Tuesday, 31 July 2018

पाकिस्तान की सियासत में महिलाओं की भागीदारी

पाकिस्तान में चुनाव सम्पन्न हो गए हैं। संसद में नए चेहरे शामिल होने को तैयार हैं। बुधवार (25 जुलाई) को हुए चुनाव के बाद उनके नतीजे आ चुके हैं और इन नतीजों में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक--इंसाफ (पीटीआई) सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। इमरान खान ही पाकिस्तान के अगले वजीर--आजम होंगे। किकेटर से राजनेता बने इमरान सत्ता पर काबिज होने की पूरी तैयारी में हैं। सियासी गलियारों में हो रही इस अदला-बदली के बीच पाकिस्तान के चुनाव एक और वजह से भी चर्चा में रहे। इसकी वजह है इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी। पाकिस्तान के चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 206 के मुताबिक सभी दलों को 5 पतिशत टिकट महिलाओं को देना आवश्यक किया गया था। यही वजह है कि नेशनल असेंबली की कुल 272 सीटों पर अलग-अलग दलों ने कुल 171 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया। इनमें से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने सबसे ज्यादा 19 महिलाओं को मैदान में उतारा, उसके बाद दक्षिण पंथी दल मुत्ताहिदा मजलिस--अमल (एमएमए) ने 14 महिलाओं को टिकट दिया। वहीं सत्ता पर काबिज होने के करीब पहुंची पीटीआई ने 11 महिलाओं को टिकट दिया। इसके साथ हाफिज सईद की जमात-उद-दावा की अल्लाह--अकबर तहरीक पार्टी ने भी तीन महिलाओं को टिकट दिया। कुल मिलाकर पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इतनी संख्या में महिलाएं चुनावी मैदान में उतरीं। इन महिलाओं में एक उम्मीदवार का नाम अली बेगम भी है, जो पुरुष पधान कबाइली इलाके से चुनाव लड़ने वाली पहली महिला उम्मीदवार हैं। वैसे पाक में चुनाव आयोग का एक नियम ये भी कहता है कि किसी चुनावी क्षेत्र में 10 पतिशत से कम महिलाओं की भागीदारी हुई तो चुनावी पकिया रद्द कर दी जाएगी। चुनाव आयोग की इन शर्तों के बाद तमाम पार्टियों ने महिलाओं को टिकट तो दिया लेकिन कई महिला संगठनों ने यह आरोप भी लगाया कि महिला उम्मीदवारों को कमजोर सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया। पाकिस्तान में महिला उम्मीदवारों की जीत से साफ होता है कि धीरे-धीरे वहां की राजनीति में भी महिलाओं की पकड़ मजबूती से बन रही है। हालांकि पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लंबे वक्त से रही है। बेनजीर भुट्टो पधानमंत्री के पद तक काबिज हो चुकी हैं। नवाज शरीफ की बेटी मरियम शरीफ से लेकर पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार अपनी पैठ बनाने में सफल रहीं।

öअनिल नरेन्द्र

कांग्रेस का पयास यूपीए-3 बनाने का



कांगेस पार्टी की सबसे शक्तिशाली और नीति-निर्माण करने वाली निकाय कांग्रेस कार्य समिति ने अपनी पिछली बैठक में दो बड़े और महत्वपूर्ण फैसले किए। दोनों ऐसे फैसले हैं जिनके नतीजे राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी का भविष्य तय करेंगे। पहला-राहुल 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के पीएम उम्मीदवार होंगे और दूसरा कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस कार्य समिति की पहली बैठक में कुछ नेताओं ने गठबंधन की वजह से कांग्रेस का सियासी आधार कमजोर पड़ने की बात उठाई। इस पर पी चिदम्बरम, शीला दीक्षित और आनंद शर्मा सहित अधिकांश नेताओं ने मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में गठबंधन को कांग्रेस ही नहीं देश के लिए अपरिहार्य जरूरत माना। इनका कहना था कि मोदी सरकार में देश में जिस तरह का माहौल और संस्थाओं पर दबाव है उसमें गठबंधन के सहारे भाजपा नीति राजग को शिकस्त देना पहली पाथमिकता है जबकि कांग्रेस को मजबूत करना दूसरी। वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने कहा कि समान विचारधारा वाले  दल आपसी मतभेद भुलाकर भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएं। बैठक में वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम ने 2019 के चुनाव को लेकर एक पस्तुतिकरण दिया। इसमें कहा गया कि 12 राज्यों में कांग्रेस अपने बूते पर लगभग 150 सीटें जीत सकती है और बकाया 150 सीटें जीतने के लिए उसे समान विचार वाले दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए। इस पस्तुतिकरण से इस बात के संकेत भी मिले कि कांग्रेस सहयोगियों के साथ 300 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर 2019 के चुनाव में उतरेगी। सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि मोदीमय भाजपा को हराने के लिए समान विचारधारा वाले दल आपसी मतभेद भुलाकर एक जुट हों। नफरत और भय का माहौल और एक विशेष विचारधारा को देश की जनता पर थोपा जा रहा है। केंद्र की भाजपा सरकार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। देश की जनता को इस खतरनाक शासन से बचाना होगा जो भारत के लोकतंत्र को संकट में डाल रहा है। भारत के वंचितों और गरीबों पर निशाना और डर के शासन को लेकर लोगों को आगाह करने की जरूरत है। जाहिर है कि कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर यूपीए-3 के गठन की तैयारी शुरू कर दी है और इसका जिम्मा राहुल गांधी पर डाल दिया है। इस तरह यह भ्रम तो दूर हो गया कि राहुल अपना ध्यान पार्टी पर केंद्रित करेंगे और सहयोगी दलों को जोड़ने का काम सोनिया गांधी करेंगी। यूपीए-3 की राह निश्चित ही इसके पुराने संस्कारों से काफी अलग होगी और मुश्किल होगी। सच्चाई यह है कि आरजेडी को छोड़कर यूपीए के पुराने घटक दल अलग-अलग भाषाओं में बोल रहे हैं। भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन की जरूरत बेशक सभी महसूस करते हैं मगर पस्तावित महागठबंधन के स्वरूप को लेकर यह दल अपनी-अपनी दुविधा बार-बार अपने बयानों में पकट कर रहे हैं। जैसे समाजवादी पार्टी कभी तो कांग्रेस के साथ चलने की बात करती है तो कभी इससे इंकार भी करती है। बीएसपी ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। सीपीएम नेता कांग्रेस से सहयोग की बात तो करते हैं लेकिन महागठबंधन को लेकर गोल-मटोल बयान देते हैं। ममता बनर्जी के ज्यादातर बयान बताते हैं कि उनका जोर कांग्रेस को साइट रखकर थर्ड पंट बनाने का है, हालांकि सोनिया गांधी के पति उनका रुख हमेशा की तरह आज भी नरम ही बना हुआ है। ममता के समर्थक दबे लफ्जों में यह इशारा भी कर रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस के बगैर महागठबंधन का कोई मतलब नही है और अगर महागठबंधन बनता है तो ममता उसकी नेता होंगी। जानकार मानते हैं कि कांग्रेस कार्य समिति ने अपने फैसले अन्य विपक्षी दलों के सामने खुद को मजबूत दिखाने और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए जाहिर किए हैं। आखिर अभी से औरों के सामने अपने को कमजोर क्यों दिखाएं? बड़े और मजबूत इरादों से ही अन्य विपक्षी दलों से सीट बंटवारे पर अच्छी सौदेबाजी की जा सकती है। लेकिन कांग्रेस के इन इरादों के सामने चुनौती यह है कि चर्चाओं के मुताबिक बसपा नेता मायावती और प.बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के समर्थक भी इन्हें पीएम उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं, तो क्या मायावती की बसपा, ममता की टीएमसी और अन्य विपक्षी दल कांग्रेस के मन में जिनती सीटें हैं? उसे लड़ने के लिए देने पर राजी होंगे? इस पर ही भविष्य टिका हुआ है। ज्यादातर क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ खड़े होने से अपना जनाधार छिटक जाने का डर सता रहा है। ऐसे में यूपीए-3  का गठन राहुल गांधी की एक बड़ी परीक्षा साबित होगी। उन्हें अपने पुराने सहयोगी दलों की एकजुटता का कोई केंद्र बिन्दु खोजना होगा। इसके लिए कांग्रेस को काफी कुछ खोना भी पड़ सकता है। राहुल की पहली परीक्षा लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्य पदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में होने वाली है। अगर इन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन बनाकर अच्छा पदर्शन करती है तो 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए रास्ता खुलेगा।

Sunday, 29 July 2018

जरा-सी बारिश आखिर क्यों बन जाती है तबाही की वजह?

हमारे देश में पानी की समस्या चिन्ता का विषय है। कहीं तो पीने तक का पानी नहीं होता, कहीं पर बाढ़ से तबाही हो रही है। दिल्ली-एनसीआर में बृहस्पतिवार को सुबह महज तीन घंटे की मूसलाधार बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। लोगों की सुबह नींद खुली तो कई इलाकों में देखते ही देखते सड़कें, पार्किंग लाट तालाब बन गए। मूसलाधार बारिश से दिल्ली सहित हरियाणा के गुरुग्राम, पलवल, फरीदाबाद और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर व हापुड़ के कई हिस्से जलमग्न हो गए। वसुंधरा में वार्तालोक और प्रज्ञा पुंज सोसायटी के पास सड़क धंसने से सैकड़ों जानें आफत में आ गईं। आनन-फानन में अपार्टमेंट के करीब 80 फ्लैट खाली कराए गए। इंदिरापुरम में शिप्रा सनसिटी के पार्प के कोने में रखे बिजली के तार से जमा पानी में करंट आया, इससे एक की मौत हो गई। यूपी में तो 25 से ज्यादा आदमियों की मरने की खबर आई है। जब भी कहीं तेज बारिश हो जाती है, जलभराव के कारण एक तरह से नारकीय स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसा बारिश के पानी के कारण नहीं, बल्कि शहरों के दुर्दशाग्रस्त ढांचे के कारण होता है। बारिश के पानी की निकासी न होने के कारण केवल सड़कें ही जलमग्न नहीं होतीं, लोगों के घरों में बरसाती और कभी-कभी सीवर तक का पानी घुस जाता है। अकसर वैध-अवैध तरीके से बनी जर्जर इमारतें गिरने का खतरा पैदा हो जाता है। बारिश के कारण यातायात के साथ कई व्यवस्थाएं भी प्रभावित हो जाती हैं। कहीं बिजली आपूर्ति लंबे समय तक बाधित हो जाती है तो कहीं पानी की आपूर्ति ठप हो जाती है और यह साल दर साल ऐसा ही होता है। यह किसी राष्ट्रीय संकट से कम नहीं है कि जब शहरों को संवारने अथवा उन्हें स्मार्टसिटी में तब्दील करने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं और किस्म-किस्म की योजनाएं भी चल रही हैं तब बारिश के दौरान पानी की निकासी की बुनियादी समस्या पर किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता? यह सारा संकट नियोजन और देखरेख एजेंसियों के कारण है, जिन्होंने न कॉलोनी बसते वक्त चीजों को गंभीरता से लिया, न बसने के बाद। नोएडा जैसे इलाके में पिछले दिनों कई इमारतें जिस तरह जमींदोज हुई हैं, वह इसी का नतीजा हैं। यह उस लापरवाही का नतीजा है, जो महज वसूली के नाम पर सक्रिय रहती हैं और आने वाले कल के लिए मुसीबत खड़ी करती हैं। ऐसी मशीनरी सिर्प अपना वर्तमान देखती हैं, समाज का भविष्य नहीं। अपने देश में यह एजेंसियां बदहाली का नमूना बन गई हैं। क्या कभी सुधार भी होगा?

