Thursday 22 October 2015

मुख्यमंत्री केजरीवाल के सुझाव का हम समर्थन करते हैं

बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी होनी चाहिए यह मांग पूरा देश तभी से कर रहा है जब से 16 दिसंबर को निर्भया कांड हुआ था। यह मांग भी तभी से उठती रही है कि जघन्य मामलों में नाबालिग की उम्र 18 से घटाकर 15 साल करनी चाहिए। याद रहे कि निर्भया कांड में मुख्य षड्यंत्रकारी इसलिए बच गया क्योंकि वह कुछ महीनें में कमी के कारण नाबालिग श्रेणी में आ गया था। मैंने बार-बार इसी कॉलम में यह लिखा है कि जब एक नाबालिग ऐसे जघन्य अपराध का प्लान कर सकता है, उसे अमलीजामा पहना सकता है तो उसे वही सजा मिलनी चाहिए जो बड़ी उम्र वालों को मिलती है। हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इस मांग का समर्थन करते हैं कि बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी हो और जघन्य अपराध में 15 साल से ज्यादा के आरोपी को बालिग माना जाए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को कहा कि अगर बलात्कार, हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले की उम्र 15 साल से अधिक है तो उसके साथ कानून बालिग की तरह निपटे और उसी तरह सजा मिले। सोलह साल के बाद बालिग घोषित किए जाने को लेकर जुवेनाइल एक्ट अभी संसद में लंबित है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की बैठक में अपराध कानूनों में संशोधन का पस्ताव तैयार करने के लिए मंत्री समूह (जीओएम) के गठन का फैसला किया गया। इसका मकसद महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के दोषियों को कठोर दंड दिलाना है। जीओएम नाबालिगों (बच्ची) के साथ बलात्कार के मामले में आरोपी को आजीवन करावास या फांसी की सजा को लेकर कानून व पावधानों का परीक्षण करने के बाद सुझाव देगा। अरविंद केजरीवाल ने बताया कि गृह और कानून विभाग को विभिन्न न्यायालयों में लंबित बलात्कार के मुकदमों की सूची बनाने का भी निर्देश दिया गया है ताकि दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश से सलाह कर जल्द से जल्द मामलों का निपटारा किया जा सके। जहां जघन्य अपराधियों को सख्त सजा देने की बात है वहीं यह भी जरूरी है कि ऐसे केसों का जल्द निपटारा हो। राजधानी में दिन पतिदिन रेप, गैंगरेप (विशेषकर बच्चियों से) की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। यह सियासी पार्टियां घटना होने पर आरोप-पत्यारोप की बौछार कर देती हैं और कुछ पदर्शन कर अपनी भड़ास भी निकाल लेती हैं, लेकिन इन घटनाओं को जड़ से रोकने की दिशा में कोई पयासरत नहीं है। बसंत विहार गैंगरेप मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है। मामले की चर्चा विदेशों तक में हुई। बावजूद इसके इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि आखिरी फैसला क्यों नहीं अब तक हुआ ? 16 दिसंबर 2012 को हुई इस जघन्य घटना पर साकेत ट्रायल कोर्ट ने 13 सितंबर 2013 को अपना फैसला दे दिया था। दोषियों विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर, मुकेश व पवन को फांसी की सजा मिली व पांचवें आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। दोषियों को सुनाई गई फांसी की सजा की पुष्टि की फाइल हाई कोर्ट पहुंची। हाई कोर्ट ने तुरंत संज्ञान ले लिया व मात्र छह महीने में ही अपील का निपटारा कर ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल रखा। हाई कोर्ट ने अपना फैसला 13 मार्च 2014 को दे दिया। अब मामला करीब डेढ़ साल (मार्च 2014) से सुनवाई के लिए लंबित है। अदालत ने अपील स्वीकार कर मामले को नियमित सुनवाई के लिए छोड़ दिया है। तय नियमों के तहत यदि सुनवाई नियमित हुई तो यह मामला पांच से सात वर्ष बाद सुनवाई के लिए आ सकता है। दुख तो इस बात का है कि केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार व दिल्ली पुलिस मामले की जल्द सुनवाई के लिए आवेदन लगातीं तो संभवत सुपीम कोर्ट में अब तक मामले का निपटारा हो जाता, लेकिन किसी ने इसकी जरूरत नहीं समझी। अगर मामले का जल्द निपटारा हो जाता तो संभवत आरोपियों को फांसी हो जाती। ऐसा होता तो दूसरों को भी सबक मिलता। उनके मन में भी डर बैठता। जब तक ऐसे केसों का फास्ट ट्रेक से निपटारा नहीं होता यह दरिंदगी रुकने वाली नहीं। हम दिल्ली के सीएम के सुझाव का समर्थन करते हैं।

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