Saturday, 2 September 2017

कितना सफल रहा नोटबंदी का फैसला?

अघोषित सम्पत्ति या दूसरे शब्दों में कहें तो बेनामी धन-दौलत को सिस्टम से बाहर करने की कोशिश में मोदी सरकार ने क्या पूरी सफलता पाई? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कदम को नोटबंदी का नाम दिया था। अब लोग पूछ रहे हैं कि नोटबंदी में आखिर गलती क्या हुई? रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सालाना रिपोर्ट के 195 पन्नों में उन सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं जो पिछले 10 महीनों से हर हिन्दुस्तानी पूछ रहा है। नोटबंदी कामयाब रही या नाकाम? आरबीआई के आंकड़ों से तो नहीं लगता कि नोटबंदी बड़े पैमाने पर कामयाब रही है। या यूं कहा जा सकता है कि नोटबंदी पूरी तरह विफल रही। नोटबंदी से फायदा कम हुआ और नुकसान ज्यादा। पिछले आठ नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक तय किया कि 500 और 1000 के नोट अर्थव्यवस्था की चलन से हटा लिए जाएंगे जो कुल 15.44 अरब हैं। प्रधानमंत्री ने इस फैसले की वजह देश को यह बताई कि ऐसा अर्थव्यवस्था में मौजूद जाली नोटों और काला धन और दो नम्बर के पैसे पर कार्रवाई करने के लिए किया गया है। सरकारी विज्ञप्तियों में इस फैसले को तफ्सील में भी यही कारण बताए गए। काला धन वह पैसा होता है जो कमाया तो जाता है लेकिन उस पर सरकार को टैक्स नहीं दिया जाता। नोटबंदी की घोषणा के बाद आठ नवम्बर की आधी रात से ही 500 और 1000 के नोट बाजार में बेकार हो गए। जिनके पास ये नोट थे, उन्हें बैंकों में इसे जमा कराने के लिए कहा गया। नोटबंदी के दौरान जमा किए गए पैसे को बाद में बैंक से निकाला जा सकता था। हालांकि शुरुआत में पैसे निकालने की सीमा को लेकर कुछ बंदिशें लगाई गई थीं। सरकार को शायद यह उम्मीद रही होगी कि जो पैसे काला धन के रूप में मौजूद है वो बैंकों में जमा नहीं किया जाएगा और जिनके पास ये पैसा है वे अपनी पहचान जाहिर करना नहीं चाहेंगे और इस तरह से काले धन की एक बड़ी रकम बर्बाद हो जाएगी। लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट तो दूसरी ही कहानी कहती है। उसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि 15.28 अरब मूल्य के बैंक नोट इस 30 जून तक बैंकों में जमा करा दिए गए। इसका सीधा-सा मतलब निकलता है कि चलन से हटाए गए पैसे का 99 फीसदी वापस बैंकों में लौटकर आ गया यानि नकदी के रूप में मौजूद लगभग पूरा ही काला धन बैंकों में जमा करा दिया गया और उम्मीदों के विपरीत वो बर्बाद नहीं हो पाया। कई लोग यह कहते सुने जाते हैं कि जिनके पास काला धन था उन्होंने अपना पैसा दूसरे आम लोगों के बैंक खातों में जमा करा दिया और इसी वजह से 500 और 1000 के ज्यादातर नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए। जहां तक नकली नोटों का सवाल था, उस पर भी ज्यादा कुछ होते नहीं दिखा। रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच 500 (पुरानी सीरीज वाले) और 1000 के 5,73,891 जाली नोटों की पहचान की गई। नोटबंदी में बाजार में चलन से हटाए गए नोटों की कुल संख्या 24.02 अरब थी। अब 2016-17 में पकड़े गए जाली नोटों की संख्या के लिहाज से देखें तो चलन से हटाए गए नोटों का यह शून्य फीसदी के करीब है। इसके पिछले साल 500 और 1000 के नकली नोटों की 4,04,794 नोटों की पहचान की गई थी और ऐसा बिना किसी नोटबंदी के हुआ था। तो ये साबित होता है कि नोटबंदी अपने दो बड़े लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रही। एक अजीबोगरीब बात यह भी है कि अर्थव्यवस्था में नकदी के रूप में मौजूद काले धन को लेकर पहले से कोई अनुमान नहीं था। सरकार ने नोटबंदी की घोषणा के बाद इसे स्वीकार भी किया। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 16 दिसम्बर 2016 को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह बात मानी। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के छापों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग अपने काले धन का महज पांच फीसदी हिस्सा ही नकदी के तौर पर रखते हैं। भले ही सार्वजनिक तौर पर काले धन को लेकर कोई आंकड़ा मौजूद नहीं था लेकिन अर्थशास्त्राr कहां रुकने वाले थे। वे अपने-अपने आंकड़े लेकर आए और उन्होंने मोदी सरकार के फैसलों को सही साबित करने की कोशिश भी की। लेकिन वे यह बताने में नाकाम रहे कि वे किस बुनियाद पर नोटबंदी के फैसले को सही बता रहे हैं। भारत एक बड़ी कैश इकोनॉमी है और नोटबंदी से उसे बहुत चोट पहुंची है। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी नोटबंदी पर यह कहाöअसंगठित क्षेत्र की ढाई लाख यूनिटें बंद हो गईं और रियल एस्टेट सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा है। बड़ी तादाद में लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं। ज्यादातर नकदी में लेनदेन करने वाले कृषि क्षेत्र पर भी नोटबंदी का बहुत बुरा असर पड़ा है। किसानों को उनकी पैदावार के लिए वाजिब कीमत नहीं मिल रही है। कई जगहों पर किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और राज्य सरकारों को उन्हें कर्ज में राहत देनी पड़ी और इन सब चीजों के अलावा सरकार की नीति से नकदी की किल्लत बड़े पैमाने पर महसूस की गई। लोग अपना ही पैसा निकालने के लिए कई दिनों तक एटीएम के बाहर कतारों में खड़े दिखते रहे। नोटबंदी में बैंकों और एटीएम के सामने कतारों में घंटों खड़े होने और पैसे की किल्लत से 104 लोगों की मौत हो गई। दो से चार हजार रुपए निकालने के लिए लोगों को दिन-दिनभर खड़ा रहना पड़ा। अगर पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम की बात पर यकीन किया जाए तो सरकार ने 16 हजार करोड़ रुपए बचाने के लिए 21 हजार करोड़ रुपए फूंक दिए। जहां तक मोदी सरकार की बात है, इसकी उम्मीद कम ही है कि वो अपनी गलती स्वीकार करे। सरकार नोटबंदी के सकारात्मक पहलुओं को बताना जारी रखेगी। जो बातें नवम्बर से कही जा रही हैं उस मोर्चे पर ज्यादा कुछ बदलने वाला नहीं है। यह नोटबंदी नहीं थी यह नोट बदलने की प्रक्रिया थी। लोगों ने पुराने नोटों को नए नोटों में बदलवा लिया। नोटबंदी के कारण मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानि अप्रैल से जून के बीच देश की आर्थिक कृषि दर महज 5.7 फीसदी रही। पिछले साल इस पीरियड में यह 7.9 फीसद थी। 2014 की चौथी तिमाही के बाद यह दर सबसे निचले स्तर पर आई है। इसकी वजह नोटबंदी का असर और जीएसटी लागू होने से पहले मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में सुस्ती भी है। सबसे ज्यादा धक्का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को लगा है। इतना सब कुछ होने के बाद भी अगर सरकार कहे कि नोटबंदी सफल रही तो कोई क्या कह सकता है?

-अनिल नरेन्द्र

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