-अनिल नरेन्द्र

नीरव, चोकसी और नया भगोड़ा कानून

बैंकों को करोड़ों रुपए की चपत लगाकर विदेश भागने वालों को लेकर देश में काफी समय से हंगामा मचा हुआ है। अब भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक, 2018 संसद द्वारा पारित किए जाने से ऐसे भगोड़ों पर सख्त कार्रवाई की जा सकेगी। हालांकि ऐसे कानून पहले से भी हैं लेकिन वह सफल नहीं हुए। आज की स्थिति में जब ऐसे भगोड़ों की संख्या बढ़ रही है, जो बैंकों की पहुंच एवं न्यायालय के कार्यक्षेत्र से बाहर भाग रहे हैं, इसके लिए विशिष्ट कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। मोदी सरकार ने पहले इसे अध्यादेश के रूप में क्रियान्वित किया, अब संसद के दोनों सदनों से  पारित करा लिया। भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 का लोकसभा में ध्वनिमत से पारित होना स्वागत योग्य है। चूंकि राज्यसभा इसे पहले से ही पारित कर चुकी है, इसलिए राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ यह कानून बन जाएगा। इसमें रिश्वत लेने वाले के साथ-साथ देने वाले को भी सजा का प्रावधान है तथा भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को दो साल में निपटारा करने की भी बाध्यता है। जो लोग खुद काली कमाई के लिए रिश्वत देते हैं, उनको लेने वाले के समान दोषी मानने में हर्ज नहीं है, लेकिन आम आदमी को कई बार रिश्वत मजबूरी में देनी पड़ती है। अगर वह ऐसा न करे तो छोटे-छोटे कामों की पूर्ति मुश्किल हो जाती है। इसमें रिश्वत देने वाले के लिए अधिकतम सात वर्ष की सजा या जुर्माना दोनों का प्रावधान किया गया है जबकि रिश्वत लेने वाले के लिए न्यूनतम तीन वर्ष और अधिकतम सात वर्ष की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। यह प्रावधान थोड़ा भयभीत जरूर करता है। कहीं सजा न हो जाए इस डर से रिश्वत देने वाले अनेक लोग शिकायत ही न करें? हालांकि इसमें उसके बचाव के लिए एक प्रावधान है। रिश्वत देने वाले को यह बताना होगा कि किस वजह से और किन परिस्थितियों में रिश्वत दी गई। अगर यह साबित हो गया कि उसे रिश्वत देने के लिए मजबूर किया गया है तो वह सजा से बच सकता है। इस विधेयक का मूल उद्देश्य ऐसे वित्तीय अपराधियों को वापस लाकर सजा देना, बैंकों की राशि वसूलना तथा संभावित भगोड़ों को रोकना है। कानून के अमल होने के बाद न केवल ऐसे भगोड़ों की सम्पत्ति जब्त होगी बल्कि उन्हें स्वदेश लाना आसान होगा। अब कानून की ताकत हाथ में आने के बाद जांच एजेंसियों के लिए काम करना आसान हो जाएगा। अब अपराधियों की सम्पत्ति आसानी से जब्त हो सकती है। ऐसे अपराधी जिसने दूसरे देश की नागरिकता ले ली है, उनको वापस लाना आसान नहीं होता। ऐसे ही एक भगोड़े मेहुल चोकसी के बारे में सूचना आ रही है कि उसने एंटीगुआ की नागरिकता ले ली है। जाहिर है उसे वापस लाने में समस्याएं तो आएंगी किन्तु कानून के प्रारूप को उस देश के अधिकारियों के सामने रखकर बताया जा सकता है कि इस पर जो आरोप हैं, उनके लिए न्यायालय को इसकी आवश्यकता है। ऐसे कानून भी वित्तीय गबन करके विदेश भागने की मंशा रखने वालों को भयभीत करेंगे कि हम चाहे जहां चले जाएं, हमारी खैर नहीं है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की अपील पर हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी को इस कानून के तहत दोनों को भगोड़ा अपराधी घोषित करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इन्हें 25 सितम्बर व 26 सितम्बर को अदालत के सामने पेश होने के समन जारी कर दिए गए हैं। देखें, नए कानून के तहत हमारे अधिकारी इन दोनों के खिलाफ कार्रवाई करने में कितने सफल रहते हैं?

Saturday, 28 July 2018

लोकतंत्र में धरना-प्रदर्शन रोका नहीं जा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने जंतर-मंतर और बोट क्लब इलाकों में धरना, प्रदर्शन और रैलियों पर एनजीटी द्वारा लगाया गया प्रतिबंध सोमवार को खत्म कर दिया और कहा कि इन इलाकों में विरोध प्रदर्शनों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि इस तरह के आयोजनों को मंजूरी देने के लिए दो महीने के भीतर दिशानिर्देश तैयार किए जाएं। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार और नागरिकों के शांतिपूर्ण तरीके से रहने के अधिकार के बीच टकराव के मद्देनजर संतुलित व्यवहार अपनाना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पिछले पांच अक्तूबर को जंतर-मंतर के आसपास के इलाके में धरने-प्रदर्शनों पर रोक लगा दी थी। इसे पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन बताते हुए एनजीटी ने कहा था कि नागरिकों को जंतर-मंतर रोड एरिया पर प्रदूषण-मुक्त माहौल में रहने का अधिकार है। लेकिन राज्य सरकार इसकी रक्षा में नाकाम रही। दिल्ली के मुख्यमंत्री सहित अनेक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है। केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि दिल्ली को पुलिस राज्य में परिवर्तित करने का प्रयास लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। स्वराज इंडिया ने भी फैसले का स्वागत किया है। प्रशांत भूषण ने कहा है कि जंतर-मंतर पर लगी यह रोक अलोकतांत्रिक और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन थी। वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि केंद्र सरकार के करीब जनता का प्रदर्शन उसका अधिकार है। रोक हटना पर कई सामाजिक, धार्मिक एवं अन्य संगठनों और संस्थाओं को खुशी देने वाली है, वहीं नई दिल्ली आने वाले लोगों को इससे काफी राहत मिलेगी। दरअसल तमाम संगठनों और संस्थाओं को धरना-प्रदर्शन करने के लिए अब कोई भुगतान नहीं करना पड़ेगा और संसद मार्ग कम बंद होने से लोगों को जाम से भी मुक्ति मिलेगी। एनजीटी की रोक लगाने के बाद तमाम संगठनों एवं संस्थाओं के साथ-साथ आम लोगों के समक्ष भी दिक्कत आ गई थी। इसके लिए रामलीला मैदान तय किया गया था। लेकिन उत्तरी नगर निगम ने यहां धरना-प्रदर्शन करने के लिए मुफ्त जगह देने से मना कर दिया था। रामलीला मैदान की एक दिन की बुकिंग फीस 50 हजार रुपए तय कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जंतर-मंतर और बोट क्लब दोनों ही जगह पूरी पाबंदी खारिज करते हुए कहा है कि कुछ मौकों पर पाबंदी की जरूरत पड़ सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

इन तीन बच्चियों की मौत का जिम्मेदार आखिर कौन?

यह कितने दुख और शर्म की बात है कि तीन बच्चियों की मौत भूख से तड़प-तड़प कर हो गई। यह दिल दहलाने वाली घटना पूर्वी दिल्ली के मंडावली गांव के पंडित चौक के पास एक मकान में हुई है। मंगलवार को मृत मिलीं इन बच्चियों के पोस्टमार्टम के बाद लाल बहादुर शास्त्राr अस्पताल ने देश को शर्मसार करने वाला यह खुलासा किया कि बच्चियोंöशिखा, मानसी और पारुल के पेट में खाने का एक भी अंश नहीं मिला यानि इनकी मौत भूख के कारण हुई। डाक्टरों के अनुसार उन्हें कई दिनों से खाना नहीं मिला था। देर रात जीटीबी अस्पताल में मेडिकल बोर्ड ने दोबारा पोस्टमार्टम कराया गया, उसमें भी भूख से मौत की पुष्टि हुई। वरिष्ठ डाक्टर ने बताया कि बच्चियों के पेट में अन्न और फेट दोनों नहीं था। सबसे छोटी बच्ची का शरीर इतना कमजोर था कि उसके हाथ-पैर कंकाल जैसे दिख रहे थे। बच्चियों का पिता मंगल मकान मालिक मुकुल मेहरा का रिक्शा चलाता था। कुछ दिन पहले असामाजिक तत्वों ने नशीला पदार्थ सुंघाकर रिक्शा लूट लिया। वह कमरे का किराया भी नहीं दे पा रहा था। मंगल की पत्नी वीणा ने पुलिस को बताया कि शनिवार को मकान मालिक ने कमरे से निकाल दिया। इसके बाद मंगल पत्नी व बच्चों सहित पंडित चौक स्थित दोस्त नारायण के कमरे में आ गए। रुपए न होने से उन्हें खाना नहीं मिला। इससे बच्चियां बीमार हो गईं। रविवार को पड़ोसियों ने बच्चियों को खाना दिया, पर वे बीमारी के कारण खा नहीं पाईं। दोपहर को बच्चियां बेहोश हो गईं तो वीणा उन्हें लेकर एलबीएस अस्पताल पहुंचीं जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। आठ साल की शिखा, चार साल की मानसी और दो साल की पारुल की मौत का जिम्मेदार आखिर कौन है? यह दिल दहला देने वाली घटना जहां एक ओर गरीबों के लिए तरह-तरह की सुविधाएं देने का दावा करने वाली सरकारों को कठघरे में खड़ा करती है, वहीं समाज के असंवेदनशील रवैये को भी उजागर करती है। यह घटना लोगों में सामाजिक जुड़ाव खत्म होने और दूसरों के दुख-दर्द से मुंह मोड़ने की विगत कुछ वर्षों में पैदा हुई प्रवृत्ति का जीता-जागता उदाहरण है। ऐसा कई बार देखा गया है कि सड़क हादसे का शिकार तड़पते हुए व्यक्ति को अस्पताल तक ले जाने में लोग कतराते हैं। यह स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। यदि किसी को पेटभर भोजन मिल रहा है और उसके पड़ोस में भूख से बच्चियां मर रही हैं तो यह सभ्य समाज में कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे देखते हुए धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए और समाज को और संवेदनशील बनाना होगा। यह घटना तो दिल्ली की है पर ऐसी ही घटनाएं और राज्यों में भी होती होंगी पर उनकी खबरें नहीं आतीं।

Friday, 27 July 2018

कोई भी कानून अपने हाथों में नहीं ले सकता

देश में भीड़ की हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। बीते कुछ समय से तो आए दिन ऐसे समाचार सामने आ रहे हैं जिनमें लोगों का उग्र समूह किसी संदिग्ध अथवा निर्दोष-निहत्थे व्यक्ति को अपने हिसाब से निपट रहा होता है, इस तरह की घटनाओं में लोगों की जान तक जा रही है। विगत दिवस ही अलवर में गौ तस्कर होने के शक में एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया। इससे पहले भी देश के अनेक हिस्सों में ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं जिनमें किसी को बच्चा चोर होने के संदेह में पीट-पीट कर मार दिया गया अथवा अन्य कारणों से। ऐसी घटनाएं कानून एवं व्यवस्था का उपहास उड़ाने वाली और भारतीय समाज के चेहरे को विकृत रूप में पेश करने वाली है। पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने देश के अलग-अलग हिस्सों से हिंसक भीड़ के हाथों लोगों के मारे जाने की घटनाओं पर गंभीर चिन्ता जाहिर की थी और सख्त लहजे में कहा था कि लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति कानून नहीं बन सकता। लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती। अदालत ने गौरक्षकों और भीड़ के हिंसक अपराधों से निपटने के लिए सख्त दंडात्मक दिशानिर्देश भी जारी किए थे। लेकिन राजस्थान के अलवर जिले में एक बार फिर जिस तरह गौरक्षकों ने एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी, उससे साफ है कि न तो लोगों को सुप्रीम कोर्ट की फिक्र है, न सरकारें उसकी चिन्ता को गंभीरता से लेना जरूरी समझती हैं। इसलिए उचित ही इस घटना के बाद राजस्थान सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की गई है और अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। सवाल है कि इस तरह की अराजकता के खिलाफ जहां सरकारों को अपनी ओर से दोषियों के खिलाफ सख्ती बरत कर हालात में सुधार करना चाहिए, वहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल भी उन्हें जरूरी नहीं लग रहा है। चूंकि कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए इसको रोकने तथा हिंसा व हत्या के अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। बावजूद केंद्र एकदम मूकदर्शक नहीं रह सकता। केंद्र सरकार की तरफ से यह खबर आ रही है कि इसके लिए भारतीय दंड संहिता में अलग से प्रावधान बनाए जाएंगे। अगर भीड़ की हिंसा के लिए विशेष कानून हो जाए तो पुलिस-प्रशासन के लिए भी उसके तहत मुकदमा एवं कानूनी कार्रवाई करना आसान हो जाएगा। पुलिस को अभी अन्य अपराध की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करना पड़ता है। इस कारण एक ही तरह के अपराध के लिए अलग-अलग राज्य ही नहीं अलग-अलग जिलों में भी समान धाराएं नहीं लगाई जातीं। नए कानून के बाद कानूनी कार्रवाई में एकरूपता आ जाएगी। भीड़ की हिंसा के खिलाफ हालांकि कानून बनाने के मामले में एक तर्प यह भी है कि किसी नए कानून की आवश्यकता नहीं है। पहले से ही ऐसे कानून उपलब्ध हैं जिनके जरिये भीड़ के हिंसक व्यवहार वाले मामलों से निपटा जा सकता है। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि अब कुछ लोग अपने हाथ में कानून लेने से डरते नहीं हैं और खुद ही फैसले करने पर उतारू हैं। न तो इन्हें कानून का डर है, न पुलिस का। यह शायद इसलिए भी हो रहा है क्योंकि इन लोगों को कानून, प्रशासन व सरकार से विश्वास उठ चुका है। वह सोचते हैं कि सरकार, पुलिस हमारा क्या बिगाड़ लेगी। जनता में कानून का डर बिठाना होगा, पुलिस की वर्दी का डर पैदा करना होगा। यह मामला सिर्प कानून से निपटने वाला नहीं। आम जनता को इसके लिए सचेत करने की भी जरूरत है कि कोई भी किसी को दंड देने का काम अपने हाथ में नहीं ले सकता और जो करेगा वह कठोर दंड का भागीदार बनेगा।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर राफेल विमान की डील की सत्यता क्या है?

