम्भीर बन सकती है। कांग्रेस के एक महासचिव के मुताबिक इस बार सरकार के नम्बर दो मंत्री के महकमे की ओर से विवादित तथ्य सामने आए हैं। लिहाजा यह आसानी से नहीं निपटाया जा सकेगा। पार्टी का मानना है कि प्रणब और चिदम्बरम की आपसी खींचतान से सरकार की पहले से ही खराब छवि और ज्यादा खराब हो रही है।
उधर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी को लेकर अदालत केंद्र और सीबीआई में मतभेद भी सामने आ गए हैं। केंद्र ने बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट में जांच पर निगरानी जारी रखने का विरोध किया था, वहीं सीबीआई ने दलील दी कि निगरानी जारी रहनी चाहिए। केंद्र सरकार ने यहां तक कह दिया कि वह (सुप्रीम कोर्ट) 2जी घोटाले के मामले में गृहमंत्री पर सुनवाई नहीं कर सकती। उसने कोर्ट से कहा कि वह इस मामले में आदेश पारित कर लक्ष्मण रेखा पार न करे। यह सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को चुनौती देना था पर सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि आप लक्ष्मण रेखा की बात कर रहे हैं, यदि सीता ने लक्ष्मण रेखा पार नहीं की होती तो रावण मारा नहीं जाता। लक्ष्मण रेखा राक्षसों को मारने के लिए ही पार की जाती है, ऐसा लोग कहते हैं। जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एके गांगुली की बैंच ने यही नहीं कहा बल्कि सरकार और सीबीआई के मामले में हो रही जांच में टालमटोल करने पर भी फटकार लगाई। इसके बाद सीबीआई के वकील ने कहा कि अदालत जांच का आदेश देती है तो वह उसका पालन करेगी। उसने यहां तक आश्वासन दिया कि वह सुब्रह्मण्यम स्वामी की भूमिका के बारे में अदालत में दाखिल दस्तावेजों की भी जांच को तैयार है। दरअसल अदालत ने परोक्ष रूप से संकेत दिया कि शीर्ष पदों पर बैठे आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए वह पुराने फैसलों को नजरअंदाज कर जांच जारी रख सकती है। इससे पहले न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी राव ने शीर्ष अदालत के पुराने फैसलों का हवाला देकर निगरानी की तय लक्ष्मण रेखा होने की दलील दी थी। पीठ ने राव से ही पूछ लिया कि आखिर क्यों अदालत की ओर से जांच की निगरानी का चलन शुरू हुआ? विनीत नारायण के मामले तक हमने यह नहीं सुना था। यह चलन इसलिए शुरू हुआ क्योंकि दुर्भावना का स्वरूप बड़ा होता गया और पारम्परिक तरीके कमजोर पड़ गए। जहां एक ओर तो सरकार इस घोटाले में अदालत की निगरानी जारी रखने पर एतराज कर रही है वहीं दूसरी ओर सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि जांच अदालत की निगरानी में ही जारी रहनी चाहिए। इस पर पीठ ने केंद्र से पूछा कि सॉलिसिटर जनरल ने पहले अदालत की ओर से निगरानी पर सहमति जताई थी, अब यदि सरकार अपना बयान वापस ले रही है तो बताए? जवाब में राव ने कहा कि वह सॉलिसिटर जनरल के बयान को वापस नहीं ले रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में हुई कार्रवाई से जहां सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के मतभेद उभर कर सामने आए हैं वहीं सरकार और सीबीआई के भी मतभेद सामने आ गए हैं।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के बीच युद्ध अब खुलकर सामने आ चुका है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में सीबीआई द्वारा चार्जशीट दायर करने के एक सप्ताह पहले ही वित्त मंत्रालय के उस नोट का बाहर आना जिसमें यह कहा गया हो कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम स्पेक्ट्रम के मूल्य को लेकर ए. राजा से सहमत थे, आने वाली घटनाओं की ओर संकेत है और यह भी कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ्तर में जासूसी प्रकरण के बाद किस तरह से प्रणब और चिदम्बरम के बीच कटु युद्ध छिड़ा हुआ है। सभी की नजरें अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा अमेरिका से लौटने पर टिकी हुई हैं। देखें प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस नए झंझट से कैसे निपटते हैं?
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