Sunday, 24 September 2017

क्यों नहीं हो सकते मोहर्रम और दुर्गा विसर्जन एक साथ

कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को करारा झटका देते हुए उसके विवादास्पद फैसले को रद्द कर दिया है। मोहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक के आदेश को खारिज करते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की सरकार को कड़ी फटकार लगाई। इस बार 30 सितम्बर को विजयदशमी और एक अक्तूबर को मोहर्रम पड़ रहा है। कानून व्यवस्था का बहाना बनाकर ममता सरकार ने 30 सितम्बर यानि विजयदशमी को रात 10 बजे के बाद और एक अक्तूबर को प्रतिमा विजर्सन पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। सरकार के इसी फैसले को चुनौती देने के लिए तीन याचिकाएं दर्ज की गई थीं। हाई कोर्ट ने बुधवार को इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई की थी। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार से दो टूक पूछा कि दो समुदाय एक साथ क्यों त्यौहार नहीं मना सकते? हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि अब आप (राज्य सरकार) दावा कर रही हैं कि राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव है तो फिर आप संप्रदाय के आधार पर भेदभाव क्यों कर रही हैं? हाई कोर्ट ने आगे सख्त लहजे में कहाöदोनों समुदाय यानि हिन्दू और मुस्लिम को सद्भाव से ही रहने दीजिए। उनके बीच किसी तरह की लाइन न खींचें। उनको साथ ही रहने दें। इस मामले की शुरुआत कुछ दिनों पहले हुई। पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अक्तूबर को दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि उस दिन मोहर्रम भी है। दोनों के जुलूस अगर साथ-साथ निकलेंगे तो अशांति का खतरा है। अन्य हिन्दू संगठनों के अलावा भाजपा और आरएसएस ने ममता सरकार के इस फरमान का विरोध किया। भाजपा का आरोप है कि ममता सरकार तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है और इसीलिए उसने दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगाई। उधर ममता बनर्जी ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहाöकोई मेरा गला काट सकता है, लेकिन यह नहीं बता सकता है कि क्या करना है। मैं शांति बनाए रखने के लिए जो जरूरी होगा, वो करूंगी। हाई कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार के पास अधिकार है, इसका मतलब यह नहीं कि वह अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर सकती है। बिना किसी ठोस वजह के नागरिकों के अधिकार नहीं छीने जा सकते। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में पर्व-त्यौहारों का एक-दूसरे से टकराना कोई नई बात नहीं है। आम आबादी एक-दूसरे की परंपराओं और रीति-रिवाजों का सम्मान करते हुए जीने की आदी है। यह समझना भी कठिन है कि ममता सरकार को यह क्यों लगा कि प्रतिमा विसर्जन से मोहर्रम संबंधी योजनाओं में खलल पड़ सकता है या फिर मोहर्रम के ताजिये प्रतिमा विसर्जन में बाधा बन सकते हैं? आखिर पश्चिम बंगाल के पुलिस प्रशासन को देश के अन्य हिस्सों की तरह दुर्गा प्रतिमा की शोभा यात्राओं और ताजिया जुलूस के लिए अलग-अलग रूट निर्धारित करने में क्या कठिनाई थी? जहां विभिन्न समुदायों की ओर से मिलजुल कर अपने त्यौहार मनाने और एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं का आदर करने की  लंबी परंपरा रही हो वहां उनके बीच विभाजन की लकीर खींचना उचित नहीं। शासकों को केवल निष्पक्ष होना ही नहीं चाहिए, बल्कि ऐसे दिखना भी चाहिए। छोटी-मोटी अड़चनें जिला प्रशासन के स्तर पर ही हल होती रही हैं। अमूमन तो जिला प्रशासन को भी हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं होती, लेकिन किसी तरह के तनाव की आशंका होने पर स्थानीय पुलिस दोनों समुदायों के प्रमुख लोगों के बीच बैठक और बातचीत करवा कर ऐसा रास्ता निकाल लेती है जो सबको मंजूर होता है। यह मानने का कोई कारण नहीं कि मोहर्रम के जुलूस और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के रूट तथा समय को लेकर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती थी। इसका प्रयास किए बगैर सीधे ममता सरकार के स्तर पर प्रतिमा विसर्जन पर लगी रोक इस धारणा को जड़ जमाने का मौका देती है कि ममता बनर्जी वोट बैंक के तुष्टिकरण का गंदा खेल खेलना चाहती हैं। इससे एक धार्मिक और सांस्कृतिक मामले पर बेवजह गंदी राजनीति शुरू हो गई है। अच्छा हुआ कि हाई कोर्ट के सख्त रुख से यह मामला और बिगड़ने से बच गया।

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