भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने अर्थव्यवस्था
पर आलेख बम फेंककर अपनी ही पार्टी और सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है। यही
नहीं उन्होंने विपक्ष को भी मोदी सरकार पर हमला तीखा करने का मौका दे दिया है। उनकी
कठोर टिप्पणी को विपक्षी दलों और प्रधानमंत्री विरोधियों ने हाथों-हाथ लिया है। उसे सोशल मीडिया पर भी खूब भुनाया जा रहा है।
सिन्हा का लेख ऐसे वक्त पर प्रकाशित हुआ है जब देश की अर्थव्यवस्था ढलान पर है और विपक्ष
खासकर कांग्रेस केंद्र सरकार की जमकर आलोचना कर रही है। सिन्हा का मानना है कि वित्तीय
कुप्रबंधन, नोटबंदी और जीएसटी के लचर क्रियान्वयन ने भारतीय अर्थव्यवस्था
का बेड़ागर्क कर दिया है और वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत
पहुंच गई है। उन्होंने वित्तमंत्री को उदारीकरण के बाद से अब तक का सबसे भाग्यशाली
वित्तमंत्री बताते हुए कहा है कि उनके समय में कच्चे तेल के दाम गिरे। इसका लाभ उठाकर
गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) पर
नियंत्रण किया जा सकता था और रुकी हुई परियोजनाओं को पूरा किया जा सकता था। सरकार के
आंकड़ों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की मौजूदा दर 5.7 प्रतिशत है लेकिन वास्तव में यह
3.7 प्रतिशत है। मोदी सरकार ने वर्ष 2015 में जीडीपी
की वृद्धि दर मापने के तरीकों में बदलाव किया है जिससे आंकड़ा 5.7 प्रतिशत दिख रहा है। यशवंत सिन्हा की टिप्पणी को बेशक सरकार के मंत्री और संगठन
उनकी कुंठा और खीझ बताकर टाल दें पर आज जो माहौल है उसको कैसे रद्द कर सकते हैं। अगर यशवंत सिन्हा निजी
कारणों से सरकार पर हमला बोल रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी संगठन भारतीय
मजदूर संघ क्या कह रहा है उस पर तो ध्यान दें। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने अर्थव्यवस्था में मंदी के लिए सरकार की गलत
नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए दो दिन पहले कहा कि मौजूदा आर्थिक हालात पर विचार
करने के लिए सभी सामाजिक-आर्थिक पक्षों का गोलमेज सम्मेलन बुलाया
जाना चाहिए। संघ का मजदूर संगठन बीएमएस और स्वदेशी जागरण मंच सरकार की आर्थिक नीतियों
का खुलकर विरोध कर रहे हैं। हाल में मथुरा में हुई संघ की कार्यकारिणी की बैठक में
दोनों संगठनों ने सरकार की आलोचना की। आज ही मजदूर संघ ने यशवंत सिन्हा का समर्थन करते
हुए कहा कि सरकार के सलाहकारों और गलत नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था सुस्त हुई है।
संघ के महामंत्री ब्रजेश उपाध्याय ने कहा सरकार के सुधार मिसगाइडेड हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष
राहुल गांधी ने बुधवार को गुजरात के सुंदर नगर जिले में चोटिला के निकट एक जनसभा को
संबोधित करते हुए मोदी सरकार पर आम लोगों की दुर्दशा को नजरअंदाज करने और कुछ लोगों
के हित का ख्याल रखने का आरोप लगाते हुए कहा कि यशवंत सिन्हा के अब मुझे बोलने की जरूरत
है शीर्षक लेख पर लेख का समर्थन किया। राहुल ने कहा कि मैंने भाजपा के वरिष्ठ नेता
यशवंत सिन्हा का एक आलेख पढ़ा। उन्होंने लिखा है कि मोदी जी और जेटली जी ने भारतीय
अर्थव्यवस्था का विनाश कर दिया है। यह मेरे विचार नहीं हैं बल्कि यह भाजपा नेता की
राय है। मोदी के गृह राज्य में इस साल चुनाव होना है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा ः
भाजपा नेता जानते हैं कि देश गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है, फिर भी कोई बोलने को तैयार नहीं है क्योंकि वे मोदी से डरे हुए हैं। गांधी
ने दावा किया कि देश की अर्थव्यवस्था मुश्किल में है क्योंकि भाजपा सरकार आम लोगों
की बात नहीं सुनती। प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम पर चुटकी लेते हुए गांधी ने
कहा ः यह इसलिए हुआ है कि भाजपा सरकार ने किसानों, युवाओं,
श्रमिकों, कारोबारियों और महिलाओं की कभी सुनी
ही नहीं, जो इस देश को चलाते हैं। भाजपा के लोग केवल कारोबारियों
(बड़े) की सुनते हैं और इसके बाद लोगों
से अपने मन की बात करते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व वित्तमंत्री पी.
