Sunday, 25 October 2015

नेपाल की चीन परस्ती तनाव पैदा कर रही है

भारत-नेपाल के रिश्तों में हाल के दिनों में आई असहजता को दूर करने के लिए नेपाल के उपप्रधानमंत्री कमल थापा भारत आए। थापा ने कहा कि भारत के साथ जो भी गलतफहमियां थीं, वह दूर हो गई हैं। अपने तीन दिवसीय दौरे के आखिरी दिन सोमवार को स्वदेश रवाना होने से पहले थापा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे। सात प्रांतीय मॉडल वाले नए संविधान के विरोध में मधेशी और थारू समुदाय पिछले एक महीने से ज्यादा समय से सड़कों पर है और उसने सीमा पर नाकेबंदी कर रखी है, जिस वजह से भारत से नेपाल को खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर पेट्रोलियम पदार्थों की आवाजाही बुरी तरह प्रभावित हुई है। नेपाल कई बार कह चुका है कि वह चीन की तरफ से वस्तुओं की आपूर्ति के रास्ते खोलने की योजना बना रहा है। नेपाल की इस चीन परस्ती से ही भारत काफी नाराज है। नया संविधान बनने के बाद मधेशी आंदोलन को लेकर हो रहे भारत विरोधी प्रचार से केंद्र सरकार भी चिंतित है। भारत ने नेपाल से साफ-साफ कहा है कि वह अपनी आंतरिक समस्या का समाधान खुद करे। भारत में सभी का मानना है कि नेपाल में हो रहे आंदोलन से वह खुद निपटे, आंदोलनकारियों की वाजिब मांगों को सुलझाए। थापा को साफ उत्तर मिला कि सीमा पर नाकेबंदी मधेशी आंदोलन के कारण है। भारत के मालवाहक वाहनों को नेपाल के भीतर सुरक्षित ले जाने का जिम्मा नेपाल सरकार का है, भारत का नहीं। नेपाल उन्हें सुरक्षा दे तो सामान भेजने में कठिनाई नहीं होगी। नेपाली उपप्रधानमंत्री को मोदी से काफी अपेक्षाएं थीं, उनका मानना था कि मोदी विशेष हस्तक्षेप कर मामला सुलझा सकते हैं लेकिन मोदी ने नेपाली प्रतिनिधिमंडल को निराश किया। उन्होंने साफ लहजे में कहाöबताते हैं कि नेपाल एक संप्रभु राष्ट्र है, उसमें भारत सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। उन्होंने संकेतों में कहा कि नेपाल में भारत विरोधी प्रचार से चिंता स्वाभाविक है। चीन के प्रति नेपाल का अति झुकाव भारत को अच्छा नहीं लग रहा है। भारत ने तो उसे सहोदर मानते हुए सहयोग का हाथ बढ़ाया था लेकिन उस तरह का प्रतिसाद नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए था। मोदी ने यह भी कहा कि भारत पर मधेशी आंदोलन के सपोर्ट करने का आरोप गलत है। अब यह नेपाल को तय करना है कि उसे भारत का समर्थन व दोस्ती चाहिए या फिर चीन की?

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment