Friday 30 January 2015

मुस्लिम आबादी में 24 प्रतिशत वृद्धि

पिछले दिनों साक्षी महाराज के इस बयान पर कि हिन्दू औरतों को चार बच्चे पैदा करने चाहिए पर बवाल मच गया। हम साक्षी महाराज के इस बयान का समर्थन नहीं करते क्योंकि देश को आवश्यकता इस बात की नहीं कि जनसंख्या को और बढ़ाया जाए। जरूरत तो इस बात की है कि देश में बच्चों की संख्या पर नियंत्रण लगे। इसके बाद आए 2011 में जनगणना के आंकड़े। वर्ष 2011 में की गई जनगणना के अनुसार वर्ष 2001 से 2011 के बीच मुस्लिमों की देश में आबादी 24 प्रतिशत बढ़ी। इसके कारण देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई है। धर्म के आधार पर जनगणना पूर्व की यूपीए सरकार ने कराई थी लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। अब केंद्र में आई मोदी सरकार ने इसे जारी करने का फैसला किया। हालांकि इन आंकड़ों से एक बात का खुलासा हुआ है कि इससे पहले के वर्ष 1991 से 2001 के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर 29 प्रतिशत थी जो पिछले दशक में कम हुई। लेकिन इसके बावजूद यह राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। राष्ट्रीय औसत पिछले दशक में 18 प्रतिशत रही है। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार मुस्लिमों की जनसंख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि असम में हुई। 2001 में असम में मुस्लिमों की जनसंख्या 30.9 प्रतिशत थी जो एक दशक बाद बढ़कर 34.2 प्रतिशत हो गई। बंगलादेश से आने वाले अवैध प्रवासी हमेशा से असम के लिए और देश के लिए एक बड़ी समस्या रहे हैं। असम के साथ ही पश्चिम बंगाल भी बंगलादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों की समस्या से जूझ रहा है। यहां भी मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ी है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यहां मुस्लिमों की आबादी 25.2 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 27 प्रतिशत हो गई। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि देश में मुस्लिम आबादी के बढ़ने की रफ्तार घटी है किन्तु वृद्धि अब भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह एक संकेत है छोटा परिवार-सुखी परिवार के नारे को मुस्लिम समाज में धीरे-धीरे स्वीकृति मिल रही है। आर्थिक व शैक्षणिक तरक्की हासिल करने में कामयाब रहे मुस्लिमों का पढ़ा-लिखा तबका अब अपने परिवार को अपनी चादर के हिसाब से नियोजित करने लगा है। लेकिन यह साफ है कि एक बड़े हिस्से को अब भी परिवार नियोजन को लेकर प्रेरित और प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि मुस्लिम आबादी में हो रही वृद्धि को राष्ट्रीय औसत के निकट लाया जा सके और सकल तौर पर जनसंख्या नियंत्रित की मुहिम में कामयाबी मिल सके। पर यह काम जोर-जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता है। यह काम मुस्लिम धर्मगुरु, मौलाना व इमाम ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते हैं। वह मुस्लिमों को समझाएं कि कम बच्चों को पैदा करके वह उन्हें बेहतर शिक्षा व परवरिश दे सकते हैं। उनका भविष्य बेहतर बना सकते हैं। वैसे शहरों में मुस्लिमों को यह बात समझ भी आ रही है। न तो वह चार शादियां कर रहे हैं और न ही बच्चों की फौज खड़ा कर रहे हैं। हां कुछ इमाम, मौलाना यह भी कहते हैं कि तुम ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करो ताकि मुस्लिमों की जनसंख्या हिन्दुओं से ज्यादा हो जाए और हम हिन्दुस्तान पर राज करें। ऐसे मुस्लिम धार्मिक गुरुओं की भी उतनी ही आलोचना करनी चाहिए जितनी साक्षी महाराज की की जा रही है। जिस तरह असम और पश्चिम बंगाल में विगत 10 सालों में मुस्लिमों की आबादी लगभग चार प्रतिशत बढ़ गई है अंदेशा है कि इसमें बड़ी जनसंख्या अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की हो सकती है। चिन्ता का विषय यह भी है कि यह बंगलादेशी भारत में अशांति, खूनखराबा और  बढ़ती आतंकवादी घटनाओं की वृद्धि के पीछे हैं। यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अब खतरा बनते जा रहे हैं। खुशी की बात यह है कि मुस्लिम परिवारों में खासकर जो शिक्षित हैं वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और बाकी सुविधाएं, बेहतर परवरिश देने के लिए परिवारों को सीमित करते जा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह मुसलमानों समेत समाज के सभी कमजोर वर्गों को तरक्की के हर संभव अवसर उपलब्ध कराए, बेहतर शिक्षा देकर साक्षरता बढ़ाए और साथ ही किसी समुदाय विशेष की जनसंख्या को लेकर राजनीति न होने दे क्योंकि इससे आपसी तनाव बढ़ता है और समाज में कटुता बढ़ती है। आबादी तो हमारे लिए समस्या बन गई है, अधिक शर्मनाक यह है कि संसाधनों और सुविधाओं के अभाव के चलते जनसंख्या बढ़ती जा रही है। इस पर कैसे नियंत्रण लगाया जाए यह मोदी सरकार के लिए चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

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