Sunday, 4 January 2015

अमेरिकी इतिहास का सर्वाधिक लम्बा युद्ध समाप्त

अमेरिका और नाटो ने आखिरकार अफगानिस्तान में 13 वर्षों से तालिबान चरमपंथियों के खिलाफ अपने अभियान को गत रविवार को आधिकारिक रूप से खत्म घोषित कर दिया। रविवार को एक समारोह में इंटरनेशनल सिक्यूरिटी असिस्टेंट फोर्स (आईएसएफ) के कमांडर जनरल जॉन कैंपबेल ने सैन्य संगठन के झंडे को उतार कर अभियान का समापन किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितम्बर 2001 में हुए चरमपंथी हमले के बाद अमेरिका के नेतृत्व में नाटो ने तालिबान सरकार के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया था। एक जनवरी 2015 से अब अफगानिस्तान के एक अंतर्राष्ट्रीय मिशन के तहत आईएसएएफ के केवल 12,500 सैनिक अफगान सुरक्षा बलों के  प्रशिक्षण और मदद के लिए रुके रहेंगे, जिनमें 11000 अमेरिकी सैनिक हैं। करीब 50 देशों के सैनिकों ने जब 2001 में अफगानिस्तान में युद्ध शुरू किया था तो आईएसएएफ का गठन किया गया था। अफगान युद्ध में करीब 3500 अंतर्राष्ट्रीय सैनिक मारे गए थे, जिसमें दो-तिहाई अमेरिकी सैनिक थे। वर्ष 2011 में अंतर्राष्ट्रीय सैनिकों की संख्या बढ़कर सर्वाधिक 1,40,000 हो गई थी, जिसमें 1,01,000 अमेरिकी सैनिक थे। अमेरिका और नाटो सैनिकों के हटने के बाद अफगानिस्तान सरकार के खिलाफ तालिबान हमलों के बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। वैसे भी पिछले एक साल से तालिबानियों के हमले बहुत बढ़ गए हैं। 13 वर्षों के अफगान युद्ध में जितने अंतर्राष्ट्रीय सैनिक मारे गए उससे ज्यादा पिछले 10 महीने में तालिबानों के हमले से अफगान सुरक्षा बलों के जवान मारे गए हैं। अफगान तालिबान ने यह घोषणा करके आने वाले दिनों में टकराव की नई आशंकाओं को हवा दी है कि विदेशी सेनाओं के जाने के बाद अफगानिस्तान में शुद्ध इस्लामी प्रणाली लागू करेगा। रविवार को अंतर्राष्ट्रीय सहायता सुरक्षा बल के युद्धक मिशन को खत्म करने की घोषणा पर शाम को तालिबान ने कहा कि नाटो बल हार गए हैं और बीते 13 सालों में कुछ हासिल किए बिना ही उन्होंने अपना झंडा लपेट लिया है। तालिबान का कहना है कि वो बाकी बचे हमलावरों को खदेड़ कर एक शुद्ध इस्लामी राज्य की स्थापना करेगा। ऐसे में यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अफगानिस्तान में फिर से तालिबान का कब्जा होगा? लगातार युद्ध ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है। तालिबान हमलों ने उसके इस संकट को और बढ़ा दिया है। गनीमत यही है कि पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल पर हमले के बाद से तालिबान ताकतों के खिलाफ पाक सेना गंभीर हुई है। अभी तक तो यह था कि पाकिस्तान की सेना अफगानिस्तान के खिलाफ छद्म युद्ध के लिए तालिबानों को मदद दे रही थी। पिछले 20 सालों से अफगानिस्तान में विद्रोह एवं कत्लेआम के लिए पाकिस्तानी सेना ही जिम्मेदार रही। पाक सेना लश्कर और अन्य खूंखार जेहादी संगठनों के जरिये भारत के खिलाफ जिस तरह से खूनी खेल को अंजाम दे रही थी, ठीक वैसा ही खेल वह तालिबान आतंकियों के जरिये अफगानिस्तान में खेल रही थी। यदि अफगानिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो इसका भारत और पाकिस्तान दोनों पर असर पड़ेगा। अफगान सरकार और भारत सरकार को आने वाले दिनों में और चौकस रहना होगा।
-अनिल नरेन्द्र


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