Sunday 11 January 2015

कलम से डरने वाले इन जेहादियों का बर्बर, निंदनीय कृत्य

इस्लाम का शाब्दिक अर्थ है `शांति।' लेकिन इस धरती पर सर्वाधिक खूनखराबा इस्लाम के नाम पर इसके कट्टरपंथियों द्वारा ही हुआ है। इस्लाम के स्वयंभू जेहादियों ने एक बार फिर पैगम्बर के अपमान का बदला लेने के लिए फ्रांस की राजधानी पेरिस में 10 निहत्थे पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया। अभी दुनिया पाकिस्तान के पेशावर के आर्मी स्कूल के बच्चों के कत्लेआम की घटना से उभर भी नहीं सकी थी कि पेरिस में भी ऐसी ही घटना घट गई। फ्रांस के अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले में आतंकियों के शार्ली एब्दो पत्रिका के दफ्तर पर गोलीबारी की जिसमें मैगजीन के सम्पादक समेत 10 पत्रकार और दो पुलिसकर्मी मारे गए। पहली बार किसी एक घटना में इतने पत्रकार मारे गए हैं। हमले में 20 लोग घायल भी हुए हैं। शार्ली एब्दो एक साप्ताहिक मैगजीन है। यह व्यंग्य और कार्टून के लिए मशहूर है। 2006 में इसने पैगम्बर मोहम्मद साहब का कार्टून छापा था। इसके बाद से ही पत्रिका के सम्पादक को धमकी मिल रही थी। फ्रांस के मुस्लिम संगठनों ने इसके खिलाफ केस दर्ज कराया था। लेकिन वह हार गए थे। अदालत ने अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर मैगजीन के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसी हफ्ते मैगजीन ने आतंकी संगठन आईएस प्रमुख बगदादी का भी कार्टून छापा था। शार्ली एब्दो अपने जन्म से ही विवादों में रही है। पत्रिका में प्रकाशित कार्टून, रिपोर्ट और चुटकलों को लेकर कई बार विरोध प्रदर्शन हुए और हिंसक घटनाएं भी हुईं। यहां तक कि पत्रिका के सम्पादक स्टीफन कार्विनियर को जान से मारने तक की धमकी तक दी गई। लेकिन इन सबसे बेपरवाह शार्ली एब्दो अपनी नीति के अनुरूप विभिन्न मुद्दों पर अपने व्यंग्यात्मक कार्टून और रिपोर्ट प्रकाशित करती रही। शार्ली एब्दो के 47 वर्षीय सम्पादक स्टीफन कार्विनियर शानदार कार्टूनिस्ट तो थे ही, उकसाने वाले मुद्दे उठाने में भी माहिर थे। ला मोंड को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वह हमले से नहीं डरते। यह भले ही  बढ़ाचढ़ा कर करने वाला दावा लगता हो लेकिन उन्होंने कहा कि मैं झुकने के बजाय मरना पसंद करूंगा। वर्ष 2011 में पेट्रोल बम से पत्रिका के कार्यालय पर हुए हमले पर उन्होंने कहा था कि यह फ्रांस के मुस्लिमों का काम नहीं है बल्कि यह कुछ बेवकूफों का काम है। उनके बयान के बाद अलकायदा ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने का फतवा जारी किया था। शार्ली एब्दो मैगजीन पर हमला करने वाले दो भाइयों ने पूरा आपरेशन बड़ी बारीकी से प्लान किया था। उनके निशाने पर पत्रिका के सम्पादक सहित चार प्रतिष्ठित कार्टूनिस्ट थे। उन्होंने बाकायदा इन कार्टूनिस्टों की हत्या से पहले इनका नाम पूछकर इसकी तसल्ली की थी। इन कार्टूनिस्टों का नाम पैगम्बर मोहम्मद साहब के कार्टून विवाद से भी जुड़ा हुआ था। फ्रांस मीडिया में आई रिपोर्ट में कहा गया कि जब बंदूकधारी गोलाबारी करते हुए पत्रिका के दफ्तर में घुसे तो उन्होंने अन्य स्टाफ से शार्ली एब्दो के सम्पादक स्टीफन कार्विनियर उर्प शार्व, जार्ज वोलिएंकी, जीन केबू और बनीड टिगनस वर्लहैक के बारे में पूछा। जहां पर सम्पादकीय टीम की बैठक हो रही थी वहां पर भी बंदूकधारियों ने