Saturday, 17 March 2018

उपचुनाव का संदेश ः विपक्ष एकजुट हो तो भाजपा को हरा सकता है

 लोकसभा की तीन सीटों के परिणाम भाजपा और उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए खतरे की घंटी है। ये चुनाव परिणाम भाजपा के लिए संदेश है कि केवल अधिनायकवादी पचार से चुनाव नहीं जीते जा सकते। जातीय, सामाजिक समीकरण, विनम्रता और कार्यकर्ताओं व जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना उतना ही जरूरी होता है। उत्तर पदेश में भाजपा भले ही दो सीटें हारी है लेकिन यह पधानमंत्री, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उपमुख्यमंत्री केशव पसाद मौर्य की हार है। मुख्यमंत्री योगी के लिए तो गोरखपुर व्यक्तिगत हार है। गोरखपुर सीट पिछले तीस सालों से गोरख मठ के पास है। यह कहा जाता है कि यहां से योगी हार ही नहीं सकते। आदित्यनाथ खुद पांच बार से गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतते आ रहे थे और 1991 से वहां भाजपा का कब्जा रहा है। नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा के चुनावी पबंधकों ने सपा और बसपा के हुए गठबंधन को सही से नहीं आंक सके। भाजपा यह नहीं समझ पाई कि उत्तर पदेश की इन दो बड़ी पार्टियों के मतों का साझा भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। नतीजों से  साफ है कि सपा अपने उम्मीदवारों के पक्ष में बसपा के मतों को स्थानांतरित करवाने में सफल रही। उत्तर पदेश की फूलपुर लोकसभा सीट भाजपा के पास चार साल भी नहीं रही। देश को आजादी मिलने के बाद 1952 में पहली बार आम चुनाव के 62 साल बाद भाजपा को 2014 में फूलपुर  में जीत नसीब हुई थी। पूर्व पधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के क्षेत्र फूलपुर से केशव पसाद मौर्य ने 2014 में रिकार्ड 3.08 लाख मतों से जीत हासिल की थी। यह पहला मौका था जबकि भाजपा का कमल इस सीट से खिला था। उपचुनाव की सभाओं में निवर्तमान सांसद केशव पसाद मौर्य इस बात का जिक करना नहीं भूलते थे कि जितने मतों के अंतर से नेहरू कभी नहीं जीते उससे अधिक अंतर से जनता ने उन्हें जिताकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजा था। 19 फरवरी को शैलेन्द्र सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद केशव पसाद मौर्य लगातार इलाहाबाद में टिके रहे और संसदीय क्षेत्र का शायद ही कोई इलाका बचा होगा जहां उनकी रक्षा न हुई हो। यहां भी सपा और बसपा के समर्थन ने  भाजपा का समीकरण बिगाड़ दिया। भाजपा नेता पचार के दौरान भले ही खुलकर गठबंधन को नकारते रहे हों लेकिन उन्हें भी अंदर-अंदर सपा-बसपा के साथ आने का डर सता रहा था। भाजपा की हार के लिए कम मतदान भी बड़ा कारण है। शहर उत्तरी और पश्चिमी में 2014 के आम चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कम वोटिंग हुई। पार्टी नीतियों से नाराज भाजपा कार्यकर्ता वोट डालने ही नहीं निकले। यह हार योगी की हैं या केन्द्र की नीतियों के खिलाफ जन आकोश। आज सभी वर्ग के लोग केन्द्र की नीतियों से परेशान हैं। पधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी दोनों की कार्यशैली से भाजपा का कार्यकर्ता नाराज है। नाराजगी का परिणाम है कि गोरखपुर और फूलपुर में वोंटिग पतिशत कम हुआ। शहरों में लोग वोट डालने ही नहीं आए। भाजपा कार्यकर्ता आम जनता के काम नहीं करा पाए।  केन्द्राrय स्कूलों में एडमिशन का मामला हो, गैस कनेक्शन का, नकल पर पाबंदी का मामला हो या कोई अन्य समस्या हो उन्हें न तो मुख्यमंत्री से मिलने की इजाजत है और न ही पीएम से। इस हार से भाजपा को इस बात का अंदाजा लग गया है कि उत्तर पदेश में बसपा और सपा का गठबंधन होने से दोनों पार्टियों के वोट बैंक एकजुट हो सकता है। बुधवार को तीन लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली हार के पीछे एक राजनीतिक ट्रेंड भी है जो पार्टी के लिए चिंता का सबब बन सकता है। 2014 में बीजेपी ने 282 लोकसभा सीटें जीती थी। लेकिन बुधवार को निकले तीन लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब तक पार्टी 6 सीटें गंवा चुकी है। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद 11 राज्यों में 19 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। इनमें आठ सीटें भाजपा के पास थी। पर भाजपा सिर्प दो सीटें ही बरकरार रख सकी है। 6 सीटों पर उसे हार मिली है। भाजपा सिर्प बड़ोदरा और शहडोल सीट ही जीत पाई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 282 सीटें मिली थी, अब उसके पास 274 रह गई है। कहने को तो मात्र दो राज्यों की पांच सीटों पर उपचुनाव है लेकिन इन नतीजों ने देश की भविष्य की राजनीति की पटकथा लिखने का भी काम किया है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के जीत के अश्वमेघ के घोड़े को रोकने की कोशिश में जुटे विपक्ष के लिए उत्तर पदेश और बिहार के इन पतिष्ठापूर्ण उपचुनावों के नतीजों ने संजीवनी का काम किया है। विपक्षी एकता के लिए ये नतीजे बेहद महत्वपूर्ण है। विपक्ष को अब समझ आने लगा है कि उसका बिखराव ही भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण है। इन उपचुनाव में भाजपा से विपक्ष ने सीधी लड़ाई लड़ी और नतीजे सामने हैं। फूलपुर और गोरखपुर तथा अररिया तीनों ही लोकसभा सीटों पर विपक्ष का एक ही उम्मीदवार था। तीनों ही जगह भाजपा के साथ उसकी सीधी लड़ाई& थी और तीनों में ही भाजपा हार गई। इन तीनों सीटों के परिणाम से यह साफ संदेश निकलता है कि यदि विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़े तो 2019 में भाजपा को रोका जा सकता है। भाजपा नेतृत्व के लिए अभी भी समय है अपने व्यवहार को बदलने का। यह अहंकार भी टूटना जरूरी है।   

                                                            öअनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment