Saturday, 31 January 2015

सत्ता के लालची केजरीवाल से बेहतर सीएम होंगी किरण बेदी

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पाटी (आप) को तगड़ा झटका लगा है। पाटी के पितामह व संस्थापक सदस्यों में शामिल शांति भूषण ने गत बृहस्पतिवार को पाटी पमुख से अरविंद केजरीवाल को हटाने की जरूरत बता दी। उन्हेंने यह भी कहा कि भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी किसी भी मायने में केजरीवाल से कम नहीं हैं। आप के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्राrय मंत्री शांति भूषण ने एक बार फिर केजरीवाल के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने को उन्होंने भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बताया। कहा, बेदी और केजरीवाल दोनों को ही वह अन्ना आंदोलन की वजह से बहुत अच्छी तरह जानते हैं। दोनों पर भरोसा है कि वे ईमानदार सरकार देंगे। लेकिन फिर केजरीवाल पर पहले भी मनमानी करने का आरोप लगा चुके शांति भूषण ने कह दिया कि पाटी के कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि आप के टिकट बेचे गए हैं। उन्होंने कहा, इन आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो मुझे पता नहीं लेकिन पाटी के अच्छी छवि वाले लोगों को छोड़ कर उन्हें टिकट दिए गए हैं जो अभी-अभी पाटी में शामिल हुए हैं। इतना ही नहीं भूषण ने अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली की आलोचना करते हुए उन्हें पाटी के संयोजक पद से हटाने की भी बात कही। उन्होंने किरण बदी के बारे में कहा कि मैं किरण को अच्छी तरह जानता हूं। वह सैक्यूलर और ईमानदार हैं। अगर वह मुख्यमंत्री बनती हैं तो दिल्ली को बेहद ईमानदार सरकार देंगी। उन्होंने यहां तक कहा कि दिल्ली की सबसे बेहतर मुख्यमंत्री किरण बेदी होंगी जबकि अरविंद केजरीवाल पीछे हैं। केजरीवाल के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं। वह सत्ता के लालची हैं और मुख्यमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। केजरीवाल ने पाटी को कमजोर किया है इसलिए अब उनके स्थान पर किसी और को नेतृत्व सौंपा जाना चाहिए। मनीष सिसोदिया और आशुतोष पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि आरोप है कि दो-दो करोड़ रुपए में टिकट दिया गया है, यह गलत है। पिता तो पिता बेटा भी केजरीवाल से संतुष्ट नहीं। पशांत भूषण ने दिल्ली चुनाव में उतारे गए पाटी के कुछ उम्मीदवारों के खिलाफ पाटी के आंतरिक लोकपाल से शिकायत भी की है। शनिवार को केरल के कन्नूर में एक कार्यकम में हालांकि उन्होंने किरण बेदी को अवसरवादी बताया और मोदी सरकार की आलोचना की। पर सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों उन्होंने शिकायत की कि पाटी ने ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं जिनके खिलाफ हाल के दिनों में कई तरह की शिकायतें खुद पाटी के लोगों ने ही की हैं। पाटी के कद्दावर नेताओंं में गिने जाने वाले योगेन्द्र यादव भी केजरीवाल से असहमति जता चुके हैं। कुमार विश्वास तो चुनाव सीन से भी गायब हो चुके हैं। आप की सबसे बड़ी चिंता अरविंद केजरीवाल खुद हैं। आप बेशक सर्वे बनाती रहे पर कटु सत्य तो यह है कि किरण बेदी केजरीवाल से कहीं अधिक बेहतर सीएम होंगी। केजरीवाल अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं।

-अनिल नरेन्द्र

जांबाज कर्नल राय ने मेडल लेकर शहादत को गले लगाया

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत से जाते ही पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के त्राल में हमला कर दिया। आतंकियों से मुठभेड़ में एक दिन पहले गणतंत्र दिवस पर युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित कर्नल एमएन राय सहित दो सुरक्षाकमी शहीद हो गए। मुठभेड़ में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का एक डिवीजनल कमांडर आबिद व उसका साथी सिराज भी मारा गया। इसमें एक आतंकी का पिता राज्य पुलिस में तैनात है। शहीद कर्नल मुनिंदर नाथ राय को अपनी कर्तव्यनिष्ठा, बहादुरी और बीते साल कश्मीर में कई नामी आतंकियों को मार गिराने के लिए युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित किया गया था। यदि पाकिस्तान द्वारा दशकों से जारी छद्म युद्ध के बावजूद कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिशें विफल रही हैं तो इसका सबसे ज्यादा श्रेय हमारी सेना के साहस, शौर्य और बलिदान को जाता है। कर्नल राय इसका एक ज्वलंत उदाहरण हैं। इस सैन्य अधिकारी ने बीते वर्षें में आतंकी नेटवर्क को करारी चोट पहुंचाई थी और ऐसे अभियानों में कई खूंखार आतंकी मारे गए थे। उन्होंने युवाओं को मुख्य धारा में लाने के लिए किकेट और फुटबाल मैच आयोजित किए थे। सेना के अधिकारियों के मुताबिक कर्नल राय के नेतृत्व में त्राल का माहौल पूरी तरह बदल गया था जिसका पमाण यह था कि पिछले विधानसभा चुनाव में वहां भारी मतदान हुआ। आतंकवादी उन्हें धोखे से मारने में इसलिए भी कामयाब हुए क्योंकि कर्नल राय ने शांतिपूर्ण तरीके से उनके आत्मसमर्पण की कोशिश की ताकि जान और माल का नुकसान न हो। बहरहाल कर्नल राय जैसे वीरों की शहादत देश और सेना के लिए दुखद लेकिन गर्व का विषय है। कश्मीर वादी के पुलवामा जिले के त्राल में मंगलवार को शहीद हुए कमांडिंग ऑफिसर कर्नल राय की जिंदगी शायद युवाओं के लिए पेरणा का स्रोत रहेगी। करीब दो महीने पहले कर्नल राय ने अपना व्हाट्सएप स्टेटस अपडेट किया था। यह स्टेटस उनकी बहादुरी का पतीक है। शहीद कर्नल राय का आखिरी व्हाट्सएप स्टेटस कुछ इस तरह था ः इतने जुनून से अपनी जिंदगी का हर किरदार अदा करो कि अगर कभी पर्दा गिर भी जाए तो तालियों का शोर कम नहीं होना चाहिए। मंगलवार को उन्होंने अपनी बहादुरी से इस स्टेटस को सच साबित कर दिया। 39 वषीय कर्नल राय को मंगलवार की सुबह इंटेलीजेंस इनपुट मिले थे कि त्राल में एक गांव में स्थित घर में कुछ आतंकी छिपे हैं। वह क्विक रिएक्शन टीम के साथ जिसमें 8 से 12 जवान शामिल थे, उस जगह के लिए रवाना हो गए। टीम ने मौके पर पहुंच कर तलाशी लेना शुरू किया। घर में रहने वाले लोग जिन पर संदेह है कि वह आतंकियों के रिश्तेदार हैं, ने उनसे अनुरोध किया कि वह तलाशी न लें क्योंकि इससे लोग उन्हें गांव से अलग कर देंगे। कर्नल उन लोगों से आतंकियों के बारे में डिटेल्स ले रहे थे, तभी हिज्ब के आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी और अचानक हुई इस गोलीबारी में कर्नल राय मारे गए। लेकिन ऐसी हर शहादत भारत सरकार और सेना पर यह जिम्मेदारी छोड़ जाती है कि हर कीमत पर कश्मीर में पाक साजिशों को नाकाम करें। पाकिस्तान जिस तरह सुधरने की जगह और अधिक आकामक होता जा रहा है। दुनिया की आंखों में धूल झोकने के इरादे से वह इन जेहादी संगठनों और सरगनाओं पर कार्रवाई करने का जो नाटक कर रहा है उसकी असलियत इसी से जाहिर होती है कि संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका द्वारा आतंकी घोषित लश्कर--तैयबा का मुखिया हाफिज सईद अब भी अपने खूंखार इरादों के साथ खुलेआम घूम रहा है। जाहिर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की सफल भारत यात्रा से भी पाकिस्तान बौखला गया है। आने वाले दिनों में ऐसे आतंकी हमले और तेज होने की संभावना है। भारत सरकार और सेना का फर्ज है कि कर्नल राय की शहादत बेकार न जाए। भारत सरकार को मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। अब तो संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका का भी आशीर्वाद हमारे साथ है। जब पाकिस्तान सरकार अपने आप को इन आतंकी संगठनों से अलग करती है तो इन नान स्टेट एक्टरों को समाप्त करना भारत सरकार के लिए आसान हो जाता है। यूपीए सरकार में तो इच्छाशक्ति का अभाव था पर मोदी सरकार से ईंट का जवाब पत्थर से देने की उम्मीद है। हम कर्नल राय की शहादत पर उनके शोकाकुल परिवार को अपनी सांत्वना देते हुए उम्मीद करते हैं कि उनकी शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी।

Friday, 30 January 2015

मुस्लिम आबादी में 24 प्रतिशत वृद्धि

पिछले दिनों साक्षी महाराज के इस बयान पर कि हिन्दू औरतों को चार बच्चे पैदा करने चाहिए पर बवाल मच गया। हम साक्षी महाराज के इस बयान का समर्थन नहीं करते क्योंकि देश को आवश्यकता इस बात की नहीं कि जनसंख्या को और बढ़ाया जाए। जरूरत तो इस बात की है कि देश में बच्चों की संख्या पर नियंत्रण लगे। इसके बाद आए 2011 में जनगणना के आंकड़े। वर्ष 2011 में की गई जनगणना के अनुसार वर्ष 2001 से 2011 के बीच मुस्लिमों की देश में आबादी 24 प्रतिशत बढ़ी। इसके कारण देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई है। धर्म के आधार पर जनगणना पूर्व की यूपीए सरकार ने कराई थी लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। अब केंद्र में आई मोदी सरकार ने इसे जारी करने का फैसला किया। हालांकि इन आंकड़ों से एक बात का खुलासा हुआ है कि इससे पहले के वर्ष 1991 से 2001 के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर 29 प्रतिशत थी जो पिछले दशक में कम हुई। लेकिन इसके बावजूद यह राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। राष्ट्रीय औसत पिछले दशक में 18 प्रतिशत रही है। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार मुस्लिमों की जनसंख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि असम में हुई। 2001 में असम में मुस्लिमों की जनसंख्या 30.9 प्रतिशत थी जो एक दशक बाद बढ़कर 34.2 प्रतिशत हो गई। बंगलादेश से आने वाले अवैध प्रवासी हमेशा से असम के लिए और देश के लिए एक बड़ी समस्या रहे हैं। असम के साथ ही पश्चिम बंगाल भी बंगलादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों की समस्या से जूझ रहा है। यहां भी मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ी है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यहां मुस्लिमों की आबादी 25.2 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 27 प्रतिशत हो गई। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि देश में मुस्लिम आबादी के बढ़ने की रफ्तार घटी है किन्तु वृद्धि अब भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह एक संकेत है छोटा परिवार-सुखी परिवार के नारे को मुस्लिम समाज में धीरे-धीरे स्वीकृति मिल रही है। आर्थिक व शैक्षणिक तरक्की हासिल करने में कामयाब रहे मुस्लिमों का पढ़ा-लिखा तबका अब अपने परिवार को अपनी चादर के हिसाब से नियोजित करने लगा है। लेकिन यह साफ है कि एक बड़े हिस्से को अब भी परिवार नियोजन को लेकर प्रेरित और प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि मुस्लिम आबादी में हो रही वृद्धि को राष्ट्रीय औसत के निकट लाया जा सके और सकल तौर पर जनसंख्या नियंत्रित की मुहिम में कामयाबी मिल सके। पर यह काम जोर-जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता है। यह काम मुस्लिम धर्मगुरु, मौलाना व इमाम ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते हैं। वह मुस्लिमों को समझाएं कि कम बच्चों को पैदा करके वह उन्हें बेहतर शिक्षा व परवरिश दे सकते हैं। उनका भविष्य बेहतर बना सकते हैं। वैसे शहरों में मुस्लिमों को यह बात समझ भी आ रही है। न तो वह चार शादियां कर रहे हैं और न ही बच्चों की फौज खड़ा कर रहे हैं। हां कुछ इमाम, मौलाना यह भी कहते हैं कि तुम ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करो ताकि मुस्लिमों की जनसंख्या हिन्दुओं से ज्यादा हो जाए और हम हिन्दुस्तान पर राज करें। ऐसे मुस्लिम धार्मिक गुरुओं की भी उतनी ही आलोचना करनी चाहिए जितनी साक्षी महाराज की की जा रही है। जिस तरह असम और पश्चिम बंगाल में विगत 10 सालों में मुस्लिमों की आबादी लगभग चार प्रतिशत बढ़ गई है अंदेशा है कि इसमें बड़ी जनसंख्या अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की हो सकती है। चिन्ता का विषय यह भी है कि यह बंगलादेशी भारत में अशांति, खूनखराबा और  बढ़ती आतंकवादी घटनाओं की वृद्धि के पीछे हैं। यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अब खतरा बनते जा रहे हैं। खुशी की बात यह है कि मुस्लिम परिवारों में खासकर जो शिक्षित हैं वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और बाकी सुविधाएं, बेहतर परवरिश देने के लिए परिवारों को सीमित करते जा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह मुसलमानों समेत समाज के सभी कमजोर वर्गों को तरक्की के हर संभव अवसर उपलब्ध कराए, बेहतर शिक्षा देकर साक्षरता बढ़ाए और साथ ही किसी समुदाय विशेष की जनसंख्या को लेकर राजनीति न होने दे क्योंकि इससे आपसी तनाव बढ़ता है और समाज में कटुता बढ़ती है। आबादी तो हमारे लिए समस्या बन गई है, अधिक शर्मनाक यह है कि संसाधनों और सुविधाओं के अभाव के चलते जनसंख्या बढ़ती जा रही है। इस पर कैसे नियंत्रण लगाया जाए यह मोदी सरकार के लिए चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

चर्चा फैशन आइकॉन मोदी और उनके लाखों रुपयों के सूट की

अगर अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल फैशन की फर्स्ट लेडी कहलाती हैं तो हम हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फैशन के फर्स्ट पुरुष कह सकते हैं। भारत दौरे पर आए ओबामा और मिशेल नरेंद्र मोदी के कपड़ों और स्टाइल के सामने फीके पड़ गए। नरेंद्र मोदी का जलवा देखने लायक था। हालांकि अपने कुर्तों और नेहरू जैकेट को लेकर देश और दुनिया में चर्चित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी `मोदी सूट' को लेकर सवालों के घेरे में आते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जनवरी को राष्ट्रपति ओबामा के साथ बातचीत के वक्त सोने की सैकड़ों धारियों वाला सूट पहन रखा थाजिसकी कीमत एक ब्रिटिश अखबार लंदन `इवनिंग स्टैंडर्ड' ने 10 लाख रुपए बताई। प्रधानमंत्री ने जो सूट पहना था उसमें सोने की धारियों में उनका पूरा नाम नरेंद्र दामोदर दास मोदी लिखा था। इस सूट की सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में खूब चर्चा हो रही है। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान कई जटिल मसलों को सुलझाने और ओबामा के साथ निजी कैमिस्ट्री के अलावा मोदी के स्टाइल को लेकर भी चर्चा हो रही है। रविवार को ओबामा के साथ शिखर वार्ता और चाय पर चर्चा के दौरान उन्होंने धारियों पर बारीक लिखावट वाला बंद गले का यह खास सूट पहना रखा था। ब्रिटिश अखबार के मुताबिक यह सूट ब्रिटेन के मशहूर फैब्रिक सप्लायर `होलांद एंड शेरी' की ओर से तैयार किया  हुआ लगता है। ऐसे सूट के  लिए जरूरी सात मीटर कपड़े की कीमत ही करीब ढाई से तीन लाख रुपए बैठती है। हालांकि `होलांद एंड शेरी' ने अपने किसी भी निजी ग्राहक के बारे में खुलासा करने से इंकार कर दिया है, लेकिन यह जरूर कहा कि कोई दूसरा इस तरह का सूट बनाए, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता।  `होलांद एंड शेरी' सूट के लिए कपड़े की आपूर्ति अंतर्राष्ट्रीय टेलरिंग कंपनी `टाम जेम्स' करती है। इस कंपनी का कहना है कि ऐसे सूट की लागत करीब 10 लाख रुपए आती है। इतना ही नहीं, इस टेलरिंग कंपनी ने कहा कि दुनिया में संभवत वह एकमात्र कंपनी है, जो इस तरह का सूट बनाती है लेकिन उसने मोदी के लिए सूट सिलने या उसकी कीमत के बारे में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। हालांकि प्रधानमंत्री की पोशाक सिलने वाले अहमदाबाद के जेड ब्लू टेलर ने इस दावे को खारिज कर दिया है। जेड ब्लू टेलर का कहना है कि सूट उसने तैयार किया है। उसके अनुसार पीएम को यह कपड़ा तोहफे में मिला था, जिसकी सिलाई उसने की है। जेड ब्लू लंबे समय से मोदी के लिए पोशाक सिलता रहा है और मोदी कुर्ते की खास डिजाइन उसकी ही मानी जाती है। ओबामा की यात्रा में अलग-अलग मौकों पर मोदी अलग-अलग पोशाक में नजर आए। रविवार को मोदी ने तीन कार्यक्रमों में अलग-अलग कपड़े पहने थे। उनके मुकाबले भारत दौरे के पहले दिन ओबामा हर मौके पर एक ही सूट में नजर आए।

Thursday, 29 January 2015

सऊदी अरब के शाह अब्दुल्ला का निधन

विश्व के शीर्ष तेल निर्यातक और इस्लाम के आध्यात्मिक केंद्र सऊदी अरब को आधुनिक बनाने वाले शाह अब्दुल्ला का गत शुकवार को इंतकाल हो गया। वे 90 वर्ष के थे। अब्दुल्ला सऊदी अरब के संस्थापक शाह अब्दुल अजीज अलसउद के 12वें पुत्रों में से एक थे। उन्हें दिसंबर में निमोनिया के कारण अस्पताल में भती किया गया था। किंग फहद के बीमार होने के बाद 1995 में अब्दुल्ला ने अनौपचारिक तौर पर सत्ता संभाली थी। 2005 में उन्हें सुल्तान घोषित किया गया। अब्दुल्ला पहले ऐसे सऊदी शासक थे जिन्होंने वेटिकन जाकर पोप से मुलाकात कर दूसरे धर्में के पति सम्मान दर्शाया। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण किया। देश से हजारों युवाओं को सरकारी खर्चे पर विदेशों में पढ़ने के लिए भेजा। किंग अब्दुल्ला ने अलकायदा और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ खुलकर अमेरिका और पश्चिमी देशों का साथ दिया। कट्टरपंथियों के खिलाफ अभियान चलाया और सेना की मजबूती पर 150 अरब डॉलर खर्च किए। सऊदी अरब के भारत में राजदूत हामिद अली राव ने कहा कि अब्दुल्ला भारत के एक अच्छे दोस्त थे। उनके लिए भारत उनका दूसरा घर था। अब्दुल्ला के शासन काल के दौरान ही दोनों देशों के बीच सामरिक भागीदारी की नींव पड़ी थी। दिल्ली घोषणा पत्र (2006) और रियाद घोषणा पत्र (2010) में इसकी साफ झलक दिखती है। अब्दुल्ला ने जनवरी 2006 में गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर भारत का ऐतिहासिक दौरा किया था और इस दौरे ने भारत-सऊदी संबंधों को एक नया आयाम दिया था। वह 51 वर्ष में भारत का दौरा करने वाले पहले सऊदी शाह थे। 21 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति थी और वह दुनिया के आठवें सबसे अमीर शख्स थे। 22 बच्चे और सात बीबियां अपने पीछे छोड़ गए हैं सुल्तान अब्दुल्ला। वह खुद शाह अब्दुल अजीज अल-सऊद के 37 बेटों में से एक थे। सऊदी अरब के नए सुल्तान सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सऊद देश के शीर्ष राजनेताओं में गिने जाते हैं। करीब 50 साल रियाल के गवर्नर पद संभालने के अलावा उन्होंने शाही परिवार के अंदरूनी झगड़ों को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई है। 79 वषीय सलमान कई वर्षें से बीमार अपने सौतेले भाई किंग अब्दुल्ला का कामकाज संभाल रहे थे। किंग अब्दुल्ला की तरह सुल्तान भी सऊदी अरब के संस्थापक किंग अजीज उल सऊद के बेटों में से एक हैं। किंग सुल्तान के सामने कई चुनौतियां हैं। देश में 25 साल से कम उम्र के एक करोड़ युवाओं को रोजगार दिलाना। महिलाओं को ड्राइविंग, इंटरनेट समेत बोलने-लिखने की आजादी देना। सलमान खुद पक्षपात के शिकार, अल्जाइमर और डिमेंशिया से पीड़ित हैं। अगली पीढ़ी के उत्तराधिकारी को लेकर देश में अभी से शंकाएं उठने लगी हैं। सीरिया, यमन में अशांति से निपटना व ईरान से संबंधों को लेकर उनकी परीक्षा होगी। महिलाओं व अन्य लोकतांत्रिक अधिकारियों को आगे बढ़ाने की चुनौती भी होगी। अलकायदा व इस्लामिक स्टेट से निपटना भी नए सुल्तान की चुनौती होगी। हम सुल्तान अब्दुल्ला को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं।

-अनिल नरेंद्र

भाजपा को अब मोदी मैजिक का सहारा

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अब मुश्किल से 10 दिन से कम रह गए हैं। मुकाबला कांटे का है। कुछ वर्गें में निसंदेह आप पाटी का पभाव ज्यादा दिख रहा है। कम से कम निचले तबके में अरविंद केजरीवाल का असर साफ दिख रहा है। हां, पढ़े लिखे, मध्यवगीय मतदाता जिसने पिछले विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को वोट दिया था उनका केजरीवाल से मोहभंग हुआ है और वह शायद ही इस बार किरण बेदी व भाजपा को वोट दें। केजरीवाल की विश्वसनीयता पर भारी पश्न चिन्ह लगने से आम आदमी पाटी की स्थिति इस वर्ग में कमजोर हुई है। देश की पहली आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर राजनीतिक दांव खेलने वाली भाजपा अब पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ देख रही है। चुनाव अभियान के अगले दौर में पाटी की पूरी रणनीति पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनाव सभाओं और मोदी सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित रहेगी। भाजपा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को भुनाने की तैयारी में है। ब्रांडिंग के माहिर खिलाड़ी बन चुके पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कला अब भी बरकरार है। पीएम मोदी की यह कला उस समय भी दिखी जब वह भारत यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ संयुक्त रूप से संबोधित कर रहे थे। ओबामा के साथ संबोधन में मोदी ने राष्ट्रवाद के गौरव को उभारते हुए देशवासियों का दिल जीतने का पयास किया। मोदी ने अपने आप को ओबामा का बेहद करीबी दोस्त बताते हुए कई बार उनके पहले नाम `बराक' का संबोधन किया। यह पहला मौका है जब किसी भारतीय पीएम ने इतने विश्वास के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ बातचीत की है। दिल्ली की भाजपा इकाई अब ओबामा यात्रा का सियासी लाभ उठाने के लिए इसे भुनाने की तैयारी कर रही है। भाजपा नेतृत्व ने किरण बेदी को लेकर आप नेता अरविंद केजरीवाल को भले ही कड़ी चुनौती दी हो लेकिन इससे नाराज दिल्ली के नेता और कार्यकर्ताओं के लिए चुनौती बनता जा रही है। इनकी नाराजगी दूर करने के लिए पाटी अध्यक्ष अमित शाह ने बाहरी नेताओं को अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र की कमान सौंपकर हालात संभालने की कोशिश की है। खुद भी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन करने में लगे हैं लेकिन बाहर से आए व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने से नाखुश पमुख नेता व कार्यकर्ता ज्यादा सकिय नहीं हो पाए हैं। पाटी को डर यही है कि इससे उसका बूथ पबंधन व मतदाताओं को बूथ तक लाने की रणनीति गड़बड़ा न जाए। ऐसे में पाटी कार्यकर्ताओं में जोश भरने और उन्हें पूरी तरह सकिय करने के लिए पीएम मोदी की जरूरत महसूस होना स्वाभाविक ही है। चुनावी राजनीति से जुड़े एक बड़े नेता का कहना है कि चुनाव पचार के बाकी समय में पाटी की रणनीति बेदी की बजाय मोदी पर केंद्रित रहेगी। इसमें मोदी सरकार की उपलब्धियों व खुद मोदी की रैलियों पर ज्यादा फोकस किया जाएगा। ओबामा की यात्रा भी उसके अभियान का परोक्ष रूप से हिस्सा होगी।

Sunday, 25 January 2015

जनार्दन द्विवेदी को निपटाने में लगा कांग्रेस का एक गुट

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी रहे जनार्दन द्विवेदी के कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने को लेकर कांग्रेस पार्टी में भूचाल आ गया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान उपजे इस विवाद को देखते हुए कांग्रेस नेता अजय माकन ने द्विवेदी के बयान की निंदा की और उनके खिलाफ पार्टी की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात तक कही लेकिन बृहस्पतिवार देर शाम जनार्दन द्विवेदी की पार्टी की अनुशासनात्मक समिति के अध्यक्ष एके एंटोनी से मुलाकात के बाद यह तय हो गया कि उन पर कार्रवाई नहीं होगी। दरअसल किसी सन्दर्भ में मोदी की तारीफ द्विवेदी कर बैठे। द्विवेदी ने कहा कि वह सामाजिक स्तर पर लोगों को समझाने में सफल रहे हैं। वह (मोदी) भारतीय लोगों के बेहद करीब हैं। द्विवेदी ने मोदी की जीत को भारतीयता की जीत बताया। इतना ही नहीं, उन्होंने मौजूदा वक्त को कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण बताया और चुनाव नतीजों को भाजपा या मोदी की जीत से अधिक कांग्रेस की हार करार दिया। जाहिर है कि उनकी इस अवधारणा की आंच सीधे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर जाती है। इससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर भी यह कहकर मोदी की तारीफ कर चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री के दायित्व को मजबूती से निभा रहे हैं। जनार्दन द्विवेदी की सफाई के बावजूद पार्टी में उनके बयान को तूल देना दर्शाता है कि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है। यह कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी बनाम नई पीढ़ी के बीच की तकरार मानी जा रही है। दरअसल कांग्रेस के कई पुराने नेताओं ने द्विवेदी को निपटाने के लिए हाथ लगे मौके की तरह लिया है। यही वजह है कि द्विवेदी के कथित बयान को कांग्रेस के कुछ नेता अधिक उछाल रहे हैं। द्विवेदी के यह साफ किए जाने पर कि उनके लिए भारतीयता का प्रतीक हमेशा से गांधी-नेहरू रहे हैं, इस अध्याय को समाप्त नहीं किया जा रहा है। न ही कांग्रेस ने इस पर गौर किया है कि द्विवेदी के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है, जिसके लिए उन्होंने (द्विवेदी) बयान चलाने वाली अंग्रेजी वेबसाइट पर लिखा भी। कांग्रेस में जनार्दन द्विवेदी अधिक सतर्पता बरत कर बोलने वाले नेताओं में से हैं लेकिन पार्टी में इस बार उनके विरोधी जिस तरह से लामबंद हुए हैं, उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने पहले भी अनाप-शनाप बोला है और पार्टी ने उनके बयानों से दूरी बनाई है लेकिन ऐसा कड़ा रुख इससे पहले कभी नहीं दिखाया। जिस तरह सफाई दिए जाने के बाद द्विवेदी पर हमले हो रहे हैं उससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस के अंदर एक गुट द्विवेदी से पुराने बदले निकलाने का प्रयास कर रहा है और उनकी व्यक्तिगत हैसियत को पार्टी, खासकर अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी होने को तबाह करने पर तुला है। सार्वजनिक तौर पर अजय माकन द्वारा उन पर कार्रवाई का संकेत देना उजागर करता है कि पार्टी में शह और मात का कैसा खेल चल रहा है।
-अनिल नरेन्द्र


