Wednesday 27 September 2017

करोड़ों लोगों की जीवनरेखा इन नदियों को बचाओ

करोड़ों लोगों की जीवनरेखा, आजीविका और टूरिस्ट अट्रैक्शन की जगह रही भारत की सदा नीरा नदियां आज अपने सुनहरे अतीत की छाया मात्र रह गई हैं। लगातार सूखते जाने से पार सिकुड़ने लगे हैं, प्रदूषण ने उन्हें मैला कर दिया है और कहीं-कहीं नदियों का जल पीने तो क्या, नहाने के काबिल भी नहीं रह गया। ऐसे में यह प्रसन्नता और संतोष की बात है कि आखिर किसी ने तो नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए बीड़ा उठाया है। विश्वविख्यात ईशा फाउंडेशन के संस्थापक, योगीराज, जाने-माने लेखक और वक्ता सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने यह देशव्यापी अभियान छेड़ा है। पद्मविभूषण सद्गुरु जग्गी वासुदेव गांधी जयंती (दो अक्तूबर) को दिल्ली में नदी रैली से समाप्त होने वाले 30 दिनों के इस अभियान के दौरान कन्याकुमारी से हिमालय तक देश के कुल 16 राज्यों का सफर खुद गाड़ी चलाकर तय करते हुए देश की जनता को इस बात के लिए जागरूक कर रहे हैं कि अगर समय रहते हमने कदम नहीं उठाया तो अगली पीढ़ी पीने के पानी तक को तरस जाएगी। दरअसल हम अपनी नदियों को पहले ही इतना नुकसान पहुंचा चुके हैं कि अगली पीढ़ी को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। यह काम किसी एक के वश में नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार से हम चाहते हैं कि वह नदियों को पुनर्जीवन के लिए दूरगामी परिणामों वाली बाध्यकारी नीति बनाए जिसे लागू किया जा सके। हम चाहते हैं कि वह हर इंसान जो पानी पीता है नदी अभियान में अपना सहयोग दे। सद्गुरु बताते हैं कि हालत कितनी खराब है? बहुत ही खराब। अपना बचपन मैंने कर्नाटक में कावेरी के तट पर गुजारा है। यात्रा के दौरान मैंने देखा कि जिस कावेरी को जिस जगह मैं रोज तैर कर पार करता था, वहां अब उसे चलकर पार किया जा सकता है। दरअसल यह इतनी सिमट गई है कि विलीन होने के लिए समुद्र का सफर तय करने से 870 किलोमीटर पहले ही थम जाती है। आंध्र की कृष्णा नदी तो लगभग पूरी तरह ही सूख गई है। नर्मदा 60 फीसदी सिकुड़ गई है और शिप्रा का पानी उसका अपना नहीं, बंद किया हुआ पानी है। गंगा तो विश्व की उन नदियों में है जिसका अस्तित्व सबसे अधिक संकट में है। नदियों की इस दुर्दशा के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। देश की 25 फीसद जमीन रेगिस्तान बनने लगी है। 55 फीसद भूजल तेजी से कम हो रहा है। 10 साल में हमारे जलाशयों में पानी का स्तर 30 फीसद घट गया है। खासकर पिछले सात सालों से तो भारत की लगभग सभी नदियां इतनी तेजी से सूख रही हैं कि लगता है कि बारहों महीने बहने वाली ये नदियां अगले 15 से 20 वर्ष में मौसमी हो जाएंगी। हालात ऐसे हैं कि 2030 तक हमें अपनी जरूरत का केवल 50 फीसद पानी ही मिल पाएगा। इसलिए समय रहते अगर हर स्तर पर उचित कार्रवाई नहीं की तो हमारी नदियां सूख जाएंगी और लोग पानी के लिए तरसने लगेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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