Wednesday, 21 October 2015

दिल्ली में बढ़ती दरिन्दगी के लिए समाज भी दोषी है

यह हमारी दिल्ली को क्या होता जा रहा है। इन दरिन्दों ने तो सारी हदें पार कर दी हैं। एक बार फिर दिल्ली शर्मसार हो गई है। दिल्ली की एक पांच साल और दूसरी ढाई साल की दो मासूमों से गैंगरेप की घटना ने एक बार फिर निर्भया कांड के जख्मों को ताजा कर दिया है। पहली घटना शुक्रवार की रात निहाल विहार की है, दूसरी घटना आनंद विहार की है। निहाल विहार में एक ढाई साल की बच्ची 70 वर्षीय अपनी दादी के साथ शुक्रवार देर रात रामलीला देखने गई थी। करीब 11 बजे अचानक बिजली चली गई। इतने में बच्ची का हाथ दादी से छूट गया और इसी बीच वह गायब हो गई। करीब तीन घंटे बाद घर से एक किलोमीटर दूर पार्प में वह खून से लथपथ मिली। उसे संजय गांधी अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसकी हालत नाजुक है। राजधानी में हर रोज औसतन छह लड़कियों से दुष्कर्म होता है और 15 लड़कियों से छेड़छाड़। हालांकि दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि 16 दिसम्बर 2012 की घटना के बाद महिलाओं के लिए उठाए गए सुरक्षा के कदमों से उनका विश्वास बढ़ा है। यही वजह है कि वह  बिना डरे पुलिस थाने पहुंचकर अपने साथ हुए अन्याय व अपराध की शिकायत दर्ज करवा रही हैं। दरअसल बच्चियों के साथ हो रही हैवानियत पर एक मनोवैज्ञानिक ने बताया कि कई बार यह लोग सेक्सुअल संतुष्टि के लिए सामने वाले पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं। इसके लिए बच्चे इन्हें सॉफ्ट टारगेट नजर आते हैं। छोटी बच्चियां मासूम होती हैं और विरोध भी नहीं कर पाती हैं। घरेलू झगड़ों, गरीबी, गंदगी में रहने के कारण यह फ्रस्ट्रेड होते हैं। अपनी फ्रस्ट्रेशन को निकालने के लिए पूरी तरह अत्याचारी हो जाते हैं और असहाय बच्चों को शिकार बनाते हैं। नशे की आदत, ड्रग्स आदि लेने के कारणों से अपने आप पर नियंत्रण खो देते हैं और इस दौरान घटनाओं को अंजाम देते हैं। डॉ. अरुणा बूटा (मनोवैज्ञानिक) कहती हैं कि ऐसे रोगी पेडफिल्स (बाल यौन शोषण) बीमारी से भी आगे होते हैं जोकि मासूम बच्चियों को अपना निशाना बनाते हैं। निठारी कांड का दोषी पेडफिल्स बीमारी से पीड़ित था। हालांकि इन मासूम बच्चियों के गुनहगार बेहद ही गंभीर रूप से मानसिक रोगी हैं जिनका खुद पर कंट्रोल नहीं रहता। मां-बाप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। अंधेरी तंग गलियों में शाम ढलने से पहले ही बच्चों को घर में  बुला लेना चाहिए। अंधेरे में खासकर उन जगहों पर जहां बत्ती पर्याप्त नहीं है वहां तो बिल्कुल नहीं खेलने देना चाहिए। 2012 में 415 केस सामने आए थे जो 2014 में 1004 केस हो गए हैं। झुग्गी कॉलोनियां, स्लम क्षेत्र ज्यादा प्रभावित हैं। स्पेशल सीपी दीपक मिश्रा (क्राइम एवं व्यवस्था) ने कहाöदुष्कर्म की घटनाएं केवल दिल्ली में नहीं बल्कि विदेशों में भी होती हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी केवल पुलिस की नहीं बल्कि समाज की भी है। समझ नहीं आ रहा कि हमारे समाज को क्या होता जा रहा है और यह सिलसिला कब थमेगा?

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