राफेल विमानों की फ्रांस से हुई भारत सरकार की डील पर पिछले कई दिनों से लगातार हंगामा हो रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने एक-दूसरे पर देश और संसद दोनों को गुमराह करने का आरोप लगाया। भाजपा के चार सांसदों ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया। कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की अनुमति के लिए औपचारिक नोटिस दे दिया है। विवाद की मूल जड़ है इन राफेल विमानों की कीमत। स्पीकर को मंगलवार को दिया गया मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा नोटिस में कहा गया है कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने सौदे के बारे में गलत जानकारी देकर गुमराह किया। कांग्रेस ने दावा किया कि विमान की कीमत जाहिर नहीं करने की शर्त भारत-फ्रांस के बीच गोपनीयता करार का हिस्सा नहीं थी। विमान की कीमत सार्वजनिक की जा सकती है। करार के आर्टिकल-1 में लिखा है कि देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों में कुछ अहम सूचना और जानकारी ही गोपनीय श्रेणी में रखी गई है। नोटिस के मुताबिक रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने नवम्बर 2016 और इस साल सदन में लिखित जवाब में कहा था। एक राफेल विमान की कीमत लगभग 671 करोड़ रुपए है। उधर एक टीवी चैनल ने दावा किया है कि मोदी सरकार ने इस विशेष लड़ाकू विमान की डील में देश का पैसा बचाया है और कांग्रेस सरकार की तुलना में हर विमान का सौदा 59 करोड़ रुपए सस्ता किया गया है। मोदी सरकार में जो सौदा 59000 करोड़ रुपए में हुआ है वही डील इस ताजा रहस्योद्घाटन के अनुसार यूपीए के दौरान होती तो कीमत 1.69 लाख करोड़ रुपए होती। इस चैनल की खबर के अनुसार मोदी सरकार ने एक विमान का सौदा 1646 करोड़ में किया है जबकि यूपीए में यह सौदा 1705 करोड़ रुपए का होता। इस विमान के अंदर है मेटयोर और स्कल्प जैसी मिसाइलें जो यूपीए की डील के तहत लिए जा रहे लड़ाकू विमान में नहीं थी। दूसरी ओर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने दावा किया है कि यूपीए सरकार ने 2012 में इसी राफेल को खरीदने का सौदा 526.1 करोड़ रुपए में किया था और मोदी सरकार ने उसी विमान की कीमत 1670.70 करोड़ रुपए चुकाई है। क्या यह सीधे-सीधे घोटाला नहीं है। आखिरकार मोदी सरकार ने ऐसा क्यों किया? देश इसका जवाब चाहता है। वही बता दें कि गोपनीयता का हवाला देकर जिन राफेल लड़ाकू विमान की कीमत बताने से सरकार इंकार कर रखी है, उसका खुलासा राफेल बनाने वाली कंपनी ने ही कर दिया है। राफेल बनाने वाली कंपनी डासू ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि भारत को प्रत्येक विमान (राफेल) 1670.70 करोड़ रुपए में बेचा गया है। पिछले दो माह से राफेल विमान सौदे में घोटाले का आरोप लगाती आ रही कांग्रेस के महासचिव गुलाम नबी आजाद, मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और पूर्व मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट की प्रति जारी की है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ खास (बिजनेसमैन) को डील में फायदा पहुंचाने के लिए महंगी डील करने के आरोप भी लगाए हैं। बोफोर्स घोटाला तो महज 70 करोड़ रुपए का था जिसके  कारण प्रचंड बहुमत वाली राजीव गांधी की सरकार 1989 में चुनाव हार गई थी। आज तक यह साबित नहीं हो पाया कि दलाली की रकम कहां गई? यह राफेल विमानों की खरीद का कथित घोटाला तो हजारों करोड़ का हो सकता है? अनिल अंबानी की कंपनी ने कभी विमान के खिलौने निर्मित नहीं किए, उनको किस आधार पर मोदी जी ने सौदा दिलवाया यह पूरी दुनिया समझ चुकी है। जबकि कांग्रेस की यूपीए सरकार ने सरकारी विमान बनाने वाली एचएएल (प्Aथ्) को यह काम दिलवाया था। इस भ्रष्टाचार के कथित महाघोटाले की पूरी सही जानकारी देश को मिलनी चाहिए। कांग्रेस के आरोपों का मोदी सरकार तभी सही तोड़ निकाल सकती है जब वह खुलकर इस डील की पूरी जानकारी दे। अब इसे छिपाने में भी कोई फायदा नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर पैसों के घोटाले को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। हम यह नहीं कह रहे कि इसमें कोई घोटाला हुआ है पर उसके पुख्ता सबूत सामने भी आने चाहिए।

Thursday, 26 July 2018

Not a Watchman, but a Collaborator: Rahul Gandhi


Neither there was there any concern of losing the no confidence motion by the Modi Government nor was there any hope of winning for the opposition. Opposition knew that arithmetic is against it and a no-confidence motion against any government is sure to be rejected. So the question is why did the opposition bring this at all? This was a purely political backdrop, in which all of them played with their big tricks. Now, whose wings will be affected more, will reflect in the forthcoming assembly elections of various states this year and general elections of 2019. Prime Minister Narendra Modi answered at the end of the debate in his usual mature style. He kept answering the questions raised by the opposition for one and a half hour. I will have to admit that Rahul Gandhi was very effective. Rahul Gandhi's speech may not have been historic, but his indications are far-reaching. Rahul is now turning into a very matured and a very wise politician. The manner, in which Rahul spoke openly against crony-capitalism for the first time, has been very much appreciated. He spoke out the names of Ambani and Adani. Earlier, Congress was accused of protecting the capitalists. This time the signals Rahul gave were clear in the Parliament. This government is a government of the capitalists, he openly accused. For the last two decades, governments have worked for corporate lobbies instead of the common man. If Rahul succeeded in hindering the tradition, it would have far reaching effect. Rahul said what people who wanted to listen. He held Modi government accountable for all the problems, incidents and failures on the part of government, and cleverly put the Modi-Amit Shah duo in a separate fold from the rest of BJP. The most important thing of his entire speech was that he dragged both the brothers Mukesh Ambani and Anil Ambani in Parliament on the pretext of the announcement of Geo-Mukesh Ambani and in Rafale deal-Anil Ambani. In the Parliament, such an open attack on the Ambani brothers no other politician has done before and both the merchant brothers were shown their place. Mukesh Ambani shall no longer be able to propagandize that he holds BJP in one pocket and Congress in the another. Rahul Gandhi also made it amply clear in parliament that in whose in the both pockets of Ambani’s ? Ambani has a   grip on large part of the media. And a section of the media already propagates against the congress and the entire opposition and shows what the government wants it to show. He also mentioned about the banks' debt on Ambani who had thousands of crores debt liabilities and never had the experience to make fighter aircrafts. It was a question mark as to why that Rafale's contract was transferred from the Hindustan Aeronautics Limited to Anil Ambani's company having  not make any aircraft till date? Along with Ambani brothers, Rahul directly accused Modi of working for the benefit of 10-12 industrialists. It seems that Rahul has decided to deal with this syndication, if congress comes to power. Rahul Gandhi is not only the president of congress but his role in the next election may also be the leader of the opposition coalition. In this sense, Rahul Gandhi's speech can play an important role in changing the country's politics and its directions. It may be said that Rahul raised those issues related to the public.The demonetization has ruined small and medium industries. He raised the issue of promising to bring black money from abroad and putting 15 lakh rupees in each person's account. He also put the government in the a fix on different tax rates of GST. He showed the concern of farmer’s plight and questioned farmers policy of Modi government who forfeited crores of rupees of three industrialists, Rahul put the Modi government in the dock.
Rahul Ghandi questioned the silence of the PM on important questions raised by him from time to time. Rahul said that the Prime Minister had said that I am the custodian of the country but he(PM) is a collaborator. The Prime Minister did not give any concrete answers to these burning issues in his mature speech. On behalf of the ruling party, the Prime Minister showed a sense of friendship, but the BJP accused Rahul Gandhi of misbehaving in Parliament and by giving privileged notice of abusive, it showed that the BJP is not going to give them any edge (Congress) . Congress has tried to prove by putting more emphasis on economic issues rather than raising emotional issues that the current government has failed to fulfill its promises and that the situation of the country is deteriorating rather than improving. They have exposed this addictive (jumlebaz) government. Both of them spoke very clearly in their talk and body language showed that the 2019 fight is going to be very interesting. Rahul has shown in his tactics that he is going to contest elections on anti-BJP rhetoric and on anti-modi strategy rather than BJP's aggression. With this strategy, he has also created his better image and his points are like a medication in the current hated atmosphere of the country. At the moment, it is enough to be happy that the monsoon session of Parliament has started with a positive energy. Hopefully, the rest of the session will also witness of positive-meaningful-provoking debate.
 
-Anil Narendra


कैथलिक बिशप पर बलात्कार का केस

देश में बलात्कार की घटनाओं की तो बाढ़-सी आ गई है। कोई दिन ऐसा नहीं निकलता जब दिल दहलाने वाली बलात्कार की घटना की खबर नहीं आती। पर एक ऐसी घटना घटी है जिसकी हम उम्मीद या कल्पना भी नहीं कर सकते थे। वह है केरल में चर्च के बिशप पैंको मुलक्कल के खिलाफ दुराचार का केस। केरल में कैथलिक चर्च के बिशप के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज हुआ है। एक नन का आरोप है कि बिशप ने 13 बार उसका यौन शोषण किया। आरोपी बिशप जालंधर स्थित डायोसिस कैथलिक चर्च में कार्यरत है। कोट्टायाम जिला पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में नन ने आरोप लगाया कि रोमन कैथलिक चर्च के जालंधर धर्म पदेश के बिशप ने चार साल पहले पास के एक कस्बे में कई बार उसका यौन शोषण किया। बिशप पैंको साइरो-मालाबार शिरोमणि अकाली दल की लीडरशिप के काफी करीब माने जाते हैं। 44 वर्षीय नन का आरोप है कि साइरो-मालाबार कैथलिक चर्च से बिशप पैंको के खिलाफ शिकायत की गई तो चर्च ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद उसे पुलिस की मदद लेनी पड़ी। नन ने कहा कि 2014 में जिले के कुरावलगढ़ क्षेत्र में एक अनाथालय के नजदीक एक गेस्ट हाउस में पहली बार उसका यौन शोषण किया गया। पीड़ित नन पंजाब में डायोसिस कैथलिक चर्च के तहत चलने वाले एक संस्थान में काम करती थी। इस संस्थान के मुखिया बिशप पैंको (54) ही हैं। नन से जुड़े करीबी सूत्रों के मुताबिक उसने केरल के तत्कालीन चर्च पमुख कार्डिनल जार्ज एलेनशेरी से इसकी शिकायत की थी, लेकिन चर्च की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया, इस पर उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। केरल पुलिस अधिकारियों के एक दल ने इस यौन उत्पीड़न मामले में नन का बयान दर्ज किया। पुलिस अधीक्षक की अगुवाई में पुलिस दल ने कोट्टायाम के समीप कुरावलगढ़ स्थित एक कांवेंट नन का बयान भी दर्ज किया है। बिशप ने इन आरोपों से इंकार किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें नन के खिलाफ कार्रवाई करने के कारण फंसाया जा रहा है। मुलक्कल के अनुसार यह समस्या 2016 में तब  शुरू हुई जब उन्होंने नन के खिलाफ एक शिकायत पर कार्रवाई की। सवाल यहां यह भी उठता है कि पीड़ित नन ने अब चार साल बाद आरोप क्यों लगाए हैं? वह चार साल तक क्या कर रही थी? चूंकि यह मामला कैथलिक चर्च की मान-पतिष्ठा से जुड़ा है। पुलिस को इसकी तह तक जाना होगा और सत्य सामने लाना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

हिंदू तालिबानी कहने पर सुपीम कोर्ट की फटकार

अयोध्या राम जन्मभूमि में सुनवाई के दौरान गत शुकवार 20 जुलाई को मुस्लिम पक्ष के वकील की अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने की घटना को हिंदू तालिबानी कार्यवाही बताने पर जमकर हंगामा होना स्वाभाविक ही है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले पर जैसे ही सुनवाई शुरू की हिंदू पक्ष की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने पीठ से कहा कि मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन का हिंदुओं को हिंदू तालिबानी कहना बेहद गैर जरूरी था। उन्होंने हिंदुओं का अपमान किया है। जैन ने कहा कि इस शब्द से उन्हें गहरी पीड़ा हुई है और इससे हिंदुओं की छवि खराब हुई है। उन्होंने कोर्ट से ऐसे शब्दों पर रोक लगाने और दिशा-निर्देश देने की मांग की, लेकिन तभी धवन खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि वह अपनी बात पर कायम हैं। उनकी बात को संदर्भ में देखा जाए। उन्होंने कहा कि जैसे बामियान में मुस्लिम तालिबानियों ने बुद्ध की मूर्ति तोड़ी थी, वैसे ही यहां दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा तोड़ने वाले हिंदू तालिबानी थे। तभी वकील किशोर चौधरी धवन की बात पर जोर-जोर से चिल्लाने लगे। चौधरी ने कहा कि आप पूरे हिंदू समुदाय को हिंदू तालिबानी कैसे कह सकते हैं, लेकिन धवन शब्द दोहराते हुए अपनी बात पर कायम रहे। इस पर भगवान रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कोर्ट से धवन के रवैये पर अंकुश लगाने की मांग की। कोर्ट में शोर बढ़ने लगा, तभी पधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि वकीलों को कोर्ट की मर्यादा व भाषा के पति विशेष का ध्यान रहना चाहिए। पयोग किया गया शब्द आवंछित और संदर्भ से अलग था। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, लेकिन धवन ने कहा कि वह इससे सहमत नहीं हैं और उन्हें असहमत होने का हक है। इस पर पधान न्यायाधीश ने कहा कि कोई अड़ा रहे तो क्या किया जा सकता है। बाद में जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से बात खत्म करने और मुख्य मामले में बहस शुरू करने को कहा। उधर मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं मानने वाले 1994 के इस्माइल फारुखी के फैसले के अंश पर पुनर्विचार के लिए पांच जजों की संविधान पीठ को भेजे जाने की मुस्लिम पक्ष की मांग पर सुपीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। राजीव धवन ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। इस पर हिंदू पक्ष ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि इतने वर्षों बाद इस पर पुनर्विचार की मांग करके मुस्लिम पक्ष अयोध्या विवाद के मुख्य मामले की सुनवाई में देर करना चाहता है। अध्योध्या के मुद्दे पर सुनवाई जारी है।

Wednesday, 25 July 2018

चिदम्बरम केस में सीबीआई की साख दांव पर

पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम और उनके बेटे कार्ति की मुश्किलें बढ़ गई हैं। मॉरीशस की कंपनी मैक्सिस में निवेश करने के मामले में एफआईपीबी (विदेश निवेश संवर्द्धन बोर्ड) की कथित संदिग्ध भूमिका पर सीबीआई ने पटियाला हाउस स्थित विशेष अदालत में पूरक आरोप पत्र गत गुरुवार को दाखिल कर दिया है। केंद्रीय जांच ब्यूरो ने न केवल उन्हें आरोपी बनाया है, बल्कि भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत उनके खिलाफ जो धाराएं लगाई हैं, अगर वे अदालत में साबित हो जाती हैं तो उन्हें सात साल की सजा तक हो सकती है। इस मामले में सीबीआई ने वर्ष 2006 के दौरान दो कंपनियों को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड की मंजूरी को लेकर जांच की है। उस समय चिदम्बरम वित्तमंत्री थे। सीबीआई के मुताबिक उन्हीं के कहने पर इन कथित कंपनियों को एफआईपीबी की मंजूरी मिली थी जिसमें अनियमितता बरते जाने का पता चला है। सीबीआई ने यह भी कहा है कि 3500 करोड़ रुपए के एयरसेल-मैक्सिस सौदे और 305 करोड़ रुपए के आईएनएक्स मीडिया मामले में जांच एजेंसियां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता की भूमिका पर जांच कर रही थीं। साक्ष्य मिलने पर इन्हें आरोपी बनाया गया है। बता दें कि जिस एयरसेल-मैक्सिस डील ने चिदम्बरम और उनके बेटे कार्ति को परेशान कर रखा है, इसी मामले से जुड़े आरोपों में पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन, उनके भाई कलानिधि मारन को विशेष अदालत बरी कर चुकी है। सीबीआई की छवि को देखते हुए एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से एक दिन पहले उनके द्वारा इस पूरक आरोप पत्र पर सवाल उठना लाजिमी है। फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इसी मामले में अपने पहले आरोप पत्र में सीबीआई ने दयानिधि मारन और उनके भाई को आरोपी बनाया था, पर अदालत में सीबीआई अपना केस साबित नहीं कर सकी। कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने आरोप लगाया है कि उनके खिलाफ लगाए गए बेतुके आरोप के समर्थन में कार्रवाई करने को लेकर सीबीआई पर दबाव डाला गया। सीबीआई के एयरसेल-मैक्सिस मामले में आरोप पत्र दाखिल करने के बाद यह बात उन्होंने कही। चिदम्बरम ने कहा कि मामला अब अदालत के समक्ष है और वह पूरी मजबूती के साथ इस मुकदमे को लड़ेंगे। ऐसा पहले शायद ही हुआ है जब देश के पूर्व वित्तमंत्री पर भ्रष्टाचार इत्यादि का आरोप लगा हो। सीबीआई को यह साबित करना होगा कि उसके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं और वह सरकार के दबाव में विपक्ष को हैरान-परेशान नहीं कर रही।

-अनिल नरेन्द्र

70 वर्ष बाद इस्राइल यहूदी राष्ट्र घोषित

इस्राइल की संसद ने बृहस्पतिवार को एक ऐसा कानून पारित किया जो कई मायनों में ऐतिहासिक है। बेशक कुछ तत्वों को यह पसंद न हो पर यह कानून इस्राइल को खासकर यहूदियों के राष्ट्र-राज्य के रूप में परिभाषित जरूर करेगा। इस कानून के पारित होने के बाद यह देश आधिकारिक रूप से यहूदियों का देश बन गया है। बता दें कि 14 मई 1948 को इस्राइल के देश बनने के 70 साल बाद इसे यहूदी राष्ट्र बनाया गया है। संसद में 62 में से 55 लोगों ने इसके पक्ष में मतदान किया। अब हिब्रू देश की राष्ट्रभाषा हो गई है जबकि अरबी को सिर्प विशेष दर्जा देकर आधिकारिक भाषा का दर्जा खत्म कर दिया गया। यह कानून इस्राइल को यहूदियों की मातृभूमि के तौर पर परिभाषित करता है। संसद में करीब आठ घंटे चली बहस के बाद इस बिल को पारित किया जा सका। संसद में मतदान के दौरान दो सांसद अलग रहे। इस कानून को बुनियादी कानून के रूप में परिभाषित किया गया है जो इसे लगभग संवैधानिक स्थिति प्रदान करता है। इस्राइली अरब सांसदों और फिलस्तीनियों ने इस विधेयक की निन्दा करते हुए इसे नस्ली भावना से प्रेरित बताया। अरब ज्वाइंट लिस्ट अलायंस के प्रमुख आयमन ओदेह ने अपने संबोधन के दौरान इस विधेयक के खिलाफ काला झंडा लहराते हुए कहाöयह एक बुरा कानून है। आज मुझे फिलस्तीनी अरब शहर के तमाम बच्चों के साथ अपने बच्चों से कहना पड़ेगा कि देश ने ऐलान कर दिया है कि हम यह नहीं चाहते। दूसरी ओर बिल में समूचे यरुशलम को देश की राजधानी बताया गया है। बिल का समर्थन करने वाली दक्षिणपंथी सरकार ने कहा कि इस्राइल यहूदी लोगों की ऐतिहासिक मातृभूमि है। उनके पास देश के बारे में आत्म निर्णय लेने का विशेषाधिकार है। इस विधेयक पर इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहाöयह इस्राइल के इतिहास में एक निर्णायक पल है, जिसमें हमारी भाषा, राष्ट्रगान और ध्वज को सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया गया है। नेतन्याहू ने इस विधेयक की तारीफ करते हुए कहाöयह यहूदियों के इतिहास में और इस्राइल राष्ट्र के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है। बता दें कि इस्राइल की कुल आबादी में करीब 20 प्रतिशत अरब मूल के लोग हैं। इस बिल के तहत उन्हें समान अधिकार दिए गए हैं लेकिन वे लंबे समय से यह आरोप लगाते आए हैं कि उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक जैसा बर्ताव किया जाता है। इस विधेयक से वर्षों से यहूदियों की तपस्या आखिरकार रंग लाई है।

Tuesday, 24 July 2018

चौकीदार नहीं भागीदार हैं प्रधानमंत्री ः राहुल गांधी

न तो मोदी सरकार को हारने की चिन्ता थी, न ही विपक्ष को जीतने की उम्मीद। विपक्ष जानता था कि अंकगणित उसके खिलाफ है और 15 साल बाद किसी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया अस्वीकार हो जाएगा। इसलिए सवाल यह किया जा सकता है कि विपक्ष यह जानते हुए भी क्यों लाया अविश्वास प्रस्ताव? यह विशुद्ध राजनीतिक चौसर थी, जिसमें सबने अपनी गोटियां बड़े सलीखे से खेल लीं। अब किसकी गोटी कितनी दूर तक असर करेगी यह तो 2019 व विभिन्न राज्यों में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव ही बताएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने परिपक्व स्टाइल में बहस के अंत में जवाब दिए। वह डेढ़ घंटे तक विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते रहे और कटाक्ष करते रहे। पर बहस में मानना पड़ेगा कि राहुल गांधी छा गए। राहुल गांधी का भाषण भले ही ऐतिहासिक न रहा हो, लेकिन उसके संकेत दूरगामी थे। राहुल ने बेहद कुशल राजनेता की तरह इशारा कर दिया। अब राहुल भी परिपक्व हो गए हैं। राहुल ने जिस तरह पहली बार पूंजीवाद के खिलाफ खुलकर बोला वह काबिले तारीफ है। अम्बानी, अडानी का नाम लिया। पहले कांग्रेस पर पूंजीपतियों के संरक्षण के आरोप लगते थे। इस बार संसद में राहुल ने जो संकेत दिए वह साफ थे। यह सरकार पूंजीपतियों की सरकार है। पिछले दो दशक से सरकारों ने आम आदमी की बजाय कारपोरेट लॉबी के लिए काम किया। अगर राहुल इस परंपरा पर हल्की-सी रोक लगाने में कामयाब हुए तो बम-बम हो जाएगी। राहुल गांधी ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बेहतरीन भाषण दिया। राहुल ने वही बोला जो लोग सुनना चाहते थे। देश की तमाम समस्याओं, घटनाओं और सरकार की विफलताओं पर मोदी सरकार को जवाबदेह ठहराया और मोदी-अमित शाह जोड़ी को बड़ी होशियारी से बाकी भाजपा से अलग खाने में डाल दिया। सबसे अहम बात उनके पूरे भाषण की यह रही कि जियो के इश्तिहार के बहाने मुकेश अम्बानी और राफेल डील के बहाने अनिल अम्बानी दोनों भाइयों को संसद में घसीटा। संसद में अम्बानी भाइयों पर इतना खुला हमला किसी राजनेता ने पहले नहीं किया और इन दोनों व्यापारी बंधुओं को उनकी जगह भी दिखा दी। मुकेश अम्बानी अब यह प्रचार नहीं कर पाएंगे कि उनकी एक जेब में भाजपा और दूसरी जेब में कांग्रेस है। राहुल गांधी ने संसद में बता दिया कि अम्बानी की दोनों जेबों में कौन है? संसद में अम्बानी पर हमला बोलते हुए राहुल द्वारा उठाई गई बातों पर गौर करना जरूरी है। अम्बानी का मीडिया के एक बड़े हिस्से पर कब्जा है और मीडिया का एक हिस्सा पहले से ही कांग्रेस और समूचे विपक्ष के खिलाफ प्रचार-प्रसार करता है और वही दिखाता है जो सरकार चाहती है। उन्होंने बैंकों का अम्बानी पर कर्ज और हजारों करोड़ की देनदारी और जहाज तक बनाने का कोई अनुभव न होने की बात भी उठाई। उनका साफ इशारा था कि राफेल का ठेका हाल (हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड) से लेकर अनिल अम्बानी की कंपनी को देना था जिसने आज तक एक भी विमान नहीं बनाया। अम्बानी भाइयों के साथ-साथ राहुल ने मोदी पर सीधा आरोप लगाया कि वह 10-12 उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए काम करते हैं। लगता है कि राहुल ने तय कर लिया है कि इस सिंडीकेट से कैसे निपटना है अगर कांग्रेस सत्ता में आती है। राहुल गांधी सिर्प कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं हैं बल्कि विपक्षी गठबंधन के नेता भी होंगे और अगले चुनाव में उनकी भूमिका अग्रणी रहने वाली है। इस लिहाज से राहुल गांधी का भाषण देश की राजनीति में दूरगामी और हवा बदलने में अहम भूमिका निभा सकता है। अगर हम राहुल द्वारा उठाए गए मुद्दों की बात करें तो उन्होंने जनता से जुड़े कई मुद्दे सिलसिलेवार उठाए। नोटबंदी ने छोटे व मझौले उद्योगों को तबाह कर दिया है। विदेश से काला धन वापस लाकर हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपए डालने का मुद्दा भी उन्होंने उठाया। जीएसटी की अलग-अलग टैक्स दरों पर भी उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा किया। किसानों की दुर्दशा और मोदी सरकार की किसान नीति पर प्रश्न उठाए। तीन उद्योगपतियों के करोड़ों-अरबों रुपए माफ करने पर भी राहुल ने मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया। दुष्कर्मों पर पीएम की चुप्पी पर सवाल उठाया। राहुल ने बोला कि प्रधानमंत्री ने बोला था कि मैं चौकीदार हूं देश का लेकिन यह (पीएम) तो भागीदार निकले। प्रधानमंत्री ने अपने परिपक्व भाषण में और बातें कहीं पर इन ज्वलंत मुद्दों का कोई ठोस जवाब नहीं दिया। सत्तापक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री ने मैत्री का हावभाव जरूर प्रकट किया, लेकिन भाजपा ने राहुल गांधी पर संसद में गलतबयानी करने का आरोप लगाते हुए विशेषाधिकार हनन का नोटिस देकर यह जता दिया कि भाजपा उन्हें (कांग्रेस) किसी भी रूप से बढ़त नहीं देने वाली है। कांग्रेस ने भावनात्मक मुद्दे उठाने की जगह पर आर्थिक मुद्दों पर ज्यादा जोर देकर यह साबित करने की कोशिश की है कि मौजूदा सरकार अपने वादों को निभाने में विफल रही है और देश की स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ती जा रही है। उन्होंने इस जुमले वाली सरकार को बेनकाब किया है। दोनों ने अपनी-अपनी बातों और देहभाषा में बहुत साफ बता दिया कि 2019 की बाजी रोचक होने वाली है। राहुल ने अपनी रणनीति दिखा दी है कि वे भाजपा की आक्रमकता की बजाय सक्रिय प्रतिरोध और प्रेम की रणनीति पर चुनाव लड़ने वाले हैं। इस रणनीति से उन्होंने अपनी बेहतर छवि भी निर्मित की है और उनकी यह बात देश के मौजूदा नफरत-भरे माहौल में एक दवाई की तरह है। फिलहाल खुश होने के लिए इतना ही काफी है कि संसद के मानसून सत्र की शुरुआत एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ हुई है। उम्मीद है, सत्र के बाकी दिन भी सकारात्मक-सार्थक-उत्तेजक बहस का गवाह बनेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 22 July 2018

