Sunday, 11 March 2018

क्या गोरखपुर और फूलपुर में फिर खिलेगा कमल

पूर्वोत्तर में जीत का डंका बजाकर और कांग्रेस, वामदल व विपक्ष की लुटिया डूबाने के बाद भाजपा की नजरें अब उत्तर प्रदेश और बिहार उपचुनाव पर टिकी हुई हैं। राजस्थान तथा मध्यप्रदेश उपचुनाव में भाजपा को मिली हार ने एक बड़ा प्रश्न यह जरूर खड़ा कर दिया है कि क्या भाजपाशासित दोनों राज्यों में कांग्रेस को एंटी इंकेंबेंसी का फायदा मिलेगा? उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उचुनाव हो रहे हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि रहे फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा, कांग्रेस और सपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। सभी जीत का दावा भी कर रहे हैं। लेकिन कई कारणों से मुकाबला इतना पेचीदा हो गया है कि ऊंट किस करवट बैठेगा, अंदाजा लगाना मुश्किल लग रहा है। इस सीट पर आजादी के बाद पहली बार 2014 में भाजपा का परचम लहराया था। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस सीट से सपा के धर्मराज सिंह पटेल को तीन लाख से अधिक मतों से हराया था। केशव के विधान परिषद सदस्य बनने के बाद यहां उपचुनाव हो रहे हैं। भाजपा ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। भाजपा को रोकने के लिए सपा व उसकी धुर शत्रु रही मायावती की पार्टी बसपा द्वारा किए गए गठबंधन से दंगल में उबाल आ गया है। गोरखपुर लोकसभा सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के त्याग पत्र देने से उपचुनाव हो रहे हैं। 1998 से लगातार गोरखपुर के सांसद रहे योगी चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कह चुके हैं कि भाजपा उम्मीदवार उपेन्द्र शुक्ल उन्हीं के प्रतिनिधि हैं। कांग्रेस ने यहां से सुरहिता करीम को उम्मीदवार बनाया है। गोरखपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां करीब साढ़े तीन लाख मुस्लिम, साढ़े चार लाख निषाद, दो लाख दलित, दो लाख यादव और डेढ़ लाख पासवान मतदाता हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सपा और बसपा का तालमेल मतदाताओं को लुभाने में कितना कामयाब होता है? यूपी उपचुनावों में भाजपा की निगाह इसलिए भी टिकी है क्योंकि उपचुनाव में मोदी भी चर्चा के पात्र हैं क्योंकि उनके संसदीय प्रदेश में जिन दो सीटों पर लोकसभा के चुनाव हैं उसमें एक सीट सीएम योगी की है जहां की जीत योगी के लिए अहम है जबकि फूलपुर सीट पर भी भाजपा की अग्नि-परीक्षा होनी है। सपा के लिए दोनों सीटें नाक की बात बन चुकी हैं। इस बीच चर्चा यूपी, बिहार की यह भी है कि राज्यसभा की छह सीटों पर संभावित घमासान से पहले आवाम मोर्चा प्रमुख जीतराम मांझी को राजग से तोड़कर अपने पाले में लाने में सफल रहे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के लिए भी उपचुनाव एक परीक्षा है। उपचुनाव की तीन में से दो सीटें लालू यादव की पार्टी राजद के खाते की हैं जहां भाजपा को अपनी सीट बचानी है और राजद के लिए दोनों सीटों पर जीत का नया अध्यक्ष तेजस्वी यादव को बनाना होगा। इलाहाबाद की फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा क्षेत्रों में 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव के दिन सार्वजनिक अवकाश रहेगा। देखें इन उपचुनावों में कौन बाजी मारता है। इससे यह भी पता चलेगा कि उत्तर प्रदेश और बिहार में किसकी हवा बह रही है।A

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