बराक ओबामा भारत आपका स्वागत करता है

दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति इस साल हमारे गणतंत्र दिवस पर खास मेहमान होंगे। मैं बात कर रहा हूं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की। बराक ओबामा भारत आपका स्वागत करता है। हम आभारी हैं कि आपने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निमंत्रण स्वीकार किया और भारत आए। भारत को राष्ट्रपति ओबामा से बहुत उम्मीदें हैं। ऐसे वक्त जब दुनिया में सत्ता समीकरण बदल रहे हैं, भारत और अमेरिका के करीब आने से कई नई संभावनाओं को जन्म देता है। दुनिया के सबसे बड़े दो लोकतंत्रों का आपसी सहयोग और विश्वास जरूरी बन गया है। बराक ओबामा ने पिछले दिनों अमेरिका को भारत का स्वाभाविक साथी कहा था तो भारतीय पीएम मोदी ने भी इसी विचार के तहत अमेरिका से रिश्ते मजबूत करने का फैसला किया। शीत युद्ध के दो दशक बाद के माहौल ने दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक ताकतों को एक मंच पर ला खड़ा किया है तो इसके साझा लक्ष्य हैं। दोनों देश आतंकवाद से परेशान हैं और चीन की बढ़ती आक्रामकता दोनों के लिए चिंता का विषय है। वैश्विक चिंता के इन दो बड़े मसलों पर भारत और अमेरिका के हित कुछ हद तक मेल खाते हैं, इसलिए दोनों को मौजूदा विश्व माहौल में एक-दूसरे का स्वाभाविक साथी कहा गया है। इसी भावना के अनुरूप जब दोनों देशों के बीच मतभेद कम होंगे तो दोनों के सामरिक रिश्तों की डोर मजबूत होगी। आज अमेरिका ने भारत के प्रति अपना नजरिया बदला है और वह आज भारत को एशिया प्रशांत इलाके में बड़ी सैन्य ताकत के रूप में उभरते हुए देखना चाहता है और इसी इरादे से उसे अपनी सबसे अच्छी और एडवांस्ड तकनीक वाले शस्त्र प्रणालियां देने की पेशकश कर रहा है। दोनों ही देशों के राष्ट्रपति और पीएम को ओबामा यात्रा से फायदा होगा। जहां तक अमेरिका की बात है कि राजनीतिक करियर की ढलान पर खड़े ओबामा को भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने से नई साख और चमक मिलेगी। अगर ओबामा भारतीय बाजार को अमेरिकी निवेशकों के लिए खोलने में कामयाब होते हैं तो मंदी के दौर से बाहर निकल रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नई राह मिलेगी। ओबामा को उम्मीद है कि भारत अपने सैकड़ों करोड़  डॉलर का परमाणु और रक्षा बाजार खोलेगा तो लाभ कमाने वाली अमेरिकी कंपनियां डेमोकेटिक पार्टी के और करीब आएंगी। रूस और चीन जैसे घोर अमेरिका विरोधी देशों के बीच भारत से दोस्ताना रिश्ते इन दोनों मुल्कों पर दबाव बनाने में काफी मददगार होंगे। भारत के साथ सामरिक संबंध दुनिया के नक्शे पर फैले अमेरिकी साम्राज्य को विस्तार देगा। रही बात भारत के प्रधानमंत्री की तो अगले एक-डेढ़ दशक तक राजनीतिक के बड़े खिलाड़ी बने रहने का सपना देख रहे नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षाओं को चार चांद लगेंगे। मोदी बतौर वर्ल्ड लीडर अपनी छवि को मजबूत करेंगे। अमेरिका से नजदीकी उन्हें आतंकवाद, बार्डर फायरिंग या सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान और चीन के साथ ज्यादा सख्ती से पेश आने में मदद मिलेगी। नरेंद्र मोदी इस यात्रा में मुलाकात के दौरान पाकिस्तान का खुला चिट्ठा पेश करके पाकिस्तान को बेनकाब कर सकते हैं। अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते और निवेश बढ़ता है तो भारतीय युवाओं के लिए नए अवसर पैदा होंगे और युवाओं, प्रोफेशनलों में मोदी की पैठ जबरदस्त तरीके से बढ़ेगी। अमेरिकी निवेश से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। मोदी चुनावी वादा पूरा कर कह सकेंगे कि देश में फिलहाल उनका कोई विकल्प नहीं है। श्री मोदी को भारतीय हितों का हर मामले में ध्यान रखना होगा। अमेरिका हमेशा अपने हितों की सोचता है। हमें भी ऐसा ही करना होगा। हम बराबरी की हैसियत से बात करें, झुक कर नहीं। बराक ओबामा आपका स्वागत है। सभी भारतीयों को गणतंत्र दिवस की बधाई।

Saturday, 24 January 2015

टाइगर्स का बढ़ता कुनबा अच्छी खबर है

पिछले काफी समय से बाघों की घटती तादाद चिंता का सबब बनी हुई थी। देश में सिमटते जंगलों के बीच बाघों की दहाड़ दुर्लभ होती जा रही थी। खासकर 2008 में जब भारत में सिर्प 1400 बाघ बचे थे, तब उनके अस्तित्व पर ही संकट माना जाने लगा था। बाघों के संरक्षण के लिए 1973 में भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर नामक कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत देश के 18 राज्यों में इस वक्त 47 टाइगर रिजर्व हैं। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.08 प्रतिशत हिस्सा है। दुनिया के 70 प्रतिशत बाघ अकेले भारत में ही पाए जाते हैं। पिछली सदी की शुरुआत में पूरी दुनिया में तकरीबन एक लाख बाघ थे। इस आबादी का 97 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो गया है। अब यह संख्या तीन-चार हजार के बीच रह गई है। वन्य जीव प्रेमियों के लिए 2015 बड़ी खुशखबरी लेकर आया है। 2010 से 2014 तक देशभर में बाघों की संख्या में 30.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 2010 में बाघों की संख्या 1706 थी जो 2014 में बढ़कर 2226 हो गई है। 2006 में यह आंकड़ा महज 1411 था। मंगलवार को नई दिल्ली में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की स्टेटस ऑफ टाइगर्स इन इंडिया रिपोर्ट-2014 जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 18 राज्यों में बाघ हैं। कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बाघों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2010 में 300 बाघों के साथ कर्नाटक पहले स्थान पर था। बाघों की संख्या जिस तरह से बढ़ी है उससे पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में  बाघों के संरक्षण के लिए चलाए गए कार्यक्रमों या अभियानों के सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। दरअसल बीते दो-तीन दशक के दौरान बाघों की संख्या लगातार गिरती चली जा रही थी और शिकार के साथ-साथ घटते जंगल जैसी कई वजहों से इस जंगल के राजा के जीवन पर संकट खड़े हो रहे थे। खासकर सरिस्का, रणथंभौर आदि रिजर्वों से बाघों के गायब होने की खबरें जब-तब आ रही थीं। चिंताजनक हालातों के सामने आने के बाद सरकार की ओर से बाघ संरक्षण के लिए एक कार्यबल का गठन करने सहित कई कदम उठाए गए। बाघ बचाने की तमाम कोशिशों और कार्यक्रमों के बीच देश में संरक्षित गलियारों और वन क्षेत्रों पर मंडराते खतरे पर ध्यान देने की जरूरत अब भी है। ताजा उपलब्धि पर्यावरण, वन्य जीव और बाघों के जीवन पर काम करने वाले लोगों के लिए इसलिए भी राहत वाली है कि जब दुनियाभर में इस पशु की संख्या तेजी से घटी है, वहीं भारत में यह संख्या बढ़ी है। इस कामयाबी का श्रेय वन अधिकारियों, कर्मचारियों, सामुदायिक भागीदारी और वैधानिक सोच के मुताबिक इस मसले पर काम करने वाले तमाम लोगों और एजेंसियों को देना होगा। साथ-साथ यह ध्यान भी रखने की जरूरत है कि इन उपायों पर अमल करके इस उपलब्धि में स्थिरता कायम रहे और टाइगरों की संख्या बढ़ती रहे।

-अनिल नरेन्द्र

कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में मनमोहन सिंह से पूछताछ

कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला उजागर होने के बाद यूपीए सरकार के जाने के बाद सीबीआई ने इस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछताछ की है। मनमोहन सिंह से हिंडाल्को कंपनी को कोयला खदान आवंटित किए जाने के  बारे में सवाल पूछे गए। 16 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए सीबीआई की एक टीम ने मनमोहन सिंह से उनके आवास पर पूछताछ की। सीबीआई को इस मामले में 27 जनवरी को विशेष अदालत को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करनी है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला घोटाला उजागर होने के बाद हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी जैसा जुमला कहकर बच निकलने वाले मनमोहन सिंह अब सीबीआई के सवालों के दायरे में आ गए हैं। हालांकि इस खबर की पुष्टि न तो उनकी ओर से और न ही सीबीआई की तरफ से हुई है लेकिन इस मामले में किसी तरह का खंडन न आने से यह मानना काफी है कि पूछताछ हुई है। यह कथित जांच डाक्टर मनमोहन सिंह के सार्वजनिक जीवन पर दाग लगाने वाली है। कोयला मंत्री के रूप में उनकी भूमिका को लेकर उनसे पूछताछ की गई जिसमें आदित्य बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को कोल ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी का मामला निहित है। हालांकि मनमोहन सिंह की छवि साफ-सुथरे और शरीफ नेता की रही है लेकिन उनके नेतृत्व में यूपीए का कार्यकाल और विशेषकर इसका दूसरा टर्म घपले-घोटालों के नाम रहा। कोल आवंटन, 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स से लेकर शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जिस पर घोटाले की कालिख न लगी हो। कोयला घोटालों का विचित्र संयोग यह भी है कि इसके कई मामले उस समय के हैं जब मनमोहन सिंह ही कोयला मंत्रालय के प्रभारी थे। इस तरह मनमोहन सिंह ऐसे दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री हैं जिनसे किसी घोटाले में पूछताछ हुई है। यह भी एक इत्तेफाक है कि इस शर्मिंदगी से गुजरने वाले पहले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव थे जो मनमोहन सिंह के राजनीतिक गुरु माने जाते हैं। अब यह खुलासा होने की उम्मीद जगी है कि जिस वक्त मनमोहन सिंह कोल मंत्रालय के प्रभारी थे, कैसे देश के अमूल्य संसाधन की बंदरबांट होती रही और इसे रोकने के लिए मनमोहन सिंह जी ने कोई हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? वैसे तो यह सवाल तभी उठने लगे थे जब यूपीए सत्ता में थी, पर तब सरकारी तोते सीबीआई में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अपने तत्कालीन आकाओं से असुविधाजनक सवाल-जवाब कर पाती, उलटे मामले को बंद कराने की उसकी जल्दबाजी पर सुप्रीम कोर्ट को तीखी टिप्पणी तक करनी पड़ी थी। मनमोहन सिंह के पूरे कार्यकाल में जिस तरह फैसलों पर कांग्रेस नेतृत्व का नियंत्रण था उसमें मनमोहन सिंह की भूमिका तो बहुत नगण्य रही होगी। शायद इसीलिए मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल का ज्यादातर हिस्सा मौन रहकर ही काटा। बहरहाल अब सीबीआई उनसे पूछताछ कर चुकी है तो उम्मीद है कि कई सवालों का संतोषजनक जवाब आगामी दिनों में देश को मिलेगा। भविष्य में ऐसे घोटाले न हों इसके लिए भी यह संदेश देना जरूरी है कि जवाबदेही के दायरे से बाहर कोई नहीं है। प्रधानमंत्री भी नहीं।

