Sunday 18 March 2018

1765 सांसदों-विधायकों पर 3045 मुकदमे लंबित

भारतीय राजनीति का आईना दिखाते हुए हमारे जनपतिनिधि कितने साफ हैं इन आंकड़ों से पता चलता है। माननीयों के अपराध का लेखा-जोखा राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की उम्मीद को धाराशाही करता दिख रहा है। देशभर में 1765 सांसदों- विधायकों के खिलाफ 3045 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। इस संख्या से ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि इन सभी पर दर्ज मामले 3045 हैं। इसका सीधा मतलब है कि इनमें से कई सांसद-विधायक ऐसे हैं जिन पर एक से अधिक मामले दर्ज हैं। सरकार ने इन आंकड़ों के साथ सुपीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर इनका निपटारा फास्ट ट्रेक अदालतों में एक साल के अंदर करने की वचनबद्धता दोहराई है। इस मामले में उत्तर पदेश पहले,  तमिलनाडु दूसरे, बिहार तीसरे, पश्चिम बंगाल चौथे और आंध्र पदेश पांचवें नम्बर पर हैं। वैसे कुल आपराधिक मामले 3816 थे जिनमें से 771 निपट चुके हैं। कोर्ट ने केन्द्र से 2014 में नामांकन भरते समय आपराधिक मुकदमे लंबित होने की घोषणा करने वाले सांसदों- विधायकों के मुकदमे की स्थिति पूछी थी, साथ ही सुपीम कोर्ट के 10 मार्च 2014 के आदेश के मुताबिक एक वर्ष में निपटाए गए केसों की जानकारी मांगी थी । कोर्ट ने यह निर्देश भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय की याचिका पर दिए थे, जिसमें सजायाफ्ता जनपतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक लगाने की मांग की गई थी। अभी सजा के बाद जेल से छूटने के 6 साल तक चुनाव लड़ने की अयोग्यता है। पिछले चार सालों में सांसदों न सही विधायकों की संख्या कुछ और बढ़ी ही होगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह सही है कि इस तरह के सांसदों-विधायकों के मामले निपटाने के लिए कुछ राज्यों में विशेष अदालतों का गठन हो गया है और कुछ राज्यों में होना शेष है, लेकिन बात तब बनेगी जब एक निश्चित समयसीमा में इन मामलों का निपटारा किया जा सके। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे शासन तंत्र की बागडोर जिन जनपतिनिधियों के हाथ में है, sउनका चयन योग्यता पर नहीं बल्कि जाति वर्ग, धन-बल और बाहुबल के आधार पर होता है। जेल जाने और बेल पर बाहर आने पर जश्न मनता है। जो जितना धन-बलशाली हो, उतना ही बड़ा जश्न। यही उसकी ताकत का पैमाना बनता है। कभी राजनीति की सुचिता का सपना पूरा होगा, इसमें संदेह है। सवाल यह भी है कि क्या यह केवल कानून से खत्म होगा? यह काम दरअसल राजनीतिक दलों का है। उन्हें सोचना होगा कि वे क्या सही मायने में देश की राजनीति को स्वच्छ करना चाहते हैं? पर जब तक उम्मीदवार का चयन उसकी दबंगता, धन-बल, बाहुबल पर होता रहेगा  तब तक यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

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