Wednesday, 6 September 2017

शादी से नहीं मिलता यौन हिंसा का अधिकार

शादी किसी को पत्नी पर यौन हिंसा करने का अधिकार नहीं देती, यह टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने गत दिनों वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे पर दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए की। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व न्यायाधीश सी. हरिशंकर की पीठ ने सुनवाई करते हुए फिलीपींस के कानून का हवाला देते हुए कहा कि शादी किसी महिला पर उसके पति के हाथों हिंसा करने का अधिकार नहीं देती। एक एनजीओ फोरम टू एंगेज मेन (फेम) ने इस मामले में पक्षकार बनने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। दायर याचिका में कहा गया है कि शादी महिला व पुरुष के बीच सहमति व सम्मानपूर्ण रिश्ता है। इसमें जबरन यौन संबंधों की कोई गुंजाइश नहीं है। मुख्य याचिकाकर्ता रिट फाउंडेशन की ओर से दलील पेश करते हुए कोलिन गोनजाविल्स ने अमेरिका व नेपाल के कानूनों का हवाला दिया। इस पर पीठ ने कहा कि वह फिलीपींस के कानून का भी हवाला दे सकते हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दायर कर कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाने से शादी की प्रथा लड़खड़ा जाएगी और इसका इस्तेमाल पति को परेशान करने के लिए भी किया जा सकता है। वैवाहिक दुष्कर्म को खत्म करने के लिए नैतिक व सामाजिक जागरुकता लाना जरूरी है। केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा था कि यह सुनिश्चित किया जाए कि वैवाहिक दुष्कर्म से शादी की प्रथा धराशायी नहीं होगी और इसका इस्तेमाल महिलाओं द्वारा पतियों के खिलाफ एक आसान हथियार के तौर पर नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे सामने दहेज प्रताड़ना संबंधी कानून का दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है। यह कहना कि विवाह संबंधों में अपवाद स्वरूप आई किसी गड़बड़ी को दूर करने की कोशिश की गई तो विवाह संस्था ही खतरे में पड़ जाएगी। दरअसल इसकी शक्ति को अनदेखा करना है। वैवाहिक संबंधों में हिंसा, बलात्कार आदि पर रोक लगाने से विवाह संस्था का आधार और मजबूत होता है। देश में हर साल जितनी शादियां होती हैं उसमें अधिकांश बिना किसी अतीत घटना के एक नए परिवार का आधार बनती हैं। अंगुलियों पर गिने जाने लायक शादियां ही बुरी खबरों के लिए जानी जाती हैं। सख्त कानून की जरूरत ऐसी शादियों के खलनायकों से निपटने के लिए ही पड़ती है। इनसे पीड़ित महिलाओं की संख्या चाहे जितनी भी कम हो, पर शायद ही कोई सार्वजनिक रूप से यह कहने को राजी हो कि इन्हें देश के कानून का संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। हां ऐसा कोई कानून बनाते वक्त इसके दुरुपयोग की आशंका पर भी विचार किया जाए। दहेज और घरेलू हिंसा विरोधी कानूनों के कुछ दुरुपयोग सिद्ध हो चुके हैं। लिहाजा मैरिटल रेप विरोधी कानून बनाते वक्त ऐसी आशंकाओं को ध्यान में रखना जरूरी होगा।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment