Friday, 30 October 2015

भगवान विष्णु को कैसे जगाएं ः सुप्रीम कोर्ट तय करे?

केरल का श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर अक्सर चर्चा में रहता है। दो हजार साल पुराने इस मंदिर की निगरानी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। कोर्ट के आदेश पर ही 2011 में मंदिर के तहखाने खोले गए थे। तब एक लाख करोड़ से ज्यादा की सम्पत्ति मिली थी। एक तहखाना अभी खोला जाना बाकी है। पिछले दिनों इस मंदिर को लेकर एक दिलचस्प बहस हुई। भगवान विष्णु को कैसे जगाया जाए और पहले उनकी पूजा कौन करे यह था बहस का मुद्दा। इसका फैसला भी लोग सुप्रीम कोर्ट से ही करवाना चाहते हैं। मंदिर में जारी रीति-रिवाज में हो रहे बदलावों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। इस हुई बहस में त्रावणकोर शाही परिवार की ओर से केके वेणुगोपाल और एमिकस क्यूटी के तौर पर गोपाल सुब्रह्मण्यम ने दलीलें पेश कीं। पर कोर्ट ने मुख्य पुजारी पर मामला छोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई जस्टिस टीएस ठाकुर और अनिल आर. दवे की अदालत में हुई। गोपाल सुब्रह्मण्यम ः भगवान विष्णु को जगाने के लिए मंदिर में वेंकटेश सुप्रभात श्लोक पढ़ा जाना जरूरी है। केके वेणुगोपाल ः भगवान चिरनिद्रा में हैं। इसे योग निद्रा कहा जाता है। उन्हें सुप्रभातम गाकर नहीं जगाया जा सकता। यह मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के खिलाफ है। जो रीति-रिवाज मंदिर की परंपराओं में शामिल नहीं रहे, उन्हें प्रशासनिक समिति लागू कर रही है। यह दुखद है। इसका बुरा असर पड़ेगा। सुब्रह्मण्यम ः आप ये श्लोक सुनिए। इसमें पद्मनाभस्वामी का जिक्र है। कौसल्या सुप्रंजा पूर्वासंध्या प्रवर्तते। उतिष्ठ  नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाहिकम्।। उतिष्ठोतिष्ठ गोविंद उतिष्ठ गरुड़ध्वज। उतिष्ठ कमलाकांत त्रैलोक्यं मंङ्गलं कुरु।। मातस्समस्त जगतां मधुकैटभारेः वक्षो विहारिणि मनोहरदिव्य मूर्ते। श्री स्वामिनि श्रितजनप्रिय दानशीले श्री वेंकटेशदयिते तव सुप्रभातम्।। वेणु गोपाल ः यह वेंकटेश सुप्रभातम है। तिरुमाला में भगवान विष्णु के अवतार वेंकटचलपति के लिए गाया जाता है। वहां भगवान की खड़ी प्रतिमा है। पर पद्मनाभस्वामी मंदिर में भगवान निद्रा में हैं। उन्हें जगाने के लिए वेंकटेश सुप्रभातम कैसे गाया जा सकता है? अदालत ः भगवान को किस श्लोक से जगाया जाए, यह आस्था का प्रश्न है। हम इसे कैसे तय कर सकते हैं? मंदिर के मुख्य पुजारी परमेश्वरन नंबूदरी ही इसका निर्णय करें। सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने कहा कि शाही परिवार को रोज पूजा के लिए आधा घंटा मिला है। पर मंदिर की प्रशासनिक समिति के मुखिया के एन सतीश इसे छुआछूत मानते हैं। इस पर कोर्ट ने कहाöसतीश क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित न हों। अंतिम फैसला आने तक शाही परिवार को पारंपरिक अधिकार मिलते रहेंगे। उनका सब कुछ तो हम ले चुके हैं। सिर्प पूजा करने को आधा घंटा छोड़ा गया है। आप उनसे यह भी छीनना चाहते हैं...उनके पुरखों ने ही मंदिर बनवाया है।

-अनिल नरेन्द्र

गीता भारत तो लौट आई पर कहानी में नया मोड़ आ गया है

कुछ महीने पहले बॉलीवुड की फिल्म बजरंगी भाईजान आई थी जिसके बाद पाकिस्तान में रह रही मूक-बधिर लड़की गीता की स्वदेश वापसी संभव हुई। लेकिन भारत की जमीन पर कदम रखने के साथ ही गीता की कहानी में एक नया मोड़ आ गया। बिहार के सहरसा के जिस महतो परिवार के फोटो को गीता ने अपने माता-पिता के तौर पर पहचाना था उन्हें जब उसने आमने-सामने देखा तो बिल्कुल नहीं पहचान सकी। बेटी को गले लगाने की तमन्ना लिए पिछले कई दिनों से दिल्ली में डेरा डाले जनार्दन महतो को भारी निराशा हुई। पाकिस्तान में करीब 15 साल तक रहने के बाद भारत की बेटी आखिरकार सोमवार को अपने वतन लौट आई। पाकिस्तान से ईदी फाउंडेशन के साथ गीता पीआईए के विमान से दिल्ली आई तो विदेश मंत्रालय और पाकिस्तानी उच्चायुक्त के वरिष्ठ अधिकारी उसका स्वागत करने हवाई अड्डे पर मौजूद थे। कोई डेढ़ दशक पहले हुई भटकन को उसकी मंजिल मिल गई, जब गूंगी-बहरी गीता भूलवश बॉर्डर पार कर गई थी। अगर अनजाने में सीमा पार की एक गलती को दरकिनार कर दें तो गीता प्रकरण की यह परिणति असाधारण कही जाएगी। इसमें उसकी परवरिश करने वाले गैर सरकारी संगठन ईदी, पाकिस्तान का भाईचारा निभाने वाला समाज और वहां के रेंजर व सरकार ने शानदार रोल प्ले किया है। इसके लिए उन सबका शुक्रिया। इसके साथ भारत सरकार भी बधाई की पात्र है जिसने संवेदनशीलता दिखाई। यह अच्छा हुआ कि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गीता की वापसी में पाकिस्तान सरकार की ओर से मिले सहयोग का न केवल जिक्र किया बल्कि उनका शुक्रिया भी अदा किया। तमाम कटुता और कूटनीतिक स्तर पर तनातनी के बावजूद दोनों देशों के बीच ऐसे रिश्ते बने रहने चाहिए और आम लोगों को किसी तरह की कोई कठिनाई न हो। गीता की वापसी के साथ ही एक ऐसे पाकिस्तानी किशोर का मामला सामने आया है जो एक अरसे से भारत में रह रहा है और किन्हीं कारणों से पाकिस्तान नहीं लौट सका है। ऐसे मामलों में सहानुभूतिपूर्वक फैसला करना जरूरी है। इस जरूरत की पूर्ति उन कैदियों के मामले में भी की जानी चाहिए जो सजा पूरी करने के बावजूद एक-दूसरे की जेलों में बंद हैं। दोनों देशों को उन मछुआरों के मामले में भी सहानुभूति दिखाने की जरूरत है जो भटक कर एक-दूसरे की सीमा लांघ जाते हैं। गूंगी-बहरी गीता की 15 साल तक देखभाल करने वाले कराची के ईदी फाउंडेशन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक करोड़ रुपए की डोनेशन देने की घोषणा की है। अभी इसमें थोड़ी कंफ्यूजन है कि ईदी फाउंडेशन ने उसे स्वीकार किया है या नहीं? डोनेशन पर कंफ्यूजन की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी अखबार डॉन ने ईदी फाउंडेशन के प्रवक्ता के हवाले से खबर दी कि संस्था ने डोनेशन लेने से मना कर दिया है। यह भी कहा गया कि संस्था की ओर से बाद में बयान भी दिया जाएगा। हालांकि देर शाम भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय अधिकारियों ने पुष्टि करने के लिए ईदी फाउंडेशन के प्रतिनिधियों से बात की थी और उन्होंने उन रिपोर्टों को गलत बताया कि फाउंडेशन ने डोनेशन लेने से मना किया है। प्रधानमंत्री ने सोमवार को एक करोड़ रुपए भेंट देने का ऐलान किया था। हालांकि गीता की वापसी भी राजनीति से अलग नहीं रह पाई। पाकिस्तान ने इसके बदले सैकड़ों कैदियों की रिहाई की मांग रख दी। यह भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कि एक तरफ तो वह गीता को वापस भेजकर मानवता का उदाहरण पेश करता है वहीं जम्मू-कश्मीर में रह-रहकर गोलाबारी से बाज नहीं आता। बेहतर हो कि पाकिस्तान ने गीता की वापसी को लेकर जैसी मानवता का उदाहरण पेश किया है वहीं वह भारत की अन्य क्षेत्रों में आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करे।

Thursday, 29 October 2015

हिंदू डॉन छोटा राजन की कहानी मुंबइया फिल्मों से कम नहीं

एक बार फिर सुर्खियों में है भारत के सबसे वांछित अपराधियों में से एक अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन। खबर आई है कि इंडोनेशिया पुलिस ने इंटरपोल के रेडकार्नर नोटिस के आधार पर बाली में उसे गिरफ्तार कर लिया है। वह पिछले दो दशक से फरार था। उसे जल्द ही वहां से भारत निर्वासित किया जाएगा। यह छोटा राजन कौन है? आज मैं इसकी कहानी बताऊंगा। छोटा राजन का असली नाम है राजेन्द्र सदाशिव निखलजे। वह 56 साल का है और उसका जन्म मुबंई में हुआ था। मुबंई में चेंबूर इलाके में तिलक नगर के एक मराठी परिवार में जन्म हुआ। 1980 की शुरुआत में उसने शाहकार सिनेमा में टिकटों की कालाबाजारी से अपने आपराfिधक जीवन की शुरुआत की। स्थानीय गिरोहों से होते झगड़ों के दौरान एक बार उसकी मुलाकात राजन नायर (बड़ा राजन) नामक व्यक्ति से हुई। निखलजे ने उसे अपना गुरू बनाया और उससे धंधे की बारीकियां सीखी। 1982 में बड़ा राजन को दक्षिण के मुंबई के एक इलाके में गोली मार दी गई। लिहाजा उस गिरोह का सरगना निखलजे बना और छोटा राजन के नाम से चर्चित हुआ। अपने बॉस की हत्या के बाद छोटा राजन ने सोने और चांदी की तस्करी करने वाले गिरोहों के साथ मिलकर खूब धंधा चमकाया। ये सभी तस्कर दाउद इब्राहिम के नाम पर छोटे-छोटे गिरोहों में काम करते थे। 1980 के मध्य में मुंबई पुलिस ने दाउद को पकड़ने के लिए अपना अभियान तेज कर fिदया। जगह-जगह छापेमारी शुरू हो गई। लिहाजा दाउद को मुंबई छोड़कर दुबई में शरण लेनी पड़ी। उसने अपने मुबंई के सभी कारोबार का जिम्मा छोटा राजन के दे दिया। राजन ने अपने नए बॉस के दिए दायित्व को उम्मीद से बेहतर करके दिखाया। पहले दाउद का सिंडिकेट भारत तक ही सीमित था। छोटा राजन ने संगठन को श्रीलंका और नेपाल तक  फैला दिया। इसी दौरान पुलिस की पकड़ से बचने के लिए छोटा राजन भी दुबई भाग गया। वहां वह दाउद का दाहिना हाथ बन गया। बॉलीबुड फिल्मों की तरह इस कहानी में एक नया ट्विस्ट 1992 से शुरू हुआ। 1992 में सुभाष ठाकुर नामक दाउद के गुर्गे ने राजन के तीन दोस्तों की हत्या कर दी। माना गया कि ये हत्याएं दाउद के इशारे पर हुईं। राजन और दाउद के रिश्तों में खटास तो आई पर तब भी दोनों साथ-साथ काम करते रहे। फिर हुई 1993 में मुंबई को दहलाने की साजिश। 1993 में मुंबई सीरियल विस्फोटों में 350 से अधिक लोगों की मौत हो गई। छोटा राजन ने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की। छोटा राजन ने कहा था कि धर्म के आधार पर अपराध का वह विरोधी है। इसी बीच दाउद और छोटा राजन के गैंग मुस्लिम और हिंदू आधार पर बंट गए। फासले इतने बढ़ गए कि दोनों एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गए। अलगाव के बाद दोनों ने एक-दूसरे पर हमले शुरू किए। इसी खूनी खेल में दोनों गैंग के सौ से अधिक गुर्गें मारे गए। माना जाता है कि दाउद गिरोह के बारे में सूचनाएं पहुंचाकर राजन भारत की खुफिया एजेंसियों की मदद भी करता रहा है। कहानी में फिर एक ट्विस्ट सन् 2000 में तब आया जब सितंबर में बैंकाक में राजन पर दाउद ने एक बड़ा जानलेवा हमला करवाया। पूरे हमले को दाउद के दायां हाथ समझे जाने वाले छोटा शकील ने अंजाम दिया। पिज्जा डिलीवरी करने वाले के रूप में गए दाउद के शूटरों ने होटल के कमरे में राजन पर हमला किया। इसमें राजन का हिटमैंन रोहित वर्मा और उसकी पत्नी मारी गई। घायल अवस्था में छोटा राजन होटल की पहली मंजिल से कूदकर भाग निकलने में कामयाब रहा। यह हमला दाउद को मंहगा पड़ा। छोटा राजन गिरोह ने 2001 में मुंबई में दाउद के दो सहयोगियों विनोद शैट्टी और सुनील सांसे को मौत के घाट उतार दिया। जनवरी 2003 में छोटा राजन गिरोह ने दुबई में दाउद के चीफ फाइनेंस मैनेजर शरद शेट्टी को गोलियों से भून दिया। यह दाउद के लिए बड़ा झटका था। अंडरवर्ल्ड को लेकर मायानगरी में बहुत सारी फिल्में भी बन चुकी हैं, लेकिन 2002 में रामगोपाल द्वारा बनाई गई फिल्म कंपनी में चंदू का किरदार छोटा राजन से पेरित था। इसी तरह 1999 में आई फिल्म वास्तव में संजय दत्त का किरदार भी राजन की जिंदगी के इर्द-गिर्द था। छोटा राजन को भारत लाने के लिए उच्चतम स्तरीय कोशिशें चल रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा रॉ और आईबी के अफसरों के साथ मिलकर तैयार रूप-रेखा के आधार पर इंडोनेशिया में जरूरी कार्रवाई चल रही है। भारत ने सोमवार को कहा कि इंडोनेशिया में गिरफ्तार किए गए अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन को स्वदेश लाने में दोनों देशों के बीच पत्यर्पण संधि का नहीं होना कोई रोड़ा नहीं है। छोटा राजन को भारत लाने के कई और रास्ते भी हैं। दोनों देशों के बीच हाल ही में किए गए एक करार के तहत छोटा राजन को भारत भेजा जा सकता है। यह करार कोर्ट वारंट के आधार पर अपराधियों के निर्वासन की अनुमति देता है। क्या राजन इंडोनेशियां में बिना अदालती कार्रवाई के इतनी आसानी से भारत जाने को तैयार हो जाएगा? इस सवाल पर खुफियां सूत्रों ने कहा कि तैयार हो जाना चाहिए। वह दो वजहों से तैयार हो सकता है। एक तो दाउद गिरोह उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा है और वह बाहर रहने की बजाए भारतीय कस्टडी में ज्यादा सुरक्षित होगा। दूसरे यह कि वह लंबे अर्सें से भारतीय एजेंसियों के संपर्प में रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 28 October 2015

विजयदशमी के दिन ही 90 साल पहले संघ की स्थापना हुई थी

विजयदशमी का दिन बृहस्पतिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए हर साल आने वाले इस विजय दिवस की तरह नहीं था। सितम्बर 1925 में दशहरे के दिन ही डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। आरएसएस ने 90 वर्ष की लंबी यात्रा तय कर ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र निर्माण में संघ के योगदान की सराहना करते हुए बधाई दी। अपने लंबे राजनीतिक सफर के दौरान संघ के प्रचारक रहे मोदी ने ट्विट कर कहाöदेश सेवा में समर्पित आरएसएस ने 90 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस मौके पर सभी स्वयंसेवकों को बधाई देता हूं। वर्ष 1925 में जब भारत अंग्रेजी हुकूमत के चंगुल में था तब विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना हुई थी। बमुश्किल 17 साथियों के साथ डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर के मोहित बाड़े में संघ की स्थापना की थी। हेडगेवार ने इतना ही कहा कि आज हम संघ का प्रारंभ कर रहे हैं। नागपुर के अखाड़े से तैयार हुआ आरएसएस आज विराट संगठन के रूप में खड़ा है। संघ के 91वें स्थापना दिवस पर यह संयोग ही है कि संघ शिक्षित, प्रचारक रह चुके नरेंद्र मोदी आज भारत के प्रधानमंत्री हैं। आरएसएस संविधान में साफ लिखा है कि हिन्दू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाना है। यह भी लिखा है कि संघ राजनीति से अलिप्त है। यह अलग बात है कि संघ से निकले स्वयंसेवकों ने ही भाजपा की स्थापना की। आज देश में आरएसएस की हजारों शाखाओं के जरिये हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का संदेश दिया जा रहा है। आरएसएस के पूरे दुनिया में करोड़ों स्वयंसेवक हैं और लाखों की संख्या में वो प्रचारक हैं जिन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर सर्वस्व आरएसएस के लिए लगा दिया। खुद हेडगेवार ने भी अविवाहित रहकर ही संघ को खड़ा करने का संकल्प लिया था। संघ ने अपने लंबे सफर में कई उपलब्धियां अर्जित कीं और प्रतिबंध का अपमान का घूंट भी दिया। राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया, संघ के दूसरे सर संघ चालक गुरु गोलवरकर को बंदी बनाया गया, फिर सम्पूर्ण देश में स्वयंसेवकों के सत्याग्रह का दौर शुरू हुआ जो बाद में सच साबित नहीं हुआ। 18 माह बाद संघ से प्रतिबंध हटा और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल का पत्र गोलवरकर को मिला। कुछ समय बाद गोलवरकर ने दिल्ली में पंडित नेहरू से मुलाकात भी की। हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व सर संघ चालक मोहन भागवत को इस शानदार उपलब्धि पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह इसी तरह देशहित को आगे बढ़ाते रहेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

गुलाम कश्मीर हो चाहे बलूचिस्तान हो पाक फिर हुआ बेनकाब

पिछले कुछ दिनों से एक बार फिर पाकिस्तान अखबारों की सुर्खियों में है। पर गलत कारणों से। तमाम दुनिया में पाकिस्तान की किरकिरी हो रही है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उस वक्त शर्मिंदा होना पड़ा जब अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में उनके भाषण के दौरान एक प्रदर्शनकारी घुस आया। शरीफ अमेरिकी थिंक टैंक यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में भाषण दे रहे थे। तभी अचानक एक प्रदर्शनकारी खड़ा होकर बलूचिस्तान की आजादी के नारे लगाने लगा। शरीफ ने जैसे ही भाषण शुरू किया श्रोताओं में से प्रदर्शनकारी हाथ में पोस्टर लेकर खड़ा हो गया। साथ ही उसने दावा किया कि अलकायदा के मारे जा चुके सरगना ओसामा बिन लादेन से शरीफ के दोस्ताना रिश्ते थे। फिर जब शरीफ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिले तो उन्हें ओबामा ने फटकार लगा दी। ओबामा ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया कि उसे बिना किसी भेदभाव के सभी आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और साथ ही उसने भारत-पाकिस्तान शांति वार्ता प्रक्रिया में अपनी किसी भूमिका से साफ इंकार करते हुए कहा कि जब तक दोनों देश मिलकर इसके लिए नहीं कहेंगे, तब तक अमेरिका की कोई भूमिका नहीं होगी। इसके अलावा अमेरिका ने भारत जैसा परमाणु समझौता किए जाने के संबंध में पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार की वार्ता करने से स्पष्ट रूप से इंकार करते हुए अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों को पूरी तरह गलत करार दिया। इधर बलूचिस्तान और गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई किस कदर जुल्म ढा रही है, इसकी सच्चाई बयां करते हुए एक और वीडियो शनिवार को सामने आया। वीडियो में वाकया गुरुवार का है, जब सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी कब्जे का विरोध करते हुए काला दिवस मनाया। नेशनल स्टूडेंट फैडरेशन के नेता मीर अफजाल सुलेहरिया की अगुआई में प्रदर्शनकारियों ने यातनाओं और शोषण का विरोध किया। सुलेहरिया ने गुलाम कश्मीर का मुख्यालय कहे जाने वाले मुजफ्फराबाद में एक सेमिनार को भी संबोधित किया। गौरतलब है कि पाकिस्तान ने अविभाजित जम्मू-कश्मीर पर 22 अक्तूबर 1947 को ही पहली बार हमला बोला था। खबरों के मुताबिक गुलाम कश्मीर में ऐसे विरोध प्रदर्शन अब आम हो रहे हैं। वीडियो में सुरक्षाकर्मी विरोध करने वालों पर बुरी तरह लाठियां बरसाते और लात-घूंसे चलाते नजर आ रहे हैं। भारत ने तो पहले भी कहा है कि ऐसे वीडियो पाक सेना और आईएसआई के कूर चेहरे का पर्दाफाश करते हैं। यह कश्मीर में पाक के अवैध कब्जे का दुष्परिणाम है। चाहे वह गुलाम कश्मीर हो चाहे बलूचिस्तान हो पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हो गया है।

Tuesday, 27 October 2015

उद्धव ठाकरे की भाजपा व मोदी सरकार को खरी-खरी

शिवसेना भारतीय जनता पार्टी की न केवल सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी ही है बल्कि दोनों की विचारधारा भी अधिकतर मामलों में मिलती-जुलती है पर पिछले कुछ दिनों से जिस तरीके से भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत कटाक्ष किए हैं उनसे दोनों पार्टियों में इतना तनाव हो गया है कि दोनों के संबंध टूटने के कगार पर पहुंच गए हैं। बीते शनिवार को महाराष्ट्र आए केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने शिवसेना के विरोध प्रदर्शन के तौर-तरीकों की आलोचना की थी क्योंकि शिवसेना ने पाकिस्तानी गायक गुलाम अली, पूर्व विदेश मंत्री (पाकिस्तान) खुर्शीद महमूद कसूरी और पाक क्रिकेट बोर्ड अध्यक्ष शहरयार खान का उग्र विरोध किया था। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शिवाजी पार्प की दशहरा रैली में भारतीय जनता पार्टी पर तीखे हमले बोले। उन्होंने कहा कि शिवसेना पाकिस्तान की आलोचना करती है तो भाजपा का पेट क्यों दुखता है? विपक्ष में रहने के दौरान पाकिस्तान पर हमला करने की बातें करने वाली भाजपा में अगर हिम्मत है तो पाकिस्तान में घुसकर दिखाए? उद्धव ने कई मुद्दे उठाए जिससे भाजपा का बैकफुट में आना स्वाभाविक है। उन्होंने बिना किसी का जिक्र किए कहा कि गाय पर क्यों, हिम्मत है तो महंगाई पर बोले जिसके लिए सत्ता में पहुंचे। भाजपा की घोषणा को खोखली बताते हुए ठाकरे ने ताना मारा। उन्होंने कहाöमंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे। महंगाई के मुद्दे पर भाजपा व केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए ठाकरे ने कहा कि कीमतें स्थिर क्यों नहीं रहतीं? महंगाई भड़क रही है मगर चर्चा गाय की हो रही है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों को सुरक्षा देने वालों को अभी तो दाल को सुरक्षा देना चाहिए। उद्धव ने कहा कि आखिर हिन्दू के बारे में क्यों नहीं बोला जाता है। किरण रिजिजू खुलेआम कहते हैं कि वह गौमांस खाते हैं, उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ता। उद्धव ने कहा कि स्याही फेंकने से नहीं बल्कि दादरी जैसी घटना से गर्दन शर्म से झुक जाती है। ठाकरे ने कहा कि उन पर प्रतिबंध की बात की जाती है, क्या सत्ता उनके बाप की है। उद्धव ने कहा कि सत्ता में अब कब तक रहेंगे यह उन्हें पता है। शिवसेना का नरेंद्र मोदी पर सबसे तीखा हमला बोला जब दादर में शिवसेना भवन के सामने एक पोस्टर लगाया गया जिसमें मोदी को ढोंगी बताया गया। विवाद होने के बाद मुंबई पुलिस ने पोस्टर हटा दिया। शिवसेना की ओर से लगाए गए इस पोस्टर में नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, शरद पवार समेत कई नेताओं के फोटो बाल ठाकरे के साथ हैं। पोस्टर में एक बड़ा फोटो भी है, इसमें मोदी बाल ठाकरे के आगे सिर झुकाए दिखे। इसके आगे लिखा है कि ढोंग करने वाले लोग भूल गए हैं वो दिन जब उन्हें बाला साहब ठाकरे के सामने इस तरह से झुकना पड़ता था। भाजपा समर्थकों का कहना है कि शिवसेना आजकल बेचैन है। राज्य में सत्ता के मेन स्ट्रोम में नहीं आ पाने से वह परेशान हैं। वह सरकार में जरूर है, लेकिन कुछ बड़े शहरों की नगर निगमों में उसका पहले जैसा दबदबा नहीं है। दूसरे अपने मंत्रियों को बहुत कम अधिकार देने की वजह से भी वह नाराज हैं। शिवसेना ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि बीफ पर जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में टंटा शुरू है। भाजपा गठबंधन वाले कश्मीर में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे बुलंद हैं। आग लगाने वाली आईएस के झंडे तक लहरा रहे हैं। हिन्दुओं को मारने की धमकियां दी जा रही हैं। इसे खुली आंखों से देखें और ठंडे दिमाग से सहन करें और अपनी स्वाभिमानी गर्दन पाकिस्तानी कसाइयों के सामने झुकाएं। अगर कोई सहिष्णुता के वेश में अराजकता और अधर्म आएगा। शिवसेना ने कहा कि पाकिस्तान हमारे जवान मार रहा है खून बहा रहा है। इसे रोकने में सत्ताधीशों को शिवसेना की मदद करनी चाहिए। मगर सत्ता के कारण मति बिगड़ जाती है और सौ बारामती हो जाती है। बता दें कि बारामती पहुंचकर जेटली ने वहां के विकास की तारीफ करते हुए कहा था कि ऐसी सौ बारामती हों तो देश के विकास में मदद मिलेगी। शिवसेना के गठन का यह 50वां वर्ष है। इसलिए इस बार शिवाजी पार्प में दशहरा रैली का आयोजन किया गया था। लोगों से पार्प खचाखच भरा हुआ था जिसमें उद्धव गरजे। उद्धव के स्टाइल से बाला साहब ठाकरे याद आ गए। वह भी इसी तरह बेबाक होकर बोलते थे। दरअसल भाजपा के खिलाफ शिवसेना के हमले दोनों पार्टियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के रूप में सामने आया है। भाजपा नेता गिरीश व्यास ने कहा कि अगर शिवसेना यह सोचती है कि जो सम्मान बाला साहब ठाकरे को प्राप्त था वही सम्मान उद्धव ठाकरे या आदित्य ठाकरे को मिलेगा तो यह उनकी भूल है। वहीं भाजपा नेता शायना एनसी ने कहा कि चुनाव के दौरान मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से कुछ लोग डरे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा कि दोनों पुराने सहयोगियों में रिश्ते टूटने की नौबत आए। हालांकि उद्धव ने महाराष्ट्र और केंद्र में गठबंधन टूटने की आशंकाओं को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि जब भी हम भाजपा की नीतियों के खिलाफ बोलते हैं तो हमसे पूछा जाता है कि हम राज्य सरकार कब छोड़ेंगे? हमें पता है कि सत्ता में कब तक रहना है। हम छोड़ेंगे लेकिन काम पूरा करने के बाद। उन्होंने कहा कि जैसे राम ने रावण के खिलाफ युद्ध छेड़ा था, वैसे ही पाकिस्तान के खिलाफ कदम उठाए जाने चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 25 October 2015

नेपाल की चीन परस्ती तनाव पैदा कर रही है

भारत-नेपाल के रिश्तों में हाल के दिनों में आई असहजता को दूर करने के लिए नेपाल के उपप्रधानमंत्री कमल थापा भारत आए। थापा ने कहा कि भारत के साथ जो भी गलतफहमियां थीं, वह दूर हो गई हैं। अपने तीन दिवसीय दौरे के आखिरी दिन सोमवार को स्वदेश रवाना होने से पहले थापा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे। सात प्रांतीय मॉडल वाले नए संविधान के विरोध में मधेशी और थारू समुदाय पिछले एक महीने से ज्यादा समय से सड़कों पर है और उसने सीमा पर नाकेबंदी कर रखी है, जिस वजह से भारत से नेपाल को खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर पेट्रोलियम पदार्थों की आवाजाही बुरी तरह प्रभावित हुई है। नेपाल कई बार कह चुका है कि वह चीन की तरफ से वस्तुओं की आपूर्ति के रास्ते खोलने की योजना बना रहा है। नेपाल की इस चीन परस्ती से ही भारत काफी नाराज है। नया संविधान बनने के बाद मधेशी आंदोलन को लेकर हो रहे भारत विरोधी प्रचार से केंद्र सरकार भी चिंतित है। भारत ने नेपाल से साफ-साफ कहा है कि वह अपनी आंतरिक समस्या का समाधान खुद करे। भारत में सभी का मानना है कि नेपाल में हो रहे आंदोलन से वह खुद निपटे, आंदोलनकारियों की वाजिब मांगों को सुलझाए। थापा को साफ उत्तर मिला कि सीमा पर नाकेबंदी मधेशी आंदोलन के कारण है। भारत के मालवाहक वाहनों को नेपाल के भीतर सुरक्षित ले जाने का जिम्मा नेपाल सरकार का है, भारत का नहीं। नेपाल उन्हें सुरक्षा दे तो सामान भेजने में कठिनाई नहीं होगी। नेपाली उपप्रधानमंत्री को मोदी से काफी अपेक्षाएं थीं, उनका मानना था कि मोदी विशेष हस्तक्षेप कर मामला सुलझा सकते हैं लेकिन मोदी ने नेपाली प्रतिनिधिमंडल को निराश किया। उन्होंने साफ लहजे में कहाöबताते हैं कि नेपाल एक संप्रभु राष्ट्र है, उसमें भारत सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। उन्होंने संकेतों में कहा कि नेपाल में भारत विरोधी प्रचार से चिंता स्वाभाविक है। चीन के प्रति नेपाल का अति झुकाव भारत को अच्छा नहीं लग रहा है। भारत ने तो उसे सहोदर मानते हुए सहयोग का हाथ बढ़ाया था लेकिन उस तरह का प्रतिसाद नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए था। मोदी ने यह भी कहा कि भारत पर मधेशी आंदोलन के सपोर्ट करने का आरोप गलत है। अब यह नेपाल को तय करना है कि उसे भारत का समर्थन व दोस्ती चाहिए या फिर चीन की?

-अनिल नरेन्द्र

क्या पवित्र ग्रंथ के अनादर के पीछे विदेशी हाथ है?

पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी एक सोची-समझी रणनीति के तहत की जा रही है। केंद्र सरकार ने इस अनादर की हालिया घटनाओं पर कथित विदेशी हाथ होने की खबरों का संज्ञान लेते हुए पंजाब सरकार से रिपोर्ट मांगी है। पवित्र ग्रंथ के अपमान में राज्यभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। पंजाब पुलिस ने मंगलवार को कहा था कि उसने गुरु ग्रंथ साहिब के कथित अपमान में संलिप्तता के आरोप में दा व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है। साथ ही पंजाब पुलिस ने दावा किया था कि दोनों आरोपियों को निर्देश और धन आस्ट्रेलिया और दुबई में मौजूद उनके आकाओं से मिल रहा है। जसविन्दर सिंह और रुपिन्दर सिंह को फरीदकोट जिले के बरगाटी गांव में सिखों के पवित्र ग्रंथ का अपमान करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने कहा कि दोनों भाइयों के फोन कॉल की जांच करने पर पता चला कि उन्होंने आस्ट्रेलिया तथा दुबई में रह रहे लोगों से बात की थी और इसकी जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित किया जाएगा। पंजाब में आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत सिंह मान ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर उनसे राज्य में शांति सुनिश्चित करने का आग्रह किया। गृहमंत्री ने उनकी बात धैर्यपूर्वक सुनी और उनसे कहा कि उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से बात की है और दोनों ने राज्य की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की है। पंजाब में सिखों के पवित्र ग्रंथ के अपमान की घटनाओं से चिंतित गृहमंत्री ने सोमवार को बादल से बात की और उन्हें इन घटनाओं से निपटने के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया। राजनाथ सिंह ने बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पंजाब में हालात तथा प्रकाश सिंह बादल से हुई बातचीत की जानकारी दी। इसमें कोई संदेह नहीं कि पड़ोसी मुल्क की खुफिया एजेंसी जो ऐसे कामों के लिए बदनाम है भारत में अस्थिरता फैलाने की पूरी कोशिश कर रही है। कहीं मांस के टुकड़े की अफवाह उड़ाई जाती है तो कहीं दलितों पर अत्याचार किया जा रहा है। सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है पर कटु सत्य तो यह भी है कि यह विदेशी खुफिया एजेंसी अगर अपने मंसूबों में कामयाब है तो इसके पीछे देश के अंदर ऐसे तत्वों का भी हाथ है जो इसकी मदद करते हैं। इन मामलों की तह तक जाना चाहिए ताकि पता लग सके कि देश के अंदर ऐसे जयचन्द कौन हैं? इनका पर्दाफाश होना जरूरी है। केवल यह कहने से, विदेशी हाथ है, समस्या का हल नहीं।

Saturday, 24 October 2015

सीबीआई की साख और विश्वसनीयता?

यह पहली बार नहीं जब किसी अदालत ने साक्ष्य के अभाव में किसी को आरोपों से बरी किया हो, लेकिन अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटन के कथित घोटाले में शामिल करार दिए गए पूर्व दूरसंचार सचिव श्यामल घोष को दोषमुक्त करते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने जिस तरह सीबीआई को फटकार लगाई वह कई गंभीर सवाल जरूर खड़े करती है। अदालत ने आरोपियों को बरी करते हुए सीबीआई की चार्जशीट को झूठा करार दिया और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। अदालत ने घोष और टेलीकॉम कंपनियों को बरी करते हुए कहा कि इन आरोपियों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं और इसके मद्देनजर इन्हें आरोपमुक्त किया जाना चाहिए। विशेष सीबीआई अदालत ने जांच एजेंसी को झूठी व घटिया चार्जशीट दाखिल करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। फिलहाल कहना कठिन है कि अदालत के आदेश का पालन कब तक और किस रूप में होगा, लेकिन यह अवश्य स्पष्ट हो रहा है कि संप्रग सरकार के समय में सीबीआई भ्रष्टाचार की जांच की बजाय मनमानी करने और यहां तक कि अदालत की आंखों में धूल झोंकने का भी काम कर रही थी। भारतीय राजनीति में विरोधी पार्टी या नेता को फंसाने या बदनाम करने के कैसे-कैसे षड्यंत्र रचे जाते हैं, किस तरह का दुप्रचार किया जाता है, सुप्रीम कोर्ट के हालिया कुछ फैसलों और टिप्पणियों से भी जाहिर होता है। खास बात यह है कि इन सभी मामलों में साजिश करने का आरोप कांग्रेस पार्टी पर लगता है। इनमें पहला मामला 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ा है जिस पर बृहस्पतिवार को फैसला देते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने न केवल सभी आरोपियों को बरी कर दिया बल्कि जांच एजेंसी सीबीआई की भूमिका पर बाकायदा नाराजगी जताते हुए जांच से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई को कहा। इसमें दिवंगत भाजपा के तत्कालीन मंत्री प्रमोद महाजन को भी बदनाम किया गया। दूसरा मामला गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट से जुड़ा है। खुद से जुड़े मामले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा करने की मांग को लेकर पेश हुए संजीव भट्ट की याचिका शीर्ष अदालत ने न सिर्प खारिज  ही की बल्कि उनकी नीयत और तौर-तरीके पर भी बहुत सख्त टिप्पणी की। अदालत ने यहां तक कहा कि संजीव भट्ट विपक्षी कांग्रेस, एनजीओ और मीडिया के कुछ लोगों से मिले हुए थे। तीसरा मामला चर्चित ताबूत घोटाले का रहा और यह एनडीए-एक सरकार से जुड़ा है। तब इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीस को इस्तीफा तक देना पड़ा था। लेकिन अब सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा साफ किया गया है कि ताबूत खरीदने में कोई अनियमितता नहीं हुई। दुखद यह है कि जिंदगीभर सादगी और ईमानदारी के लिए विख्यात जॉर्ज फर्नांडीस इस शारीरिक हालत में भी नहीं हैं कि खुद पर लगाए गए इस दाग के धुलने पर कोई प्रतिक्रिया दे सकें। सीबीआई की साख और विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

भारत-पाक झगड़े की जड़ कश्मीर नहीं आतंकवाद है

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वाशिंगटन में कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच फसाद की जड़ कश्मीर मसला है। जिओ टीवी ने शरीफ के हवाले से बताया कि अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी अमेरिकियों को संबोधित करते हुए कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच झगड़े की मुख्य वजह कश्मीर मसला है और इलाके में शांति और स्थिरता के लिए उसे सुलझाना होगा। हम मियां नवाज शरीफ को बताना चाहते हैं कि वह दुनिया को गुमराह करने से बाज आएं। भारत-पाकिस्तान के बीच सारे झगड़े-फसाद की जड़ है आतंकवाद। पाकिस्तान अपनी सरजमीं से आतंकवाद को बढ़ावा देता है। इन तथाकथित जेहादियों को न केवल धन, हथियार, ट्रेनिंग इत्यादि देता है बल्कि अपने कब्जे वाले कश्मीर से जिन्हें भारत के अंदर घुसपैठ कराकर यहां तोड़फोड़ करता है। आए दिन रिपोर्टें आती रहती हैं कि पीओके में आतंकवादी शिविर व ढांचा फल-फूल रहा है। इस प्रायोजित आतंकवाद की भारत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। हाल ही में दिल्ली में बीएसएफ ने अपनी स्वर्ण जयंती समारोह मनाया। समारोह में शहीद जवानों के परिवारों को सम्मानित किया गया। पिछले 50 सालों में अकेले बीएसएफ ने ही 9000 घुसपैठी आतंकियों को पकड़ा है और लगभग 2000 से अधिक को मार गिराया है। पाक प्रायोजित इस आतंकवाद से देश की सुरक्षा करने में बीएसएफ के 1537 अफसर व जवान मारे जा चुके हैं। इनमें से 1000 से अधिक तो अकेले जम्मू-कश्मीर में मारे गए। दो दिन पहले बारामूला जिले के तंगमर्ग इलाके में मुठभेड़ में एक आतंकी को मार गिराया जबकि इस दौरान तीन सैनिक घायल हो गए। इस महीने में ही आधा दर्जन से ज्यादा घुसपैठ की वारदातें हो चुकी हैं। इधर नवाज वाशिंगटन पहुंचे उधर ही अमेरिका की आतंकवाद एवं परमाणु अप्रसार की उपसमिति की अध्यक्षता करने वाले एक शीर्ष अमेरिकी सांसद ने कहा कि पाकिस्तान ने खुद को बार-बार धूर्त और धोखेबाज साबित किया है। कांग्रेस के सदस्य टेड पो ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को लिखे एक पत्र में कहा कि पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय या किसी भी अन्य प्रासंगिक बहुपक्षीय मंच पर असैन्य परमाणु समझौते का समर्थन करने के मामले में अमेरिका द्वारा किसी भी प्रकार का विचार-विमर्श किए जाने की बात करें तो पाकिस्तान का मौजूदा और पुराना रिकार्ड ध्यान में रखा जाए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने एक बार नहीं बार-बार स्वयं को धूर्त और धोखेबाज साबित किया है। पो ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान न केवल अफगानिस्तान में अमेरिकी बलों और उनके हितों पर हमला करने वाले आतंकियों को आश्रय देता है बल्कि उसने ईरान जैसे देशों से भी अपनी ईमानदारी साबित नहीं की।

Thursday, 22 October 2015

विदेश से ज्यादा काला धन तो देश में जमा है

जिस ढंग से इन सरकारी बैंकों में कालाधन विदेश भेजा जा रहा है उससे तो लगता है कि पता नहीं देश के अंदर कितना काला धन जमा है? एसआईटी के उपाध्यक्ष सेवानिवृत्त जस्टिस अरिजीत पसायत ने कहा कि देश में जमा काला धन की मात्रा विदेशें से काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि यदि काले धन के इस स्रोत को यहीं रोका जाए तो विदेशों में काला धन भेजने पर काफी हद तक रोक लग जाएगी। बैंक ऑफ बड़ौदा के (बीओबी) की दिल्ली स्थित शाखा के जरिए काला धन विदेश भेजने के खुलासे के बाद एसआईटी ने गत सप्ताह एजेंसियों के साथ समीक्षा बैठक की। उल्लेखनीय है कि बैंक ऑफ बड़ौदा से 6000 करोड़ रुपए विदेशों में भेजे जाने का मामला सामना आया है। मनी लान्ड्रिंग केस में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। सीबीआई ने फर्जी आयात के लिए भुगतान के नाम पर बैंको से लगभग 6000 करोड़ रुपए के कथिति कालेधन को हांगकांग भेजे जाने के सिलसिले में रविवार को 50 स्थानों की तलाशी ली। यह धन बैंक ऑफ बड़ौदा के जरिए हस्तांतरित किया गया था। सीबीआई ने कहा कि बैंक के एक अंकेक्षण में उसकी अशोक विहार शाखा से करीबन लेन-देन के 8000 मामलों की बात भी सामने आई है। हांगकांग के लिए कथित तौर पर ये भुगतान भेजने वाले खातादारों का दावा था कि काजू, चावल आदि के आयात के लिए अग्रिम के तौर पर ये भुगतान किए गए। जबकि इस तरह का कोई आयात कभी नहीं हुआ। काले धने के खेल में बैंक ऑफ बड़ौदा के बाद ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स समेत आठ बैंकों के नाम अब तक सामने आ चुके हैं। गाजियाबाद की ओबीसी बैंक शाखा के 66 खातों और सात निजी बैंकों के जरिए 11 फर्जी कपंनियों ने करीब 557 करोड़ रुपए हांगकांग भेजे। पवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गत बुधवार को हवाला कारोबारी संजय अग्रवाल समेत अन्य को गिरफ्तार करने के बाद गुरुवार को इसका पर्दाफाश किया। ईडी ने बताया कि संजय अग्रवाल मैसर्स पीआर फारेक्स फर्म की मिलीभगत से काम करता था। इन बैंकों में यह गोरखधंधा चल रहा है ः ओबीसी, यस बैंक, इंडसइंड, धन लक्ष्मी, कोटक मंहिद्रा, आईसीआईसीआई, आईएनजी वैश्य और डीसीबी। आरबीआई गर्वनर रघुराम राजन ने कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा मामले से यह सवाल उठ रहें हैं कि वर्तमान व्यवस्था में धोखा-धड़ी हो रही है, हमें इसे रोकने के उपाय करने होंगे, हम करेंगे। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा से पैसे भेजने का मामला कितना बड़ा है इसका पता सीबीआई, ईडी और एसएफआईओ की जांच के बाद पता चलेगा। पहले तो यह कहा गया था कि विदेश में भारत का इतना काला धन जमा है कि हर कोई एक कार खरीद सकता है। जब इस कालेधन को वापस लाने वाली मोदी सरकार की तीन महीने की योजना खत्म हुई उससे तो उसमें तो हर व्यक्ति के लिए एक आइस्कीम खरीदने लायक पैसा ही हाथ आया। सिर्प 2500 करोड़ ही वापस आ पाए। देश से विदेशें में पैसा जाने को तो रोको, बाहर से देश में लाना तो अलग मुद्दा है। 
    -अनिल नरेन्द्र


मुख्यमंत्री केजरीवाल के सुझाव का हम समर्थन करते हैं

बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी होनी चाहिए यह मांग पूरा देश तभी से कर रहा है जब से 16 दिसंबर को निर्भया कांड हुआ था। यह मांग भी तभी से उठती रही है कि जघन्य मामलों में नाबालिग की उम्र 18 से घटाकर 15 साल करनी चाहिए। याद रहे कि निर्भया कांड में मुख्य षड्यंत्रकारी इसलिए बच गया क्योंकि वह कुछ महीनें में कमी के कारण नाबालिग श्रेणी में आ गया था। मैंने बार-बार इसी कॉलम में यह लिखा है कि जब एक नाबालिग ऐसे जघन्य अपराध का प्लान कर सकता है, उसे अमलीजामा पहना सकता है तो उसे वही सजा मिलनी चाहिए जो बड़ी उम्र वालों को मिलती है। हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इस मांग का समर्थन करते हैं कि बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी हो और जघन्य अपराध में 15 साल से ज्यादा के आरोपी को बालिग माना जाए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को कहा कि अगर बलात्कार, हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले की उम्र 15 साल से अधिक है तो उसके साथ कानून बालिग की तरह निपटे और उसी तरह सजा मिले। सोलह साल के बाद बालिग घोषित किए जाने को लेकर जुवेनाइल एक्ट अभी संसद में लंबित है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की बैठक में अपराध कानूनों में संशोधन का पस्ताव तैयार करने के लिए मंत्री समूह (जीओएम) के गठन का फैसला किया गया। इसका मकसद महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के दोषियों को कठोर दंड दिलाना है। जीओएम नाबालिगों (बच्ची) के साथ बलात्कार के मामले में आरोपी को आजीवन करावास या फांसी की सजा को लेकर कानून व पावधानों का परीक्षण करने के बाद सुझाव देगा। अरविंद केजरीवाल ने बताया कि गृह और कानून विभाग को विभिन्न न्यायालयों में लंबित बलात्कार के मुकदमों की सूची बनाने का भी निर्देश दिया गया है ताकि दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश से सलाह कर जल्द से जल्द मामलों का निपटारा किया जा सके। जहां जघन्य अपराधियों को सख्त सजा देने की बात है वहीं यह भी जरूरी है कि ऐसे केसों का जल्द निपटारा हो। राजधानी में दिन पतिदिन रेप, गैंगरेप (विशेषकर बच्चियों से) की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। यह सियासी पार्टियां घटना होने पर आरोप-पत्यारोप की बौछार कर देती हैं और कुछ पदर्शन कर अपनी भड़ास भी निकाल लेती हैं, लेकिन इन घटनाओं को जड़ से रोकने की दिशा में कोई पयासरत नहीं है। बसंत विहार गैंगरेप मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है। मामले की चर्चा विदेशों तक में हुई। बावजूद इसके इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि आखिरी फैसला क्यों नहीं अब तक हुआ ? 16 दिसंबर 2012 को हुई इस जघन्य घटना पर साकेत ट्रायल कोर्ट ने 13 सितंबर 2013 को अपना फैसला दे दिया था। दोषियों विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर, मुकेश व पवन को फांसी की सजा मिली व पांचवें आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। दोषियों को सुनाई गई फांसी की सजा की पुष्टि की फाइल हाई कोर्ट पहुंची। हाई कोर्ट ने तुरंत संज्ञान ले लिया व मात्र छह महीने में ही अपील का निपटारा कर ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल रखा। हाई कोर्ट ने अपना फैसला 13 मार्च 2014 को दे दिया। अब मामला करीब डेढ़ साल (मार्च 2014) से सुनवाई के लिए लंबित है। अदालत ने अपील स्वीकार कर मामले को नियमित सुनवाई के लिए छोड़ दिया है। तय नियमों के तहत यदि सुनवाई नियमित हुई तो यह मामला पांच से सात वर्ष बाद सुनवाई के लिए आ सकता है। दुख तो इस बात का है कि केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार व दिल्ली पुलिस मामले की जल्द सुनवाई के लिए आवेदन लगातीं तो संभवत सुपीम कोर्ट में अब तक मामले का निपटारा हो जाता, लेकिन किसी ने इसकी जरूरत नहीं समझी। अगर मामले का जल्द निपटारा हो जाता तो संभवत आरोपियों को फांसी हो जाती। ऐसा होता तो दूसरों को भी सबक मिलता। उनके मन में भी डर बैठता। जब तक ऐसे केसों का फास्ट ट्रेक से निपटारा नहीं होता यह दरिंदगी रुकने वाली नहीं। हम दिल्ली के सीएम के सुझाव का समर्थन करते हैं।

Wednesday, 21 October 2015

रहस्य और तलवार एक ही हत्याकांड पर दो विपरीत फिल्में

पिछले दिनों मैंने दो ऐसी हिन्दी फिल्में देखीं जो एक सच्ची घटना पर आधारित हैं। कुछ साल पहले नोएडा में एक दोहरा हत्याकांड हुआ था जिसमें एक बच्ची और उसी घर के घरेलू नौकर की हत्या हुई थी। इस पर आधारित मैंने दोनों फिल्में देखींöरहस्य और तलवार। केके मेनन और टिस्का चोपड़ा स्टाडर रहस्य भी इसी हत्याकांड पर बनी है और अब मेघना गुलजार की फिल्म तलवार जिसमें इरफान खान प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। सात साल पहले हुई दिल दहला देने वाली घटना के निष्कर्ष पर विवाद आज भी बना हुआ है। तलवार फिल्म में दिखाई गई घटनाओं को पर्दे पर मेघना ने ऐसे असरदार ढंग से पेश किया है जिसे देखने के बाद आरुषि मर्डर केस की पुलिसिया जांच, जांच में आला अफसरशाही का दबाव, सरकारी एजेंसियों का आपसी टकराव और अहम की लड़ाई को लेकर ऐसी डिबेट शुरू होती है, जो शो खत्म होने के बाद अक्सर मॉल में, किसी रेस्तरां में लंबे वक्त तक चलती है। साकेत कॉलोनी में अपने पति के साथ तलवार देखने आई एक महिला जो शिक्षित हाउस वाइफ हैं कहती हैं कि मैंने इससे पहले नोएडा में हुए दोहरे हत्याकांड की पृष्ठभूमि में केके मेनन और टिस्का चोपड़ा स्टाडर फिल्म `रहस्य' भी देखी थी, लेकिन सात साल पहले हुई दिल दहला देने वाली इस घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया। महिला के मुताबिक इस केस की शुरुआती पुलिस जांच रिपोर्ट मीडिया में आने के बाद मैंने अपने घरेलू नौकर को हटा दिया था, लेकिन तलवार देखने के बाद मुझे लग रहा है कि मैंने उस वक्त गलती की। उन्होंने कहाöहमेशा अखबारों में पुलिस और सीबीआई जांच रिपोर्ट के बारे में पढ़ा था लेकिन वहां मामला फिल्म में एकदम फर्प था। `रहस्य' फिल्म में हत्यारा बच्ची की मां को दिखाया गया है जबकि `तलवार' फिल्म में माता-पिता निर्दोष हैं और नौकर के दोस्त हत्यारे थे अब दोनों फिल्मों में जमीन-आसमान का फर्प है। सबसे दुखद पहलू तो यह भी है कि अभी मामला अदालत में चल रहा है। माता-पिता जेल में बंद हैं और यहां फिल्म वालों ने अपनी ओर से केस साल्व भी कर लिया है। प्रश्न यह भी उठता है कि क्या इन फिल्मों का अदालती कार्रवाई पर असर नहीं पड़ेगा? `तलवार' फिल्म में तो मां-बाप बिल्कुल निर्दोष दिखाए गए हैं जिन्हें जबरन फंसाया जा रहा है। यूपी पुलिस और सीबीआई की जांचों में कितना फर्प है यह भी बारीकी से दिखाया गया है। कौन सही है कौन नहीं, इसका फैसला करना तो अदालत का काम है पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि अदालत के सामने भी इस केस को सुलझाने की चुनौती कम नहीं है। पता नहीं उस 14 वर्षीय बच्ची और घरेलू नौकर हत्याकांड में असल क्या हुआ, इस पर से प्रभावी ढंग से पर्दा उठेगा भी या नहीं?
-अनिल नरेन्द्र



दिल्ली में बढ़ती दरिन्दगी के लिए समाज भी दोषी है

यह हमारी दिल्ली को क्या होता जा रहा है। इन दरिन्दों ने तो सारी हदें पार कर दी हैं। एक बार फिर दिल्ली शर्मसार हो गई है। दिल्ली की एक पांच साल और दूसरी ढाई साल की दो मासूमों से गैंगरेप की घटना ने एक बार फिर निर्भया कांड के जख्मों को ताजा कर दिया है। पहली घटना शुक्रवार की रात निहाल विहार की है, दूसरी घटना आनंद विहार की है। निहाल विहार में एक ढाई साल की बच्ची 70 वर्षीय अपनी दादी के साथ शुक्रवार देर रात रामलीला देखने गई थी। करीब 11 बजे अचानक बिजली चली गई। इतने में बच्ची का हाथ दादी से छूट गया और इसी बीच वह गायब हो गई। करीब तीन घंटे बाद घर से एक किलोमीटर दूर पार्प में वह खून से लथपथ मिली। उसे संजय गांधी अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसकी हालत नाजुक है। राजधानी में हर रोज औसतन छह लड़कियों से दुष्कर्म होता है और 15 लड़कियों से छेड़छाड़। हालांकि दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि 16 दिसम्बर 2012 की घटना के बाद महिलाओं के लिए उठाए गए सुरक्षा के कदमों से उनका विश्वास बढ़ा है। यही वजह है कि वह  बिना डरे पुलिस थाने पहुंचकर अपने साथ हुए अन्याय व अपराध की शिकायत दर्ज करवा रही हैं। दरअसल बच्चियों के साथ हो रही हैवानियत पर एक मनोवैज्ञानिक ने बताया कि कई बार यह लोग सेक्सुअल संतुष्टि के लिए सामने वाले पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं। इसके लिए बच्चे इन्हें सॉफ्ट टारगेट नजर आते हैं। छोटी बच्चियां मासूम होती हैं और विरोध भी नहीं कर पाती हैं। घरेलू झगड़ों, गरीबी, गंदगी में रहने के कारण यह फ्रस्ट्रेड होते हैं। अपनी फ्रस्ट्रेशन को निकालने के लिए पूरी तरह अत्याचारी हो जाते हैं और असहाय बच्चों को शिकार बनाते हैं। नशे की आदत, ड्रग्स आदि लेने के कारणों से अपने आप पर नियंत्रण खो देते हैं और इस दौरान घटनाओं को अंजाम देते हैं। डॉ. अरुणा बूटा (मनोवैज्ञानिक) कहती हैं कि ऐसे रोगी पेडफिल्स (बाल यौन शोषण) बीमारी से भी आगे होते हैं जोकि मासूम बच्चियों को अपना निशाना बनाते हैं। निठारी कांड का दोषी पेडफिल्स बीमारी से पीड़ित था। हालांकि इन मासूम बच्चियों के गुनहगार बेहद ही गंभीर रूप से मानसिक रोगी हैं जिनका खुद पर कंट्रोल नहीं रहता। मां-बाप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। अंधेरी तंग गलियों में शाम ढलने से पहले ही बच्चों को घर में  बुला लेना चाहिए। अंधेरे में खासकर उन जगहों पर जहां बत्ती पर्याप्त नहीं है वहां तो बिल्कुल नहीं खेलने देना चाहिए। 2012 में 415 केस सामने आए थे जो 2014 में 1004 केस हो गए हैं। झुग्गी कॉलोनियां, स्लम क्षेत्र ज्यादा प्रभावित हैं। स्पेशल सीपी दीपक मिश्रा (क्राइम एवं व्यवस्था) ने कहाöदुष्कर्म की घटनाएं केवल दिल्ली में नहीं बल्कि विदेशों में भी होती हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी केवल पुलिस की नहीं बल्कि समाज की भी है। समझ नहीं आ रहा कि हमारे समाज को क्या होता जा रहा है और यह सिलसिला कब थमेगा?

Tuesday, 20 October 2015

कांटे की टक्कर नहीं आर-पार की लड़ाई बन गया बिहार चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर नहीं है बल्कि यूं कहें कि मामला अब आर-पार की लड़ाई का बन गया है। दूसरे चरण के बाद भी राजनीतिक दलों के हाथ क्या लगा? इसका पता लगाने में पार्टियां नाकाम साबित हो रही हैं। पिछली बार की अपेक्षा इस बार मतदान अधिक हुआ है। यह अधिक मतदान किस पार्टी के खाते में है यह किसी को पता नहीं है। अपने-अपने अनुमान लग रहे हैं। अमूमन मतदान के बाद कुछ स्थिति साफ हो जाती है कि मतदान का रुख किस ओर है लेकिन इस बार यह पता लगाने में पार्टियां असफल लग रही हैं। महागठबंधन और राजग के बीच कांटे की टक्कर साफ दिख रही है। बिहार चुनाव को लेकर अब तक जो परिदृश्य तैयार हुआ है उसमें अब लगभग यह तय हो चुका है कि अपनी जीत और हार में खुद नीतीश कुमार की कोई भूमिका नहीं होने वाली। उनकी जीत होती है तो उसकी वजह लालू प्रसाद यादव होंगे और अगर हार होती है तो भी उसकी वजह लालू ही होंगे। पूरे बिहार में चुनाव के केंद्रबिन्दु लालू प्रसाद बन गए हैं, जो गठबंधन के खिलाफ वोट का मूड बना चुका है वह इसके पीछे लालू यादव की मौजूदगी को ही मुख्य वजह बता रहा है। उधर महागठबंधन के पक्ष में वोट देने को तैयार हैं, वह भी उसकी वजह लालू जी को ही मान रहे हैं। बिहार के लोग अपने राज्य के हालिया मुख्यमंत्रियों में सबसे बेहतर नीतीश कुमार को ही मानते हैं। किसी भी जाति, मजहब या विचारधारा के व्यक्ति से बात कीजिए वह बतौर सीएम नीतीश की ही तारीफ करता दिखेगा। दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने बिहार में मोदी की हार की भविष्यवाणी भी कर दी है। आप के सूत्रों के मुताबिक दो फेज की वोटिंग के बाद बिहार से नीतीश टीम ने उनके पास यह जानकारी भेजी कि अनुमान से ज्यादा सीटें महागठबंधन जीत रहा है। दूसरी ओर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने मुझे बताया कि इन्हें (महागठबंधन नेताओं) जो कहना है कहें पर हमारी जीत तय है और जीत भी साधारण नहीं होगी। लैंडस्लाइड विक्टरी होगी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में इन्वाल्व नहीं होना चाहिए था। उन्होंने खुद इस चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश कुमार के रूप में प्रोजेक्ट कर दिया है। वह इस चुनाव में अपनी पूरी साख को दांव पर लगाकर कूद गए। पीएम को ऐसे किसी राज्य के चुनाव में अपने आपको इतना इन्वाल्व नहीं करना चाहिए था। इसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं। यदि राजग चुनाव में हार जाता है तो निश्चित रूप से इसका असर न केवल मोदी पर पड़ेगा बल्कि भावी राष्ट्र सियासत पर भी पड़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

सरकार समान नागरिक संहिता कानून लाएगी या नहीं?

समान नागरिक संहिता यानि यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा अकसर देश में समय-समय पर उठता रहा है। वैसे तो भाजपा का यह सबसे बड़ा एजेंडा भी है पर अब तक इस पर कुछ नहीं हो सका। जैसे ही यह मुद्दा उठता है हमारे अल्पसंख्यक भाई डिफेंसिव मोड में आ जाते हैं। पता नहीं उन्हें यह क्यों लगता है कि इसके जरिये उन्हें कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। हम उन्हें दोष भी नहीं दे सकते क्योंकि कुछ सियासी दल इसे इस तरह उठाते हैं मानो अल्पसंख्यक समुदाय ही इसके रास्ते में रोड़ा बना हुआ है। एक बार फिर यूनिफार्म सिविल कोड चर्चा में आया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से रुख साफ करने को कहा है। कोर्ट ने सीधा सवाल पूछा कि समान नागरिक संहिता पर आपको (सरकार) हो क्या गया? अगर इसे लागू करना चाहते हैं तो लाइए। आप इसे फौरन लागू क्यों नहीं करते? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में कई पर्सनल लॉ हैं। इससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कोर्ट ने यह  बात क्रिश्चियन डायवोर्स एक्ट की धारा 10(1) को चुनौती देने वाली अर्जी की सुनवाई के दौरान कही। दिल्ली में एलबर्ट एंथोनी ने यह अर्जी लगाई है। उनकी दलील है कि ईसाई दम्पत्ति को तलाक के लिए कम से कम दो साल अलग रहना जरूरी है जबकि हिन्दू मैरिज एक्ट में एक साल अलग रहने पर तलाक दे दिया जाता है एक ही मामले में दो व्यवस्थाएं गलत हैं। बता दें कि क्या है समान नागरिक संहिता? इसके तहत सभी लोगों पर एक-सा कानून लागू होने लगेगा। भले ही वह किसी भी मजहब का, धर्म का क्यों न हो। अभी देश में कई पर्सनल लॉ हैं जो अलग-अलग मजहबों, धर्मों के रीति-रिवाज और परंपरा के आधार पर बने हैं। यह खास तौर पर शादी, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत, गुजारा भत्ता जैसे मामलों पर लागू होते हैं। मसलनöहिन्दुओं के लिए तलाक के कानून मुस्लिमों और क्रिश्चियनों के कानूनों से बिल्कुल अलग हैं। देखना अब यह है कि मोदी सरकार इस मामले में क्या रुख अपनाती है, लेकिन यह मौका है जिसका सदुपयोग कर वह समान नागरिक संहिता को लागू कर सकती है। इस मामले में केंद्र को अपना पक्ष रखने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है। समान नागरिक संहिता पर बातें तो बहुत लंबे समय से हो रही हैं पर जब इस पर आम सहमति बनाने या लागू करने की बात आती है तो विवाद खड़ा हो जाता है। सियासी दल अपनी-अपनी नीतियों के अनुसार चिल्लाने लगते हैं। विधि मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बयान दिया है कि राष्ट्रीय एकता के लिए समान नागरिक संहिता जरूरी है। ऐसे कानून विश्व के अधिकतर विकसित देशों में लागू हैं लेकिन यह हमारा देश ही है जहां तकरीबन हर मजहब का अपना पर्सनल लॉ लागू है। हमारे संविधान निर्माता भारत को एक आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाना चाहते थे जिसके लिए कॉमन सिविल कोड जरूरी था। लेकिन उन्हें इस बात का भी अहसास था कि भारत जैसे विविध सांस्कृतिक-धार्मिक धाराओं वाले देश में इसको यकायक लागू करना असंभव है। पिछले छह दशकों से यही हो रहा है कि जब भी यह मुद्दा उठता है तब कुछ ताकतें इसके विरोध में उतर आती हैं। संविधान लागू होने के बाद हिन्दू कोड बिल तो लाया गया लेकिन अन्य समुदायों से संबंधित पर्सनल लॉ में कहीं कोई बदलाव लाने की कोशिश नहीं की गई। एक हकीकत यह भी है कि इसी के साथ तुष्टिकरण की सियासत ने जन्म लिया। संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि सरकार को सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून लागू करने का प्रयास करना चाहिए। यह व्यवस्था देश में बढ़ रही सांप्रदायिकता से मुकाबला करने में भी कारगर साबित हो सकती है। अब तक सभी के लिए समान कानून न होने से कुछ लोगों को दुप्रचार करने का मौका मिलता है कि सरकार धर्म के आधार पर पक्षपात कर रही है। समान नागरिक संहिता का होना इसलिए भी जरूरी है कि महिलाओं को शादी, तलाक और गुजारा भत्ता जैसे विषयों पर प्रगतिशील और आधुनिक कानूनों का लाभ मिल सके। यदि राजनीतिक दल वोट बैंक और तुष्टिकरण की सियासत का परित्याग करें तो सभी समुदायों की धार्मिक-सांस्कृतिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए एक सर्वमान्य समान नागरिक संहिता का सपना साकार हो सकता है।

Sunday, 18 October 2015

आदेश के बावजूद बार बालाओं को लंबा रास्ता तय करना है

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस एक्ट के उस संशोधन पर स्थगन देकर महाराष्ट्र में डांस  बार शुरू करने का रास्ता साफ कर दिया है जिसके जरिये डांस बारों पर यह प्रतिबंध लगाया गया था। शीर्ष अदालत ने मायानगरी में राज्य सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदी पर स्थगन आदेश देते हुए शर्त लगाई है कि बार बालाओं का डांस अश्लील नहीं होना चाहिए। उधर मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने कहा है कि अंतिम सुनवाई में सरकार पाबंदी जारी रखने पर जोर देगी। विपक्षी दलों ने भी रोक हटने का विरोध किया है। पाबंदी से इस पेशे से जुड़े लगभग एक से डेढ़ लाख लोगों का बेरोजगार होने का अंदेशा खड़ा हो गया था। राज्य पुलिस ने 2005 में पहली बार बारों में नृत्य के खिलाफ अभियान चलाया था। हालांकि पांच सितारा होटलों सहित चर्चित प्रतिष्ठानों को इससे छूट दी गई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने भी सभी प्रतिष्ठानों पर नृत्य की पाबंदी लगाने के लिए एक कानून पारित किया था। हाई कोर्ट ने 12 अप्रैल 2006 को सरकार के फैसले को निरस्त करते हुए इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया और कहा था कि यह नागरिकों को कोई भी पेशा, कारोबार या व्यापार करने की इज्जात देने वाले संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के खिलाफ है। भारतीय होटल और रेस्तरां संघ के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जिस तरह से महाराष्ट्र सरकार ने नियमों को दरकिनार कर प्रतिबंध लगाया था उससे हमें जीत का पूरा भरोसा था। बार गर्ल्स एसोसिएशन की महासचिव वर्षा काले ने कहा कि अब उन्हें महाराष्ट्र सरकार से सकारात्मक कदम की उम्मीद है। बेशक इस स्थगन आदेश से बार बालाओं की उम्मीदें जगी हैं पर इसके बावजूद करीब एक दशक बाद डांस बारों की शुरुआत आसान नहीं होगी। कांग्रेस और एनसीपी भी बारों के खोलने का विरोध कर रही हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर राज्य सरकार को समर्थन देने की घोषणा की है। विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने राज्य सरकार से कहा है कि वर्तमान कानून में जो खामियां हैं उसे दूर करके नया कठोर कानून लाया जाए। बार बालाओं को बेशक कुछ राहत महसूस होगी पर अभी तो असल लड़ाई बाकी है और लंबा रास्ता तय करना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

एक सियासी मुहिम का हिस्सा बनते हमारे महान साहित्यकार

उत्तर प्रदेश में दादरी कांड का मामला जितना दुखद है उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है इसकी आड़ में राजनीति खेलने की कोशिश। मैं सरकार का पक्ष नहीं ले रहा पर मुझे इस बात का दुख है कि केंद्र सरकार और खासकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कुछ लेखक बंधुओं ने एक माहौल खराब करने का अभियान-सा चला रखा है। मैं इन लेखकों द्वारा पुरस्कार व सम्मान लौटाने की मुहिम की बात कर रहा हूं। कहने को तो कहा जा रहा है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुआई में जो सरकार जब से बनी है उसके बाद से देश में असहिष्णुता का माहौल बना है और इसके विरोध में यह बुद्धिजीवी अपने सम्मान लौटा रहे हैं। असल में कुछ स्यूडो सेक्यूलरिस्ट, छद्म धर्मनिरपेक्ष लोगों की आंखों पर खास किस्म का चश्मा चढ़ा हुआ है। जो कुछ  दादरी में हुआ वह निश्चित रूप से निंदनीय है किन्तु उस घटना को हमारे सेक्यूलर बुद्धिजीवियों की ओर से यह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया जिस ढंग से पेश कर रहा है वह गलत है। पंजाबी लेखिका दिलीप कौर तिवाना ने इसलिए पद्मश्री लौटा दी क्योंकि 1984 के सिख दंगे और मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा हो रही है और इसका विरोध होना चाहिए। हम तिवाना जी से पूछना चाहते हैं कि 1984 के दंगों का पद्म सम्मान से क्या लेना-देना? अगर उन्हें इतना ही विरोध  करना था तो सम्मान लेने से मना क्यों नहीं किया? आज की केंद्र सरकार को 84 के दंगों से क्या लेना-देना? इन बुद्धिजीवियों ने तब इस्तीफा क्यों नहीं दिया जब मुजफ्फरनगर और सहारनपुर के दंगे हुए थे? इन्होंने तब क्यों नहीं इस्तीफा दिया जब सेना के जवान वेदमित्रा चौधरी को मेरठ के पास हरदेव नगर में पीट-पीट कर मार डाला गया, इन्होंने तब क्यों नहीं इस्तीफा दिया जब मार्च में एक मुस्लिम लड़की के साथ शादी करने पर बिहार के हाजीपुर में एक हिन्दू की हत्या कर दी गई? इनमें से किसने तब खुला विरोध किया जब इसी महीने उत्तर प्रदेश के एक पत्रकार हेमंत यादव को मौत के घाट उतार दिया गया? ये लोग तब कहां थे जब उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार को जिन्दा जलाया गया? तब तो किसी ने विरोध में एक शब्द नहीं कहा। लेखकों के पास सबसे बड़ा हथियार उनकी कलम है। वह कुछ भी कभी भी किसी के विरोध में अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। फिर न तो इन्हें आज की केंद्र सरकार ने नियुक्त किया था और न ही वह दादरी कांड की जिम्मेदार है। फिर ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि इस प्रकार की सांप्रदायिक घटना सिर्प केंद्र में ही हो रही है, कई राज्यों में जिनमें कांग्रेस सरकार है, वाम सरकार है वहां भी तो ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं। हम मान सकते हैं कि यह सब सेक्यूलरवाद के लिए लड़ रहे हैं पर क्या यह जरूरी है कि हत्याएं केवल एक वर्ग विशेष की हो रही हैं? ये वामपंथी कांग्रेसी परस्त लेखक उन राज्यों के शासन पर अंगुली नहीं उठाते जहां ऐसी घटनाएं हो रही हैं। पश्चिम बंगाल में चर्च के अंदर ननों पर हमला किया गया, एमएम कलबर्गी की हत्या कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक में हुई पर सबका दोष केंद्र सरकार पर लगा दिया गया। धर्मनिरपेक्षता का भाव हमारे संविधान के सबसे मजबूत पायों में से एक है और चाहे किसी भी राजनीतिक विचारधारा वाले देश की सत्ता पर काबिज क्यों न हो, वह भी इस बुनियाद को छोड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता। देश की सत्ता पर काबिज एनडीए गठबंधन का नेतृत्व भले ही भाजपा कर रही हो जो अपने प्रखर हिन्दुत्व विचारधारा के लिए जानी जाती है, लेकिन उसकी भी मति नहीं मारी गई है कि वह देश की प्रगतिशील सोच को फिर से दकियानूसी रास्ते पर धकेलने की भी सोचे। कहा जा सकता है कि इन घटनाओं को शह उस सोच से मिल रही है जो मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से उभर नहीं पा रही है। साहित्यकार बुनियादी रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं इसलिए ऐसी दुखद घटनाओं पर उनकी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक है पर जिस प्रकार लाइन लगाकर एक के बाद एक इस प्रतिक्रिया में सम्मान फेंके जा रहे हैं उसका संदेश अच्छा नहीं जा रहा है। ऐसा  लगता है कि केंद्र सरकार के खिलाफ एक मुहिम चलाई जा रही है जिसका शिकार हमारे यह महान साहित्यकार भी हो रहे हैं।

Saturday, 17 October 2015

सरहद पार करना तो बच्चों का खेल हो गया है

फिल्म बजरंगी भाईजान में तो एक पाकिस्तानी लड़की समझौता एक्सप्रेस पर सवार अपनी मां से बिछुड़ गई थी और कैसे उसे सलमान खान ने वापस पाकिस्तान पहुंचाया। पर पिछले कुछ दिनों से अजीबोगरीब खबरें आ रही हैं कि कुछ पाकिस्तानी बच्चे खेलते हुए भारतीय सीमा में घुस गए। राजस्थान की खबरवाला पोस्ट पर भारतीय सेना ने तीन पाकिस्तानी बच्चोंöसज्जन, सावल और सलीम खां को पकड़ा। किशनगढ़ बल्ज की खबरवाला पोस्ट में ये बच्चे बॉर्डर पर लगी तारबंदी के नीचे गड्ढा खोदकर भारतीय सीमा में दाखिल हुए और भारतीय क्षेत्र में करीब 15 किलोमीटर अंदर आ गए। भारतीय सीमा में घुसते ही तीनों बच्चों को जगे खां का टांका पर एक युवक मिला। उन्हें पानी पिलाया और अपनी ढाणी में ले जाकर खाना खिलाया। अगले दिन ये बच्चे कुरिया बेरी गांव तक पहुंच गए। कुछ गांव वालों को इन पर शक हुआ तो उन्हें पकड़ लिया। तीनों बच्चों ने बीएसएफ को पूछताछ में बताया कि वे भेड़-बकरियां चरा रहे थे। कुछ मवेशी गुम हो गए तो उन्हें तलाशते रहे। नहीं मिले तो मालिक की पिटाई के डर से तारबंदी के पास रेत हटाकर भारतीय सीमा में आ गए। बच्चों के पास एक कुल्हाड़ी भी मिली। बीएसएफ इस नजरिये से भी पूछताछ कर रही थी कि कहीं उन्हें भेजने के पीछे कोई साजिश तो नहीं? पूछताछ के बाद बीएसएफ ने इन तीनों बच्चों सज्जन, सावल और सलीम को बृहस्पतिवार देर रात पाकिस्तानी रेंजरों को सौंप दिया। तीनों बच्चों को बीएसएफ ने उपहार देकर पाकिस्तानियों को सौंपा। बीएसएफ के डीआईजी रवि गांधी ने बताया कि बच्चों से पूछताछ के बाद सभी एजेंसियों के अधिकारी संतुष्ट थे कि वे खेल-खेल में अज्ञानतावश सीमा पार कर भारतीय क्षेत्र में आ गए। वे किसी गलत मकसद से नहीं आए थे। हालांकि इनमें से दो बच्चे वापस नहीं जाना चाहते थे लेकिन नियमों से बंधे बल के अधिकारियों ने उन्हें समझा-बुझा कर वापस भेज दिया। इन बच्चों की हरकत से यह नहीं लगता कि सीमा पार करना कितना आसान है? बेकार हैं पासपोर्ट-वीजा इत्यादि।
-अनिल नरेन्द्र


झूठ के पांव नहीं होते

वह एक कहावत है न कि झूठ के पांव नहीं होते यह 2002 गुजरात दंगों से संबंधित आईपीएस (बर्खास्त) संजीव भट्ट के केस पर फिट बैठती है। गुजरात के इस चर्चित आईपीएस संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामलों की जांच एसआईटी को सौंपे जाने और भाजपा अध्यक्ष व गुजरात के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह को मामले में पक्षधर बनाने की भट्ट की मांग को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने न सिर्प विवादित आईपीएस की याचिकाएं ही खारिज कीं बल्कि तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर रखने के लिए भट्ट पर तल्ख टिप्पणियां भी की हैं। माननीय अदालत ने संजीव भट्ट की मंशा पर भी गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने इसी के साथ पूर्व महाधिवक्ता तुषार मेहता (अब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) के ईमेल हैक करने और अपने मातहतों को धमकाने और उनके जबरन शपथ पत्र दिलाने के आरोप में दायर प्राथमिकी पर से स्टे भी हटा लिया। संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर मांग की थी कि गुजरात दंगों के मामले में दबाव डालकर सिपाही केडी पंथ से गलत हलफनामा दिलाने और गुजरात के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल के ईमेल हैक करने के मामलों की जांच एसआईटी को सौंपी जाए। मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू और न्यायाधीश अरुण मिश्रा की पीठ ने भट्ट की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि दोनों मामलों का ट्रायल जल्दी पूरा किया जाए। पीठ ने कहा कि यहां मामला सिर्प इतना है कि क्या याचिकाकर्ता (संजीव भट्ट) ने दबाव डालकर केडी पंथ का हलफनामा लिया था। इस मामले की जांच पूरी होकर आरोप पत्र भी दाखिल हो चुका है। आरोप पत्र दाखिल हुए चार वर्ष बीत चुके हैं। याचिकाकर्ता ने कभी भी जांच पर सवाल नहीं उठाया। आरोप पत्र दाखिल हो चुका है, मामले पर ट्रायल के दौरान विचार होगा। याचिकाकर्ता उन परिस्थितियों को साबित नहीं कर पाया जिसके आधार पर जांच एसआईटी को सौंपी जाए। संजीव भट्ट इकलौते ऐसे शख्स नहीं जो आधे-अधूरे अथवा मनगढ़ंत तथ्यों के साथ अदालतों का दरवाजा खटखटाकर उनका वक्त जाया करते हैं। ऐसे खुराफाती तत्वों की संख्या बढ़ रही है जिनका शगल ही अदालत-अदालत खेलना बन गया है। दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कथित ताबूत घोटाले की जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज किया था। यह अजीब है कि जब इस कल्पित घोटाले का निपटारा दो वर्ष पहले ही हो गया था तब फिर सुप्रीम कोर्ट को उससे संबंधित याचिकाओं की सुनवाई क्यों करनी पड़ी। जैसा मैंने कहा कि झूठ के पांव नहीं होते, सुप्रीम कोर्ट ने साबित कर दिया।

Friday, 16 October 2015

Putin's tremendous political stake in Syria

There are reports that many youth have been prevented by the governments of various nations who were trying to go to Syria to join the extreme radical group Islamic State. The tremendous conflict between the Islamic State and the army of President Bashar Al-assad continues in Syria. The way IS was growing in Syria and Iraq seemed it will very soon occupy the entire region and since one year US and European Union did nothing to stop them. They acted as preventing them and instead supplied money and weapons in the dark.