सोनिया गांधी को फंसाने की साजिश

अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर डील का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इस डील के दौरान कथित रिश्वतखोरी में अहम भूमिका निभाने वाले संग्दिध क्रिश्चियन मिशेल की वकील रोसमेरी पैट्रिजी और बहन साशा ओजेमैन ने सनसनीखेज दावे किए हैं। इन दोनों ने आरोप लगाया है कि भारतीय जांच अधिकारी मिशेल से झूठे कबूलनामे पर दस्तखत लेने की कोशिश कर रहे हैं। वकील के दावे के मुताबिक मिशेल से भारतीय अधिकारियों ने यह भी कहा कि अगर वह कबूलनामे के दस्तावेज पर दस्तखत कर देती हैं तो उन्हें कैद से आजादी मिल जाएगी। मिशेल की वकील पैट्रिजी ने इंग्लैंड से अलग-अलग इंटरव्यू में यह दावे किए। ब्रिटिश नागरिक मिशेल पर अगस्ता वेस्टलैंड रिश्वतखोरी घोटाले में छह करोड़ यूरो की दलाली में अहम भूमिका निभाने का आरोप है। मिशेल एक महीने से भी ज्यादा समय से दुबई में हिरासत में हैं। पैट्रिजी के मुताबिक उनके मुवक्किल पर दबाव डाला गया कि अगर वह रिहाई चाहती हैं तो इकबालिया बयान पर दस्तखत कर दें। कांग्रेस ने गुरुवार को आरोप लगाया कि केंद्र की राजग सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड मामले में आरोपी क्रिश्चियन मिशेल पर दबाव बनाकर पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को फंसाने की साजिश रची। कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा कि अगस्ता वेस्टलैंड मामले में आरोपी क्रिश्चियन मिशेल को दो दिन पहले दुबई में गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कहा है कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी एजेंसियां मिशेल पर सोनिया गांधी को साजिश में फंसाने के लिए दबाव डाल रही हैं। उन्होंने दावा किया कि एजेंसियां मिशेल पर सोनिया गांधी का नाम लेते हुए एक हलफिया बयान देने के बदले में उसे हर प्रकार के आरोप से मुक्त करने की सौदेबाजी कर रही हैं व दबाव डाल रही हैं। सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि सीबीआई और ईडी एक तरफ तो दुबई की अदालत में कोई भी साक्ष्य या सबूत पेश करने में विफल रही हैं और दूसरे ओर मिशेल को एक षड्यंत्रकारी पुर्जे की तरह इस्तेमाल कर विपक्षी नेताओं के खिलाफ साजिश कर रही हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि देश के इतिहास में पहली बार किसी सरकार की विपक्षी नेताओं के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी झूठी साजिश जगजाहिर हुई है। अगर कांग्रेस प्रवक्ता की बात सही है तो विपक्षी नेताओं को जबरन फंसाने की इस तरह की साजिश न तो सरकार के हित में है और न ही देश के। विपक्षी नेताओं पर हमले करो पर वह तथ्यों पर आधारित हों न कि साजिशों पर। अगस्ता वेस्टलैंड डील की निष्पक्षता और सच्चाई से जांच होनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर अग्निवेश क्यों पिटे?

तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की गत दिनों पाकुड़ (झारखंड) के मुस्कान पैलेस होटल के सामने भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के कार्यकर्ताओं ने जमकर पिटाई की। कार्यकर्ता पाकिस्तान व ईसाई मिशनरी के दलाल स्वामी अग्निवेश गो बैक के नारे लगा रहे थे। जहां हम इस हमले की कड़ी निन्दा करते हैं और अपने विरोध में हिंसा का सहारा लेने को स्वीकार नहीं करते वहीं हम पाठकों को यह भी जरूर बताना चाहेंगे कि नौबत यहां तक आई क्यों? स्वामी अग्निवेश ने ऐसा क्या कहा जिससे भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ता इतने भड़के। प्रस्तुत है वर्ड बाई वर्ड स्वामी अग्निवेश का वह भाषण जिसके बाद मारपीट हुईöअग्निवेश ः नरेंद्र मोदी भाषण में क्या बोलते हैं, हमारे देश में, हमारे इतिहास में बहुत बड़ा साइंस था और वह साइंस प्लास्टिक सर्जरी करती थी और उसका उदाहरण दियाöगणेश जी, कैसे हाथी का सिर काट कर एक बच्चे के ऊपर लगा दिया, यह हमारे बड़े डाक्टरों ने करके दिखा दिया। भारत का प्राइम मिनिस्टर बोल रहा है। बोले कौरव वन हंड्रेड लोग कैसे हो गए। बोलेöस्टेम सेल रिसर्च था (टेम सेल रिसर्च) इतना झूठ, इतना पाखंड, इतना अंधविश्वास और भारत का प्रधानमंत्री उसका प्रचार कर रहा है? इससे देश रसातल में जाएगा। जब आप नेपाल जाते हैं एज प्राइम मिनिस्टर आप दो घंटे तक पशुपतिनाथ मंदिर के अंदर घुसकर पूजा करते हैं, ऐसा स्वयं माला, शाल डालकर फिर पुंड, तुम को पांडा गिरी करना है तो जाओ वहां पर पांडा गिरी करो पर प्राइम मिनिस्टर की कुर्सी पर बैठ कर यह काम नहीं कर सकते आप। आप बांग्लादेश जाते हैं, ढाका में ठाकेश्वरी के मंदिर में आरती करते हैं, यह हमारे भारत के संविधान की भावना और प्रिट के खिलाफ है। मैंने उनके खिलाफ स्टेटमेंट दिया, देहरादून में प्रेस कांफ्रेंस करके मैंने कंडम किया इसको। मैंने कश्मीर में श्रीनगर में खड़े होकर कहा, अमरनाथ बहुत बड़ी तीर्थ यात्रा जाती है, आप इधर सबरीमाला जाते हैं न, सबरीमाला अय्यप्पा अय्यप्पा, यह भी अंधविश्वास है सारे का सारा। यह तिरुपति भी अंधविश्वास है और यह अमरनाथ भी अंधविश्वास है। मैंने श्रीनगर में कहा, मुझसे टीवी वालों ने पूछा कि स्वामी जी, इस बार अमरनाथ की तीर्थ यात्रा के लिए सरकार ने 15 दिन कम कर दिए इस पर आपको क्या रिएक्शन देना है? मैंने कहा, 15 दिन क्यों कम किए इसको तो पूरा बंद कर देना चाहिए, खत्म कर देना चाहिए। बोले इसलिए, वह तो बर्फानी बाबा हैं, वह तो शिवलिंग हैं, मैंने कहा कि वह तो कोई शिवलिंग, परमात्मा वगैरह नहीं हैं, वह तो साढ़े 13 हजार फुट पर पानी ऊपर से टपकता है तो नीचे से बर्प ऐसे बन जाती है। हम तो भूगोल में पढ़ते थे एस्टलेक टाइप इस्टाइलक माइट बोलते हैं उनको। उसके नीचे से ऊपर जो बर्प जम जाती है वह ऊपर से नीचे लटक जाती है। यह तो एक नेचुरल फेनोमेना है, मैंने कहाöनथिंग टू डू विद एनीथिंग डिवाइन। वह इसका ईश्वर व परमात्मा बना इतना बड़ा उसको बना रहे हैं इस शिवलिंग को बर्फानी बाबा, उसके लिए सब साढ़े 13 हजार फुट पर जाते हैं। सरकार को इतना इंतजाम करना पड़ता है, करोड़ों रुपए खर्च, सेना लगानी पड़ती है सुरक्षा के लिए। यह सब धोखा है, पाखंड है। मैंने कह दिया कि एक  बार यात्रा शुरू होने से पहले ही वह सारा का सारा शिवलिंग ग्लोबल वार्मिंग में पिघल गया, वह गायब हो गया तो गवर्नर जनरल एसके सिन्हा हेलीकॉप्टर में आर्टिफिशियल आइस लेकर गए और उसको बना दिया ताकि भगत लोग आएं तो उनको सचमुच का एक शिवलिंग, शिव जी मिलना चाहिए। यह क्या है? यह सरकार का काम है? पुंभ का मेला लगता है हरिद्वार में, इलाहाबाद में लगता है, आपके पड़ोस नांदेड़ में लगता है, अभी गोदावरी का भी पुंभ मनाया गया, लोग मर जाते हैं उसके अंदर, भगदड़ मचती है। मैं हर बार जाता हूं पुंभ के मेले में, पांच हजार लोगों को लेकर पूरी यात्रा निकालता हूं, नारे लगाता हूं, इश्तिहार बांटता हूं कि गंगा में डुबकी लगाने से पाप नहीं धुल सकते और गंदी नदी में, नाले के पानी में डुबकी लगाओगे तो आप बीमार हो जाओगे। यह था स्वामी अग्निवेश का वह भाषण जिससे भाजयुमो के कार्यकर्ता भड़के। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सबको अपनी बात करने की छूट है पर आप करोड़ों लोगों की आस्था व विश्वास पर यूं चोट नहीं लगा सकते। आप भगवान पर विश्वास करें या न करें पर दूसरों के धर्म, विश्वास पर यूं टिप्पणी नहीं कर सकते। मैंने सलमान रुशदी की विवादास्पद पुस्तक द रुटैनिक वर्सिस की भी इसी आधार पर आलोचना की थी। स्वामी अग्निवेश एक ढोंगी हैं। उसके विचार नक्सली हैं, यह सभी जानते हैं। वह हिन्दू धर्म पर हजारों टिप्पणियां कर चुके हैं और कई बार पिट भी चुके हैं। अग्निवेश के नाम के आगे कृपया स्वामी न लगाएं। इस व्यक्ति के नाम में स्वामी लगाना, स्वामी शब्द का अपमान है, चूंकि यह एक बड़ा पवित्र शब्द है। अग्निवेश की टिप्पणियां देशविरोधी हैं और हिन्दू धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने वाली हैं।