Friday, 23 January 2015

टिकटों को लेकर भाजपा में मचा घमासान

यूं तो भारतीय जनता पार्टी में बाहर से नेताओं के आने की भीड़-सी लगी हुई है। किरण बेदी के बाद कांग्रेस की तेज-तर्रार महिला नेता कृष्णा तीरथ आईं, शाजिया इल्मी आईं और न जाने कौन-कौन आया। भाजपा में घुसने की मानों होड़-सी लग गई। जहां भाजपा हाई कमान को लगता है कि इन बाहरी नेताओं के आने से पार्टी मजबूत हुई है और सात फरवरी के दिन जब वोट पड़ेंगे तो उसे स्पष्ट बहुमत मिलेगा। पर इन बाहरी नेताओं के आने का पार्टी के अंदर विरोध भी हो रहा है। बाहरी नेताओं के आने से व टिकट वितरण में पक्षपात को लेकर भाजपा में बाहर भले ही कुछ ज्यादा न दिखाई दे रहा हो लेकिन अंदर जमकर घमासान मचा हुआ है। टिकट न मिलने से कई नेताओं के समर्थकों का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय सहित कई और नेताओं के समर्थक मंगलवार को टिकट न मिलने से नाराज दिखे। समर्थकों ने प्रदेश भाजपा कार्यालय में जाकर जमकर बवाल किया। इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि भाजपा कितनी सिद्धांत वाली पार्टी है इसका पता इससे चलता है कि उसका गठन हुए 34 वर्ष हो गए हैं। पार्टी की केंद्र में सरकार है लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा पैराशूट लाना पड़ा। चार घंटे पहले पार्टी में आने वालों को टिकट मिल गया और 30 साल से सेवा करने वालों को टिकट से वंचित रखा गया। सतीश उपाध्याय के समर्थकों ने प्रदेश कार्यालय पहुंचकर किरण बेदी तक के खिलाफ नारेबाजी कर डाली। उन्होंने पैराशूट सीएम उम्मीदवार नहीं चलेगा का नारा लगाते हुए उपाध्याय से महरौली विधानसभा क्षेत्र से नामांकन भरने की मांग की। उपाध्यक्ष शिखा राय के समर्थकों ने भी प्रदर्शन किया। रोहिणी से टिकट कटने से नाराज पूर्व विधायक जय भगवान अग्रवाल के समर्थक भी सड़क पर उतर आए। किरण बेदी को लेकर कई वरिष्ठ नेता नाराज हैं। कुछ ने तो अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी, जिसमें सांसद मनोज तिवारी सबसे अव्वल हैं, लेकिन फटकार के बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया। प्रोफेसर जगदीश मुखी, डॉ. हर्षवर्धन, विजय गोयल अंदरखाते सख्त नाराज हैं। मुखी ने हाई कमान पर भी निशाना साधा और कहा कि किरण के बारे में फैसला लेते समय प्रदेश इकाई को विश्वास में नहीं लिया गया। लोगों का कहना था कि जब प्रदेशाध्यक्ष को टिकट नहीं मिला तो और छोटे नेताओं का क्या हाल होगा? बताते हैं कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कड़े शब्दों में यह संदेश दिया है कि बगावती तेवर अपनाने वाले नेताओं को बख्शा नहीं जाएगा। इसके बाद ही बेदी के खिलाफ नाराजगी व बागी तेवर कम हुए। बगावती तेवर अपनाने वाले नेता बातचीत में बताते हैं कि किरण बेदी पर भी निजी हमले होंगे। उन्होंने दिल्ली पुलिस की अधिकारी रहते हुए वकीलों पर लाठीचार्ज करवाया था। बहुत पहले रामलीला के आयोजकों पर भी बेदी द्वारा कराए गए लाठीचार्ज को आज तक लोग भूले नहीं हैं। विपक्ष इसको मसाला  बनाने से नहीं चूकेगा। भाजपा ने जिस तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नए चेहरों को आगे लाना शुरू किया है, उस पर स्वाभाविक ही पार्टी के भीतर सवाल उठने लगे हैं। पहले भाजपा कहती थी कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को आगे करके चुनाव लड़ना  उसकी नीति के विरुद्ध है। हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनाव इसी उसूल पर लड़े गए थे। पर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से भयभीत भाजपा को अपना उसूल बदलना पड़ा। भाजपा के आलोचक अब यह कहने से हिचकिचाते नहीं कि किरण बेदी को उम्मीदवार बनाकर चित भी मेरी पट भी मेरी का दांव मोदी-शाह ने चला है। अगर दिल्ली में भाजपा हारी तो किरण बेदी हारी और जीती तो नरेंद्र मोदी जीते। अब देखना यह होगा कि पार्टी में बढ़ते इस असंतोष को अमित शाह कितना कंट्रोल कर सकते हैं। कार्यकर्ताओं का निकलना, प्रचार करना, पार्टी में एका यह बहुत जरूरी है। पार्टी कार्यकर्ताओं को बंधुआ मजदूर समझना भारी भूल होगी।

-अनिल नरेन्द्र

ओबामा की सुरक्षा पर अमेरिकी जिद्द ः भारत ने ठुकराई

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की दो दिवसीय भारतीय यात्रा की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। गत सोमवार को ओबामा के भारत दौरे पर अमेरिकी और भारतीय अधिकारियों की एक विशेष बैठक हुई। इसमें अमेरिका ने ओबामा की सुरक्षा अपने हाथों में रखने का प्रस्ताव रखा। पर भारत ने मना कर दिया। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि गणतंत्र दिवस भारत का समारोह है, इसलिए सुरक्षा भी हम ही करेंगे। अमेरिकी अधिकारियों ने चार मांगें रखी थीं जिन्हें भारत ने खारिज कर दिया। पहला सुझाव अमेरिका का था कि राजपथ के पास छतों पर सिर्प अमेरिकी स्नाइपर्स तैनात होंगे ः भारत ने कहा कि यह संभव नहीं है। समारोह में भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत कई वीवीआईपी होंगे। ऐसे में भारतीय स्नाइपर्स भी तैनात होंगे। दूसरा सुझाव था कि जिस रास्ते ओबामा जाएं उस पर कोई दूसरा न चले ः भारत ने कह दिया कि यह संभव नहीं है। मेहमान का रास्ता मेजबान ही तय करता है। अब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व बाकी वीवीआईपी भी उसी रास्ते जाएंगे। तीसरा ः राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और ओबामा अलग-अलग जाएं ः भारत ने बता दिया कि मुख्य अतिथि राष्ट्रपति के साथ ही जाते हैं। ऐसे में पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी कार बीस्ट में सफर नहीं करेंगे। चौथा सुझाव था कि समारोह को नो फ्लाई जोन घोषित किया जाए ः भारत यदि बात मान लेता तो वायुसेना का पारम्परिक फ्लाई पास्ट रद्द करना पड़ता। अब तीनों सेनाओं के 33 विमानों का राजपथ पर फ्लाई पास्ट होगा और तिरंगे को सलामी देंगे। वाशिंगटन ने इस्लामाबाद को सचेत किया कि ओबामा की भारत यात्रा के दौरान किसी भी तरह का आतंकी हमला न हो। अमेरिका की यह पाक को चेतावनी समझ तो आती है पर क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि पाक आगे-पीछे भारत पर हमले कर सकता है सिर्प ओबामा की यात्रा के दौरान हमले न करे? बेशक अमेरिका के लिए राष्ट्रपति बराक ओबामा की सुरक्षा महत्वपूर्ण हो पर इसका यह मतलब तो नहीं कि भारत के सवा करोड़ नागरिकों की सुरक्षा महत्वपूर्ण नहीं है? ऐसी चेतावनी के साथ ही अमेरिका ने पाकिस्तान को धमकाया है कि यदि हमले हुए तो परिणाम भुगतने को तैयार रहे। क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि अमेरिका इस स्थिति में है कि वह पाक हमले रोक सकता है, अगर रोक सकता है तो रोकता क्यों नहीं? दरअसल अमेरिका सिर्प अपने हितों को देखता है, उसे भारत की कोई चिंता नहीं है। यह वही अमेरिका है जिसने 1800 करोड़ डॉलर पाक सेना और पाक अर्थव्यवस्था के लिए पिछले 10 वर्षों में दिए हैं। हालांकि 2010 के बाद के पूरे आंकड़े सामने नहीं आ रहे, इसी के बाद यह आरोप  बढ़ा है कि पाक सेना और आईएसआई के मार्पत आतंकी संगठनों को ट्रेनिंग देने में यह पैसा लगा रहा है। ओबामा के 27 जनवरी को प्रस्तावित आगरा दौरे के मद्देनजर ताजनगरी में सीरिया, इराक और ईरान के पर्यटकों पर वहां के प्रमुख होटलों को चेतावनी दी गई है कि वह तीनों देशों के सैलानियों को ओबामा की यात्रा तक अपने यहां न ठहराएं।

Thursday, 22 January 2015

ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस के सराहनीय विचार

कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धार्मिक गुरु पोप फ्रांसिस ने अपनी एशिया की यात्रा के दौरान श्रीलंका और मनीला में अपने संबोधन में कहा कि समाज में धार्मिक असहिष्णुता, अत्याचार और अन्याय का खात्मा होना चाहिए। इसकी पूरी जिम्मेदारी नीति निर्माताओं और राजनेताओं की बनती है। पत्रकारों से मुखातिब हुए पोप फ्रांसिस ने फ्रांसीसी पत्रिका शार्ली एब्दो पर हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है लेकिन इसकी आड़ में दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और उन्हें भड़काना गलत है। ऐसा होने पर इसकी कड़ी प्रतिक्रिया झेलनी ही पड़ेगी। उन्होंने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर किसी का मूलभूत अधिकार है लेकिन इस अधिकार के साथ यह कर्तव्य भी जुड़ा है कि ऐसा कुछ भी करते समय यह ध्यान रखा जाए कि इससे कोई आहत नहीं हो बल्कि इसमें सबकी भलाई निहित हो। पोप ने यह कहकर साफ संकेत दे दिया कि पत्रिका में पैगम्बर मोहम्मद का कार्टून छापा जाना सही नहीं था। पोप ने मनीला पहुंचकर यहां के राजनेताओं और नीति-निर्धारकों को गरीबों के खिलाफ हो रहे अन्याय, अत्याचार और दमनकारी नीतियों के खिलाफ चेताते हुए कहा कि इनके कारण ही समाज में घोर असामनता जन्म लेती है जिसकी परिणति हिंसा और आक्रोश के रूप में सामने आती है। पोप फ्रांसिस ने कहा कि राजनेताओं और प्रशासकों को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ जनता खासकर गरीब तबके के लोगों के लिए काम करना चाहिए। भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जाना चाहिए। अमेरिका ने पोप की टिप्पणी पर सतर्प प्रतिक्रिया व्यक्त की है। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने रेखांकित किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी जुड़ी होती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असहमतियों को लेकर हिंसा को किसी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता। अर्नेस्ट ने कहा कि मुक्त अभिव्यक्ति के सन्दर्भ में जन अभिव्यक्ति का कोई कृत्य नहीं है जो हिंसा की कार्रवाई को किसी तरह उचित ठहरा सकता हो। यह एक उसूल है जिसे हमने कई मौकों पर दोहराया है। जर्मनी की चांसलर एंजला मर्केल ने फ्रांस में हुए हमले के बाद मुस्लिमों का सामाजिक बहिष्कार किए जाने के खिलाफ मजबूती के साथ अपनी आवाज उठाई लेकिन साथ ही कहा कि इस्लामी धर्मगुरुओं को इस्लाम और आतंकवाद के बीच स्पष्ट रेखा खींचनी चाहिए। स्पष्ट रेखा खींचनी होगी। मर्केल ने आतंकवादी हमले में मारे गए 17 लोगों को जर्मन संसद में श्रद्धांजलि दिए जाने के बाद यह बात कही। हम पोप फ्रांसिस के विचारों का स्वागत करते हैं। हमारा भी सदा से मानना रहा है कि आप किसी भी धर्म या धार्मिक रीति-रिवाजों व परम्पराओं का मजाक नहीं उड़ा सकते। हमें सब धर्मों का सम्मान करना चाहिए। धर्म कभी भी हिंसा नहीं सिखाता, अगर गलत हो रहा है तो धर्म के इन ठेकेदारों की वजह से हो रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

राष्ट्रपति की नेक नसीहत, अध्यादेशों से बचें

मोदी सरकार के आठ माह के कार्यकाल में नौ अध्यादेश लाने के मद्देनजर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की नसीहत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति ने सरकार को अध्यादेश राज से बचने का सीधा संदेश दिया है। उन्होंने विपक्ष को भी कड़ा संदेश देते हुए कह दिया है कि अल्पमत का विपक्ष बहुमत की आवाज को अकारण बाधित नहीं कर सकता। 16वीं लोकसभा में शासन और स्थिरता के लिए बहुमत मिला है। आए दिन अध्यादेश जारी करने से बचने के लिए दोनों को आपस में मिल बैठकर कोई व्यावहारिक समाधान निकालना चाहिए। महामहिम ने विधेयकों को पास कराने के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाने को भी अव्यावहारिक बताया है। ऐसा कहकर उन्होंने मोदी सरकार को चौकस कर दिया है। संसदीय गरिमा के लगातार क्षरण पर देश का जागरूक जनमत चिंतित रहा है। मीडिया सहित कई मंचों पर यह चिंता व्यक्त की गई है और अब महामहिम ने इसे उठाया है। अभिभावक की तरह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उचित ही दोनों पक्षों को याद दिलाया है कि जब संसद विधाई कार्य में विफल होती है तो उस पर से जनता का भरोसा टूटता है। उन्होंने साफ कहा है कि संसदीय कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी चाहिए। शोर, हंगामा मचाने वाले अल्पमत को यह इजाजत नहीं होनी चाहिए कि वह सहनशील बहुमत का गला घोंट दे। जाहिर है कि राष्ट्रपति की इन टिप्पणियों को विपक्ष के हाल के व्यवहार की आलोचना के रूप में देखा जाएगा लेकिन अपने देश का यही अप्रिय यर्थाथ है कि विपक्ष में चाहे जो भी दल रहे, वह विधायिका को राष्ट्रपति के शब्दों में कहें तो... भीड़ की गोलबंदी और सड़क जैसे प्रदर्शनों का मंच बनाने की कोशिश करती है पर ऐसा भी नहीं कि इस स्थिति के लिए केवल विपक्ष ही जिम्मेदार है। सत्ताधारी दल भी इसके लिए जिम्मेदार है। मुश्किल यह है कि जैसे ही पार्टी सत्ता में आती है वह भूल जाती है कि संसद, विधानसभाएं सहयोग, सद्भाव और समान उद्देश्य की भावना से चलें, यह सुनिश्चित करना उसका दायित्व भी है। केवल विपक्ष को दिन-रात कोसने से काम नहीं चलेगा। जब प्रणब मुखर्जी खुद कांग्रेस में थे तो वह सत्तारूढ़ होने के बावजूद विपक्ष को साथ लेकर चलने का प्रयास करते थे। उनके जाने के बाद टकराव होना शुरू हुआ। मोदी सरकार में संसदीय मंत्री को प्रयास करना होगा कि वह सदन को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास करें और जहां तक संभव हो अध्यादेश लाने से बचें। दुख से कहना पड़ता है कि पिछले कुछ वर्षों से सत्तारूढ़ दल और विपक्ष में टकराव इस कदर बढ़ गया है कि सदन सुचारू रूप से चलता ही नहीं। पूरा सत्र स्थगित होता रहता है और अंत में सत्तारूढ़ दल को जब और कोई रास्ता नहीं मिलता वह अध्यादेश का सहारा लेने पर मजबूर हो जाता है। उम्मीद की जाती है कि दोनों सत्तारूढ़ दल और विपक्ष राष्ट्रपति की नेक नसीहत पर गंभीरता से विचार करेंगे।

