Thursday, 1 March 2018

बढ़ते एनपीए बैंकों को खोखला कर रहे हैं

देश के सार्वजनिक बैंकों की माली हालत चिन्ताजनक बनती जा रही है। अर्थव्यवस्था के लिए नासूर बने फंसे कर्ज यानि एनपीए की वसूली के लिए इंसाल्वेंसी एंड बैकरप्सी कोड (आईबीसी) को लेकर भले ही बड़ी उम्मीदें हों लेकिन हकीकत यह है कि एनपीए ऐसा मर्म है जिसके इलाज के लिए अब तक किए गए नुस्खे फेल रहे हैं। हाल के वर्षों में एनपीए की वसूली के आंकड़े हकीकत बयान करते हैं। वाणिज्यिक बैंक कारोबार करते वक्त विभिन्न परिसम्पत्तियों में निवेश करते हैं और व्यक्तियों और कंपनियों को कर्ज देते हैं। अमूमन कुछ धनराशि एनपीए (नॉन परफार्मेंस असेट्स) हो जाती है। सरल शब्दों में कहें तो बैंकों का कुछ कर्ज फंस जाता है जिसका समय पर भुगतान नहीं हो रहा हो। रिजर्व बैंक के अनुसार सितम्बर 2017 की समाप्ति पर देश में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का सकल एनपीए उनके कुछ कर्ज का 10.2 प्रतिशत हो गया है। आइए समझते हैं कि एनपीए क्या होता है और बैंक इसकी पहचान कैसे करते हैं। आरबीआई के अनुसार बैंकों को अगर किसी परिसम्पत्ति यानि कर्ज से ब्याज की आय मिलना बंद हो जाती है तो उसे एनपीए माना जाता है। उदाहरण के लिए बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिन तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होता है। कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बन सकता है। इसकी पहचान के लिए आरबीआई ने नियम बना रखे हैं। कंसल्टेंसी फर्म क्रेडिट सूईस ने अनुमान लगाया है कि नए प्रावधान से दो लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त एनपीए का बोझ बैंकिंग सैक्टर पर पड़ेगा। यानि ऐसा हुआ तो मार्च 2018 तक भारतीय बैंकों का एनपीए मौजूदा 9.40 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 11 लाख करोड़ रुपए के करीब पहुंच सकता है। एनपीए ने एक तरह से सरकारी बैंकों को अंदर से खोखला कर दिया है। अक्तूबर-दिसम्बर 2017 की तिमाही में 17 वर्षों बाद एसबीआई को 2416 करोड़ रुपए की हानि हुई है। इसी अवधि में बैंक ऑफ इंडिया को 2341 करोड़, कारपोरेशन बैंक को 1240 करोड़, इंडियन ओवरसीज बैंक 971 करोड़ और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को 637 करोड़ रुपए की हानि हुई है। एनपीए की समस्या पिछले दो वर्षों में बेहद गंभीर हो चुकी है। सरकार की तरफ से अब तक उठाए सारे कदम नाकाम रहे हैं। इसका अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ रहा है?

-अनिल नरेन्द्र

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