Thursday, 8 March 2018

जनता के पैसों की लूट बर्दाश्त नहीं है

बैंकों में घोटालों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। हीरा व्यापारी नीरव मोदी और गीतांजलि जेम्स के मालिक मेहुल चौकसी से संबंधित घोटाले मामले में 1300 करोड़ रुपए के और घोटाले का खुलासा हुआ है। इसके बाद बैंक को लगी चपत की रकम बढ़कर 12,600 करोड़ रुपए हो गई है। उधर बुधवार को कोलकाता में सीबीआई ने कम्प्यूटर विनिर्माता आरपी इंफो सिस्टम और उसके निदेशकों पर बैंकों के गठजोड़ के साथ कथित रूप से 515.15 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएनबी के घोटाले पर पहली बार प्रतिक्रिया देते हुए शुक्रवार को दो टूक कहा कि जनता के धन की लूट बर्दाश्त नहीं की जाएगी। वित्तीय अनियमितता करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने वित्तीय संस्थानों के प्रबंधन व निगरानी निकायों से अपील की कि वे पूरी कर्मठता से अपना काम करें ताकि इस तरह के घपले रोके जा सकें। वित्त मंत्रालय का सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम डकारने वाले खातों की सूची बनाकर सीबीआई को सौंपने के निर्देश का मतलब है कि सरकार ने बैंकों के डूबे हुए या डुबाए गए कर्ज की वसूली के लिए अंतत कमर कस ली है। वास्तव में जिन बैंकों की शब्दावली में एनपीए कहते है, उसकी घोषित राशि 10 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। यह आंकड़ा वह है जो अब तक हमारे सामने आ चुका है। यदि सारे ऐसे खातों को खंगाला जाए तो न जाने यह आंकड़ा कितना ऊपर चला जाएगा? बड़े घोटालों से पार पाने के लिए सीबीआई के अलावा प्रवर्तन निदेशालय और राजस्व खुफिया निदेशालय जैसी एजेंसियां भी सक्रिय भूमिका निभाएंगी जो ताकतवर लोग कर्ज लेकर चंपत हो गए हैं, उनसे वसूली के लिए नया कानून बनाने की भी तैयारी हैं। इस कानून में आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एजेंसियों को और सशक्त बनाने का प्रावधान है। यह कानून बनने के बाद ऐसे फरार, घोटाले वालों के खिलाफ मुकदमों के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएंगी, ताकि मामलों का जल्द निपटारा हो सके। वैसे यह काम आसान नहीं है और 50 करोड़ से ज्यादा का कर्ज लेने वालों की संख्या काफी ज्यादा होगी। इनके खातों की सूची बनाने में समय लगेगा। किंतु एक बार सूची तैयार हो गई और उसके बाद कार्रवाई भी आसान हो गई तो फिर सही दिशा में गाड़ी चल पड़ेगी। जिन कर्जखोरों की हालत धन लौटाने की है और उनके न लौटाने के पीछे कोई वाजिब कारण नहीं है उनके साथ किसी भी प्रकार की रियायत नहीं होनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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