Tuesday, 20 January 2015

बोको हराम ने अब तक 17 हजार लोगों को मार डाला है

बोको हराम का अनुवाद आमतौर पर कुछ यूं किया जाता है... पश्चिम की तालीम हराम है। मगर इस आतंकी नाइजीरियाई संगठन ने खुद सबसे वर्जित काम करने में महारथ हासिल कर ली है और वह है बेगुनाहों का कत्लेआम। आतंकियों द्वारा पिछले सप्ताह पेरिस में 12 लोगों के मारे जाने पर गम और गुस्से का इजहार जब दुनिया कर रही थी, तब बोको हराम नरसंहार में जुटा था। तीन जनवरी को बर्नो सूबे के बगा शहर को इसने अपना निशाना बनाया था। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद इसने अपने इतिहास की सबसे बर्बर वारदात को अंजाम दिया। बगा को उसने लगभग तहस-नहस कर दिया है जहां सैकड़ों की तादाद में लोगों के मारे जाने का अंदेशा है। नाइजीरिया के बगा शहर में सप्ताह के अंत में बोको हराम आतंकियों ने 16 गांवों और कस्बों को तबाह कर दिया। अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2000 लोगों के मारे जाने की आशंका है। हमले से बचकर भागे लोगों ने बताया कि आतंकियों ने गांव में घुसकर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। कई घरों और इमारतों को जला दिया। अब भी सैकड़ों लोग चाड झील के बीच स्थित द्वीपों पर आतंकियों के चंगुल में फंसे हुए हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक तकरीबन 2500 लोगों को मारा गया जबकि नाइजीरिया की सरकार सिर्प 150 लोगों के मरने की  बात कह रही थी। 15 जनवरी को जारी इंफ्रेरेड सैटेलाइट से जारी तस्वीरों से यह साफ हुआ है कि बगा कस्बे में तकरीबन 3700 घरों और इमारतों को या तो गिरा दिया गया या फिर जला दिया गया। टाउन मैप में भी पूरी तरह मिट गया है। हमलों में बचे एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार लोगों को कीड़े-मकौड़ों की तरह मौत के घाट उतारा गया। अगले महीने नाइजीरिया में चुनाव होने हैं, लेकिन बोको हराम के आतंक की वजह से सभी हिस्सों में वोटिंग होने की संभावना कम है। 2009 में आक्रामक बोको हराम इस्लामिक संगठन की स्थापना हुई थी। लेकिन 2009 में नाइजीरिया में एक इस्लामिक देश की स्थापना के लिए इस संगठन ने मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया। कई कस्बे इसके कब्जे में हैं, जहां तकरीबन 30 लाख लोग रहते हैं। नाइजीरिया की सेना 2010 से इस क्षेत्र में ऑपरेशन चला रही है, लेकिन अब तक वह आतंकी संगठन के सामने कमजोर साबित हुई है। ब्यौरे बताते हैं कि जनवरी 2014 से अब तक 5000 से अधिक लोगों को बोको हराम ने मार डाला है और ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिख रहा है, जिससे खूनखराबे का यह दौर थमता नजर आए बल्कि यह और गहराता जा रहा है। एक अनुमान यह भी है कि अब तक बोको हराम 17,000 लोगों को मार चुका है। यह छोटी-छोटी बच्चियों को भी मानव बम बनाने से नहीं कतराता। नाइजीरिया के मौजूदा संकट की कुछ जिम्मेदारी राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन के माथे पर भी जाती है, जिन्होंने बातचीत का हर दरवाजा बंद कर रखा है और इस तरह से दहशतगर्दों के खतरों से निपटने की रणनीति की तमाम कोशिशों को नामुमकिन बना दिया है।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली चुनाव में अब मुद्दों से ज्यादा अहम हुए चेहरे

दिल्ली का चुनाव अब ग्लैमर्स होता जा रहा है। चुनावी रण में अब धमाल मचाएंगी चार देवियां। यही नहीं कुछ मायनों में तो अब मुद्दों से ज्यादा महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं चेहरे। सूबे में महिलाओं की सुरक्षा पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच लड़े जा रहे दिल्ली विधानसभा के चुनावी दंगल में उतरीं बेहद पॉवरफुल देवियों ने समूचे सियासी मुकाबले की तस्वीर बदल दी है और कुछ मायनों में इस चुनाव को दिलचस्प भी बना दिया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की  बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी, पूर्व मंत्री प्रो. किरण वालिया, चर्चित पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी और आप की पूर्व सदस्य शाजिया इल्मी के मैदान में आने के बाद चुनाव की लड़ाई नए रंग में आ गई है। इन हाई-प्रोफाइल महिलाओं के चुनाव में उतरने का सबसे जोरदार असर नई दिल्ली सीट पर देखने को मिल सकता है। यहां से कांग्रेस ने प्रो. किरण वालिया को अपना प्रत्याशी बनाना लगभग तय कर लिया है, वहीं भाजपा की ओर से किरण बेदी या शाजिया इल्मी को उतारे जाने के संकेत मिल रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो यह तय है कि समूची दिल्ली की निगाहें नई दिल्ली सीट पर रहेंगी। राजधानी के सियासी सफर की बात करें तो शीला दीक्षित और सुषमा स्वराज सरीखी चन्द प्रतिष्ठित महिलाओं को अपवाद मान लें तो राजनीतिक मोर्चे पर महिलाएं कभी आगे नहीं रही हैं ऐसे समय में यदि भाजपा शहर और देश की चर्चित किरण बेदी को नेतृत्व सौंपने की तैयारी कर रही है तो रेप कैपिटल के नाम से बदनाम इस शहर के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। अपने सख्त प्रशासनिक तेवरों के लिए जानी जाने वाली बेदी दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर भी बेहतरीन शासक साबित हो सकती हैं। राष्ट्रपति की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी प्रसिद्ध शास्त्राrय नृत्यांगना हैं। कांग्रेस के टिकट पर ग्रेटर कैलाश विधानसभा क्षेत्र से उनके चुनाव ल़ड़ने की भूमिका पहले ही तैयार हो गई है। दिल्ली में मिनी बंगाल कहे जाने वाले चितरंजन पार्प इलाके से ताल्लुक रखने वाली ग्रेटर कैलाश सीट पर शर्मिष्ठा के आ जाने से भाजपा और आप जैसे अन्य दलों के सामने मजबूत उम्मीदवार उतारने की विवशता जरूर हो गई है। एक साल में समस्याएं खत्म हो गई हैं या फिर बदले हालात में राजनीतिक दलों ने रास्ता व मुद्दे बदल लिए हैं। आम आदमी पार्टी इस बार जनलोकपाल बिल सहित अन्य मुद्दों को जोरशोर से उठाती नहीं दिख रही है। तो भाजपा दिल्ली में बिजली बिलों के दाम घटाने सहित कई मुद्दों से किनारा किए हुए है। कांग्रेस में शीला की जगह अजय माकन का चेहरा सामने है तो वह केंद्र के काम भी गिनवा रहे हैं। हालांकि पार्टियां जब अपने घोषणा पत्र जारी करेंगी तो कई मुद्दे इसमें दिख सकते हैं। वोटरों के बीच मुद्दों से ज्यादा चेहरा इस चुनाव में हावी होता दिख रहा है। आप अरविंद केजरीवाल का चेहरा दिखाकर चुनाव जीतना चाह रही है तो भाजपा किरण बेदी का और कांग्रेस अजय माकन का। वोटर भी इनकी तुलना में जुट गए हैं। कुल मिलाकर इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव दिलचस्प होने वाला है जिसमें हर तरह का मसाला होगा।

Sunday, 18 January 2015

बढ़ते पुलिस पर हमले दर्शाते हैं, वर्दी का खौफ घट रहा है

यह चिंता की बात है कि दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से पुलिस वालों पर हमले बढ़ते ही जा रहे हैं। इन अपराधियों को अब वर्दी का भी खौफ नहीं रहा। खाकी पर गुरुवार को फिर हमला हुआ। इस बार कल्याणपुरी का मामला है। हुआ यह कि तेज आवाज में बज रहे डीजे को बंद कराने गए पांच पुलिसकर्मी जब मौके पर पहुंचे तो 20-25 लोगों ने उन पर ईंट पत्थरों की बरसात कर दी। सभी पुलिस वाले कल्याणपुरी थाने में तैनात थे। घायल हुए पुलिस वालों को लाल बहादुर शास्त्राr अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अधिकतर पुलिस वालों के सिर फूटे हैं। कल्याणपुरी थाना पुलिस ने गैर इरादतन हत्या के प्रयास, सरकारी काम में बाधा और पुलिसकर्मियों पर ड्यूटी के दौरान हमला करने का मामला दर्ज किया है। दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। 2015 के पहले ही महीने में कई हमले पुलिस पर हो चुके हैं। साल के पहले ही दिन यानि एक जनवरी को मुखर्जी नगर में एक हैड कांस्टेबल राम दयाल को चार युवकों ने पीटा। उसी दिन कमला मार्केट में सीआरपीएफ के जवान को कुचला, घायल कर दिया। उससे अगले दिन दो जनवरी को पहाड़गंज में पीसीआर वैन को टक्कर मारी गई। छह जनवरी को नॉर्थ रोहिणी में तीन पुलिसकर्मियों को पीटा गया। नौ जनवरी को केशवपुरम में कांस्टेबल दीपक की जमकर पिटाई की गई। उसी दिन मॉडल टाउन इलाके में पीसीआर वैन को टक्कर मारी गई। 11 जनवरी को सीलमपुर में कार सवार बदमाशों ने हैड कांस्टेबल धर्मवीर व कांस्टेबल बंटी को पीटा व गोली चलाई। हमले में हैड कांस्टेबल के 17 टांके आए। उससे अगले दिन मयूर विहार में पीसीआर वैन को टक्कर मारी गई। इस टक्कर के कारण सब-इंस्पेक्टर सूबेदार खान की मौत हो गई और दो अन्य पुलिसकर्मी घायल हो गए। उसी दिन यानि 12  जनवरी को अलीपुर में कांस्टेबल धर्मवीर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। गुरुवार की वारदात के बारे में वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि वारदात कल्याणपुरी 20 ब्लॉक की है। मेन रोड पर डीजे जोर से बज रहा था। रात 10.15 बजे पुलिस को क्षेत्र के एक निवासी की शिकायती कॉल मिली। एसआई संदीप कुमार, हैड कांस्टेबल मनबीर सिंह, जितेन्द्र सिंह, सिपाही किरोड़ीमल, लोकेश व अशोक मौके पर पहुंचे। पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का हवाला देते हुए डीजे म्यूजिक को बंद करने को कहा। तब डीजे म्यूजिक बंद कर दिया गया। पुलिस वाले चले गए। कुछ देर बाद फिर पुलिस को कॉल मिली कि डीजे फिर चालू हो गया है। पुलिस टीम फिर पहुंची। आरोप है कि वहां मौजूद एक व्यक्ति ने धमकाते हुए चले जाने को कहा। पुलिस ने कार्रवाई की बात की तो वहां मौजूद लोगों ने पुलिस वालों पर ईंट और पत्थरों से हमला कर दिया। सिपाही अशोक, जितेन्द्र व  लोकेश का इस हमले में सिर फूट गया। मनबीर और संदीप को भी चोट आई है। पुलिस पर बढ़ते हमले सभी के लिए चिंता का विषय हैं। अपराधियों और गुंडों के हौंसले बढ़ते ही जा रहे हैं। अब इन्हें वर्दी का भी खौफ नहीं रहा। यह खौफ जरूरी है कानून व्यवस्था के लिए।