Saturday, 21 July 2018

थोक महंगाई ने तोड़ा पिछले चार साल का रिकॉर्ड

एक बार फिर सब्जियों और पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से थोक महंगाई यानि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूसीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति न केवल बढ़ गई, बल्कि पिछले चार साल में सबसे ज्यादा स्तर पर पहुंच गई है। सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि इस बार जून में यह 5.77 प्रतिशत तक पहुंच गई। मई का आंकड़ा 4.43 प्रतिशत का था और  पिछले जून में यह मात्र 0.90 प्रतिशत था। इससे पता चलता है कि महंगाई किस तेजी से बढ़ रही है और आम आदमी पर इसकी मार कैसी बड़ रही है। पिछले एक साल के दौरान महंगाई बढ़ी और फिर एक महीने के भीतर ही इसमें इजाफा हो गया। थोक महंगाई में 22.62 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाली प्राथमिक वस्तुओं की कीमतों में जून में 5.30 प्रतिशत की तेजी रही, मई में यह 3.16 प्रतिशत पर थी। इसमें सब्जियों की महंगाई तीन गुना बढ़ी यानि जून में यह 8.12 प्रतिशत हो गई, जो मई में 2.51 प्रतिशत थी। उपभोक्ता पर इसका सीधा असर पड़ता है। खुदरा महंगाई पर भी असर पड़ेगा, जिससे बाजार में नकदी का प्रवाह प्रभावित होगा। इस माह के आखिर में होने वाली रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा बैठक में रेपो रेट बढ़ाने पर विचार हो सकता है। पिछली बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट 0.25 प्रतिशत बढ़ा दिया था। चौंकाने वाली बात यह है कि थोक महंगाई में यह बढ़ोत्तरी सब्जियों और ईंधन के दाम बढ़ने का नतीजा है। पिछले कुछ महीनों में पेट्रोल और डीजल के दाम सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए नई ऊंचाइयां छू गए थे। तभी इस बात के पुख्ता आसार नजर आने लगे थे कि अब महंगाई का ग्राफ ऊपर जाएगा और इसका सीधा असर फल-सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थों पर तेजी से पड़ेगा। कच्चे तेल के दाम बढ़ते ही बाजार में पेट्रोलियम उत्पाद महंगे हो जाते हैं और जैसे ही पेट्रोल-डीजल में जरा भी तेजी आती है, उसका सबसे पहला असर माल-भाड़े और ढुलाई पर पड़ता है और इसका सीधा बोझ उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है। मंडियों में एक ही दिन में दाम चढ़ जाते हैं, इसीलिए महंगाई थोक हो या खुदरा, असर दोनों का ही पड़ता है। उम्मीदें अच्छे मानसून को लेकर भी हैं। अगर मानसून अच्छा रहता है, खेत लहराते हैं तो हो सकता है कि आने वाले वक्त में मुद्रास्फीति में सुधार आ जाए। लेकिन फिलहाल महंगाई को काबू रखने और गरीब आदमी की कमर तोड़ने वाली इस महंगाई को थामना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। उम्मीद की जाती है कि आने वाले दिनों में महंगाई घटेगी और जनता को राहत मिलेगी।

-अनिल नरेन्द्र

भीड़ का अंधा कानून बर्दाश्त नहीं

हाल के दिनों में अखबारों के पहले पन्ने पर लगभग रोज ही किसी अफवाह के कारण भीड़ में तब्दील हो गए लोगों की हिंसा के मामले लगातार सामने आ रहे हैं, यह बेहद चिन्ताजनक हैं। इसकी वजह से कई लोगों की जान जा चुकी है। दुखद पहलू तो यह है कि कुछ लोग न तो कानून की कोई परवाह करते हैं और न ही यह जानने की कोशिश करते हैं कि संदिग्ध व्यक्ति वाकई दोषी है भी या नहीं? ऐसी बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अख्तियार किया है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रवृत्ति पर चिन्ता जताई और कहा कि कोई भी नागरिक अपने आप में कानून नहीं बन सकता है, लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अदालत ने सरकार से भीड़ के हाथों हत्या को एक अलग अपराध की श्रेणी में रखने और इसकी रोकथाम के लिए नया कानून बनाने को कहा। उसने साफ कहा है कि भीड़तंत्र की यह घिनौनी हरकतें कानून के राज की धारणा को ही खारिज करती हैं। यह भी कि समाज में शांति कायम रखना केंद्र सरकार का दायित्व है। अदालत ने अपने निर्देशों में कहा है कि भीड़ की Eिहसा के शिकार हुए लोगों या उनके परिजनों को 30 दिन के अंदर मुआवजा दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर नियंत्रण के लिए एक निश्चित व्यवस्था करने की बात भी कही है। इसके मुताबिक राज्य सरकारें हर जिले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त करें, जो ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाएगा। ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 153() के तहत तुरन्त केस दर्ज हो और फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चलाकर छह महीने के अंदर दोषियों को अधिकतम सजा दी जाए। इसके लिए पीड़ित पक्ष के वकील का खर्च सरकार वहन करे। अभी तक जितने मामले हुए, उनको पहले से व्याप्त कानून के तहत निपटाया जा रहा है। जाहिर है, यदि अलग से इसके लिए कानून बन जाए तो फिर पुलिस-प्रशासन के लिए कार्रवाई ज्यादा आसान हो जाएगी। किन्तु संसद में कानून तो तभी बन सकता है जब इसका सभी पार्टियां समर्थन करें। देखना है कि सरकार क्या करती है? चूंकि कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने ज्यादा व्यवस्थाएं राज्यों के लिए दी हैं। न्यायालय के इस आदेश के पहले से कई राज्य अफवाहों को लेकर मीडिया में विज्ञापन जारी कर लोगों को आगाह कर रहे हैं। केंद्र ने भी राज्यों के लिए एडवाइजरी जारी की है और व्हाट्सएप से अफवाहों को रोकने के लिए कदम उठाने को कहा है। इतना होने के बावजूद भीड़ की Eिहसा जारी रहना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और इसका मतलब है कि अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना है। केंद्र से ज्यादा राज्य सरकारों पर मॉब वायलैंस को रोकने की जिम्मेदारी है। राजनीतिक संरक्षण देना बंद करें। इस बेमतलब हिंसा को रोकें।

Friday, 20 July 2018

बिल्डरों की लापरवाही-लालच हादसे का जिम्मेदार

ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में मंगलवार रात करीब 10 बजे दो बहुमंजिला इमारतें ढह गईं। इन इमारतों के ढहने में तीन शव और मिलने के साथ ही इस हादसे में मरने वालों की संख्या आठ तक पहुंच गई है। आशंका है कि अभी भी इमारतों के मलबे में दर्जनों दबे हैं। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, 18 अन्य के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है। हादसे की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं। बचाव व राहत कार्य अभी भी जारी है। इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे पर दुख व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजन को दो-दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए हैं। उधर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) विभा चहल को पद से हटा दिया गया है। इसके अलावा अवैध निर्माण करवाने वालों के खिलाफ एफआईआर कराकर दोषी लोगों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए हैं। शाहबेरी गांव में इन दो इमारतों के गिरने से स्थानीय लोगों में रोष होना स्वाभाविक ही है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि शाहबेरी गांव में बिल्डरों ने औने-पौने दामों पर जमीन खरीद ली और बिना किसी नियम का पालन किए निर्माण कार्य करने लगे। यहां नोएडा और ग्रेटर नोएडा की तुलना में सस्ते मकान उपलब्ध कराए जा रहे हैं। लेकिन यह सस्ते मकान खराब गुणवत्ता की निर्माण सामग्री से बनाए गए हैं। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि गांव में निर्माण होने की वजह से प्राधिकरण का कोई भी लेनादेना नहीं रहता। इसका फायदा उठाकर बिल्डर अपनी मनमर्जी चलाते हैं। लोग भी सोचते हैं कि उन्हें कम कीमत में आशियाना मिल रहा है पर पेमेंट के बाद वह फंस जाते हैं। यहां पर ज्यादातर लोग मकान लेते हैं जो बस किसी तरह अपना घर चाहते हैं और इसलिए बड़ी आसानी से बिल्डर के बुने जाल में फंस जाते हैं। बिल्डर कभी पूरी जानकारी ठीक से देते भी नहीं हैं। इससे भोलेभाले लोग फंस जाते हैं और ऐसी जगह रहने लगते हैं जहां बाद में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक परिवार ने मंगलवार को ही पूजापाठ करके अपना सामान नए फ्लैट में शिफ्ट किया था। कुछ और परिवार भी आने वाले थे, लेकिन इस हादसे में कई परिवारों का सपना टूट गया। मौके पर पहुंचे लोगों ने बताया कि निर्माणाधीन बिल्डिंग में हादसे के दौरान चार परिवार और उसके बराबर स्थित बिल्डिंग में 12 परिवार रह रहे थे। इन सभी परिवारों के मलबे में दबे होने की आशंका है। इसके अलावा बिल्डिंग के बराबर में एक-दो झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के भी मलबे में दबे होने की आशंका है।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल गांधी की नई सेना

लंबे इंतजार के बाद संसद के मानसून सत्र से ठीक पहले मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने साल 2019 लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अपनी सेना तैयार कर ली है। उन्होंने पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) का पुनर्गठन किया है। राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के सात महीने बाद कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है। पिछली कार्यसमिति को मार्च में अधिवेशन से पहले भंग कर दिया गया था। अधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी टीम चुनने के लिए अधिकृत किया गया। तब से राहुल को समिति को गठित करने में चार महीने लग गए। राहुल गांधी की कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कुल 51 सदस्य हैं। इनमें 23 सदस्य, 18 स्थायी सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। राहुल गांधी ने पहली बार कांग्रेस के मोर्चा संगठन मसलन यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस, इंटक और सेवा दल के अध्यक्षों को सीडब्ल्यूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने अपनी नई टीम में बड़ी संख्या में युवाओं को शामिल कर साफ संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस अपने इन्हीं नौजवानों के चेहरों के दम पर आगे बढ़ेगी। हालांकि कार्यसमिति में अनुभवी नेताओं को भी पूरी तवज्जो दी गई है। पार्टी के संगठन में विधानसभा चुनाव वाले तीन राज्योंöराजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेताओं को खासकर शामिल किया गया है। हालांकि अनुभव को भी तरजीह दी गई है। राहुल की कार्यसमिति में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, मोती लाल वोहरा, अहमद पटेल, अशोक गहलोत को सदस्य के तौर पर जगह मिली है। वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पी. चिदम्बरम जैसे नेताओं को स्थायी आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया। कार्यसमिति में पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, बिहार जैसे राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। महासचिव से हटाए गए किसी भी नेता को कार्यसमिति में भी जगह नहीं दी गई। इसी वजह से सीपी जोशी, मोहन प्रकाश, बीके हरिप्रसाद को कार्यसमिति से हटा दिया गया है। लाल बहादुर शास्त्राr के पुत्र अनिल शास्त्राr लंबे समय से विशेष आमंत्रित सदस्य थे, पर इस बार वह भी जगह नहीं पा सके। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह को कार्यसमिति में जगह नहीं मिलना चकित करने वाला जरूर है। आमंत्रित सदस्यों को जोड़ लें तो भी महिलाओं की संख्या 51 में से केवल सात ही है। यानि 15 प्रतिशत से भी कम। हाल-फिलहाल दलित आंदोलन की परछाईं इस समिति के चयन में दिखी। दलित चेहरों के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे, कुमारी शैलजा और पीएल पुनिया को शामिल किया गया है। राहुल की नई टीम की असली परीक्षा आने वाले विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में होगी।

