Saturday, 24 March 2018

एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग

लंबे समय से यह महसूस किया जा रहा था कि अनुसूचित जाति-जनजाति प्रताड़ना निवारण अधिनियम यानि एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग किया जा रहा है और जिस मकसद से इसे बनाया गया था वह पूरा नहीं हो पा रहा है। अंतत माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करके इस एक्ट के दुरुपयोग को रोकने की पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 के दुरुपयोग को रोकने को लेकर ऐतिहासिक फैसला किया है। महाराष्ट्र के एक मामले में मंगलवार को फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गाइडलाइन जारी की है। इस एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी से पहले आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी शुरुआती जांच करेगा। इसमें आरोपों की पुष्टि के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर या शिकायत में आरोपी सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की लिखित अनुमति के बाद ही होगी। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि प्रताड़ना की शिकायत मिलते ही न तो तत्काल उसे एफआईआर में तब्दील किया जाएगा और न ही आरोपित की तुरन्त गिरफ्तारी होगी। इस एक्ट का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा था, यह इससे समझा जा सकता है कि अकेले 2016 में दलित प्रताड़ना के 5347 मामले झूठे पाए गए। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग जातीय विद्वेष बढ़ाने का काम कर रहा था। कानून के शासन की प्रतिष्ठा के लिए जहां यह जरूरी है कि अपराधी बचने न पाए वहीं यह भी कि निर्दोष सताए न जाएं। यह भी सही हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि एससी/एसटी एक्ट के तहत अभियुक्त को जमानत दे दिया जाना भी संभव है। जमानत पाने की राह साफ करने की आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि अपने देश में पुलिस की जांच और अदालती कार्यवाही में देरी किसी से छिपी नहीं। कई बार यह देरी आरोपित व्यक्तियों को बहुत भारी पड़ती है। बैंच ने कहा कि अगर किसी मामले में गिरफ्तारी के अगले दिन ही जमानत दी जा सकती है तो उसे जमानत क्यों नहीं दी जा सकती? उन्होंने कहा कि संसद ने कानून बनाते वक्त यह नहीं सोचा था कि इसका दुरुपयोग किया जाएगा। बैंच ने गाइडलाइन में देश की सभी निचली अदालतों के मजिस्ट्रेट से कहा कि इस एक्ट के तहत आरोपी को जब पेश किया जाता है तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने के निर्णय लेने से पूर्व गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए और इसमें अपने विवेक से फैसला लेना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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