Saturday 31 March 2018

तीसरे मोर्चे यानि फेडरल फ्रंट की कवायद

उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में सपा और बसपा के अनौपचारिक गठबंधन के नतीजों से उत्साहित विपक्ष में 2019 के लिए एकजुटता की कवायद तेज हो गई है। इसी कड़ी में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने मंगलवार को दिल्ली में विभिन्न नेताओं के साथ-साथ एनडीए में शामिल नेताओं से मुलाकात भी की। मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगभग आधा दर्जन क्षेत्रीय दलों के बीच नेतृत्व की कमान लेती दिखीं। वह खुद राकांपा नेता शरद पवार से मिलने गईं तो संदेश यह देने की कोशिश हुई कि विपक्षी एकजुटता के बाद शरद पवार स्वीकार्य नेता के रूप में उभरें। लेकिन इस पूरे क्रम में कांग्रेस को शामिल करने पर एक राय नहीं बनी। विपक्षी दलों में से कुछ नेता चाहते हैं कि कांग्रेस को शामिल करके ही भाजपा के खिलाफ मोर्चा खड़ा हो। इसका ज्यादा असर होगा, लेकिन टीआरएस प्रमुख मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने ममता से मुलाकात करके गैर-भाजपा व गैर-कांग्रेस मोर्चा बनाने की वकालत की थी। ममता ने भी फेडरल फ्रंट बनाने की वकालत की है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के साथ बीजद जैसे दल भी नहीं आएंगे। ममता की एनडीए से हाल में अलग हुए टीडीपी नेताओं और एनडीए सहयोगी शिवसेना के नेताओं से मुलाकात के बाद कयासों का बाजार गरम है। जानकारों का कहना है कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। शिवसेना और टीडीपी नेताओं की मुलाकात संसद की रणनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। ममता भाजपा के असंतुष्ट नेताओं यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी से भी मिलेंगी। केजरीवाल से भी उनकी मुलाकात हो सकती है। इसमें दो राय नहीं कि भाजपा जैसे प्रबल जनादेश के साथ सत्ता में आई उसके अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी और इसी कारण आम जनता के बीच एक बेचैनी-सी जरूर है पर अभी ऐसे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि जनता उसके विकल्प की तलाश में जुट गई है और वह उसे विपक्ष में नजर आने लगा है। अगर भाजपा तमाम बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं खोज सकी और शासन-प्रशासन के तौर-तरीकों में जरूरी बदलाव नहीं ला सकी तो विपक्षी दल भी अपने शासन वाले राज्यों में सुशासन की कोई नई इबारत नहीं लिख सके हैं। विपक्षी दलों के समक्ष एक बड़ी समस्या यह भी है कि राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर उनके पास न तो कोई स्पष्ट दृष्टिकोण दिखता है और न ही किसी तरह का न्यूनतम साझा कार्यक्रम। फिर इस तीसरे-चौथे मोर्चे का इतिहास भी उत्साहवर्द्धक नहीं।
-अनिल नरेन्द्र

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