Wednesday, 28 March 2018

सैन्य शिविरों पर हमले इतने आम क्यों हो गए हैं

रक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने एक के बाद एक कई सैन्य शिविरों और प्रतिष्ठानों पर हो रहे लगातार हमलों को लेकर सरकार की जमकर खिंचाई की है। संसद में पेश समिति की रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि सैन्य प्रतिष्ठानों पर आतंकी हमले होना आम बात क्यों हो गई है? यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब कुछ समय पहले जम्मू-कश्मीर में सुंजवां आर्मी कैंप पर आतंकी हमला हुआ। इसमें सैनिकों के परिवारों को निशाना बनाया गया। हमले में पांच सुरक्षाकर्मी मारे गए जबकि तीन आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया। संसदीय समिति ने इस हमले को कमजोर सुरक्षा घेरे की एक मिसाल करार दिया। समिति ने हैरानी जताई कि उच्च सुरक्षा वाले मिलिट्री कॉम्पलैक्स में सेंध लगाने में आतंकवादी कामयाब कैसे हो रहै हैं? जनवरी 2016 में पठानकोट के एयरबेस पर आतंकियों ने दुस्साहसी हमला किया था। समिति का मानना है कि उस हमले से भी कोई सबक नहीं लिया गया। इसके बाद से सैन्य शिविरों की किलेबंदी करने के लिए जो कदम उठाए जाने थे, उस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई। पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद सरकार ने सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए उस समय के वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फिलिप कम्पोस की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने मई 2016 में अपनी रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को सौंप दी। इसमें पाया गया कि कई सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में खामियां हैं। संसदीय समिति ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि उस कमेटी की सिफारिशों को लागू करने में महीनों लग गए। इस बीच उनके सैन्य शिविरों पर आतंकी हमले होते रहे। सुंजवां सैन्य शिविर हमले के कुछ दिन बाद ही रक्षा मंत्रालय ने सैन्य प्रतिष्ठानों के सुरक्षा घेरों की मजबूती की खातिर 14 हजार 97 करोड़ रुपए जारी किए। सेना ने समिति के सामने अपनी बात रखी। सेना के प्रतिनिधियों ने समिति को बताया कि कहने को तो सरकार ने 14 हजार करोड़ रुपए शिविरों की सुरक्षा पर खर्च करने का अधिकार दे दिया लेकिन सच यह है कि यह पैसा सेना को मिले बजट में से खर्च होना है। वैसे सेना के पास अपनी जरूरतों को नए सिरे से तय करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। सेना का कहना है कि सुरक्षा घेरों को मजबूत करने से साजो-सामान की खरीददारी के लिए अलग से फंड बनाने की जरूरत है। सैन्य शिविरों की सुरक्षा के लिए सिर्प पॉलिसी का ऐलान करने से कुछ नहीं होगा। ज्यादा सैनिक ग्राउंड पर तैनात करने की बजाय टेक्नोलॉजी का सहारा लेना होगा। सैन्य शिविरों के आसपास आबादी के दबाव बढ़ने पर ध्यान देना होगा। खुफिया इनपुट बढ़ानी होगी। नई टेक्नोलॉजी लानी होगी।

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