Saturday 10 January 2015

भारत में तो 7000 साल पहले ही उड़ते थे विमान

इतिहास में भले ही राइट बंधुओं का नाम दुनिया का पहला विमान उड़ाने वालों के रूप में दर्ज हो जिन्होंने 1904 में पहला विमान उड़ाया था। मगर भारत में तो 7000 साल पहले ही विमान उड़ा करते थे। यह विमान न सिर्प एक देश से दूसरे देश तक जाने में सक्षम थे बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाने की भी क्षमता इनमें थी। यह दावा कैप्टन आनंद जे बोडस ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में किया है। भारतीय विज्ञान कांग्रेस में रविवार को वेदों में प्राचीन विमान तकनीक से जुड़े विवादास्पद व्याख्यान में यह दावा किया गया। पायलट प्रशिक्षण संस्थान के सेवानिवृत्त प्राचार्य कैप्टन आनंद जे बोडस के व्याख्यान को लेकर कुछ वैज्ञानिकों ने आलोचना की और कहा कि यह उन प्रयोग आधारित साक्ष्यों की प्रमुखता की अनदेखी करता है जिन पर 102 साल पुरानी भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की गई थी। विज्ञान कांग्रेस में संस्कृत के माध्यम से प्राचीन विज्ञान विषय पर परिचर्चा के दौरान कैप्टन बोदास ने वैदिक ग्रंथों का हवाला देते हुए दावा किया कि प्राचीन भारत में विमानन तकनीक मौजूद थी। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में प्राचीन विमानन तकनीक का जिक्र है। महर्षि भारद्वाज ने सात हजार साल पहले ऐसे विमान की मौजूदगी की बात कही थी, जो एक देश से दूसरे देश जा सकता था। यही नहीं, वह एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप, यहां तक कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक भी जाने में सक्षम था। उन्होंने विमानन तकनीक के संबंध में 97 किताबें लिखी हैं। रामायण में रावण के पुष्पक विमान का जिक्र है जिसमें वह सीता का हरण कर लंका ले गया था। यह विमान नहीं था तो और क्या था? प्राचीन भारत में विमान बहुत ही बड़े हुआ करते थे। विमान का आधारभूत ढांचा 60 गुणा 60 फुट का होता था और कई मामलों में तो यह 200 फुट से भी ऊंचा होता था। वैदिक विमानों में छोटे-छोटे 40 इंजन हुआ करते थे। रॉडार सिस्टम भी था जिसे स्पाकर रहस्य कहा जाता था। बोडस के बयान पर बहस छिड़ना स्वाभाविक ही था। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि मैं आज भी सुबह की शुरुआत संस्कृत में खबरें देखकर ही करता हूं। सारी पुरानी चीजें काम की न हों लेकिन सारी चीजें बेकार भी नहीं  हैं। वैज्ञानिक संस्कृत में मौजूद ज्ञान का मानवता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल करें। जब जर्मनी हम भारतीयों के कान्सेप्ट का इस्तेमाल कर दुनियाभर को चमत्कृत करने वाले आविष्कार दे सकते हैं तो यह काम हम क्यों नहीं कर सकते हैं। केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि बीज गणित और पाइथागोरस थियरम की खोज भारत में हुई थी, लेकिन इसका श्रेय दूसरे लोगों को मिला। पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर का कहना था कि हिन्दुत्व ब्रिगेड की अतिश्योक्ति से भरी बातों के चलते प्राचीन भारतीय विज्ञान की वास्तविक उपलब्धियों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। हर्षवर्धन का मजाक उड़ाने वाले आधुनिकतावादियों को जान लेना चाहिए कि वह सही नहीं हैं। एक अन्य पेपर में दावा किया गया है कि भारतीयों ने सर्जरी के लिए 20 तरह के तेज और 101 मोथरे औजार बनाए थे। सर्जरी के बाद त्वचा की असली रंगत लौटाने के लिए ऑपरेशन के बाद एक ट्रीटमेंट होता था जो आज के सर्जिकल दौर में आम इस्तेमाल में नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र


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