चिदंबरम ने भी हुकूमत पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि सरकार आर्थिक गिरावट
की स्थिति से बेखबर है। सांसद से लेकर उद्योगपति तक अर्थव्यवस्था की खराब सेहत से चिंतित
हैं। लेकिन इस सरकार के डर से कोई खुलकर बोल नहीं रहा। उन्होंने ऐसे तमाम लोगों से
अपील की कि उन्हें डर छोड़कर, इस हालत को लेकर अपनी मन की बात
रखनी चाहिए। यशवंत सिन्हा ने तो पानी में कंकड़ फेंका है। पानी में कितनी हलचल मचती
है, देखते हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि इस बात की आशंका
है कि यदि सरकार अपनी पूरी ताकत भी लगा दे तो भी 2019 के लोकसभा
चुनावों तक अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं लाया जा सकता। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी
की बैठक के फौरन बाद 2 दिन में पार्टी के भीतर ही मोदी सरकार
पर हुए हमले के बाद भले ही पार्टी आलाकमान उसे तरजीह न दे रहा हो। लेकिन पार्टी में
बेचैनी जरूर महसूस की जा रही होगी। पार्टी में आशंका जरूर जताई जा रही है कि आने वाले
दिनों में कुछ और नाराज नेता अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो जनता में
इसका गलत संदेश जा सकता है। हालांकि पार्टी नेतृत्व की ओर से यही संकेत दिए जा रहे
हैं कि फिलहाल जो लोग भी सरकार के कामकाज पर उंगली उठा रहे हैं, वे इसलिए निराश हैं क्योंकि उन्हें कोई ओहदा नहीं मिला। भाजपा सूत्रों के मुताबिक
पार्टी में इस मसले पर कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। लेकिन पार्टी में नेताओं का एक बड़ा वर्ग
ऐसा है जिसका मानना है कि पहले वरुण गांधी का रोहिंग्या के मामले में पार्टी से अलग
लाइन लेना और फिर यशवंत सिन्हा का खुलकर मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर हमला करने
से पार्टी में नाराज नेताओं को ताकत मिलेगी। यही वजह है कि अब यह माना जाने लगा है
कि आने वाले दिनों में एक बार फिर सरकार की वित्तीय नीतियों के आलोचक और मुखर हो जाएंगे।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक हालांकि यशवंत सिन्हा के लेख से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ने
वाला। लेकिन इससे एक तो जनता में गलत संदेश जाएगा और दूसरे विपक्षी पार्टियों खासकर
कांग्रेस यह मौका नहीं छोड़ेगी। उस पर तुर्रा यह है कि गुजरात विधानसभा के चुनाव होने
जा रहे हैं। पार्टी की चिंता यही है कि यशवंत सिन्हा के इस बागी रुख के देखा-देखी दूसरे नेता भी अपना रंग न दिखाने लगें। अगर ऐसा हुआ तो यह सिलसिला लंबा
हो सकता है। इसकी वजह यह है कि अब तक मोदी सरकार के कामकाज और उनकी बेरुखी से नाराज
रहने वाले नेता मौका
देखकर अपनी चुप्पी तोड़ सकते हैं।
-अनिल नरेन्द्र