-अनिल नरेन्द्र

मैसेंजर ऑफ गॉड पर मचा बवाल

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम की फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड को मंजूरी के मुद्दे पर फिल्म सेंसर बोर्ड द्वारा सरकार के खिलाफ बगावत करने से मामले में एक नया मोड़ आ गया है। सेंसर बोर्ड अध्यक्ष लीला सैमसन समेत सभी नौ सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है। लीला ने पहले इस्तीफा भेजा था और उनके समर्थन में शुक्रवार को सभी अन्य सदस्यों ने इस्तीफा भेज दिया है। सेंसर बोर्ड के सदस्य कह रहे हैं कि हम दो साल से इस मुद्दे को उठा रहे थे। लीला सैमसन कोशिश कर रही थीं कि मंत्रालय कुछ बदलाव करे। हम लीला के समर्थन में इस्तीफा दे रहे हैं। सरकारी दखलअंदाजी पर एक सदस्य इरा भास्कर ने कहा कि दखलअंदाजी की जगह मैं कहूंगी कि हमें नजरअंदाज किया जा रहा है। हमें पूरा साइड कर अपने आप में मिनिस्ट्री चलाई जा रही है, फिर तो यही बात हो गई कि वह अकेले ही मिनिस्ट्री चला लें, सेंसर बोर्ड की क्या जरूरत है? बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन ने सरकार पर सेंसर बोर्ड के कामकाज में दखल देने के आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था। सैमसन ने इस्तीफे की वजह मैसेंजर ऑफ गॉड को तो नहीं बताया लेकिन कहा कि एक सीईओ के जरिये मंत्रालय के सेंसर बोर्ड में दखल के हालिया मामलों और पैनल के भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से मैंने हटने का फैसला किया है। सेंसर बोर्ड की एक मैम्बर नंदिनी सरदेसाई ने लीला का समर्थन करते हुए कहा कि बर्दाश्त की भी हद होती है। नंदिनी ने कहा कि सभी बोर्ड मैम्बरों ने मैसेंजर ऑफ गॉड देखकर इसे क्लीयरेंस न देने का फैसला किया था। इसके बावजूद दो लोगों के ट्रिब्यूनल ने 24 घंटे में उसे हरी झंडी दे दी जबकि इसमें कम से कम एक महीना लगता है। मेरा मानना है कि इसी वजह से लीला नाराज हुईं। सूचना प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने सफाई देते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड के फैसलों से मंत्रालय हमेशा दूर रहा है। दबाव है तो अध्यक्ष (लीला सैमसन) सबूत दिखाएं। उधर गुरमीत राम रहीम का कहना है कि फिल्म में मैंने खुद को ईश्वर के रूप में पेश करने की कोशिश नहीं की। मेरी फिल्म अंधविश्वास नहीं फैलाती। लीला सैमसन ने जवाबी हमले में कहा कि हर फिल्म में मिनिस्ट्री का हस्तक्षेप होता है। पीके फिल्म के लिए भी बहुत प्रैशर डाला गया था। थियेटरों में फिल्म रिलीज न होने के बावजूद डेरा की ओर से गुड़गांव में फिल्म का प्रीमियर रखा गया। हजारों समर्थकों के बीच गुरमीत राम रहीम डार्ले डेविडसन मोटर बाइक पर बैठकर पहुंचे। बाद में फिल्म का प्रदर्शन टाल दिया गया। इस दौरान विरोध कर रहे 60 लोगों को हिरासत में ले लिया गया। दिल्ली में भी शुक्रवार को सिख संगठनों ने पिक्चर के रिलीज होने पर जोरदार प्रदर्शन किया। सैकड़ों की तादाद में सिखों ने प्रदर्शन किया। गुरुद्वारा रकाबगंज से शुरू हुए इस मार्च को सेंसर बोर्ड के ऑफिस तक जाना था लेकिन पुलिस ने बीच में ही रोक दिया। प्रदर्शन शिरोमणि अकाली दल बादल और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के नेतृत्व में किया गया था। एमएसजी अभी रिलीज भी नहीं हुई है लेकिन उससे सीक्वल पर काम शुरू हो चुका है। यह  बात खुद शुक्रवार को अपनी फिल्म के प्रीमियर  पर राम रहीम ने गुड़गांव में कही। सर्टिफिकेट न होने की वजह से आखिरी समय में कैंसिल हुए प्रीमियर को उन्होंने कंसर्ट में बदल दिया। हजारों की संख्या में आए फैंस को बाबा ने मूवी के चार गाने सुनाए और कुछ प्रोमो दिखाए। मूवी कब रिलीज होगी, इस बारे में गुरमीत राम रहीम ने कुछ नहीं कहा। बाबा ने सरकार के लिए एक संकट खड़ा कर दिया है। जाहिर है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय को सेंसर बोर्ड के इस्तीफे से पैदा हुए संकट को जल्द निपटाना होगा।

Saturday, 17 January 2015

शीला युग समाप्त माकन की पारी शुरू

कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव और उसके  बाद आम चुनाव में हुई अपनी करारी हार के सदमे से अभी उभर भी नहीं पा रही है कि दिल्ली के उनके नेताओं की आपसी तकरार पार्टी को इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में और भी परेशानी में डाल सकती है। मंगलवार को दिल्ली की इलैक्शन कैंपेन कमेटी के चेयरमैन अजय माकन और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बीच हुई जुबानी जंग से पार्टी के लिए नई मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। जहां माकन ने यह कहकर शीला पर निशाना साधा है कि दिल्ली में शीला युग समाप्त हो गया है वहीं शीला ने भी माकन को यह कहकर चैलेंज दे दिया है कि उन्हें नई दिल्ली से चुनाव लड़ना चाहिए। कांग्रेस पार्टी आलाकमान ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी विरोधी पार्टियों पर अंतिम वार कर दिया है। पार्टी ने प्रदेश की कमान, चुनाव लड़ने की कमान अजय माकन को सौंप दी है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में अब माकन पार्टी का चेहरा होंगे। यह कांग्रेस का सही समय पर सही फैसला माना जाएगा। चुनावी जंग में माकन के शामिल होने के बाद कांग्रेस की तिकड़ी में प्रदेशाध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली और मुकेश शर्मा के अलावा अजय माकन शामिल हो गए हैं। आलाकमान ने ऐसे वक्त में माकन पर भरोसा जताया है जब पार्टी की जमीन पूरी तरह खिसक चुकी है। माकन को 2001 में शीला दीक्षित सरकार में परिवहन एवं बिजली मंत्री बनाया गया था। उन्हें बिजली वितरण के निजीकरण और दिल्ली में परिवहन संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली की सीट पर भाजपा के जगमोहन को पराजित किया था। 2009 में उन्होंने फिर इसी सीट पर जीत हासिल की। लेकिन पिछला चुनाव वह भाजपा उम्मीदवार मीनाक्षी लेखी से हार गए। अब पार्टी ने ऐसे समय पर माकन पर भरोसा जताया है जब उनके पास कोई करिश्माई चेहरा नहीं है। अजय माकन अगर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को आठ से ज्यादा सीटें जिता सकेंगे तो आलाकमान का फैसला सही माना जाएगा। चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे कई नेता माकन को चेयरमैन बनाए जाने का विरोध भी कर रहे हैं। कई नेताओं को यह शिकायत भी है कि माकन जब दिल्ली में मंत्री थे, केंद्र में मंत्री थे, तो पार्टी के लोगों से भी नहीं मिलते थे, कांग्रेसियों के फोन अटैंड नहीं करते थे। अपने लोगों से भी इस तरह का व्यवहार पूरे चुनाव के दौरान उन पर सवालिया निशान लगा सकता है, जिस पर माकन को ध्यान देना होगा। इसी बीच कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि यह सही है कि पार्टी की गुटबाजी और सभी को साथ लेकर चलना अजय माकन के लिए एक बड़ी चुनौती है लेकिन आलाकमान से जुड़े नेताओं के फोन दिल्ली के नेताओं को पहुंच रहे हैं। माकन की क्षमताओं पर किसी को शक नहीं है। वह सभी को साथ लेकर चल सकते हैं और पार्टी को सही दिशा देंगे। अजय माकन सधे हुए खिलाड़ी भी हैं और अनुभवी भी। पार्टी आलाकमान का उन्हें दिल्ली का नेतृत्व सौंपना सही फैसला है।

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल को टक्कर देने में किरण बेदी हर हालत में सक्षम होंगी

टीम अन्ना के सदस्य रहे आप के मुखिया अरविन्द केजरीवाल से दिल्ली विधानसभा चुनावों में कड़ी चुनौती का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी ने तुरुप का इक्का फेंकते हुए अन्ना हजारे टीम की ही एक अन्य महत्वपूर्ण योद्धा रहीं किरण बेदी को गुरुवार को अपनी जमात में शामिल कर लिया है। राजनीति में आने से इंकार करती रहीं किरण बेदी अंतत मान गईं और भाजपा में शामिल हो गईं। पार्टी ने उन्हें औपचारिक रूप से सीएम कैंडिडेट घोषित तो नहीं किया है लेकिन जिस तरह अमित शाह और अरुण जेटली जैसे सीनियर नेताओं की मौजूदगी में उन्हेंने भाजपा ज्वाइन की, उससे संकेत साफ है कि भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री वही हो सकती हैं। हालांकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह इस सवाल को यह कहकर टाल गए कि इसका फैसला पार्टी संसदीय बोर्ड करेगा। उन्होंने कहा कि बेदी विधानसभा चुनाव जरूर लड़ेंगी। लेकिन कहां से लड़ेंगी यह अभी तय नहीं हुआ है। दिल्ली की तीखी चुनावी लड़ाई में फंसी भाजपा ने किरण बेदी को अपने पाले में करके निश्चित तौर पर एक मास्टर स्ट्रोक लगाया है। अभी यह साफ नहीं कि किरण बेदी नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के सामने उतरेंगी या नहीं, लेकिन उनकी भाजपा में मौजूदगी ही केजरीवाल की टक्कर का चमकदार चेहरा खोज रही पार्टी के लिए राहत का  बड़ा सबब है। भाजपा मुख्यालय में शाह, अरुण जेटली और डॉ. हर्षवर्धन की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते हुए किरण बेदी ने कहा कि उनके पास 40 साल का प्रशासनिक अनुभव है और वह इस अनुभव को दिल्ली को भेंट करने आई हैं। दिल्ली को एक मजबूत और स्थिर सरकार की जरूरत है। दिल्ली में बहुत-सी बुराइयां हैं। मुझे अनुभव है। मुझे काम करना और करवाना आता है। हम दिल्ली को हिन्दुस्तान का दिल बनाएंगे। किरण बेदी के भाजपा में जाने की अटकलें लंबे अरसे से लगती रही थीं। अब जाकर पार्टी को इसमें कामयाबी मिली है तो इसके पीछे यकीनन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सोची-समझी रणनीति है। प्रधानमंत्री से मिलकर भाजपा में प्रवेश करने पहुंचीं बेदी ने साफ तौर पर कहा भी कि उनके इस निर्णय के पीछे नरेंद्र मोदी की अहम प्रेरणा रही है। अब तक भाजपा को इस बात से परेशानी जरूर हो रही थी कि अरविन्द केजरीवाल के इस तर्प पर वह निरुत्तर होने पर मजबूर होती थी कि क्या मोदी दिल्ली के मुख्यमंत्री बनेंगे। जहां किरण बेदी के आने से भाजपा मजबूत होगी वहीं देखना यह भी होगा कि भाजपा की दिल्ली इकाई में जो गुटबाजी है क्या वह समाप्त हो जाएगी? अंदर खाते कई दिग्गज किरण का विरोध भी करेंगे और अपनी कुर्सी खिसकती देख बेचैनी भी होगी। इसी क्रम में आप अपनी ओर से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उन संभावित उम्मीदवारों का नाम उछाला करती थी जिनके चेहरे केजरीवाल के सामने फीके पड़ते थे और केजरीवाल की तरह करिश्माई और चमकदार नहीं लगते थे। अब चेहरों की लड़ाई में मोदी-शाह-बेदी बनाम केजरीवाल में भाजपा का पलड़ा भारी होता दिख रहा है और आप के सामने चुनौती देने की पोजीशन में भाजपा आ गई है। दिल्ली की जनता की नजरों में किरण बेदी की छवि, काबिलियत और लोकप्रियता किसी लिहाज से केजरीवाल से कम नहीं है। उनका महिला होना भी बड़ा प्लस प्वाइंट है। अपनी पूर्व साथी रही किरण बेदी अगर केजरीवाल के चिट्ठे खोलने लगीं तो केजरीवाल को जवाब देना भारी पड़ेगा। कह सकते हैं कि चेहरे की लड़ाई में पिछड़ रही भाजपा ने किरण बेदी को लाकर अपनी स्थिति न केवल संतुलित की है बल्कि यह दाव दिल्ली में उसे निर्णायक बढ़त भी दिला सकता है। पर जैसा मैंने कहा कि बेदी के आने से भाजपा के दिल्ली दिग्गजों के सीने पर सांप जरूर लोट रहा होगा जो बाहर से थोपे गए सीएम उम्मीदवार दावेदार को रोकने में अंदर खाते ऐड़ी-चोटी का जोर लगा सकते हैं। कुल मिलाकर भाजपा का यह मास्टर स्ट्रोक है।

