देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी कांग्रेस के उपाध्यक्ष
राहुल गांधी इन दिनों अमेरिका के दौरे पर हैं। वहां वह छात्रों, थिंक टैंक व बुद्धिजीवी वर्ग से रूबरू
हो रहे हैं। उनके भाषणों की चर्चा चारों ओर हो रही है। अमेरिका में वह देश की नीतियों
पर प्रधानमंत्री मोदी के उठाए गए कदमों पर तीखे सवाल कर रहे हैं। छवि निर्माण के लिहाज
से उनका यह दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वह अपनी पार्टी की हार के कारणों
पर भी खुलकर चर्चा कर रहे हैं। हालांकि राहुल की साफगोई की चर्चा हो रही है पर सबसे
ज्यादा चर्चा है जनता से जुड़े मुद्दों के चयन की। राहुल गांधी की आमतौर पर छवि एक
नासमझ व नाकाबिल नेता के रूप में बन गई है। उनका यह अमेरिका का दौरा यह साबित करने
का प्रयास है कि वह प्वाइंट टू प्वाइंट बात करके अपना नया अवतार दिखाना चाहते हैं।
भारतीय राजनीति में तो वह एक बड़े राजनीतिक घराने के युवा और आकर्षक शख्सियत के तौर
पर ही जाने जाते रहे हैं। यहां तक कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा उन्हें नॉन परफॉर्मर
नेता के तौर पर ही प्रचारित करती है। लेकिन जिस तरह पिछले कुछ दिनों से राहुल ने विदेश
में विभिन्न मसलों पर केंद्र में सत्तासीन भाजपा की सरकार को घेरा है, उससे उनकी छवि गंभीर और परिपक्व नेता की बनी है। राहुल के आक्रामक तेवर और
सही मुद्दों को उठाने से उनकी पार्टी कांग्रेस में एक नया उत्साह व उम्मीद बन रही है।
अपनी पुरानी बनी छवि तोड़ने की दिशा में यह दौरा राहुल के लिए अच्छी शुरुआत है। यह
आलोचना हो रही है कि राहुल को विदेश में भारत की समस्याओं की चर्चा नहीं करना चाहिए
पर राहुल एक तरह से मोदी की नकल ही कर रहे हैं। मोदी के विदेश दौरे के बाद उनका कद
काफी बढ़ा था। लगता है कि राहुल गांधी भी इसी राह पर चल रहे हैं। राहुल को इस बात का
अच्छे से पता है कि भाजपा की नीतियों को लेक देश की जनता में भारी रोष है। अब वह पहली
जैसी बात नहीं है। जनता में गुस्सा और मायूसी है। यही वजह है कि राहुल जनता से जुड़ी
बातों और परेशानियों को अपने भाषणों में उठा रहे हैं। मसलन भारत में नौकरियों के अवसर
पैदा कर पाने में सरकार का नाकाम रहना। इस दौरान उन्होंने भारत समेत पूरी दुनिया में
असहिष्णुता बढ़ने पर दुख जाहिर किया। हर दिन रोजगार बाजार में 30,000 नए युवा शामिल हो रहे हैं और इसके बावजूद सरकार प्रतिदिन केवल 500 ही नौकरियां पैदा कर पा रही है। इसमें बड़ी संख्या में पहले से ही बेरोजगार
युवा शामिल हैं। प्रिसंटन यूनिवर्सिटी में छात्रों के साथ बातचीत में राहुल ने स्वीकार
किया कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को भारत में सत्ता इसलिए मिली क्योंकि लोग
कांग्रेस पार्टी से बेरोजगारी के मुद्दे पर नाराज थे। उन्होंने कहा कि रोजगार का पूर्ण
मतलब राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में लोगों को सशक्त करना और शामिल करना है। राहुल
गांधी जानते हैं कि आज देश की जनता परेशान है, हैरान है। उन्होंने
सोच-समझ कर ऐसे मुद्दे उठाए हैं जिनका सीधा संबंध जनता और देश
की उन्नति से जुड़ा है। साथ ही मेक इन इंडिया नीति की विफलता और राजनीतिक प्रणाली का
केंद्रीकरण के मसले पर राहुल ने बेबाकी से अपनी राय रखी। बेशक ऐसा करने से राहुल का
मंतव्य जनता के मन में भाजपा के खिलाफ फिलवक्त माहौल बनाना है जिसे वे कैश करना चाहते
हैं। आज देश की जनता के सामने सबसे बड़ी समस्या भाजपा के विकल्प की है। राहुल कांग्रेस
को भाजपा का विकल्प बनाना चाहते हैं। मीडिया में खबरों के अनुसार वह कांग्रेस पार्टी
का अध्यक्ष पद वह महीने संभाल सकते हैं। राहुल को बाखूबी मालूम है कि यूपीए के 10
साल के शासन में किन-किन बातों और नीतियों को लेकर
जनता ने भाजपा को पहली पसंद बनाया था। विदेश में राहुल का कार्यक्रम दरअसल कांग्रेस
पार्टी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। पार्टी राहुल को इसी
बहाने वैश्विक समझ रखने वाले परिपक्व नेता के तौर पर स्थापित करना चाहती है। राहुल
अगर अध्यक्ष बनते हैं तो महत्वपूर्ण यह होगा कि वह अपनी युवा टीम के साथ पुराने अनुभवी
कांग्रेसी नेताओं को भी साथ रखें। अगर राहुल मार खा रहे हैं तो एक बहुत बड़ी वजह है
उनके इर्द-गिर्द अनुभवी, परिपक्व नेताओं
की कमी।
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