Thanks to Russia who has tried to put a check on the growing speed of IS by precise air strikes. Deputy Chief of General Staff of the Russian Armed Forces Andre Kartapolov said on Saturday that we will not only continue air strikes but accelerate them also. Andre said that hideouts, ammunition and explosive material storage base, tools providing base and terrorist training centers of IS are on the target. He said that Russian planes have undertaken more than 60 operations during the continuous air strikes and have destroyed more than 40 per cent hideouts of IS. These air strikes have filled the Syrian troops with a new passion and confidence and they have become more aggressive in ground war against IS. Recently, Russia fired 26 missiles from the Caspian Sea over IS hideouts in Syria. The missiles from a ship hit the target around 1500 kms away. Russia has proved that it can't watch the show keeping a mum. Hitting missiles 1500 kms away, it has also shaken US and Europe. It is for the first time after the collapse of Soviet Union that Russia has demonstrated its military potential. It has also tried to regain its lost reputation in one stroke. Europe has been shaken by the Russian attacks. US is now openly opposing the Russian intervention. Putin exposed their double standards in such an effective way that one can understand the desperation of US.

On the other hand, Syrian President Bashar Al-assad said that Russian military intervention in the Middle East is a must for the extermination of terrorism. In an interview given to a state TV channel of Iran, President Assad said that Syria will have to join hands with Russia, Iran and Iraq to end terrorism (IS) in the region, or else the entire region will be destroyed. The success of this coalition is likely. Assad also condemned the air strikes from the US led coalition in Syria and Iraq. Amidst the growing Russian military activities in Syria, the US has cautioned Moscow not to interfere in the US led international efforts in the disturbed areas to eliminate Islamic State. White House's Press Secretary Josh Earnest told the reporters that the President Obama has made it clear that Russia should avoid the interference of the 65-member international coalition as they are strengthening the IS instead. Earnest said that the maximum Russian aerial attacks are being carried in areas where the presence of IS is less or nil.

Russia, Syria, Iran and Iraq are in one camp while the US and its NATO allies are in the other camp.  Some experts also believe that situations have become more entangled after the Moscow plunged into the Syrian domestic war. Russia is tightening its grip in Syria day-by-day and the entire world community including the US, NATO remains helpless. Arguably Vladimir Putin has a comprehensive strategy over Syria. Some analysts say that in fact there is a domestic pressure behind Putin's interference in Syria, as due to reduced oil prices and sanctions against Russia after Crimea incident Moscow's financial health is not sound or Putin wants to divert the people's attention towards the growing discontent in the Ukraine. Interestingly, the Arabian countries have kept absolute silence over the Russian air strikes. The reason for their silence may be such that they may be confused, because Russia has played such a game in Syria that nobody ever imagined.

Anil Narendra

डाक्टर गूगल सर्च से कर रहे हैं इलाज

डाक्टरों की लापरवाही से मरीजों की जान जाना कोई साधारण लापरवाही नहीं है। आप किसी की जान से खेल रहे हैं। एक तरह से यह मरीज की हत्या करने समान है। कुछ दिन पहले दिल्ली के दो बड़े अस्पताल सफदरजंग व हिन्दुराव में डाक्टरों की लापरवाही से एक 10 वर्षीय बच्चे का पैर कट गया। हुआ यह था कि बच्चे के बाएं पैर में शीशा धंस गया था। दोनों अस्पतालों के डाक्टरों की लापरवाही से बच्चे का पैर काटना पड़ा। मामले में दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) ने दोनों अस्पतालों के चार डाक्टरों का लाइसेंस एक महीने के लिए रद्द कर दिया। यह घटना दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली और डाक्टरों की लापरवाही को बयां करती है। इससे साफ है कि दिल्ली के डाक्टर खासकर सरकारी अस्पतालों में मरीजों को न तो सही ढंग से देखते हैं और न ही सही इलाज करते हैं। यह हाल अकेले भारत का ही नहीं। अब तो एक नई समस्या खड़ी हो रही है। आप इसे डिजिटल क्रांति भी कह सकते हैं और मेडिकल क्षेत्र की बेबसी भी। एशियाभर में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 90 प्रतिशत डाक्टर्स इलाज के लिए गूगल का इस्तेमाल कर रहे हैं और नेट सर्च के भरोसे है। रेफरंस ड्यूरिंग ट्रीटमेंट एंड सर्जरी के तहत की गई इस स्टडी में यह पता लगाने की कोशिश की गई थी कि डाक्टर इलाज के दौरान किस माध्यम की मदद लेते हैं, किस मीडियम पर भरोसा करते हैं। स्टडी में पाया गया कि डाक्टर्स एक दिन के काम में लगभग छह प्रोफेशनल सर्च करते हैं। यह भी पाया गया कि 58 प्रतिशत फिजिशियन सिस्टम पर ही नेट सर्च पर यकीन कर रहे हैं जबकि 14 प्रतिशत अभी भी प्रकाशित माध्यम पर भरोसा कर रहे हैं। तीन में से एक फिजिशियन ने जवाब दिया कि वह मरीज के इलाज के दौरान मोबाइल सर्च कर लेते हैं। इंटरनेट के आने से और सब प्रकार की जानकारी उपलब्ध होने के कारण अब तो मरीज खुद भी बीमारी की पूरी जानकारी नेट से ले लेते हैं। इससे यह फायदा होता है कि मरीज जानने लगा है कि उसे क्या बीमारी है और उसका क्या इलाज है? अब ऐसे मरीजों को डाक्टर आसानी से बेवकूफ भी नहीं बना सकते। देश में मरीजों का इलाज करने वाले कई डाक्टरों की हालत भी ठीक नहीं है। एक अध्ययन में सामने आया है कि कामकाज के बोझ से उबरने के लिए कुछ डाक्टर अब नशे के आदी भी हो रहे हैं। इन्होंने शुरू में मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नशीली दवाओं का इस्तेमाल अपना तनाव कम करने के लिए किया। बाद में उन्हें नशे की लत लग गई। बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस के पांच साल के एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। स्टडी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च जर्नल के ताजा अंक में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है। मरीजों को भले ही नशीली गोलियां मिलना मुश्किल हो पर डाक्टरों को यह आसानी से मिल जाती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

ड्रैगन की नई धमक ः ब्रह्मपुत्र पर बांध

चीन जो करना चाहता है करता है उसे किसी की परवाह नहीं। खासकर भारत की तो बिल्कुल नहीं। 2013 में भारत सरकार के एक अंतर-मंत्रालय विशेषज्ञ समूह ने कहा था कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर जो बांध बना रहा है उससे भारत में इस नदी के बहाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत सरकार ने आधिकारिक द्विपक्षीय वार्ताओं में इस मुद्दे को उठाया भी था। मगर चीन ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। अब खबर आई है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर यह बड़ा बांध चालू कर लिया है। ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले बांधों से भारत को दोहरा खतरा है। चीन अगर इन बांधों से पानी छोड़ता है तो भारत के पूर्वोत्तर समेत कई इलाकों में बाढ़ आ सकती है। अगर उसने पानी का भंडारण किया तो भारतीय इलाके बूंद-बूंद को तरस सकते हैं। भारत 2013 में ऐसे हालात का सामना कर चुका है। जब तिब्बत के पारछू झील से पानी छोड़े जाने से हिमाचल के कई इलाकों में बाढ़ आ गई थी। चीन के डेढ़ अरब डॉलर वाले इन हाइड्रोपॉवर स्टेशन नाम के इस बांध के चालू होने से भारत में पानी की सप्लाई रुकने की आशंका पैदा हो गई है। चीन हमेशा यह कहता रहा कि यह बांध ऐसा नहीं है जिसमें पानी जमाकर रखा जाता है। बल्कि यह पनबिजली परियोजना का हिस्सा है जिससे बहाव अप्रभावित रहेगा। इसके बावजूद ऐसी आशंकाएं कभी भी दूर नहीं हुईं कि चीन इन बांधों का उपयोग भारत (और आगे बांग्लादेश) के हिस्से का पानी रोकने और कभी एक साथ ज्यादा पानी छोड़ने के लिए कर सकता है, इसलिए मंगलवार को जब जाम हाइड्रोपॉवर स्टेशन परियोजना चालू हुई तो भारत की चिन्ताएं बढ़ गईं। इस पनबिजली परियोजना के सभी छह केंद्र पॉवर ग्रिड से जोड़ दिए गए हैं। यह दुनिया का सर्वाधिक ऊंचाई पर बना बांध है। इससे हर साल ढाई अरब किलोवॉट घंटा बिजली पैदा होगी। ब्रह्मपुत्र तिब्बत से बहते हुए भारत आती है। तिब्बत में उसे यार्लुंग झांगबो कहा जाता है। जांम बिजली केंद्र की निर्माता कंपनी ने कहा है कि इस नदी के जल संसाधनों का उपयोग करते हुए अब इतना विद्युत उत्पादन होगा, जिससे तिब्बत में बिजली की कमी दूर हो जाएगी। अनेक जानकारों ने कहा है कि इतनी बड़ी मात्रा में बिजली बनाने के लिए बड़े पैमाने पर जल का प्राकृतिक बहाव मार्ग बदलना पड़ सकता है। ऐसा हुआ तो अंदेशा है कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रही भारतीय परियोजनाएं अवरुद्ध हो जाएं। पहले की सहमति के मुताबिक चीन हर साल मई से अक्तूबर तक ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ की स्थिति संबंधी आंकड़े भारत से साझा करता है। मगर नया बांध बनने के बाद अब स्थिति बदल गई है।  बेहतर होगा कि भारत सरकार चीन से बातचीत में इसे प्राथमिकता दे। इसमें कोई शक नहीं कि इस नई परियोजना से चीन के हाथ में एक नई ताकत आ गई है।

Thursday, 15 October 2015

कोई एक इंच बताएं जहां गंगा साफ है

गंगा की सफाई का संकल्प बार-बार दोहराए जाने के बावजूद स्थिति में कोई ठोस सधार नहीं हुआ और स्थिति तकरीबन जस की जस है। अदालतें भी कई बार गंगा को पदूषण से बचाने के लिए आदेश दे चुकी हैं और इसमें बरती जा रही कोताही पर केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगा चुकी हैं। गंगा को निर्मल बनाने की मुहिम ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने सख्त रवैया अपनाते हुए संबंधित मंत्रालयों और पाधिकरणों से पूछा है कि बीते 30 वर्षें में हजारें करोड़ पूंकने के बाद भी 2500 किमी लंबी गंगा का एक इंच भी क्या साफ है? गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है। केंद्र से इतना पैसा राज्यों को मिला है बावजूद इसके गंगा बदहाल है। उत्तर पदेश और उत्तराखंड को फटकार लगाते हुए ग्रीन पैनल ने कहा, क्यों उन्हें छोटे से छोटे काम के लिए केंद्र से भी पैसा चाहिए? राज्य की अपनी कोई जिम्मेदारी है या नहीं जबकि पानी-पर्यावरण जैसे विषय राज्य के हैं। गंगा कार्य योजना को शुरू हुए तीस साल हो गए हैं। इस दौरान करीब पांच हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। मगर हालत यह है कि हर साल गंगा में गंदगी और बढ़ी हुई दर्ज होती है। इसकी सफाई का काम केंद्र और राज्य सरकारों को मिल कर करना था। इसमें सत्तर फीसदी पैसा केंद्र और तीस फीसदी संबंधित राज्य सरकारों को लगाना था। मगर हालत यह है कि औद्योगिक इकाइयों और शहरी इलाकों से निकलने वाले जल-मल के शोधन के लिए आज तक न तो पर्याप्त संख्या में संयंत्र लगाए जा सके हैं और न ही औद्योगिक कचरे से निपटारे का मुकम्मल पबंध हो पाया है। औद्योगिक इकायों से निकलने वाला जहरीला पानी जगह-जगह गंगा में सीधे मिलकर गंगा को अपवित्र बना रहा है। बेशक कई बार हरित न्यायाधिकरण की फटकार पर औद्योगिक इकायों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का मंसूबा जरूर बनाया गया पर नतीजा वही सिफर का सिफर ही रहा। वजह साफ है कि न तो कोई ठोस योजना बन सकी है और न ही केंद्र और राज्यों के बीच इस पर जरूरी तालमेल हो सका। दुख से कहना पड़ता है कि पधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद गंगा को साफ करने की बात कह चुके हैं, भाजपा ने तो गंगा को पदूषण मुक्त बनाने का चुनावी मुद्दा भी बनाया था। वाराणसी से सांसद चुने गए नरेंद्र मोदी खुद इसमें काफी दिलचस्पी दिखाते रहे हैं। सत्ता में आने के बाद उन्होंने उमा भारती की उगुवाई में इसके लिए एक विभाग भी खड़ा किया। बड़े-बड़े दावे किए गए, मगर डेढ़ साल में एक भी ऐसा कदम नहीं उठाया गया जो हरित पंचाट को संतुष्ट कर सके। गंगा भारत की लाइफ लाइन है और इसकी पवित्रता देश और देशवासियों के उज्ज्वल भविष्य से जुड़ी हुई है। गंगा की सफाई धार्मिक मुद्दा नहीं है इसमें सभी देशवासियों का हित जुड़ा हुआ है। सबको मिलकर गंगा को बचाना होगा।

