Tuesday, 19 September 2017

क्या सांसद-विधायक अपनी सम्पत्ति बेतहाशा बढ़ा सकते हैं?

दो चुनावों के बीच देश के सांसदों और विधायकों की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सवाल उठाया कि क्या जनप्रतिनिधि होते हुए सांसद और विधायक कारोबार कर सकते हैं? न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अगर सांसद और विधायक यह बता भी देते हैं कि उनकी सम्पत्तियों में बेतहाशा वृद्धि उनके अपने कारोबार के कारण हुई है, तो भी सवाल उठता है कि क्या जनप्रतिनिधि होने के नाते इसके साथ-साथ अपना कारोबार कर सकते हैं? पीठ ने यह सवाल लोक प्रहरी नामक गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान उठाया। याचिका में गुहार लगाई गई है कि चुनाव में पर्चा दाखिल करते वक्त उम्मीदवारों को न केवल खुद की बल्कि परिवार के सभी सदस्यों की आमदनी का स्रोत बताना जरूरी किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने बेहिसाब सम्पत्ति जुटा रहे राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) से कई तीखे सवाल किए। इस दौरान शीर्ष अदालत ने राजनेताओं, नौकरशाहों, व्यावसायियों व अपराधियों की साठगांठ पर वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को लागू न किए जाने का भी मामला उठाया। पीठ ने मंगलवार को पूछा कि वोहरा कमेटी की रिपोर्ट का क्या हुआ, जिसमें राजनेताओं, नौकरशाहों, व्यावसायियों और अपराधियों के बीच साठगांठ पर तीखी टिप्पणी की गई थी। उसके बाद क्या हुआ? क्या अब वह समय नहीं आ गया है जब हमें उस पर अमल करना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं की बेहिसाब सम्पत्ति की जांच के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की भी जबरदस्त वकालत की है। हालांकि केंद्र सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया है। याचिकाकर्ता लोक प्रहरी ने आयकर विभाग को 26 लोकसभा सांसदों, 11 राज्यसभा सांसदों और 257 विधायकों की सूची भेजी थी और उनकी सम्पत्ति की जांच करने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता का आरोप था कि इन लोगों द्वारा चुनाव के समय दाखिल किए गए हलफनामे में दी गई सम्पत्ति पिछले चुनाव के समय दिए गए हलफनामे की सम्पत्ति से 500 गुणा से ज्यादा बढ़ गई है। इसके बाद सोमवार को दाखिल किए गए हलफनामे में सीबीडीटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि देशभर में सात लोकसभा सांसदों और 98 विधायकों की सम्पत्तियों में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है और उनमें अनियमितताएं पाई गई हैं। एक सांसद की सम्पत्ति में 2100 प्रतिशत तक बढ़ी सम्पत्ति हलफनामे में दर्ज है। केरल के नेताओं की सम्पत्ति 1700 प्रतिशत तक बढ़ी है। असम के ज्यादातर नेताओं की सम्पत्ति 500 प्रतिशत तक बढ़ी। मालूम हो कि आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में ही तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता को चार साल की सजा के साथ 100 करोड़ रुपए के जुर्माने की सजा इसी प्रकृति के मामले में सुनाई गई थी। इस सजा के डर से राजनीति में शुचिता की दृष्टि से पवित्रता की शुरुआत के लिए राजनेताओं को बाध्य होने की उम्मीद की गई थी, क्यों अब तक यह धारणा बनी हुई थी कि भ्रष्टाचार से अर्जित सम्पत्ति से राजनीति चलती रहेगी और इसी धन से निकलने के उपाय भी तलाशे जाते रहेंगे। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने यदि 10 जुलाई 2013 को दिए ऐतिहासिक फैसले में यह व्यवस्था न दी होती कि दागी व्यक्ति जनप्रतिनिधि नहीं हो सकता, तो शायद जयललिता सजा के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन बनी रहतीं। न्यायालय के इस फैसले के मुताबिक यदि किसी जनप्रतिनिधि को आपराधिक मामले में दोषी करार देते हुए दो साल से अधिक की सजा सुनाई गई है तो वह व्यक्ति सांसद या विधायक बना नहीं रह सकता। वह न तो मुख्यमंत्री बना रह सकता है और आने वाले 10 सालों तक चुनाव भी नहीं लड़ सकता। भ्रष्टाचार से मुक्ति के उपाय की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का यह अहम फैसला है। यदि राजनीति और प्रशासन से जुड़े भ्रष्टाचारियों की सम्पत्ति इसी तरह से बतौर जुर्माना वसूलने की शुरुआत देश में हो जाती है तो जनता को शायद भ्रष्टाचार-मुक्त शासन-प्रशासन की खुली हवा में सांसें लेने का अवसर उपलब्ध हो जाए।

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