बाकायदा नाम से इन कार्टूनिस्टों के बारे में पूछा और फिर गोली मारी। गौरतलब है कि इन कार्टूनिस्टों की हत्या करने की धमकी पहले से ही अलकायदा ने दे रखी थी। अलकायदा का आरोप है कि यह कार्टूनिस्ट इस्लाम और पैगम्बर साहब का मजाक उड़ाते हैं। इस हत्याकांड से पूरा विश्व समुदाय स्तब्ध है। वहीं कुछ साल पहले कार्टूनिस्ट का सिर कलम करने वाले को 57 करोड़ रुपए का इनाम देने के बयान से सुर्खियां बटोरने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री याकूब कुरैशी ने बुधवार को एक और विवादित बयान दे दिया। कुछ साल पहले डेनमार्प के एक समाचार पत्र में पैगम्बर मोहम्मद साहब का आपत्तिजनक कार्टून छापने पर मुस्लिम समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। अब कुरैशी ने कहा है कि पूर्व में आपत्तिजनक कार्टून बनाने वाला तो मर चुका है। लेकिन पेरिस की मैगजीन में पैगम्बर का आपत्तिजनक कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट के हत्यारे को वह 57 करोड़ की इनाम राशि देने को तैयार है। वैसे अपना मानना है कि किसी भी धर्म या उसके भगवान का मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए। व्यक्ति की आजादी इस बात की इजाजत नहीं देती कि आप किसी दूसरे मजहब का मजाक उड़ाएं। निसंदेह पत्रिका की गलती थी और उसके इस कार्य को उचित नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन साथ-साथ यह भी कहना पड़ेगा कि आज के इस दौर में बौद्धिक आक्रमण का जवाब गोलीबारी से देना भी कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता। संचार प्रधान वर्तमान दौर में उस अखबार के कृत्यों के खिलाफ एक जनमत खड़ा किया जा सकता था। उसके पत्रकारों को असहिष्णु और दूसरे धर्मों का आदर न करने वाला घोषित किया जा सकता था। बहुत से रास्ते थे लेकिन निहत्थे लोगों पर अचानक बंदूक की गोलियों से बौछार, नितांत कायराना हरकत है। आखिर इन हमलों के पीछे कौन है और उनके इरादे क्या हैं? हमले में पहले अलकायदा का नाम सामने आया। आईएस कट्टरता और आतंक का नया नाम है, जिसने सीरिया और इराक में अपनी समानांतर सत्ता कायम कर ली है। इस हमले के बाद ईरान से आई प्रतिक्रिया चिंता का कारण बन सकती है। वहां के मीडिया का एक तबका मानता है कि यह हमला फ्रांस द्वारा सीरिया में सशस्त्र विपक्ष का साथ देने और आईएस के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन सेना द्वारा किए गए हवाई हमले के विरोध में किया गया है। धार्मिक कट्टरता को आतंकी मंसूबों से जोड़ने के इस खतरनाक खेल का विरोध होना चाहिए। दरअसल स्वतंत्र विचारों से न लड़ सकने वाले लोग ही कट्टरता और हिंसा का सहारा लेते हैं, जिसका विरोध होना चाहिए। मगर यह विरोध किसी धर्म के विरुद्ध नहीं बल्कि हिंसक मानसिकता के प्रति है। अत बात है मूलभूत मान्यताओं में सुधारों की, अपने से अलग धार्मिक मान्यताओं और विश्वासों को सहन करने, उनका सम्मान करने की। जब तक पश्चिम और इस्लामिक जगत यह नहीं सीखता तब तक ऐसी घटनाएं रोकना असंभव है। साथियों की मौत से गमजदा शार्ली एब्दो के पत्रकार और कार्टूनिस्ट पत्रिका का नया अंक लेकर आ रहे हैं। वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए इस हमले के पुरजोर विरोध का इससे बेहतर और कोई दूसरा तरीका हो भी नहीं सकता।

-अनिल नरेन्द्र

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