Tuesday 27 March 2018

अमेरिका-चीन का ट्रेड वॉर

दुनिया के दो सबसे बड़े अर्थव्यवस्था वाले देश चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर छिड़ने की आशंकाओं से अर्थशास्त्रियों और शेयर बाजारों में खलबली मची हुई है। अमेरिका ने चीनी आइटमों पर 50 अरब डॉलर के नए आयात कर ठोंकने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उधर चीन ने भी इस कदम के खिलाफ कड़े कदम उठाने की चेतावनी दे दी है। ट्रेड वॉर को हिन्दी में कारोबार के जरिये युद्ध कह सकते हैं। किसी दूसरे युद्ध की तरह इसमें भी एक देश दूसरे देश पर हमला करता है और पलटवार के लिए तैयार रहता है। लेकिन इसमें हथियारों की जगह करों (टैक्स) का इस्तेमाल करके विदेशी सामान को निशाना बनाया जाता है। ऐसे में जब एक देश दूसरे देश से आने वाले सामान पर टैरिफ यानि कर बढ़ाता है तो दूसरा देश भी इसके जवाब में ऐसा ही करता है और इससे दोनों देशों में टकराव बढ़ता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयातित करीब 60 अरब डॉलर के उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने के ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के साथ वैश्विक व्यापार युद्ध का बिगुल पूंक दिया है। चीन ने भी इसके विरोध में अमेरिका के 128 उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने की बात की है। चीन ने सूअर के मांस (पोर्प) और पाइप सहित अन्य अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लागू करने की योजना जारी की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मानते हैं कि ट्रेड वॉर आसान और बेहतर है और वह कर बढ़ाने के मुद्दे से पीछे नहीं हटेंगे। अमेरिका का कदम कथित तौर पर कई सालों से हो रही इंटलेक्युअल प्रॉपर्टी की चोरी के बदले में आता रहा है। क्योंकि चीन पर इंटलेक्युअल प्रॉपर्टी भुनाने यानि उत्पादों की मौलिक डिजाइन और विचार आदि की चोरी के बदले में की जा रही कार्रवाई है। इस मारधाड़ की आशंका का असर साफ दिखाई देने लगा है। 23 मार्च को मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक करीब 410 बिन्दु गिर गया। जो चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध में भारत का कहीं सीधा लेना-देना नहीं है। भारत ग्लोबल कारोबार का बहुत छोटा खिलाड़ी है। चीन और अमेरिका बड़े खिलाड़ी हैं। चीन के उत्पाद सस्ते होते हैं इसलिए उसका ग्लोबल बाजार है। अमेरिका में भी वह सस्ते पड़ते हैं, इसलिए वह बिकते हैं। ट्रंप को इससे परेशानी यह है कि अमेरिका में लोगों के रोजगार पर इसका विपरीत असर पड़ता है। उसका मानना है कि चीनी आइटमों पर ज्यादा कर लगाकर उन्हें महंगा बनाकर अमेरिका में चीनी आइटमों की खपत पर रोक लगे। स्वाभाविक है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच का यह युद्ध द्विपक्षीय ही नहीं, बहुपक्षीय बाजार की व्यवस्थाओं को चुनौती दे रहा है, जो 1990 के बाद से वैश्विक बाजारों को नियंत्रित करती आई हैं। उम्मीद की जाती है कि अमेरिका-चीन अपने इस कारोबारी युद्ध को मिल बैठकर सुलझाएं।
-अनिल नरेन्द्र


No comments:

Post a Comment