Friday 2 January 2015

टीम इंडिया के कैप्टन कूल का टेस्ट से संन्यास

कहा जाता है कि क्रिकेट अनिश्चिंताओं का खेल है और जिस तरह टीम इंडिया के कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी ने टेस्ट से रिटायरमेंट की घोषणा की है इसे साबित करता है। भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल टेस्ट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने मंगलवार शाम टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का ऐलान कर अपने फैंस को ही नहीं बल्कि खुद साथी खिलाड़ियों व बीसीसीआई को हैरान कर दिया। किसी मैच में टीम इंडिया जब जीत की दहलीज तक पहुंचती थी तब दर्शकों को बस एक ही चीज का इंतजार रहता था कि कप्तान धोनी का विजय दिलाने वाला हेलीकाप्टर शॉट का। छह वर्षों से भारत का नौजवान आक्रामक क्रिकेट पीढ़ी का चेहरा बनकर चमकते धोनी टीम के बुरे वक्त में ऐसे अचानक साथ छोड़ जाएंगे यह किसी की कल्पना में भी नहीं रहा होगा। धोनी की बारी बेशक तीसरे टेस्ट मैच के बाद आई जिसमें भारतीय टीम बमुश्किल हार टाल पाई थी, लेकिन दो जीतों के साथ आस्ट्रेलिया बाकायदा चार मैचों की यह श्रृंखला जीत चुका है और बचा हुआ एक मैच तो औपचारिकता भर रह गया है। क्या बेहतर नहीं होता कि आखिरी मैच की यह औपचारिकता पूरी होने तक महेंद्र सिंह धोनी अपनी टीम के साथ उसकी नियति साझा करते? आज सभी अटकलें लगा रहे हैं कि धोनी ने संन्यास लेने का यूं आखिर क्यों फैसला किया। विदाई की छह संभावित वजहें हो सकती हैं। धोनी ने टीम के साथियों को दी भावुक स्पीच में बताया कि वह टीम पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। धोनी ने कहा कि तीनों फार्मेट (टेस्ट, वन डे और टी-20) में खेलना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। तीसरी वजह यह हो सकती है कि धोनी की कप्तानी में टीम ने विदेशों में 30 टेस्ट खेले, जिनमें महज छह में जीत मिली और 15 हार गए। पिछले कुछ समय से धोनी अच्छी बल्लेबाजी का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे। लंबे समय से वापसी को जूझते दिखे। पांचवीं वजह ः चर्चा है कि टीम में विराट कोहली के बढ़ते कद ने भी धोनी को रिटायरमेंट के लिए मजबूर किया होगा और अंतिम वजह यह भी हो सकती है कि आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग में बार-बार नाम आने से भी धोनी की इमेज थोड़ी धुंधली हुई। वह चेन्नई सुपर किंग्स की कप्तानी छोड़ने का प्रस्ताव भी रख चुके हैं। धोनी अभी 33 वर्ष के हैं और बढ़ती उम्र के साथ तो अमूमन क्रिकेटर एक दिवसीय जैसे छोटे फार्मेट वाले खेल से संन्यास लेता है ताकि टेस्ट क्रिकेट खेल सकें। इसके बावजूद यह कहना होगा कि रांची जैसे छोटे से शहर और बेहद मामूली पृष्ठभूमि से निकलकर भारतीय टीम का कप्तान बनने तक का धोनी का सफर युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणादायी रहा है। वह उस वक्त टीम इंडिया से जुड़े जब टीम में सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और अनिल पुंबले जैसे दिग्गजों के साथ ही वीरेंद्र सहवाग जैसे समकालीन की मौजूदगी थी। इसके बावजूद कम समय में ही धोनी ने न सिर्प अपनी जगह ही बनाई बल्कि जल्द ही चयनकर्ताओं का भरोसा भी हासिल किया। वास्तव में एक दिवसीय और टी-20 में विश्व कप दिलाने जैसी उनकी चमकीली उपलब्धियों को टेस्ट मैचों में दिलाई गई सर्वाधिक जीतों के साथ जोड़कर देखें तो धोनी की जोड़ का कोई दिखता नहीं है। बेशक सौरभ गांगुली ने टीम इंडिया में लड़ने का जज्बा पैदा किया, मगर यह धोनी थे जिनकी अगुवाई में भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया में नम्बर वन टेस्ट टीम बन सकी। लेकिन आईपीएल क्रिकेट फिक्सिंग विवादों में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में जब विवादित बीसीसीआई अध्यक्ष श्रीनिवासन पर फिक्सिंग के आरोप खुलकर लगे साथ-साथ धोनी का नाम भी उछला, तभी से आशंका गहराने लगी थी। धोनी पर फिक्सिंग के आरोप तो खुलकर नहीं लगे लेकिन उन पर प्रभाव में आने की आशंका तो गहराती गईöआखिरकार वह श्रीनिवासन की ही कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी थे और उन्हीं की टीम की कप्तानी भी संभाल रहे थे। क्रिकेट आंकड़ों का खेल है और पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि धोनी टीम में वह जज्बा पैदा नहीं कर पा रहे थे जिससे जीत मिलती। लगता है कि अब टीम इंडिया की टेस्टों में विराट कोहली कप्तानी संभालेंगे। बेशक विराट कोहली के रूप में टीम इडिया को धोनी का उत्तराधिकारी जरूर मिल गया है मगर मैदान में महेंद्र सिंह धोनी और कैप्टन कूल की कमी जरूर खलेगी।

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