Friday, 16 January 2015

आतंकियों के पैरोकार अकालियों और भाजपा का रास्ता अलग होगा

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा अकाली दल के बीच जैसे तलवारें खिंच रही हैं, दोनों दल एक-दूसरे से आगे निकलने की  जुगत में  लगे हैं उससे लगता यह है कि जल्द यह गठबंधन टूटने वाला है। अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा शासित राज्यों जैसे राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में मादक पदार्थों की खेती तथा उत्पादन को बंद करने की चुनौती दी है। बादल यह भी चाहते हैं कि तस्करी कर पंजाब लाए जा रहे मादक पदार्थ के मुद्दे को वह पाकिस्तान के समक्ष उठाएं। यही नहीं, यह सर्वविदित है कि पिछले लगभग तीन दशकों में भारत आतंकवाद का किस कदर शिकार रहा है और इस अवधि में देश को जनधन की कितनी व्यापक हानि उठानी पड़ी है। अब भी आतंकी वारदातों की आशंका में देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं। ऐसे में अब तक हमारे राजनेताओं को यह बात समझ आ जानी चाहिए थी कि अतिवाद, अलगाववाद और आतंकवाद के प्रति दिखाई गई थोड़ी भी नरमी देश और समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। लेकिन अफसोस है कि आतंकवाद का लंबा दौर देखने वाले पंजाब की अकाली सरकार अपने क्षुद्र सियासी स्वार्थों के लिए आतंकियों की पैरवी करती दिख रही है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह  बादल ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर मांग की है कि उनके जेलों में बंद 13 आतंकियों को रिहा कर दिया जाए। साफ है कि यह कोशिश सियासी फायदे के लिए पंजाब में मौजूद अतिवादी तत्वों को खुश करने की कवायद है। हैरत की बात है कि जिन आतंकियों की रिहाई की मांग हो रही है उनमें वह आतंकी भी शामिल हैं जिन्हें पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के अपराध में ताजिंदगी कैद की सजा सुनाई गई है और जिनका जेल की सुरंग खोदकर फरार हुए एक साथी 10 साल बाद थाइलैंड में पकड़ा गया है। साफ है कि बादल सरकार आग से खेलने की कोशिश कर रही है। बादल का ड्रग्स मामले में भी स्टैंड समझ से बाहर है। हाल में प्रधानमंत्री ने रेडियो संबोधन में पंजाब में तेजी से पांव पसारती मादक पदार्थों की समस्या का उल्लेख किया था, जो बात अकाली दल को नागवार गुजरी है। इसके अलावा पंजाब के राजस्व मंत्री विक्रम सिंह मजीठिया से प्रवर्तन निदेशालय ने चार घंटे से ज्यादा समय तक पूछताछ की। उन पर 6000 करोड़ रुपए के नशा तस्करी गिरोह के कथित काला धन को सफेद करने के मामले में संलिप्तता का आरोप लगाया गया है। अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत का स्वाद चखने के बाद भाजपा पंजाब में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बड़ी भूमिका का मन बना चुकी है। 117 सीटों वाली विधानसभा में अकाली दल अब तक भाजपा को चुनाव  लड़ने के लिए 23 सीटें देता रहा है। आगामी चुनाव में भाजपा यहां अकेले उतरने का मन बना रही है। भाजपा-अकाली दल की वही स्थिति है जैसी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा-शिवसेना की थी। भाजपा तथा उसके नेता का कहना है कि वह पंजाब में अकाली दल के साथ या बिना कुछ बड़ा करने की तैयारी कर रहे हैं। जैसे संकेत मिल रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अगला विधानसभा चुनाव भाजपा अपने बूते पर ही लड़ेगी।

-अनिल नरेन्द्र

जॉन केरी की पाकिस्तान को हिदायत व नसीहत

भारतीय थलसेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने नई दिल्ली में इस बात का तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत किया है कि पाकिस्तान में आतंक का ढांचा अभी भी कायम है। ठीक लगभग यही बात इस्लामाबाद में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी कही है। केरी ने दो टूक कहा कि पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार को उन सभी दहशतगर्द गुटों से लड़ना होगा जो अफगान, भारतीय और अमेरिकी हितों के लिए खतरा बने हुए हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री ने आतंकी संगठनों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुके पाकिस्तान को आतंकवाद से निपटने के उसके तरीके को लेकर सख्त हिदायत दी है। अब तक अच्छे और बुरे आतंकवाद की नीति पर चल रहे पाकिस्तान से अमेरिका ने दो टूक कहा है कि भारतीय उपमहाद्वीप में शांति स्थापित करने के लिए उसे लश्कर--तैयबा, तालिबान और हक्कानी संगठन नेटवर्कों सहित सभी आतंकी संगठनों पर नकेल कसनी होगी। भारत दौरे के बाद इस्लामाबाद पहुंचे अमेरिकी विदेश मंत्री केरी ने कहा कि यह सभी आतंकी संगठन खुद पाकिस्तान के साथ-साथ भारत और दुनिया के लिए भी खतरा हैं। केरी ने खासतौर पर लश्कर और हक्कानी नेटवर्प का जिक्र इस पृष्ठभूमि में किया कि पेशावर हमले के बाद तालिबान पर कार्रवाई का इरादा तो पाक सरकार ने दिखाया लेकिन उपरोक्त दोनों गुटों के प्रति उसका दोहरा रुख कायम है। अमेरिकी विदेश मंत्री की यह पाकिस्तान यात्रा कई मायनों में खास है। इसका सबसे बड़ा महत्व यह है कि अभी-अभी अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता पैकेज स्वीकृत किया है और कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तानी सेना के लिए एक अरब डॉलर की सहायता पैकेज भी स्वीकृत किया था। अमेरिकी जनता और सत्ता प्रतिष्ठान में पाकिस्तान को आर्थिक सहायता दिए जाने का काफी विरोध था। सहायता के लिए शर्तें तय करने की खातिर केरी-लुगर कानून बनाया गया था, जिसके एक प्रस्तावक खुद जॉन केरी थे। इस कानून के मुताबिक हर साल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के कामकाज की समीक्षा के बाद ही पाकिस्तान को सहायता दी जा सकती है। अमेरिका में पाकिस्तान के विरोधियों का कहना है कि पाकिस्तान सरकार दोहरा खेल, खेल रही है। वह आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा करती है लेकिन अंदर ही अंदर उनसे मिली हुई है। पाकिस्तान के इस दोहरे खेल के प्रति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सतर्प करने में भारत सफल रहा है। इसीलिए जॉन केरी ने पाकिस्तान को सभी आतंकवादी गुटों को परास्त करने की उसकी जिम्मेदारी के प्रति आगाह किया और याद दिलाया कि भारत से बेहतर रिश्ते रखना खुद उसके फायदे में है। इस सन्दर्भ में फ्रांस में हाल में हुए आतंकी हमलों का जिक्र कर केरी ने साफ संदेश दे दिया है कि अब दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है। हम उम्मीद करते हैं कि दोनों अमेरिका और पाकिस्तान इस डबल गेम को समाप्त करेंगे और स्थिति की गंभीरता को समझेंगे।

Thursday, 15 January 2015

श्रीलंका के राजपक्षे का दाव उलटा ही पड़ा

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने छह साल के तीसरे कार्यकाल के लिए जीत की उम्मीद में तय समय से दो साल पहले ही राष्ट्रपति पद का चुनाव कराने का फैसला किया था। लेकिन वह तब हैरान रह गए जब पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मैत्रीपाला सिरिसेना चुनाव कराने के फैसले के एक दिन बाद ही सरकार छोड़कर राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार बन गए। राजपक्षे चुनाव हार गए और सत्ता सिरिसेना के हाथ आ गई। महिंद्रा राजपक्षे लगता है कि अपने एक दशक लंबे शासन के विरुद्ध पनप रही लोगों की नाराजगी और विपक्ष की साझा रणनीति का अंदाजा नहीं लगा पाए। तमिल लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के खिलाफ की गई भीषण सैन्य कार्रवाई के बाद से तमिल बहुल क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के निशाने पर थे। मगर 25 वर्ष चले गृह युद्ध की समाप्ति के बाद हुए 2009 के चुनाव में सिंहली बहुसंख्यकों के दम पर राजपक्षे दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। श्रीलंका में आए परिणाम का अनुमान लगाना कठिन था। महिंद्रा राजपक्षे को अपनी राजनीतिक शक्ति में इतना भरोसा था कि उन्होंने समय से दो साल पहले राष्ट्रपति चुनाव कराने का फैसला किया, लेकिन चुनाव की सारी दिशा उस समय  बदल गई जब उनके मंत्री सिरिसेना ने पाला बदल लिया। सिरिसेना भी राजपक्षे की ही तरह ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं, सिंहली हैं, उन्होंने लिट्टे के खिलाफ लड़ाई के आखिरी दौर में सैन्य प्रबंधन में खास भूमिका निभाई थी और कुल मिलाकर साफ छवि के नेता हैं। इससे वह राजपक्षे के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हुए। श्रीलंका में राजपक्षे की हार से तमिलनाडु की पार्टियां खुश हैं। तमिल राजपक्षे को 2009 में तमिलों के विरुद्ध युद्ध अपराधी का दोषी मानते हैं। डीएमके सुप्रीमो एम. करुणानिधि ने कहा कि उनकी पार्टी युद्ध अपराध के आरोपों की अंतर्राष्ट्रीय जांच की मांग करेगी। माना जा रहा है कि सिरिसेना की जीत से भारत और श्रीलंका के संबंधों में मजबूती आएगी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बधाई संदेश में कहा, मैं श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को बधाई देता हूं। साथ ही बधाई  उनको भी देना चाहूंगा, जिन्होंने शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को संभव बनाया। राजपक्षे का दूसरा कार्यकाल कुनबापरस्ती और भ्रष्टाचार की मिसाल बन गया। हालत यह थी कि देश के पांच प्रमुख मंत्रालय राजपक्षे और उनके भाइयों के पास थे, जिनकी देश के बजट में 75 फीसदी की हिस्सेदारी होती है। लेकिन बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लोगों की नाराजगी उनके राज के लिए आखिरी कील साबित हुई। सिरिसेना के राष्ट्रपति बनने से बड़ा परिवर्तन श्रीलंका की विदेश नीति में दिख सकता है। नए राष्ट्रपति की जीत में तमिल वोटरों का महत्वपूर्ण योगदान है, अत अनुमान लगाया जा सकता है कि सिरिसेना की सरकार तमिल हितों और भारतीय संवेदनशीलताओं का उचित ख्याल रखेगी। कुल मिलाकर श्रीलंकाई जनादेश का संदेश यह है कि बहुसंख्यक वर्चस्व और सैन्य शक्ति के सहारे खुद को महफूज नहीं रखा जा सकता। यह उत्साहवर्द्धक घटनाक्रम है।

-अनिल नरेन्द्र

इस तरह दल-दल में फंसी कांग्रेस बाहर नहीं निकल सकती

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपने अच्छे दिनों की उम्मीद कर रही थी पर एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। एक-एक करके कांग्रेस के सारे किले ध्वस्त हो गए। वोट प्रतिशत भी घटा और सीटें भी। इन शर्मनाक प्रदर्शनों के बाद उम्मीद यह की जा रही थी कि कांग्रेस नेतृत्व गंभीर होगा और उन मुद्दों पर गंभीरता से आत्मचिंतन करेगा जिसकी वजह से इतनी पुरानी पार्टी धरातल पर आ गई है। मंगलवार को पार्टी की सर्वोच्च संस्था कांग्रेस कार्यसमिति की पार्टी मुख्यालय में करीब पौने चार घंटे मैराथन बैठक हुई पर नतीजा वही ढाक के तीन पात निकले। पार्टी के गिरते ग्राफ को देखते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को खुद पार्टी की उतरी हुई गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने की कवायद में जुटना पड़ा। मगर कांग्रेस नेतृत्व बुनियादी सवाल पर अभी भी ध्यान नहीं दे रहा है। वह है पार्टी के नीतिगत निर्णयों में लोकतंत्रीकरण। आजादी के करीब सात दशक बाद भी फैसले ऊपर से थोपे जाते हैं। चाहे प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति का मामला हो या जिला अध्यक्षों की, फैसला ऊपर से ही होता है। सभी सांगठनिक फैसलों पर अधिकार गांधी परिवार या उसके किसी निकट व्यक्ति के हाथ में होता है। टिकट बंटवारे से लेकर मंत्रालयों तक का बंटवारा गांधी परिवार करता है। निचली इकाइयां यहां तक कि प्रदेश इकाई तक को कई बार कुछ खबर ही नहीं होती और फैसला ले लिया जाता है। ऐसे में कांग्रेस में चापलूसों का राज कायम हो चुका है। आत्म सम्मान से भरे जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की कोई सुनवाई नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह के विजयी रथ के सामने सुस्त कांग्रेस को ऑक्सीजन देने की कार्यसमिति की बैठक से उम्मीद की जा रही थी। दुख से कहना पड़ता है कि मोदी सरकार के खिलाफ और अपनी मजबूती के लिए कांग्रेस की सर्वोच्च संस्था सीडब्ल्यूसी कोई भी कारगर रणनीति बनाने में नाकाम रही। मैराथन बैठक बिना किसी ठोस नतीजे पर पहुंचे समाप्त हो गई। केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाने और पार्टी की फिर से वापसी कराने के जितने भी सुझाव कार्यसमिति के सदस्यों के आए उन पर इतने अंतर्विरोध सामने आए कि बैठक बिना कोई प्रस्ताव पारित किए ही समाप्त करनी पड़ी। पार्टी की मजबूती और आधार बढ़ाने के लिए एक सुझाव आया कि संगठन की सदस्यता बढ़ाने के लिए दूसरे दलों की तर्ज पर कांग्रेस को भी ऑनलाइन आवेदन भरवाने चाहिए लेकिन इसके दुप्रभाव होने के दूसरे नेताओं के इतने तर्प आए कि इसे भी विचाराधीन सूची में डाल दिया गया। इसी तरह जब भूमि अधिग्रहण कानून के बदलाव का विरोध करने की बात आई तो कुछ सदस्यों ने कहा कि इस पर ज्यादा आक्रामकता दिखाना ठीक नहीं है क्योंकि कुछ किसान ऐसे भी हैं जो चार गुणा मुआवजे के बदले खुशी-खुशी अपनी जमीन सरकार को देने को राजी हैं। इसके बदले ज्यादातर सदस्य किसानों की उपज का सही दाम दिलवाने, बीज, खाद आदि की समस्याओं को प्रभावी ढंग से उठाने के पक्ष में दिखे। यहां तक कि राहुल गांधी को कांग्रेस की बागडोर सौंपने की मांग भी बैठक में इसलिए नहीं उठी क्योंकि काफी सदस्य इसके विरोध में आवाज उठा सकते थे। कुल मिलाकर महज लीपापोती करके कार्यसमिति की बैठक समाप्त हो गई। इस तरह तो दल-दल में फंसी कांग्रेस बाहर नहीं निकल सकती।

