Saturday 10 March 2018

कांग्रेस में बढ़ता अविश्वास का संकट

कुछ ही दिन हुए जब राजस्थान और मध्यप्रदेश के उपचुनावों में मिली जीत को देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के रिवावल (पुनर्जीवन) के तौर पर देखा गया था। पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी को इस जीत का श्रेय देने वालों की कमी भी नहीं थी। लेकिन देश के तीन पूर्वोत्तर राज्यों के परिणामों ने शनिवार को पार्टी के सारे उत्साह पर पानी फेर दिया। कभी समूचे उत्तर-पूर्व को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, जहां की जनता सिर्फ गांधी परिवार का नाम देखकर वोट करती है। कालांतर में पार्टी सिर्फ दो राज्योंöमेघालय और मणिपुर में सिमट कर रह गई थी और अब वह मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई लेकिन सत्ता से काफी दूर कर दी गई। पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहलाने वाले मेघालय में भाजपा ने रविवार को महज तीन घंटे में बाजी पलटते हुए कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीन ली। 10 साल से सरकार चला रही कांग्रेस 21 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी तो सही पर सत्ता से बाहर हो गई। शनिवार को घोषित चुनाव परिणाम में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आने के बाद कांग्रेस ने रात में ही राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। इस बीच भाजपा के कई दिग्गज नेता भी रात में शिलांग पहुंच गए। रविवार सुबह से बैठकों का जो सिलसिला शुरू हुआ उसके तीन घंटे के अंदर ही तमाम क्षेत्रीय दलों ने कोनराड संगमा के नाम पर सहमति जता दी। रविवार शाम को कोनराड संगमा ने राज्यपाल के सामने अपने समर्थक 34 विधायकों की परेड करा दी। उसके बाद राज्यपाल गंगा प्रसाद ने उनको सरकार बनाने का न्यौता दिया। कुल मिलाकर तीन घंटों में ही 34 विधायकों का समर्थन जुटाकर दो विधायकों वाली भाजपा ने बाजी पलट दी। कांग्रेस के हाथों बाजी निकलते देखकर पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, कमलनाथ और मुकुल वासनिक दोपहर को ही शिलांग से निकल गए। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कांग्रेस की हार पर रार बढ़ गई है। अधिकांश नेता कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्वोत्तर के कांग्रेसी प्रभारी और राजस्थान के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी को हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का दायरा सिमटता जा रहा है। चार साल पहले तक देश के आधे राज्यों पर राज करने वाली पार्टी की अब सिर्फ तीन राज्यों और एक केंद्रशासित राज्य में सरकार बची है। कर्नाटक में कुछ माह बाद और मिजोरम में इस साल के आखिर में चुनाव हैं। कांग्रेस ने मेघालय से सबक लेते हुए कदम नहीं उठाए तो उसके पास सिर्फ पंजाब और केंद्रशासित पुडुचेरी ही बचेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी को एक-दो राज्य छोड़कर विधानसभा चुनाव में हार मिली है। गुजरात चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा था, पर उत्तर-पूर्व में हार ने उन्हें फिर मायूस कर दिया है। लोकतंत्र तभी पूरी तरह कामयाब होता है जब सत्तापक्ष के सामने मजबूत विपक्ष हो। और यह सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। कांग्रेस को महाधिवेशन में रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। ताकि कर्नाटक, मिजोरम में सरकार बरकरार रखते हुए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भाजपा से छीन सके। कांग्रेस को एक तरह से अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़नी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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