Thursday, 19 July 2018

असम की पहली ट्रांसजेंडर जज

ट्रांसजेंडर को जज बनाने वाला असम पूर्वोत्तर का पहला और देश में तीसरा राज्य बन गया है। गुवाहाटी के कामरूप जिले की लोक अदालत में स्वाति बिधान बरूआ ने कामकाज संभाला। अदालत की 20 जजों की बेंच में से स्वाति एक हैं। स्वाति 2012 तक पुरुष थीं। नाम थाöबिधान। इसके बाद सर्जरी कराई और नया नाम स्वाति अपनाया। बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई की और अब अदालत में पैसे के लेनदेन से जुड़े मामले देख रही हैं। सबसे पहले पश्चिम बंगाल ने जुलाई 2017 में देश के पहले ट्रांसजेंडर न्यायाधीश के रूप में जॉयता मंडल को नियुक्त किया था। इसके बाद इस साल फरवरी में महाराष्ट्र ने नाग कामबल को नागपुर की लोक अदालत में नियुक्त किया गया। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट स्वाति बरूआ के यहां तक पहुंचने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 2012 में स्वाति (तब बिधान) ने नई पहचान अपनाने का फैसला किया था। इसके लिए सर्जरी करवाने की ठानी तो उनका परिवार ही विरोध में आ गया। स्वाति मुंबई में नौकरी कर रही थीं। परिवार ने उन्हें जबरदस्ती गुवाहाटी वापस  बुला लिया। नौकरी करके उन्होंने सर्जरी के लिए पैसे जुटाए। सर्जरी न हो पाए, इसलिए परिवार ने उनके बैंक अकाउंट ही ब्लॉक करवा दिए। इसके बाद बरूआ बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे। हाई कोर्ट ने उनके सर्जरी करवाने का रास्ता साफ कर दिया। इसके बाद ही बिधान ने स्वाति के रूप में नई पहचान अपनाई। अब स्वाति के परिवार को भी उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं रहा। वो कहती हैंöमुझे उम्मीद है कि बतौर जज मेरी नियुक्ति लोगों को अहसास कराएगी कि ट्रांसजेंडर भी समाज का हिस्सा हैं। कुछ नीतियों के असफल होने की वजह से ही उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, वरना ट्रांसजेंडर भी समाज के लिए काम कर सकते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार असम में पांच हजार से ज्यादा ट्रांसजेंडर्स हैं। इसी को देखते हुए स्वाति ने 2017 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में भी जनहित याचिका दाखिल की थी। उन्होंने ट्रांसजेंडर्स के लिए सरकार को पॉलिसी बनाने का आदेश देने की मांग की थी। बरूआ ऑल असम ट्रांसजेंडर्स की नेता भी हैं। बरूआ कहती हैंöट्रांसजेंडर सार्वजनिक स्थानों पर परेशानी का सामना करते हैं। उन्हें अपमानित किया जाता है। तंज कसे जाते हैं। इसे रोकने की जरूरत है। यह ठीक नहीं है। मैं अपने मिशन को तब पूरा मानूंगी जब यह दिखेगा कि ट्रांसजेंडर्स को भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ रहा है और उन्हें भी स्थायी नौकरियां मिल रही हैं।

-अनिल नरेन्द्र

ट्रंप और पुतिन के बीच ऐतिहासिक वार्ता

सारी दुनिया की नजरें सोमवार को हुई अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच ऐतिहासिक शिखर वार्ता पर टिकी थीं। यह शिखर वार्ता सोमवार को फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में तय हुई। ट्रंप-पुतिन के बीच शिखर वार्ता हेलसिंकी के प्रेजिडेंनल पैलेस में हुई। फिनलैंड नाटो का हिस्सा नहीं है। रूस नाटो देशों को अपना दुश्मन मानता है। 1995 में फिनलैंड यूरोपीय संघ में शामिल हुआ था, पर सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बना। इसलिए दोनों के लिए हेलसिंकी निष्पक्ष जगह है। इसके अलावा मास्को से हेलसिंकी की दूरी महज दो घंटे की है। दो घंटे से अधिक बातचीत के बाद संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दखल पर रूस को क्लीन चिट दे दी। चुनाव में दखल के एफबीआई के दावों के नकारते हुए ट्रंप ने कहा कि इस मामले में केमलिन पर संदेह की गुंजाइश नहीं है। सीआईए के पूर्व प्रमुख ने भी रूस को दोषी बताया था, लेकिन वह आश्वस्त नहीं थे। पुतिन ने इस बात को पूरे दम के साथ खारिज कर दिया। उन पर शक की कोई वजह नहीं है। इससे पहले पुतिन ने कहाöट्रंप ने इसमें रूस का हाथ होने की बात कही थी, लेकिन मैंने स्पष्ट बता दिया कि रूस इसमें शामिल नहीं रहा। पुतिन ने कहा कि रूस ने कभी अमेरिका के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दिया और न ही भविष्य में ऐसी कोई मंशा है। इससे पहले दोनों देशों के नेताओं ने पुरानी कड़वाहट भुलाकर नए सिरे से रिश्ते बनाने की बात कही और हम इसका स्वागत करते हैं। दोनों देशों की दो महाशक्तियों के बीच जारी तनाव से सारी दुनिया प्रभावित थी। साझा बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे पास अब बात करने के लिए बहुत सी अच्छी चीजें हैं। हमारे बीच व्यापार, सेना, मिसाइल, परमाणु हथियार, चीन जैसे कई मुद्दों पर बात हो चुकी है। अमेरिका की गलतियों की वजह से दोनों देशों के बीच लंबे समय तक कड़वाहट बनी रही। मुझे लगता है कि इस बातचीत के जरिये अब दोनों देशों के बीच असाधारण रिश्ते बनेंगे। दोनों नेताओं के बीच अकेले में 90 मिनट की बातचीत हुई। इस दौरान उनके साथ सिर्प एक महिला ट्रांसलेटर थीं। दरअसल ट्रंप ने अधिकारियों से कहा था कि वह पुतिन के साथ अकेले में बातचीत करना चाहते हैं ताकि उनके बीच संवेदनशील मुद्दों पर हो रही बातचीत लीक न हो।

Wednesday, 18 July 2018

धमकियों पर उतरीं महबूबा मुफ्ती

अपनी पार्टी में मचे घमासान को दबाने के लिए पीडीपी नेता व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा अब धमकियों पर उतर आई हैं। महबूबा ने कहा कि मेरी पार्टी मजबूत है। मतभेद हैं तो सुलझा लिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि मेरी पार्टी को तोड़ने की कोशिश न करें। ऐसा किया तो आप अंतत सलाहुद्दीन (हिजबुल प्रमुख) जिसने 1987 में चुनाव लड़ा था और यासीन मलिक (जेकेएलएफ प्रमुख) को जन्म देने का काम करेंगे। जैसा 1987 में हुआ था जब लोगों के वोटों पर डाका डाला गया था और एमयूएफ (मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट) को कुचलने का प्रयास किया गया था, तो इसके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे। महबूबा के बयान पर नेशनल कांफ्रेंस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट करके कहा कि पीडीपी टूट भी जाती है तो इससे कश्मीरी लोगों को कोई फर्प नहीं पड़ने वाला। मैं इस तरह बताता हूं ताकि सब याद रखें कि पीडीपी के टूटने से एक भी नया आतंकी तैयार नहीं होगा। कश्मीरी लोगों के मतों को विभाजित करने की खातिर दिल्ली में बनाई पार्टी के अंत का लोगों को कोई दुख नहीं होगा। उधर अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहाöमहबूबा ने यह चेतावनी देकर कि पीडीपी को तोड़ने की कोशिश करने पर और आतंकवादी पैदा होंगे, अलगाववादियों के साथ निकटता को जगजाहिर कर दिया है। महबूबा इससे आतंकियों को ऑक्सीजन देने की कोशिश कर रही हैं। भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद सत्ता गंवाकर और पार्टी में टूट की आशंका का मुकाबला कर रही महबूबा की पार्टी को जिस दक्षिण कश्मीर में सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं वहां की बढ़ती Eिहसा इस बात का संकेत है कि उनका जनाधार खिसक भी रहा है। विकल्प के तौर पर उभर रहे उमर अब्दुल्ला विधायकों की खरीद-फरोख्त से बचने के लिए लगातार नए चुनाव की मांग कर रहे हैं। ऐसे में महबूबा के बयान से जाहिर होता है कि उन्हें दल-बदल से ज्यादा चिन्ता आगामी चुनाव सता रहे हैं। यही वजह है कि महबूबा के बयान में साफ कहा गया है कि अगर दिल्ली ने 1987 की तरह यहां की अवाम के वोट पर डाका डाला तो जिस तरह एक सलाहुद्दीन और एक यासीन मलिक ने जन्म लिया वैसी ही खतरनाक स्थिति आज भी पैदा हो सकती है। चेतावनी का अर्थ यह भी है कि कश्मीर में जोड़तोड़ में नई सरकार बनाने की कोशिश अब शांति पैदा करने की बजाय बदमगजी और अशांति पैदा करेगी। इसलिए राज्यपाल को कोशिश करनी चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाएं ताकि सूबे में लोकतंत्र बरकरार रहे।

-अनिल नरेन्द्र

फ्रांस ने कप जीता पर दिल जीता क्रोएशिया ने

रूस में 14 जून से शुरू हुए फुटबॉल के महापुंभ का 21वां फीफा फुटबॉल कप का रविवार आखिरी दिन था। महत्वपूर्ण मौकों पर गोल करने की अपनी काबिलियत और भाग्य के दम पर फ्रांस की युवा टीम ने फाइनल मैच में दमदार क्रोएशिया को 4-2 से हराकर दूसरी बार विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। क्रोएशिया पहली बार अपने फुटबॉल के इतिहास में फाइनल पर पहुंचा था। उसने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किए और अपने कौशल और चपलता से दर्शकों का दिल भी जीता लेकिन आखिर में जालटको डालिच की टीम को उपविजेता बनकर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि चार हफ्ते पहले टूर्नामेंट के शुरू होने के समय इस फाइनल की कल्पना शायद ही या कुछ एक ने की होगी। लियोनल मैसी, क्रिस्टयानो रोनाल्डो और नेमार जैसे स्टार फुटबॉलर स्वदेश लौट चुके थे, इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय मैचों में पारंपरिक रूप से ताकतवर टीमें जर्मनी, ब्राजील और अर्जेंटीना भी बाहर हो चुकी थीं। फ्रांस की टीम टूर्नामेंट की दूसरी सबसे युवा टीम थी जिसमें तेजतर्रार एमबेपे की मौजूदगी उसके लिए प्रेरणादयक रही। 20 वर्षों में तीसरा फाइनल खेलने वाली फ्रांस की टीम दुनिया की इकलौती टीम ने मास्को के लुज्निकी स्टेडियम में क्रोएशिया को 4-2 से नतमस्तक कर फीफा विश्व कप दूसरी बार अपने नाम कर लिया। डिडियर डेसचैम्प्स आखिरकार इतिहास पुरुष बन गए। 1998 में इन्हीं की कप्तानी में फ्रांस ने पहला विश्व कप जीता था और अब इन्हीं की कोचिंग में एक बार फिर लेस ब्ल्यून विश्व विजेता बना है। बतौर खिलाड़ी और कोच विश्व कप जीतने वाले डेसचैम्प्स तीसरे और बतौर कप्तान, खिलाड़ी विश्व चैंपियन बनने वाले वह दुनिया के दूसरे व्यक्ति हैं। चालीस लाख की आबादी वाला छोटा-सा देश क्रोएशिया फाइनल में कोई चमत्कार नहीं कर सका। सभी को हैरत में डालते हुए फाइनल में पहुंचने वाले इस देश ने पहले हाफ में जबरदस्त फुटबॉल खेली, लेकिन दूसरे हाफ में तीसरा गोल खाने के बाद बिखर गई। क्रोएशिया टीम भी लुका मोड्रिक से प्रेरित थी जो इस समय दुनिया के सबसे बेहतरीन मिड फील्डर की सूची में शामिल हैं। मास्को के लुज्निकी स्टेडियम जहां फाइनल खेला गया 180 हेक्टेयर के ओलंपिक पार्प का हिस्सा था। यह मास्कोवा नदी के किनारे पर स्थित है और उसकी सीटिंग कैप सिटी 80,000 है। इस विश्व कप के फाइनल में दो ऐसी घटनाएं हुईं जो पहले कभी नहीं घटीं, यह घटनाएं क्रोएशिया की ओर से किया गया आत्मघाती गोल और वीडियो असिस्टेंट रेफरी (वार) की ओर से फ्रांस को दी गई पेनाल्टी थी। दोनों ही मौकों पर क्रोएशिया दुर्भाग्यशाली रहा। लेस ब्ल्यून पहली बार फाइनल खेल रहे इस देश के हिस्से में पहले हाफ में दुर्भाग्य ही आया। 18वें मिनट में ग्रीजमैन ने पेनाल्टी बॉक्स के बाहर से फ्री किक की। वाराने ने उछलकर इसे हैडर से टम दिया जो माकियो मांजुकिक के सिर से लगती हुई गोल में चली गई। विश्व कप फाइनल के इतिहास का यह पहला आत्मघाती गोल था। यह बदकिस्मती अब तक हैरतअंगेज खेल दिखाने वाले मांजुकिक के हिस्से में आई। चैंपियन फ्रांस को फाइनल जीतने पर 256 करोड़ रुपए मिले। रनरअप क्रोएशिया को 189 करोड़ और तीसरे स्थान पर रहने वाले बेल्जियम को 162 करोड़ रुपए मिले। चौथे स्थान पर रहने वाली इंग्लैंड टीम को 142 करोड़, क्वार्टर फाइनलिस्ट (चार टीमों) को 108 करोड़, हर प्री-र्क्वाटर फाइनलिस्ट (आठ टीमें) को 81 करोड़। 154 करोड़ रुपए ग्रुप स्टेज में बाहर होने वाली 16 टीमों को मिले। फीफा ट्रॉफी 18 कैरेट सोने की बनी है, जिसका वजन 6.1 किलो और ऊंचाई 36.8 सेंटीमीटर है। इसकी कीमत करीब 137 करोड़ रुपए है। इसे इटली की एक कंपनी ने बनाया है और इसमें दो मानव आकृतियां आगे पीछे से धरती को बाजुओं पर उठाए हुए हैं।

