Saturday, 24 January 2015

टाइगर्स का बढ़ता कुनबा अच्छी खबर है

पिछले काफी समय से बाघों की घटती तादाद चिंता का सबब बनी हुई थी। देश में सिमटते जंगलों के बीच बाघों की दहाड़ दुर्लभ होती जा रही थी। खासकर 2008 में जब भारत में सिर्प 1400 बाघ बचे थे, तब उनके अस्तित्व पर ही संकट माना जाने लगा था। बाघों के संरक्षण के लिए 1973 में भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर नामक कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत देश के 18 राज्यों में इस वक्त 47 टाइगर रिजर्व हैं। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.08 प्रतिशत हिस्सा है। दुनिया के 70 प्रतिशत बाघ अकेले भारत में ही पाए जाते हैं। पिछली सदी की शुरुआत में पूरी दुनिया में तकरीबन एक लाख बाघ थे। इस आबादी का 97 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो गया है। अब यह संख्या तीन-चार हजार के बीच रह गई है। वन्य जीव प्रेमियों के लिए 2015 बड़ी खुशखबरी लेकर आया है। 2010 से 2014 तक देशभर में बाघों की संख्या में 30.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 2010 में बाघों की संख्या 1706 थी जो 2014 में बढ़कर 2226 हो गई है। 2006 में यह आंकड़ा महज 1411 था। मंगलवार को नई दिल्ली में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की स्टेटस ऑफ टाइगर्स इन इंडिया रिपोर्ट-2014 जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 18 राज्यों में बाघ हैं। कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बाघों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2010 में 300 बाघों के साथ कर्नाटक पहले स्थान पर था। बाघों की संख्या जिस तरह से बढ़ी है उससे पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में  बाघों के संरक्षण के लिए चलाए गए कार्यक्रमों या अभियानों के सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। दरअसल बीते दो-तीन दशक के दौरान बाघों की संख्या लगातार गिरती चली जा रही थी और शिकार के साथ-साथ घटते जंगल जैसी कई वजहों से इस जंगल के राजा के जीवन पर संकट खड़े हो रहे थे। खासकर सरिस्का, रणथंभौर आदि रिजर्वों से बाघों के गायब होने की खबरें जब-तब आ रही थीं। चिंताजनक हालातों के सामने आने के बाद सरकार की ओर से बाघ संरक्षण के लिए एक कार्यबल का गठन करने सहित कई कदम उठाए गए। बाघ बचाने की तमाम कोशिशों और कार्यक्रमों के बीच देश में संरक्षित गलियारों और वन क्षेत्रों पर मंडराते खतरे पर ध्यान देने की जरूरत अब भी है। ताजा उपलब्धि पर्यावरण, वन्य जीव और बाघों के जीवन पर काम करने वाले लोगों के लिए इसलिए भी राहत वाली है कि जब दुनियाभर में इस पशु की संख्या तेजी से घटी है, वहीं भारत में यह संख्या बढ़ी है। इस कामयाबी का श्रेय वन अधिकारियों, कर्मचारियों, सामुदायिक भागीदारी और वैधानिक सोच के मुताबिक इस मसले पर काम करने वाले तमाम लोगों और एजेंसियों को देना होगा। साथ-साथ यह ध्यान भी रखने की जरूरत है कि इन उपायों पर अमल करके इस उपलब्धि में स्थिरता कायम रहे और टाइगरों की संख्या बढ़ती रहे।

-अनिल नरेन्द्र

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