-अनिल नरेंद्र

राष्ट्र निर्माण के साथ-साथ विभाजित नेपाल में एकता लानी होगी

खड़ग पसाद शर्मा ओली की नेपाल के 38वें पधानमंत्री के रूप में ताजपोशी के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि हिमालय की गोद में बसे इस देश में जल्द ही स्थिरता कायम होगी। चीन समर्थक वामपंथी पार्टी के सबसे बड़े नेता के तौर पर उनका पधानमंत्री चुना जाना जितना स्वाभाविक माना जा रहा है उतना ही स्वाभाविक है उनसे भारत और दुनिया को बड़ी अपेक्षाएं हैं। उन्हें पचंड के नेतृत्व वाले अन्य वामपंथी दल, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) के साथ ही एक दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी पार्टियों का समर्थन हासिल होने का सीधा मतलब है कि संसद में उनका रास्ता आसान होगा। अपने लंबे राजनीतिक और संघर्षपूर्ण जीवन में 14 वर्ष जेल में बिताने वाले इस कम्युनिस्ट नेता के लिए यह एक निर्णायक क्षण है। उन्होंने नेपाली कांग्रेस के पूर्व पधानमंत्री सुशील कुमार कोइराला को पराजित कर संसद के भीतर अपनी पकड़ साबित की है। इसके साथ ही यह भी सच है कि राजशाही के खत्म होने के बाद विगत एक दशक से नेपाल राजनीतिक रूप से बेहद उथल-पुथल के दौर से गुजरा है और बची-खुची कसर इस वर्ष आए भीषण भूकंप ने पूरी कर दी। अब ओली के राजनीतिक पबंध-कौशल की परीक्षा की घड़ी आ गई है। एक तरफ भारत तो दूसरी तरफ चीन, एक तरफ मधेशी और दूसरी ओर पहाड़ की जनता इनमें कैसे समन्वय बैठाते हैं अब पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। ओली ने देश की बागडोर ऐसे समय संभाली है जब नया संविधान बनने के बाद देश मधेशी और थारू जनजाति के हिंसक आंदोलन का सामना कर रहा है। संविधान बनाते समय उनकी अपेक्षाओं का ध्यान नहीं रखे जाने का आरोप है। भारत से नेपाल की 1750 किमी. लंबी सीमा लगती है। तराई का पूरा इलाका भारत से सटा है। मधेशियों के सांस्कृतिक  संबंध नेपाल के पहाड़ी इलाकों से अधिक भारत से हैं। आंदोलन के हिंसक होने के कारण भारत से जाने वाली सामग्री और पैट्रो पदार्थ नेपाल नहीं पहुंच पा रहे हैं। मधेशी नाकेबंदी इसका सबसे बड़ा कारण है। इंकार के बाद भी वहां के अधिकतर दल भारत को ही दोषी मान रहे हैं। मधेशियों की सहानुभूति भारत के साथ है, उनकी इससे अपेक्षाएं भी अधिक हैं, वे चाहते हैं कि भारत पत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करे। ओली के सामने राष्ट्र के पुनर्निमाण के साथ-साथ मधेशियों और थारू जनजाति सहित अन्य असंतुष्टों को नेपाल के 67 साल के इतिहास में सातवें संविधान मंजूरी के बाद एक साथ मिलकर देश को आगे बढ़ाने की जबरदस्त चुनौती होगी। जहां तक भारत का सवाल है फिलहाल हमें यह मानना होगा कि नेपाल ने हमारी जगह चीन के करीब आना बेहतर समझा। नेपाल पर चीन की गिद्ध दुष्टि लगी हुई है, वह तो चाहता है कि येन-केन पकोरण भारत को नेपाल से दूर करके तिब्बत की तरह नेपाल में भी मनमानी कर सके। देखें, ओली इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं या नहीं।

Wednesday, 14 October 2015

गुलाम अली के कार्यक्रम का विरोध

शिवसेना के विरोध के चलते पाकिस्तान के मशहूर गजल गायक गुलाम अली का मुंबई के बाद पुणे का कार्यक्रम भी रद्द हो गया है। शिवसेना के इस विरोध का समर्थन भी हो रहा है और विरोध भी। शिवसेना ने अपने विरोध को सही बताते हुए कहा है कि देश में सैनिक शहीद होते रहे और यहां आनंद उठाया जाता रहा, यह ठीक नहीं है। पार्टी ने कहा कि वह तब तक पाकिस्तान का बहिष्कार जारी रखेगी जब तक वह देश आतंकी गतिविधियों पर रोक नहीं लगाता। युवा सेना (शिवसेना की युवा शाखा) के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने कहा कि पाकिस्तान लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है। हम यहां आनंद नहीं उठा सकते, वह भी तब जबकि सीमा पर हमारे सैनिक कष्ट में हों। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने कहा कि हम सभी को गुलाम अली के गीत पसंद हैं, लेकिन हमें  अपने सैनिकों के प्रति भी थोड़ी संवेदना रखने की जरूरत है। शिवसेना को कुछ फिल्मी हस्तियों से भी इस मुहिम में समर्थन मिला है। गायक अभिजीत, अशोक पंडित दोनों ने पाकिस्तानी कलाकारों, सिंगरों का भारत आने और शो करने का विरोध किया है। पंडित का कहना था कि इन पाकिस्तानी कलाकारों ने कभी भी पाकिस्तान प्रायोजित भारत के खिलाफ चल रहे आतंकवाद का विरोध नहीं किया, कभी भी इन्होंने यह नहीं कहा कि यह गलत हो रहा है और इसे रोकना चाहिए। कुछ समय पहले राज ठाकरे चुनावों में भले ही हार गए हों मगर उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी पाकिस्तानी कलाकारों का जमकर विरोध किया था। कुछ समय पहले महाराष्ट्र में पाकिस्तानी फिल्म बिन रोए की रिलीज का विरोध किया था। नतीजा यह हुआ कि फिल्म राज्य में रिलीज नहीं हुई। मनसे की फिल्म शाखा ने बॉलीवुड में पाकिस्तानी कलाकारों के विरुद्ध हल्ला बोल की घोषणा भी की थी। उन्होंने कहा कि वह किसी भी बॉलीवुड फिल्म में पाकिस्तानी कलाकारों को बर्दाश्त नहीं करेगी। इस शाखा के प्रमुख अभय खोपकर ने मीडिया से कहा कि हम ऐसे किसी भी फिल्मकार को नहीं बख्शेंगे जो पाकिस्तानी कलाकार को अपनी फिल्म में लेगा। हम मानते हैं कि राजनीति और कला अलग-अलग चीजें हैं और हमें इन्हें मिलाना नहीं चाहिए पर पाकिस्तान की गतिविधियों को नजरंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान लगातार भारत पर हमले कर रहा है और हम हमेशा दोस्ती का हाथ बढ़ाते रहे हैं। ताली दोनों हाथों से बजती है। क्या पाकिस्तान या किसी भी पाकिस्तानी संगठन ने लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन को अपने देश आमंत्रित किया है? यह पाकिस्तानी कलाकार पैसा और शौहरत कमाने के लिए भारत आते हैं और फिर पाकिस्तान भाग जाते हैं। कुछ समय पहले राहत फतेह अली खान इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर 50 लाख रुपए लेकर पकड़े गए थे। वह दिल्ली के एक शादी समारोह में भाग लेने आए थे। हमारी फिल्मों पर पाकिस्तान में प्रतिबंध लगता है। हाल ही में फैंटम फिल्म पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया क्योंकि उसमें एक अदाकार की शक्ल और नाम लशकर--तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद से मिलता था। अगर पाकिस्तान भारतीय कलाकारों और फिल्मों पर प्रतिबंध लगाता है तो हम क्यों उनके कलाकारों को यहां पैसा और शौहरत कमाने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते? यही वजह है कि भारत-पाक क्रिकेट श्रृंखला नहीं हो पाई। अगर हम पाकिस्तानी क्रिकेट टीम यहां तक कि आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं तो पाकिस्तानी कलाकारों पर क्यों नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

सीरिया में पुतिन का जबरदस्त सियासी दांव

आए दिन खबरें आ रही हैं कि विभिन्न देशों में कई युवाओं को वहां की सरकारों ने रोका है जो चरम कट्टरपंथी समूह इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए सीरिया जाने की कोशिश कर रहे थे। सीरिया में इस्लामिक स्टेट और राष्ट्रपति अल बशर की सेना में जबरदस्त संघर्ष चल रहा है। सीरिया और इराक में जिस रफ्तार से आईएस बढ़ रहा था उससे लगता था कि वह बहुत जल्द ही अपना कब्जा पूरे क्षेत्र में जमा लेगा और एक साल से अमेरिका और यूरोपीय साथियों ने इन्हें रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया। रोकने का ड्रामा करते रहे और अंदरखाते उन्हें पैसा व हथियार सप्लाई करते रहे। धन्य हो रूस का जिन्होंने ताबड़तोड़ हवाई हमले कर आईएस की बढ़ती रफ्तार पर रोक लगाने की कोशिश की है। रूस के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के उपप्रमुख एंड्री करतापोलाव ने शनिवार को कहाöहम न केवल हवाई हमले जारी रखेंगे बल्कि उन्हें तेज भी करेंगे। एंड्री ने कहा कि आईएस के धावा बोलने वाले ठिकाने, गोला-बारूद और विस्फोटक सामग्री वाले अड्डे, औजार मुहैया कराने वाली जगह और आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर मुख्य से निशाने पर हैं। उन्होंने कहा कि रूस के विमानों ने सतत हवाई हमलों के दौरान 60 से ज्यादा अभियान चलाए हैं और आईएस के 40 फीसद से ज्यादा ठिकानों को नष्ट कर दिया है। इन हवाई हमलों से सीरिया के सैनिकों में भी नया जोश आ गया है और वह आईएस के खिलाफ जमीनी लड़ाई में आक्रमकता दिखाने लगे हैं। पिछले दिनों रूस ने कैस्पियन सी से 26 मिसाइलें सीरिया में आईएस ठिकानों पर दागीं। एक शिप से इन मिसाइलों ने लगभग 1500 किलोमीटर दूर ठिकानों पर हमला किया। इस हमले से रूस ने यह भी साबित कर दिया कि रूस चुप बैठकर तमाशा नहीं देखता। उसने इन मिसाइलों को 1500 किलोमीटर दूर दाग कर अमेरिका व यूरोप को भी हिलाकर रख दिया है। सोवियत संघ के विघटन के बाद यह पहला मौका है जब रूस ने इस तरह अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया है। रूस ने अपनी खोई प्रतिष्ठा को भी इस झटके में पुन हासिल करने का प्रयास किया है। यूरोप तो रूसी हमलों से हिल गया है। अमेरिका अब खुलकर रूसी हस्तक्षेप का विरोध कर रहा है। उनके दोहरे मापदंडों को जितनी प्रभावी ढंग से पुतिन ने एक्सपोज किया उससे अमेरिका की बौखलाहट समझ सकते हैं। दूसरी ओर सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ने कहा कि आतंकवाद के खात्मे के लिए मध्य पूर्व में रूसी सैन्य हस्तक्षेप आवश्यक है। राष्ट्रपति असद ने ईरान के एक सरकारी टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि अगर इस क्षेत्र में आतंकवाद (आईएस) को खत्म करना है तो सीरिया को रूस, ईरान और इराक के साथ होना पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो पूरा क्षेत्र नष्ट हो जाएगा। इस गठबंधन की सफलता की पूरी संभावना है। असद ने सीरिया और इराक में अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा हो रहे हवाई हमलों की भी निन्दा की। सीरिया में रूस की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बीच अमेरिका ने संघर्षग्रस्त क्षेत्र में इस्लामिक स्टेट के खात्मे के लिए अपने नेतृत्व में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के मॉस्को को हस्तक्षेप नहीं करने के लिए चेताया है। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने संवाददाताओं को बताया कि राष्ट्रपति ओबामा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि रूस को 65 सदस्यों वाले उस अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन में हस्तक्षेप से बचना चाहिए क्योंकि यह उलटा आईएस को मजबूत कर रहे हैं। अर्नेस्ट ने कहा कि रूसी सेना के ज्यादातर हवाई हमले उन इलाकों में किए जा रहे हैं जहां पर आईएस की मौजूदगी कम है या नहीं के बराबर है। रूस, ईरान और इराक एक खेमे में है और अमेरिका व उसके सहयोगी दूसरे खेमे में हैं। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सीरियाई घरेलू जंग में मॉस्को के कूद पड़ने से हालात और ज्यादा उलझ गए हैं। रूस सीरिया में अपनी पकड़ दिनोंदिन मजबूत करता जा रहा है और अमेरिका, नॉटो समेत पूरी विश्व बिरादरी बेबस तमाशाई बनी हुई है। ब्लादिमीर पुतिन के पास सीरिया को लेकर यकीनन एक विस्तृत रणनीति है। कुछ जानकारों का कहना है कि सीरिया में पुतिन की दखलंदाजी के पीछे दरअसल घरेलू दबाव है, क्योंकि तेल की घटी कीमतों और क्रीमिया की घटना के बाद रूस के खिलाफ लगे आर्थिक प्रतिबंधों के कारण मॉस्को की माली हालत पतली हो गई है या फिर पुतिन यूकेन में  बढ़ते असंतोष से अपनी जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि अरब देश रूसी हवाई हमलों पर बिल्कुल खामोशी अख्तियार किए हुए है। उनकी चुप्पी की वजह यह भी हो सकती है कि वे भ्रम की स्थिति में हो क्योंकि सीरिया में रूस ने ऐसा दांव खेला है जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की हो।