Friday, 8 September 2017

अभिव्यक्ति की आजादी की एक और आवाज खामोश कर दी गई

एक और पत्रकार अपने स्वतंत्र विचारों के लिए मारा गया। पत्रकार गौरी लंकेश की मंगलवार को उनके घर में घुसकर उनकी हत्या कर दी गई। हम कड़े शब्दों में इस घिनौने हत्याकांड की निन्दा करते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर व्यक्ति, पत्रकार को अपनी बात कहने, लिखने का पूरा अधिकार है। इस तरह की हत्याएं सभ्य समाज के समक्ष उपस्थित गंभीर खतरों को ही रेखांकित करती हैं। गौरी लंकेश की हत्या एमएम कुलबर्गी, गोविंद पनसारे और नरेंद्र वामोलकर की हत्याओं की याद दिलाने वाली है। 55 वर्षीय वरिष्ठ कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश टाइम्स ऑफ इंडिया समेत विभिन्न प्रतिष्ठित अखबारों में काम करने के बाद कन्नड़ भाषा में छपने वाले साप्ताहिक लंकेश पत्रिका की मुख्य संपादक थीं। यह पत्रिका उनके पिता पी. लंकेश ने शुरू की थी, जो कन्नड़ के जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार थे। पिता की पत्रकारीय विरासत को आगे बढ़ाने का काम गौरी ने ही अपने कंधों पर ले रखा था। उन्हें उनके घर में घुसने के ऐन पहले उन्हें निशाने पर लेकर सात-आठ गोलियां दागी गईं। इसमें कोई शक नहीं कि गौरी और उनकी पत्रिका हिन्दुत्ववादी विचारधारा की प्रबल विरोधी थी। पत्रिका में  भाजपा से जुड़े दो नेताओं की मानहानि के मुकदमे में उन्हें छह महीने जेल की सजा भी सुनाई जा चुकी थी। इसके खिलाफ अपील पर उच्चतर अदालत का फैसला अभी तक नहीं आया है। लेकिन गौरी ने अपने दक्षिणपंथी विरोध को कभी छिपाने की कोशिश भी नहीं की। कुछ लोगों का कहना है कि उनके नक्सलियों से भी संबंध थे। लेकिन इन सबके बावजूद गौरी की सोच को एकपक्षीय नहीं कहा जा सकता। बतौर पत्रकार उन्होंने कांग्रेसी नेताओं के भ्रष्टाचार को भी उजागर करने और इसे राज्यव्यापी मुद्दा बनाने में कभी संकोच नहीं किया, मौजूदा सिद्धारमैया सरकार के एक ताकतवर मंत्री भी ऐसे ही एक मामले में उनके निशाने पर आ चुके हैं। गौरी लंकेश की हत्या को लेकर कई राजनीतिक दल जिस तरह जज की भूमिका में आ गए हैं और अंतिम निर्णय पर पहुंचते दिख रहे हैं उससे तो यही प्रकट हो रहा है कि उनकी दिलचस्पी हत्यारे को पकड़ने से ज्यादा इस हत्या का सियासी लाभ उठाना है। इसमें दो राय नहीं कि गौरी लंकेश हिन्दुवादी संगठनों की प्रबल आलोचक थीं, लेकिन क्या इतने मात्र से उनकी हत्या के लिए भाजपा, संघ और यहां तक कि मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यह तो भाजपा शुक्र मनाएगी कि कर्नाटक में कांग्रेस का राज है। अगर यह हत्या भाजपा शासित राज्य में होती तो केस शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता। आवश्यकता इस बात की है कि गौरी की हत्या की स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और असल कसूरवार या कसूरवारों को सजा मिले।

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