Wednesday, 14 January 2015

कहानी दुनिया की सबसे कम उम्र की मोस्ट वांटेड महिला की

फ्रांस में तीन दिन के आतंकी हमले में 10 पत्रकारों समेत 20 लोगों के मारे जाने के बाद पेरिस में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। पेरिस में 800 सैनिकों को भी तैनात किया गया है। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलोंद ने चेतावनी दी है कि खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है। ओलोंद ने शनिवार को कैबिनेट की इमरजैंसी मीटिंग की। रविवार को पेरिस एकता मार्च हुई जिसमें जर्मनी  की अंगेला मार्केल ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन समेत कई बड़े नेताओं के साथ ही हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। सुपर स्टोर में मारे गए अश्वेत आतंकी की गर्लफ्रैंड हयात बोथेदिएन अब भी फरार है। आतंक के इस चेहरे को 88 हजार सुरक्षाकर्मी ढूंढ रहे हैं। हयात बोथेदिएन उम्र 26 साल इस समय दुनिया की सबसे कम उम्र की आतंकी बन गई है। पेरिस के आतंकी हमले में शामिल 32 साल के अमेदी कौली बेली की पत्नी है। अमेदी तो दोनों कुवाची भाइयों के साथ मुठभेड़ में ढेर हो गया, मगर हयात पूरे मुल्क के सुरक्षा बलों को चकमा देने में कामयाब रही। उसके बारे में विरोधाभासी रिपोर्टें आ रही हैं। वह सुपर मार्केट में बंधक बनाए जाते वक्त अमेदी के साथ ही थी। वहीं से बंधकों के बीच से बच निकली। दूसरी वह टर्की होकर सीरिया भाग गई। दो जनवरी को इस्तांबुल का उसका टिकट कटा था। गुरुवार को वह सीरिया पहुंच चुकी थी। 1988 में जन्मी हयात सात भाई बहनों में एक थी। 1994 में उसकी मां की मृत्यु हो गई। बाप मोहम्मद एक डिलीवरी ड्राइवर था। बच्चों की परवरिश की हैसियत नहीं थी। इसलिए बच्चों को एक केयर सेंटर में भेजा। अल्जीरिया मूल की हयात अपना सरनेम ऐसा रखती है जिससे उसकी पहचान फ्रेंची हो। उसने कैशियर की नौकरी की। इसी नौकरी के दौरान वह अमेदी के सम्पर्प में आई। 2009 में दोनों ने धार्मिक रीति-रिवाज से शादी की। मगर शादी का यह तरीका फ्रांस में कानूनन मान्य नहीं है। हयात अब बुर्के में नजर आई। यही नकाब उसकी नौकरी ले डूबा क्योंकि फ्रांस में बुर्का पहनने पर मनाही है। इस्लाम में उसका रुझान अमेदी से रिश्ते के  बाद ही बढ़ा। उसने कई किताबें पढ़ीं और जेहादी गतिविधियों की जानकारी हासिल की। 2010 में अलकायदा से जुड़े एक आतंकी डजमेल वफेल से भी वह मिली। वफेल का दावा था कि वह अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन से मिला था। एक जंगल में बुर्के में निशानेबाजी करते हुए उसकी सारी तस्वीरें इसी दौरान की हैं। हाल ही में मलेशिया घूमकर आई थीं। उसका पति अमेदी किशोर उम्र से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था। 10 बहनों के बीच वह अकेला भाई था। 17 साल की उम्र में ड्रग और डकैती के कारनामों में उसका नाम दर्ज है। 2001 में जेल गया था और कैद के दौरान ही उसने इस्लाम कुबूल किया। वहीं शरीफ कुवाची के सम्पर्प में आया। फ्रांस के चीफ प्रॉसीक्यूटर फ्रांस्कोज मॉलिस ने बताया कि कुवाची की बीवी इजाना से हयात के बीच 500 फोन कॉल्स की डिटेल्स है। हयात अपने पिता से एक ही साल पहले मिली थी। हज के लिए मक्का जाने के वक्त। तीन दिन पहले टीवी पर उसकी तस्वीरें आने से पहले पड़ोसियों को भी उसकी गतिविधियों का कोई अंदाजा नहीं था। यह है फ्रांस की मोस्ट वांटेड आतंकी हयात बोथेदिएन की कहानी।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली में बजी चुनाव की रणभेरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की लोकप्रियता का बड़ा इम्तिहान अगले महीने दिल्ली में होगा जब विधानसभा की 70 सीटों के लिए सात फरवरी को वोटिंग होगी और 10 फरवरी को नतीजे आएंगे। करीब एक साल से राष्ट्रपति शासन से काम चला रही राजधानी में मुख्य मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच माना जा रहा है। लेकिन सोमवार को दिल्ली कैनटोनमेंट बोर्ड के चुनाव के संकेत मानें तो कांग्रेस को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। यह पहली बार है जब चुनाव आयोग ने चुनाव की तैयारी के लिए सबसे कम वक्त दिया है।  पिछले चुनावों में प्रचार के लिए 40 से 60 दिन मिले थे लेकिन इस बार 25 दिन में ही उम्मीदवारों को जनता का दिल जीतना होगा। आज के हालात के अनुसार आम आदमी पार्टी नम्बर वन पर चल रही है। वह सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। उसके उम्मीदवारों ने कई दिन पहले प्रचार भी करना शुरू कर दिया। दूसरी ओर भाजपा ने अभी तक न तो यह संकेत दिया है कि अगर वह चुनाव जीतती है तो उसका मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा और न ही एक भी प्रत्याशी का नाम घोषित किया है। भाजपा के अंदर इतनी गुटबाजी है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह को खुद कमान संभालनी पड़ेगी और हरियाणा व महाराष्ट्र की तर्ज पर चुनाव लड़ना पड़ेगा। भाजपा के लिए दिल्ली में वह वातावरण नहीं है जो लोकसभा चुनाव के समय था। इसका एक सबूत है कि हाल ही में हुई नरेंद्र मोदी की रैली। इसमें मुश्किल से 25 से 30 हजार आदमी थे और उनकी स्पीच में भी दम नहीं था। रही-सही कसर मोदी ने अरविन्द केजरीवाल पर सीधा हमला करके उन्हें हीरो बना दिया। दिल्ली की जनता भाजपा से हताश है क्योंकि एक साल के करीब राष्ट्रपति शासन में उसकी कोई भी समस्या का समाधान नहीं हो सका। बिजली, पानी, लचर कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य व बेरोजगारी किसी भी मोर्चे पर केंद्र सरकार कामयाब होती नहीं दिखी। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनकर महंगाई आज भी लोगों की चिंता का कारण बनी हुई है। रोजमर्रा की जरूरत की चीजें, खासतौर पर सब्जियों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर हम बिजली की बात करें तो आप ने सत्ता में  आने के बाद बिजली के बिल 50 फीसदी तक कम कर दिए थे। हालांकि अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफे के बाद बिजली बिलों पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया गया। हालांकि केंद्र ने अब 400 यूनिट तक बिजली का उपयोग करने वालों को सब्सिडी देना शुरू किया है। जल आपूर्ति के मोर्चे पर दिल्ली हर रोज 172 एमजीडी पानी की किल्लत झेलती है। द्वारका जैसे इलाकों में यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है जहां लोगों को निजी टैंकरों को खरीद कर काम चलाना पड़ रहा है। 2013 में दिल्ली में अपराध 99 प्रतिशत तक बढ़ गए जबकि सिर्प 30 फीसदी मामले ही सुलझ पाए। 2014 में यहां रेप के दो हजार से अधिक मामले दर्ज हुए जो 2013 के मुकाबले में 30 फीसदी ज्यादा हैं। हर तरह के अपराध बढ़े हैं। हालांकि इसका शायद ही दिल्ली चुनाव पर असर पड़े पर भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में हुए छावनी परिषद चुनाव में करारी हार एक संकेत जरूर माना जाएगा। वाराणसी में भाजपा समर्थित सभी प्रत्याशी हार गए। इसके अलावा आगरा में भी भाजपा को करारा झटका लगा है जहां पार्टी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा गया था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल्ली की जनता को स्पष्ट वोटिंग करनी चाहिए। वह जिस पार्टी को भी चाहें उसको पूर्ण बहुमत दे। दिल्ली में फिर त्रिशंकु चुनाव नहीं होना चाहिए। 1993 में राज्य का दर्जा मिलने के बाद यहां हमेशा पूर्ण बहुमत वाली एक दलीय सरकार ही बनी और उसने हर बार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। सिर्प पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में तिकोना मुकाबला देखने को मिला और नतीजे में एक त्रिशंकु विधानसभा सामने आई। इसका दुष्परिणाम दिल्ली की जनता ने सहा। उम्मीद करते हैं कि सात फरवरी को होने वाले मतदान में दिल्लीवासी बढ़चढ़ कर भाग लेंगे और एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत देंगे।

Tuesday, 13 January 2015

राम रहीम, आसाराम बापू और रामपाल कानूनी शिकंजे में

आजकल फिर इन बाबाओं की चर्चा अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। रामपाल, राम रहीम और आसाराम बापू की लीलाओं का एक-एक करके पर्दाफाश हो रहा है। ताजा मामला डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम का है। अपने भक्तों को नपुंसक बनाने के मामले में सीबीआई ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है। मालूम हो कि पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने डेरे के पुराने अनुयायी हंसराज चौहान की याचिका पर इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राम रहीम के डेरे के अंदर लगभग 400 लोगों को नपुंसक बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि डेरे के अंदर डाक्टर खासकर इस काम के लिए रखे गए हैं और गुरमीत राम रहीम उनकी मदद से अपने अनुयायियों को नपुंसक बनाता है। 400 अनुयायियों को ईश्वर से मिलाने के नाम पर नपुंसक बनाने के आरोप को सीबीआई द्वारा जांच करने को रुकवाने के लिए राम रहीम ने पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी पर एकल जज ने 24 दिसम्बर के हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करने से मना कर दिया और राम रहीम की याचिका को खारिज कर दिया। एक श्रद्धालु युवती से बलात्कार के आरोपी कथावाचक आसाराम बापू को उच्चतम न्यायालय से भी राहत नहीं मिली और उन्हें फिलहाल जेल में ही रहना पड़ेगा। आसाराम सितम्बर 2013 से ही जोधपुर जेल में बंद हैं। एक नाबालिग लड़की ने अगस्त 2013 में आसाराम पर आरोप लगाया था कि कथावाचक ने उसके साथ जोधपुर के आश्रम में  बलात्कार किया था। आसाराम ने अपनी बीमारी का हवाला देकर जोधपुर जेल से जमानत पर रिहा करने का उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था। उसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य की जांच एम्स में कराने का आदेश दिया था। एम्स के मैडिकल बोर्ड ने न्यायालय में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें उसने कहा है कि आसाराम को फिलहाल सर्जरी की जरूरत नहीं है। रोहतक की एक अदालत ने करौथा में हत्या के मामले में जमानत नहीं मिलने के बाद अब धोखाधड़ी के मामले में ही पहले जमानत की याचिका देने वाले राम सिंह ने भी अपनी जमानत से मना कर दिया है। इसके चलते रामपाल की जमानत याचिका खारिज हो गई है। अगली पेशी 21 जनवरी को होगी। गौरतलब है कि वर्ष 2006 में करौथा आश्रम के विवाद के बाद कमला नामक महिला ने कोर्ट में याचिका देकर कहा था कि करौथा सतलोक आश्रम के संचालक रामपाल ने धोखाधड़ी से उसकी जमीन पर कब्जा कर लिया है। इस पर पुलिस ने इस मामले में रामपाल पर केस दर्ज कर लिया था। रामपाल के वकील ने इस मामले को खारिज करने की याचिका लगाई थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। धर्म के नाम पर इन बाबाओं ने जो गोरखधंधा चला रखा है उसका पर्दाफाश होना ही चाहिए। पिछले दिनों अदालत ने यहां तक कहा था कि इन डेरों की बारीकी से जांच होनी चाहिए और पुलिस प्रशासन यह पता लगाए कि इन डेरों में कितने और किस किस्म के हथियार छिपा रखे हैं। याद रहे कि रामपाल के सतलोक आश्रम में कई दिनों तक पुलिस और रामपाल के अनुयायियों में संघर्ष चलता रहा। अगर यह बाबा निर्दोष हैं तो अदालत में अपना पक्ष पेश कर निर्दोष साबित होंगे पर तब तक तो यह आरोपी ही हैं।

-अनिल नरेन्द्र