Friday 16 October 2015

डाक्टर गूगल सर्च से कर रहे हैं इलाज

डाक्टरों की लापरवाही से मरीजों की जान जाना कोई साधारण लापरवाही नहीं है। आप किसी की जान से खेल रहे हैं। एक तरह से यह मरीज की हत्या करने समान है। कुछ दिन पहले दिल्ली के दो बड़े अस्पताल सफदरजंग व हिन्दुराव में डाक्टरों की लापरवाही से एक 10 वर्षीय बच्चे का पैर कट गया। हुआ यह था कि बच्चे के बाएं पैर में शीशा धंस गया था। दोनों अस्पतालों के डाक्टरों की लापरवाही से बच्चे का पैर काटना पड़ा। मामले में दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) ने दोनों अस्पतालों के चार डाक्टरों का लाइसेंस एक महीने के लिए रद्द कर दिया। यह घटना दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली और डाक्टरों की लापरवाही को बयां करती है। इससे साफ है कि दिल्ली के डाक्टर खासकर सरकारी अस्पतालों में मरीजों को न तो सही ढंग से देखते हैं और न ही सही इलाज करते हैं। यह हाल अकेले भारत का ही नहीं। अब तो एक नई समस्या खड़ी हो रही है। आप इसे डिजिटल क्रांति भी कह सकते हैं और मेडिकल क्षेत्र की बेबसी भी। एशियाभर में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 90 प्रतिशत डाक्टर्स इलाज के लिए गूगल का इस्तेमाल कर रहे हैं और नेट सर्च के भरोसे है। रेफरंस ड्यूरिंग ट्रीटमेंट एंड सर्जरी के तहत की गई इस स्टडी में यह पता लगाने की कोशिश की गई थी कि डाक्टर इलाज के दौरान किस माध्यम की मदद लेते हैं, किस मीडियम पर भरोसा करते हैं। स्टडी में पाया गया कि डाक्टर्स एक दिन के काम में लगभग छह प्रोफेशनल सर्च करते हैं। यह भी पाया गया कि 58 प्रतिशत फिजिशियन सिस्टम पर ही नेट सर्च पर यकीन कर रहे हैं जबकि 14 प्रतिशत अभी भी प्रकाशित माध्यम पर भरोसा कर रहे हैं। तीन में से एक फिजिशियन ने जवाब दिया कि वह मरीज के इलाज के दौरान मोबाइल सर्च कर लेते हैं। इंटरनेट के आने से और सब प्रकार की जानकारी उपलब्ध होने के कारण अब तो मरीज खुद भी बीमारी की पूरी जानकारी नेट से ले लेते हैं। इससे यह फायदा होता है कि मरीज जानने लगा है कि उसे क्या बीमारी है और उसका क्या इलाज है? अब ऐसे मरीजों को डाक्टर आसानी से बेवकूफ भी नहीं बना सकते। देश में मरीजों का इलाज करने वाले कई डाक्टरों की हालत भी ठीक नहीं है। एक अध्ययन में सामने आया है कि कामकाज के बोझ से उबरने के लिए कुछ डाक्टर अब नशे के आदी भी हो रहे हैं। इन्होंने शुरू में मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नशीली दवाओं का इस्तेमाल अपना तनाव कम करने के लिए किया। बाद में उन्हें नशे की लत लग गई। बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस के पांच साल के एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। स्टडी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च जर्नल के ताजा अंक में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है। मरीजों को भले ही नशीली गोलियां मिलना मुश्किल हो पर डाक्टरों को यह आसानी से मिल जाती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment