पार्टी में इन दिनों हाशिये पर डाले गए कभी मायावती
के बेहद भरोसेमंद लोगों में शुमार जुगुल किशोर ने बहन जी पर धन लेकर टिकट बेचने का
आरोप लगाया है। बसपा से सभी तरह की जिम्मेदारियों से हटाए जाते ही राज्यसभा सांसद जुगुल
किशोर ने पार्टी सुप्रीमो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जुगुल किशोर ने रविवार को कहा
कि माया दलित की नहीं, दौलत
की बेटी हैं। पार्टी में कोई काम बिना पैसे के नहीं होता। चुनावों में टिकट भी जेब
ढीली करने पर ही मिलता है। जैसा उम्मीदवार वैसी कीमत। विधानसभा चुनाव के लिए
50 लाख रुपए से दो करोड़ रुपए तक लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि मैंने
वसूली का विरोध किया तो मुझे पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया। मायावती
के स्वजातीय जुगुल किशोर की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि वे बिहार व दिल्ली के
प्रभारी थे। इससे पहले वे गोरखपुर, फैजाबाद, देवीपाटन और बस्ती मंडल के चीफ को-आर्डिनेटर रहे हालांकि
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले उनसे यह जिम्मेदारी छीन ली गई थी। जुगुल किशोर के इस आरोप
के जवाब में बहन जी ने कहा कि जुगुल किशोर अपने बेटे के लिए विधानसभा की टिकट मांग
रहे थे। मैंने तय किया हुआ है कि पार्टी में परिवारवाद नहीं चलेगा। उन्हें मना किया
तो पार्टी विरोधी गतिविधियों में लग गए। वह अपना रास्ता अलग बना रहे हैं। अब उनसे कोई
बात नहीं करेगा। यह बात मायावती ने रविवार को पार्टी के पदाधिकारियों की बैठक में कही।
गत मई में बसपा के पूर्वी उत्तर प्रदेश के जोनल समन्वयक पद से और शनिवार को दिल्ली
तथा बिहार के पार्टी प्रभारी पद से हटाए गए जुगुल किशोर ने यह भी दावा किया कि अगर
निष्पक्ष जांच हो तो बसपा के कई विधायक मायावती द्वारा चुनाव टिकट बेचे जाने की गवाही
देकर उन्हें बेनकाब कर सकते हैं। मायावती को दुनिया की सबसे धनी राजनेता बताते हुए
किशोर ने कहा कि पिछले कुछ समय से दलित मिशन को किनारे करके मनी मिशन शुरू कर दिया
गया है। लखनऊ, नोएडा तथा दिल्ली में बहुजन प्रेरणा केंद्रों की
स्थापना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि दलितों के
खून-पसीने की कमाई से बने इन केंद्रों को बाद में ट्रस्ट में
तब्दील कर दिया गया। खुद मायावती, उनके भाई आनंद तथा करीबी विश्वास
पात्र सतीश चन्द्र मिश्र उसके ट्रस्टी बन गए। मायावती पर पहले भी ऐसे आरोप लगते रहे
हैं। वैसे बसपा अकेली नहीं जिस पर टिकटों को बेचने के आरोप लगे हों, दोनों कांग्रेस और भाजपा पर भी ऐसे ही आरोप लगे हैं। भारत की सियासत में अब
पैसे का बहुत जोर हो चुका है। बिना पैसे के अब कुछ नहीं होता। बसपा पिछले कुछ दिनों
से भारत की राजनीति में थोड़ा हाशिये पर चली गई है। मायावती से पार्टी के सांसद व पूर्व
सांसद अब संभल नहीं रहे। बहुजन समाज पार्टी को नए सिरे से अपने वोट बैंक को जोड़ने
का गंभीर प्रयास करना होगा ताकि उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव में वह एक सियासी
शक्ति के रूप में उभर सके।
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