Tuesday, 17 July 2018

कभी खेतों में दौड़ती थी, जूते तक नहीं थे और जीता गोल्ड

वर्ल्ड कप फुटबॉल में ज्यादा आकर्षण होने के कारण एथलीट हिमा दास की ऐतिहासिक जीत दब गई पर हिमा दास ने भारत का झंडा ऊंचा कर दिया। फिनलैंड में आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिमा दास ने 400 मीटर की दौड़ जीत ली। हिमा दास ने गोल्ड मैडल जीता। हिमा विश्वस्तर पर ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड मैडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं। इससे पहले भारत की किसी भी महिला या पुरुष खिलाड़ी ने जूनियर या सीनियर किसी भी स्तर पर विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड नहीं जीता। इस तरह हिमा की उपलब्धि उन तमाम एथलीटों पर भारी है, जिनके नाम दशकों से दोहरा कर हम थोड़ा-बहुत संतोष करते रहे हैं, फिर चाहे वह फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह हों या पीटी ऊषा। एथलेटिक्स ट्रैक इवेंट में देश को पहली बार गोल्ड दिलाकर इतिहास रचने वाली हिमा दास की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। 18 साल की हिमा ने महज दो साल पहले ही रेसिंग ट्रैक पर कदम रखा था। उससे पहले उन्हें अच्छे जूते भी नसीब नहीं थे। हिमा असम के छोटे से गांव ढिंग की रहने वाली है। परिवार में छह बच्चों में सबसे छोटी हिमा पहले लड़कों के साथ पिता के धान के खेतों में फुटबॉल खेलती थी। स्थानीय कोच ने एथलेटिक्स में हाथ आजमाने की सलाह दी। पैसों की कमी ऐसी कि हिमा के पास अच्छे जूते तक नहीं थे। सस्ते स्पाइक्स पहनकर जब हिमा ने डिस्ट्रिक्ट रेस जीती तो कोच निपुन दास भी हैरान हो गए। वह हिमा को गुवाहाटी ले आए जहां उन्हें इंटरनेशनल स्टैंर्ड के स्पाइक पहने को मिले। इसके बाद हिमा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हिमा की 400 मीटर रेस में गोल्ड मैडल जीतने वाली रेस में खास बात यह थी कि इस दौड़ के 35वीं सैकेंड तक हिमा टॉप थ्री में भी नहीं थी, लेकिन आखिरी कुछ मीटरों में हिमा ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि सभी को पीछे छोड़ दिया। राष्ट्रगान बजा तो हिमा की आंखों में आंसू छलक पड़े। हिमा के गांव में जीत पर मिठाइयां बंटीं और उनके घर में बधाइयों का तांता लग गया। हिमा ने अपने प्रदर्शन के बारे में कहाöमैं पदक के बारे में सोचकर ट्रैक पर नहीं उतरी थी। मैं केवल तेज दौड़ने के बारे में सोच रही थी और मुझे लगता है कि इसी वजह से मैं पदक जीतने में सफल रही। उन्होंने कहाöमैंने अभी कोई लक्ष्य तय नहीं किया है, जैसा कि एशियाई या ओलंपिक खेलों में पदक जीतना। मैं अभी केवल इससे खुश हूं की मैंने कुछ विशेष हासिल किया है और अपने देश का गौरव बढ़ाया है। हम हिमा दास की इस ऐतिहासिक जीत पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भी वह ऐसे ही देश का गौरव बढ़ाएंगी।

-अनिल नरेन्द्र

थरूर के हिन्दू पाकिस्तान बयान पर बवाल

भारतीय राजनीति में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने के साथ-साथ पश्चिमी शानो-शौकत में हमेशा स्मार्ट दिखने वाले ऐसे नौकरशाहनुमां राजनीतिक नेता की पहचान बनाने वाले कांग्रेसी नेता शशि थरूर अकसर अपने विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में बने रहते हैं। अब उनके ताजा बयान पर विवाद छिड़ गया है। उन्होंने इस बार तिरुवंतपुरम में बुधवार को कहा कि भाजपा अगर फिर सत्ता में आई तो वह संविधान को फिर से लिखेगी और हिन्दू पाकिस्तान के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी। थरूर का साधारण शब्दों में यह मानना है कि 2019 के आम चुनाव में अगर भाजपा जीतती है तो भारत हिन्दू पाकिस्तान बन जाएगा। हालांकि वह पहले भी इस तरह की बातें करते रहे हैं कि भारत को हिन्दू पाकिस्तान जैसा बनने से बचना चाहिए, लेकिन इस बार वह हद लांघकर यह कह गए कि भाजपा के फिर सत्ता में आने पर भारत की स्थिति वैसी ही होगी जैसी आज पाकिस्तान की है। कांग्रेस ने शशि थरूर के इस बयान से किनारा कर लिया है। पार्टी ने कहाöभारत का लोकतंत्र और इसके मूल्य इतने मजबूत हैं कि भारत कभी पाकिस्तान बनने की स्थिति में नहीं जा सकता। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने अपने नेताओं को भी नसीहत दी कि भाजपा की घृणा का जवाब देते समय वे पूरी सावधानी बरतें। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि पाकिस्तान के साथ तुलना भारतीय लोकतंत्र का अपमान है। कांग्रेस को अब डर का व्यापार बंद कर देना चाहिए। पर शशि थरूर अब भी अपने बयान पर कायम है। गुरुवार को फेसबुक पोस्ट पर लिखाöमैंने पहले भी कहा था और फिर कहूंगा। पाकिस्तान का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ था, जो अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करता है। कटु सत्य तो यह है कि भारत में लोकतंत्र का पुराना इतिहास रहा है और हमें आधुनिक लोकतंत्र में बहुत-सी परंपराएं विरासत में मिली हैं। इसलिए भाजपा या कोई अन्य दल भारतीय लोकतंत्र को खत्म नहीं कर सकती। इसलिए शशि थरूर के इस विचार पर कोई सहमत नहीं हो सकता और न ही विश्वास कर सकता है कि अगर भाजपा 2019 में दोबारा सत्ता में आती है तो ऐसे संविधान का निर्माण करेगी जो हिन्दू राष्ट्र के हितों की रक्षा करेगी। थरूर पढ़े-लिखे लेखक-विचारक के तौर पर जाने जाते हैं। उनसे यह बिल्कुल भी अपेक्षित नहीं था कि वह इतनी बेतुकी बात बोलेंगे। उन्होंने खुद एक खराब और गैर-जरूरी बयान दिया, इसकी पुष्टि इससे होती है कि खुद उनकी पार्टी कांग्रेस ने उनके बयान से पल्ला झाड़ लिया है। वास्तव में थरूर का बयान उलटा कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकता है। चुनाव नजदीक हैं। नेताओं को बहुत सोच-समझ कर बयान देने होंगे और अपनी जुबान संभालनी होगी।

Sunday, 15 July 2018

दिल्ली के सुपरमैन

यह दुख से कहना पड़ता है कि अधिकारों की जंग में दिल्ली तबाह हो रही है। कूड़े के पहाड़ बनते जा रहे हैं और उन्हें हटाने के लिए कोई जिम्मेदार नहीं। तमाम अधिकारों से लैस दिल्ली के उपराज्यपाल ने अभी तक न तो इसके निपटारे की कोई ठोस-स्थायी योजना बनाई है और न ही कोई कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कूड़े के निपटान में नाकाम रहने पर दिल्ली के उपराज्यपाल के रवैये पर कड़ी फटकार लगाते हुए यहां तक कह दिया कि शक्ति के मामले में उपराज्यपाल खुद को सुपरमैन समझते हैं, लेकिन शहर से कूड़े के पहाड़ साफ करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। एक कूड़े के ढेर की ऊंचाई तो लगभग कुतुब मीनार के बराबर पहुंच गई है। अदालत ने कहा कि पिछली सुनवाई पर कूड़े का पहाड़ 62 मीटर ऊंचा था अब 65 मीटर हो गया है। यह कुतुब मीनार से सिर्प आठ मीटर कम है। दिल्ली सरकार के हलफनामे में कहा गया कि कूड़े के निस्तारण को लेकर हो रही मीटिंग में उपराज्यपाल भाग नहीं लेते। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहाöआपके पास जब भी काम आता है तो आप दूसरों पर जिम्मेदारी डाल देते हैं। उपराज्यपाल मानते हैं कि उनके पास पॉवर है, वह सुपरमैन हैं, सब कुछ वही हैं तो बैठक में क्यों नहीं जाते? कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी कौन लेगा? सारे अधिकार आपके पास हैं तो जिम्मेदारी भी आपकी है। आपको लगता है कि आपको कोई छू भी नहीं सकता, क्योंकि आप संवैधानिक पद पर हैं। कोर्ट ने 16 जुलाई तक उपराज्यपाल से हलफनामा दायर कर यह बताने को कहा है कि कूड़ा निस्तारण का कार्य कब तक पूरा होगा? एक्शन प्लान क्या है और अभी तक क्या किया है? गाजीपुर, ओखला और भलस्वा तीनों ही लैंडफिल साइटों पर एकत्रित कचरे के निस्तारण का दायित्व हमारी राय में निश्चित तौर पर दिल्ली की तीन नगर निगमों का है। यह स्थानीय निकाय अपने दायित्व को निभाने में अब तक असफल रहे हैं। इसे लेकर उपराज्यपाल द्वारा अनेक बैठकें किए जाने के बावजूद समस्या का हल न निकल पाना यह दर्शाता है कि यह इस सिस्टम को लेकर कितने गंभीर हैं। हमें तो लगता है कि यहां हर स्तर पर इच्छाशक्ति का अभाव है। इन लैंडफिल साइटों पर आग लगने की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं। यह कूड़े के पहाड़ जहां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं वहीं यह पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में अब यह जरूरी हो गया है कि इन लैंडफिल साइटों में एकत्रित ठोस कचरे के निस्तारण के लिए उचित व्यवस्था की जाए और भविष्य में इसके निपटारे की कोई ठोस नीति बनाई जाए।

-अनिल नरेन्द्र

ताज की देखभाल नहीं कर सकते तो इसे जमींदोज कर

यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करने वाले ताजमहल की इतनी दुर्दशा हो। दुर्दशा इतनी है कि सुप्रीम कोर्ट को यह कहना पड़ा कि ताज को संरक्षित करें, नहीं तो बंद कर दें या जमींदोज कर दें। लगता है कि संबद्ध विभागों को ताज की परवाह ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है। अदालत ने जो टिप्पणी की है, वह सरकार और एएसआई यानि भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के लिए शर्मिंदगी का कारण होना चाहिए। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि देश की जो ऐतिहासिक धरोहर विश्वभर में एक खास जगह रखती है, यूनेस्को की सूची में जिसे दुनिया का दूसरा सर्वश्रेष्ठ स्मारक माना गया है, उसके संरक्षण के सवाल पर सरकार और संबंधित महकमे इस कदर उदासीन हैं। समय-समय पर सरकार और संबंधित विभागों को चेताया गया पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट को इतनी सख्त टिप्पणी करनी पड़ी है। अदालत की टिप्पणी अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि ताज महल को लेकर सरकार और उसकी देखरेख करने वाले एएसआई ने किस स्तर की लापरवाही बरती है। यह बेवजह नहीं है कि लंबे समय से संरक्षण के सवाल पर टालमटोल की वजह से ताजमहल पर बढ़ता संकट आज गंभीर हो चुका है। न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि ताजमहल के संरक्षण के मामले में सरकार उम्मीद के विपरीत काम कर रही है। ताज के संरक्षण को लेकर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के बावजूद सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि ताज के संरक्षण को लेकर अब तक क्या प्रयास किए गए हैं और क्या कदम उठाए जाएंगे? कोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार को भी ताज की कोई चिन्ता नहीं लगती। ताज संरक्षण पर यूपी सरकार से कार्ययोजना मांगी थी, लेकिन उसने अब तक नहीं दी है। ताजमहल के आसपास विकास कार्यों की निगरानी शीर्ष अदालत की देखरेख में हो रही है। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार यह समझे कि ताज और अन्य स्मारकों के संरक्षण में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की नाकामी बहुत महंगी साबित हो रही है। देश केवल अनमोल विरासत को ही नहीं देख रहा है, बल्कि विदेशी मुद्रा से भी वंचित हो रहा है। पेरिस में एफिल टॉवर को देखने दुनियाभर से आठ करोड़ लोग पहुंचते हैं, वहीं ताजमहल को देखने आने वालों की तादाद लगभग 50 लाख ही है। जबकि पुरातत्व से लेकर उसके महत्व के लिहाज से ताजमहल को एफिल टॉवर से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है। आज अगर ताज की यह हालत है तो इसका जिम्मेदार कौन है?