Saturday 10 March 2018

चंद्रबाबू नायडू-नरेंद्र मोदी की टूटती दोस्ती

तेलुगूदेशम पार्टी और भाजपा के रिश्ते इन दिनों खराब चल रहे हैं। एक वक्त था जब नरेंद्र मोदी और चंद्रबाबू नायडू की एक साथ हाथ मिलाते, मुस्कुराते हुए तस्वीरें दिखती थीं लेकिन अब वो पुरानी बात हो गई। टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू द्वारा केंद्र से अपने दो मंत्री हटाने के बाद भाजपा के दो मंत्रियों ने आंध्र कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। दोनों में दरार की वजह है विशेष राज्य का दर्जा। टीडीपी लंबे वक्त से आंध्रप्रदेश के लिए इस दर्जे की मांग कर रही है और केंद्र सरकार की तरफ से अब यह लगभग साफ हो गया है कि आंध्रप्रदेश को यह विशेष दर्जा नहीं मिलने जा रहा है। भाजपा का कहना है कि वो आंध्रप्रदेश के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और राज्य सरकार की हर संभव मदद की जाएगी लेकिन असंभव मांगों को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इससे पहले चंद्रबाबू नायडू ने विधानसभा में कहा कि कांग्रेस का वादा है कि वो अगर 2019 में सत्ता में आती है तो आंध्र को विशेष दर्जा देगी। फिर भाजपा सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही? नायडू की शिकायत है कि पहले भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश को विशेष दर्जा देने का वादा किया था लेकिन फिर उनका कहना था कि सभी राज्यों से यह दर्जा वापस ले लिया जाएगा। उनका दावा है कि यह बात कहे जाने के बाद ही वो स्पेशल पैकेज पर राजी हुए थे। क्योंकि अभी विशेष दर्जा वजूद में है, ऐसे में आंध्रप्रदेश को यह तुरन्त मिलना चाहिए। भाजपा का कहना है कि पिछड़े होने के तर्क पर आंध्रप्रदेश को यह दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इस हिसाब से बिहार को यह दर्जा मिलना चाहिए। पीएम मोदी ने बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भी विशेष दर्जा देने का वादा किया था। पैसे को लेकर केंद्र और आंध्रप्रदेश के  बीच काफी मतभेद हैं। आंध्रप्रदेश का कहना है कि उसका राजस्व घाटा 16 हजार करोड़ रुपए है जबकि केंद्र का कहना है कि असल राजस्व घाटा चार हजार करोड़ का है और 138 करोड़ रुपए दिए जाने बाकी हैं। राज्य स्पेशल स्टेटस मांग रहा है तो केंद्र का कहना है कि इसे खत्म कर दिया गया है और केंद्र की तरफ से प्रायोजित सभी स्कीमों के लिए 9010 फंडिंग की पेशकश है। इसके अलावा आंध्र पोलवरम के लिए 33 हजार करोड़ और राजधानी अमरावती के लिए 33 हजार करोड़ रुपए मांग रहा है जबकि केंद्र ने पोलवरम के लिए पांच हजार करोड़ रुपए दिए हैं जबकि अमरावती के लिए 2500 हजार करोड़ दे चुका है। बता दें कि शुरुआत में सिर्फ तीन राज्योंöअसम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया था लेकिन बाद में यह अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे आठ राज्यों को विशेष  दर्जा दिया गया था। टीडीपी अब इसे आंध्र के लोगों के सम्मान और अधिकारों का मुद्दा बनाने की कोशिश में लगती है। इससे नायडू को राज्य की जनता के बीच अहम मुद्दा और समर्थन मिलने की उम्मीद बताई जा रही है। वहीं भाजपा वैकल्पिक इंतजाम के लिए वाईएसआर कांग्रेस के सम्पर्क में बताई जा रही है। टीडीपी यदि एनडीए से भी अलग होने की घोषणा करती है तो भाजपा जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस से हाथ मिला सकती है। जानकारों का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से टीडीपी और भाजपा का अलग होना एक अहम मोड़ हो सकता है। राज्य में लोकसभा की 25 सीटें हैं। पिछले चुनाव में  टीडीपी और भाजपा ने 17 सीटें जीती थीं। वाईएसआर कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं। यदि टीडीपी एनडीए से भी अलग हो जाती है तो क्या भाजपा वाईएसआर कांग्रेस के साथ मिलकर पिछली बार जितनी सीटें हासिल कर पाएगी? यह अहम सवाल रहेगा?

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